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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

17 February 2019

भारत में भी मिले हिन्दी को मान

डेली न्यूज़ में प्रकाशित 

हाल ही में अबू धाबी  के न्यायिक विभाग ने कामगारों से जुड़े मामलों में अरबी और अंग्रेजी के अलावा हिंदी में भी बयान, दावे और अपील दायर करने की शुरुआत की है। इस ऐतिहासिक फैसले के बाद  अरबी और अंग्रेजी के बाद अब हिंदी को भी वहां की अदालतों में तीसरी आधिकारिक भाषा के रूप में शामिल कर लिया है। सुखद है कि देश के बाहर भी हिंदी भाषा अपना परचम लहरा रही है।  संयुक्त अरब अमीरात में भारतीय लोगों की देश की कुल आबादी का 30 फीसदी है | वहां ऐसे कामगार भी संख्या हैं जो अंग्रेजी  भी नहीं समझ पाते |  यही वजह है कि न्यायिक प्रक्रिया में हिंदी को भी आधिकारिक रूप से शामिल किया गया है | अब हिंदी भाषी लोग भी समूची न्यायिक प्रक्रिया को सहजता से समझ पायेंगें |    

चिंतनीय यह भी है कि भारत में आज भी न्यायिक प्रक्रिया में अंग्रेजी के दबदबे के चलते आमजन के लिए असहजता बनी हुई है | गांवों-कस्बों में बसे लोगों को अदालती प्रक्रिया से गुजरते हुए इस भाषाई दिक्कत का सामना करना पड़ता है | अफसोसनाक ही है कि जिस देश की राजभाषा हिंदी है, वहां किसी आम नागरिक के लिए यह समझना भी मुश्किल बना हुआ है कि अदालत में उसका पक्ष किस तरह रखा जा रहा है ?  हमारे देश एक बड़ी आबादी आज भी अंग्रेजी भाषा नहीं समझती-बोलती | ऐसे में  कानूनी प्रक्रिया से लेकर, सुनवाई और फैसले तक समझने में लोगों को दिक्कत आती है | यही वजह है कि यह भाषाई  बाध्यता केवल कानूनी ही नहीं संवेदनाओं और भावनाओं से जुड़ा मामला भी है |  (लेख का अंश )  

4 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-02-2019) को "कश्मीर सेना के हवाले हो" (चर्चा अंक-3252) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन आइये बनें हम भी सैनिक परिवार का हिस्सा : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

दिगम्बर नासवा said...

हिंदी में न्याय प्रणाली ही नहीं सभी कुछ उपलब्ध हो ये उपयुक्त भी है ... न सिर्फ भावनात्मक बल्कि व्यवहारिक दृष्टि से भी ... अच्छा आलेख ...

HARSHVARDHAN said...

आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति नमन - नामवर सिंह और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। एक बार आकर हमारा मान जरूर बढ़ाएँ। सादर ... अभिनन्दन।।

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