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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

14 June 2020

जा चुके सुशांत से पीड़ा में डूबे मन के कुछ सवाल

तुम आज इस दुनिया में नहीं हो सुशांत- मन दुखी है | पीड़ा में डूबा है | पर सच कहूं तो इस पीड़ा के पीछे तुम्हारी परिस्थतियाँ, तुम्हारे मन की टूटन और अकेलापन नहीं बल्कि सवालों की एक बड़ी फेहरिस्त है सुशांत | वो इसलिए कि इस दौर में बेघर, बेरोजगार, अपनों से दूर फंसे लोग भी जीवन से जूझ रहे हैं | आने वाले कल की सुबह अपने साथ क्या लाये कुछ पता नहीं, ऐसी परिस्थतियों में भी जीवन का मान कर रहे हैं | जिजीविषा से जिंदगी को साध रहे हैं | यकीनन तुम्हारी पीड़ा और हालात सड़क पर नंगे पाँव चल रहे लोगों से बढ़कर नहीं हो सकते | इसीलिए तुम्हारे लिए सिर्फ सवाल ही हैं मन में ---- हाँ दिल दुखी जरूर है --- मैं तुम्हारे अपनों के लिए दुखी हूँ.... तुम जो उदाहरण छोड़ गए कमजोर पड़ने का उसके लिए परेशान हूँ | सब कुछ हासिल कर लेने के बाद मन में जो रीतपान तुम जैसे युवा पाल लेते हैं ना, उसके लिए दुखी हूँ मैं |
मुंबई जैसा महानगर एक समंदर सा है सुशांत | यहाँ हर दिन हजारों युवा सपने पूरे करने आते हैं | सपनों के इस संघर्ष की लहरों में तैरते कम और डूबते ज्यादा हैं | पर हर कोई जिंदगी से तो नहीं हारता | फिर इस शहर में तुम्हारे तो सारे सपने पूरे हुए | वो भी किसी समझौते के साथ नहीं बल्कि सम्मानजनक काम करके | स्नेह, सम्मान,पैसा सब कुछ तुम्हारी झोली में आया --- फिर यह क्यों सुशांत ?? इस देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं जिनकी जिंदगी ही संघर्ष में गुजर जाती है सुशांत | जीवन के सबसे प्यारे और ऊर्जामयी मोड़ पर तो तुमने लगभग सब कुछ पा लिया था | फिर यूँ जिंदगी का हाथ छोड़कर तुम उन युवाओं के लिए कैसा उदाहरण छोड़ गए हो सुशांत- जो आज संघर्षशील हैं | जो नहीं जानते कि उन्हें इस मेहनत का कोई फल मिलेगा भी या नहीं ? तुम्हारा कदम निराश करता है क्योंकि तुम हारने का एक उदाहरण छोड़ गए हो सुशांत - आखिर क्यों ??
तुम चकाचौंध भरी दुनिया में पैदा नहीं हुये थे सुशांत | सब कुछ मेहनत पाया | आम परिवार के बच्चे थे तो उलझनें और कमी-बेशी भी देखी ही होगी | दुःख-पीड़ा और मन की टूटन से पहले भी वास्ता तो पड़ा ही होगा | तो जानते-समझते ही होगे कि आम घरों के बच्चे तो उम्मीदों के सहारे ही जीते-जूझते हैं | हर हाल में जिन्दगी का हाथ थामे रहते हैं | छोटे शहरों -कस्बों के बच्चों के लिए तो तुम एक प्रेरणा के समान थे | जब कुछ नहीं था तब डटे रहे तो अब सब कुछ पाकर तुम्हारी उम्मीद क्यों टूटी सुशांत ? बैक डांसर से लेकर टीवी सीरियल और फिर सिनेमाई परदे तक का सफ़र आसान तो नहीं रहा होगा ? कितना जूझकर यह सब हासिल किया होगा ? एक छोटे शहर से लेकर मायानगरी तक के सफर में कितने उतार-चढाव देखें होंगें ? कितने अंधेरे तुम्हारे हिस्से आये होंगें समझना मुश्किल नहीं हैं | सुशांत , तुमने तो अपनों से लड़कर भी अपने सपने साकार करने की ठानी और सफल भी हुए | जब रास्तों की मुश्किलों से नहीं हारे तो हर तरह से सफल कही जा सकने वाली जिन्दगी तक पहुंचकर कैसे उसका हाथ छोड़ दिया ??
तुम्हारी एक हालिया फिल्म तो बाकायदा आत्महत्या जैसा कदम उठाने के बजाय जीवन का सामना करने की सीख देने वाली थी | संवाद और साथ जरूरी है, यही समझाने वाली थी | तुम अवसाद या उलझन में तो कम से कम फिल्म की कहानी को याद करते हुए अपने बड़ों की ओर लौटते | यकीन मानो तुम निराश नहीं होते | घर के अपने बच्चों को निराश करते ही नहीं कभी | तकलीफों के दौर में बिलकुल भी नहीं | पिता के सामने रोते | बहनों के सामने मन खोलते | अब तुम्हारे जाने के बाद उनका यह जानना कि तुम अवसाद के शिकार थे | दवाइयां खा रहे थे | कितना तोड़ेगा उन्हें ? तुम अपनों तक को मन की क्यों नहीं कह पाए सुशांत ? ?सबसे बड़ा सवाल तुम इतने स्वार्थ कैसे हो गए कि अपनों को यह असहनीय पीड़ा देकर चल दिए | जिस माँ के तुम बहुत करीब रहे, उनके सालों पहले दुनिया से चले जाने की पीड़ा झेलकर भी संभल गये थे तो अब यह कौनसा भय और दुःख तुम्हे बिखेर गया सुशांत ? माँ को तुम हर दिन याद करते रहे, तो यह भी सोचते कि अब तुम्हारे ना होने की इस पीड़ा के पहाड़ तले बहनों और पापा की जिन्दगी कैसे कटेगी ?? यकीन मानो प्रश्न और भी बहुत हैं | लम्बी सूची है सवालों की मन में पर नम आँखों से लिखा न जा रहा |शायद तुम किसी चीज़ या हालात से नाख़ुश थे सुशांत -- पर यह कदम उठाकर अनगिनत अपनों-परायों को निराश कर गए हो - जहां हो वहां सुकून पाओ यही दुआ है |
 

