
- डॉ. मोनिका शर्मा
- पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नात्तकोत्तर | हिंदी समाचार पत्रों में प्रकाशित समाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | संप्रति समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित काव्य संग्रह " देहरी के अक्षांश पर "

11 January 2021
06 December 2020
27 September 2020
10 September 2020
24 August 2020
19 March 2020
पीड़ा हो या सुख- हम सनसनी बनाने को अभिशप्त और अभ्यस्त हो चले हैं...
इन दिनों जिस चीज़ से सबसे ज्यादा कोफ़्त हुई, वो है हद से ज्यादा सूचनाएं और बेवजह के बेहूदा मजाक | ना विषय की गंभीरता को समझा जाता है और ना ही सूचनाओं का सच जानने की जरूरत समझी जाती है | बस, सनसनी बनाना है हर विषय को | चुटकुले बनाकर मायने ही ख़त्म कर देने हैं किसी भी मामले के | बेवजह के विचार और अर्थहीन बातें बो देनी हैं कि नई कोपलें कुछ अलग ही रंग में फूटें | पुरानी समस्या तो जड़ें जमाये रहे ही नई विप्पत्ति और खड़ी हो जाय | कमाल यह कि यह सब बिना रुके-बिना थके जारी है | ऐसे शोर की तरह जो गूँजता तो नहीं पर सोच और समझ गुम करने को काफी है |
अब हर मुसीबत एक मौका है ----अपना प्रोडक्ट बेचने का--अपना ज्ञान बघारने का--ख़ुद को ख़ास दिखाने का--हंसी-ठिठोली करने का | सजगता और सतर्कता को दिया जाने वाला समय ऐसे-ऐसे मोर्चों पर खर्च होता है कि आपदा के लड़ना और मुश्किल हो जाए | हर वो खुरापात की जाए जो ख़ौफ़ को और बढ़ा दे | दिल्ली के सफदरजंग हॉस्पिटल से इसी सनसनी की बदौलत एक दुखद खबर सामने आ गई है | कोरोना वायरस से संक्रमित एक मरीज ने आत्महत्या कर ली है | सातवीं मंजिल से कूदकर अपनी जान देने वाला यह व्यक्ति सिडनी से वापस अपने देश लौटा था | कोई हैरानी नहीं हमने इस वैश्विक विपदा को भी मजाक और सूचनाएं ठेलने का मौका बना लिया है | नतीजा, भरोसे से भरे परिवेश की जगह भय का माहौल बन रहा है |
संयम और ठहराव हमारी परवरिश का हिस्सा रहा है | हमारे यहाँ आज भी ज़िंदगी इतनी आसान नहीं कि बिना समझ और धैर्य के कट सके | लेकिन न्यूज चैनल्स हों या सोशल मीडिया - कहीं कोई ठहराव नहीं दिखता | आपदा से लड़ने का नहीं बल्कि कहीं दिखने और कहीं बिकने का भाव ज्यादा दिख रहा है | जीवन पर बन आये तब भी हम एक अलग ही उन्माद में डूबे रहते हैं | ख़ुशी का मौका हो या कोई आपदा | हम तो आदी हो गए हैं इसे सनसनी बनाने के | प्लीज़ इससे बचिए --- थोड़ा ठहरिये |
24 January 2020
बेटियों एक प्रति संवेदनशील बने समाज
जिस समाज में लैंगिक असमानता और भ्रूणहत्या जैसी कुरीतियाँ आज भी मौजूद हैं, वहां संवेदनशील और सहयोगी सामाजिक व्यवस्था ही बालिकाओं के जीवन की दशा बदल सकती है | विचारणीय है कि बेटियों के लिए संवेदनशील और सम्मानजनक परिवेश बनाने का अहम् पहलू जन- जागरूकता से जुड़ा है | राष्ट्रीय बालिका दिवस का उद्देश्य समाज में बेटियों को समानता का अधिकार दिलाने की जागरूकता लाना ही है | इस खास दिवस का मकसद देश की बेटियों के लिए सहयोगी, सुविधापूर्ण और सम्मानजनक वातावरण बनना है, जिसमें उनके व्यक्तित्व का सर्वांगींण विकास हो | बालिकाएं शिक्षा से लेकर सुरक्षा तक, हर मोर्चे पर भेदभाव से परे संविधान द्वारा दिए गए उन अधिकारों को जी सकें, जो भारत की नागरिक होने के नाते उनके हिस्से आये हैं | सुखद है कि हालिया बरसों में आये बदलावों के चलते बेटियां आगे भी बढ़ रही हैं और अपना स्वतंत्र अस्तित्व भी गढ़ रही हैं | ऐसे में अगर सुरक्षा और समानता का माहौल मिले तो बेटियों का आज ही नहीं संवरेगा बल्कि आने वाले कल में वे सशक्त और चेतनासंपन्न नागरिक भी बन पाएगीं | ( नईदुनिया में प्रकाशित लेख का अंश )
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