7 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

इस सब के हम अवसाद को बीमारी मानने से खुद नकार देते हैं और वही बीमारी का अंत आत्महत्या होता है। ईलाज सम्भव होते हैं पर उसके लिये साथ में रहने वाले पारिवारिक जन होने जरूरी हैं जो भाँप सकें कुछ। पर ये भी हमेशा कारगर नहीं होता। हर आत्महत्या कई प्रश्न छोड़ जाती है जिनके कहीं जवाब नहीं होते हैं। श्रद्धाँजलि।

Ravindra Singh Yadav said...

नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (08-06-2020) को 'कुछ किताबों के सफेद पन्नों पर' (चर्चा अंक-3733) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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-रवीन्द्र सिंह यादव

Onkar said...

दिल को छूनेवाली पोस्ट

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...


दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि।

अनीता सैनी said...

हृदय स्पर्शी सृजन. श्रद्धांजलि।

shardaarora.blogspot.in said...

aah ...hridy sparshi post..

Jyoti Dehliwal said...

मोनिका दी,सचमुच सुशांत की आत्महत्या ने मन मे कई सवाल पैदा किए है। अब मीडिया कह रहा है कि ये आत्महत्या नही हत्या है। देखते है क्या पता चलता है? जो भी हो इतने काबिल व्यक्ति का इस तरह दुखद निधन दिल को झकझोर देता है। आप कई महीनों से मेरे ब्लॉग पर नही आई। अवश्य आइएगा। आपकी टिप्पणियां हौसला देती है।

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