कह पाना जितना सरल है भावों और विचारों को शब्दों के रूप ने लिख पाना उतना ही कठिन । जाने कितनी ही बार यह आभास हुआ है कि विचारों का आवागमन जारी रहता है पर शब्द जाने कहाँ अपनी ही मौज में खोये होते हैं । कितने ही विषय हर दिन मन-मस्तिष्क के द्वार पर दस्तक देते हैं । अक्षरों के समूहों का साथ चाहते हैं जो भावों का अर्थ और गहनता जस-तस रखते हुए कागज़ पर उतर आयें । पर ऐसा हो नहीं पाता । साथ ही नहीं थमता शब्द खोजने का क्रम । आश्चर्य होता है कि शब्दों को लेकर जो अनुभूति कहीं भीतर पैठ रखती है वही संवेदना लेखन में उकेरना इतना कठिन क्यों ?
विचारों का शब्दों के साथ समन्वय कभी सरल नहीं लगा। लिखे जाने से पहले विचार जितना उमड़ते घुमड़ते हैं शब्द उतना ही छुपने छुपाने में लगे रहते हैं । लेखन एक भावनात्मक कर्म है । शब्दों का जोड़ तोड़ भर नहीं । इसीलिए रचनात्मक सोच को जब तक सही शब्दों का साथ नहीं मिलता भाव भी अर्थहीन ही प्रतीत होते हैं, जो शब्दों में ढ़ल ही नहीं पाते । ऐसे भाव यदि शाब्दिक प्रस्तुति बन भी जाएँ तो भी प्रभावहीन ही लगते हैं । इसीलिए कहते हैं कि अनुभव और अनुभूति का मेल सार्थक लेखन के लिए आवश्यक है । जो देखा जिया है उसकी अभिव्यक्ति में शब्द भी साथ देते हैं । हालाँकि लेखन तो कर्म ही ऐसा है जो अदृष्ट को भी रच लेता है । ऐसे में एक बात जो हर परिस्थिति में लागू होती है वो यही है कि शब्दों के साथ के बिना कुछ भी संभव नहीं ।
जब कुछ कहा जाता है तो श्रोता को समझाने के कई विकल्प सामने होते हैं । ना शब्दों की कमी खलती है और ना ही कोई नियत सीमा विचार प्रवाह को बाधित करती है । लेखन में मानो सब कुछ इसके विपरीत ही हो जाता है । एक शब्द स्थान चूका और लिखे का अर्थ ही खो जाता है । कभी कभी तो अर्थ का अनर्थ भी हो जाता है । लिखे गए भावों के समझे गए अर्थ पूरी तरह बदल जाते हैं । कितने विचित्र होते हैं ये शब्द भी । कभी प्रभावित कर जाते हैं और कभी लिखी गयी बात के मायने ही नहीं समझा पाते । इसी अर्थपूर्ण संतुलन को खोजने में जाने कितना ही समय निकला जाता है ।
इस दुविधा से अक्सर जूझती हूँ । लेखन में अनियमितता का कारण भी यही द्वंद्व होता है । हर बार मन उलझ जाता है । भावों, विचारों और शब्दों के इस खेल में । अपने ही लिखे को जब पढ़ती हूँ तो हमेशा यही लगता है कि कुछ छूट गया है । इससे श्रेष्ठतर भी कुछ हो सकता था । इसीलिए विचार जब शब्दों का साथ पाते हैं तो कई बार आंशिक रूप से स्पष्ट प्रतीत होते हैं पर उनमें पूर्णता नहीं दिखती । स्वयं के अभिव्यक्त विचारों में सम्पूर्णता की यह तलाश अनवरत चलती रहती है । हाँ, सकारात्मक पक्ष यह है कि लेखन की यह जद्दोज़हद पठन की राह सुझाती है। फिर स्तरीय सामग्री पढने और खूब पढने का मन करता है । संतुष्टि भी मिलती है कि लेखन को उन्नत करने का मार्ग यही हो सकता है । यह उन शब्दों की खोज का रास्ता बनता है जो हमारे लिखे को अर्थ देते है, क्योंकि शब्दों के बिना लेखन और अर्थ के बिना शब्दों के क्या मायने हैं ? ऐसे में यह विचार और बल पाता है कि भावों और शब्दों के सार्थक समन्वय को तलाशती यह सोच सदैव जीवंत बनी रहे और शब्दों की खोज के प्रयास अनवरत जारी रहें ।
84 comments:
कभी कभी मन ठहर सा जाता है और विचार जम से जाते हैं तब शब्द मूक हो जाते है उपयुक्तता तलाशती बगल में बैठ जाती है *****
लिखने वालों के साथ यह समस्या आम है . मन में जाने कितने विचार उमड़ते घुमड़ते लिखते समय शब्दों के अभाव में एक दम से हवा हो जाते हैं जैसे कि दाने चुगती ढेर सारी चिड़िया को किसी ने पत्थर मार कर उड़ा दिया हो या यूँ ही किसी की आहट पा कर फुर्र से उड़ गयी हों , हम ढूंढते ही रह जाते हैं , अभी तो यही थी !! विशेष कर जब अपने मन का लिखना हो !!
कितने ही विषय हर दिन मन-मस्तिष्क के द्वार पर दस्तक देते हैं । अक्षरों के समूहों का साथ चाहते हैं जो भावों का अर्थ और गहनता जस-तस रखते हुए कागज़ पर उतर आयें । पर ऐसा हो नहीं पाता । साथ ही नहीं थमता शब्द खोजने का क्रम । आश्चर्य होता है कि शब्दों को लेकर जो अनुभूति कहीं भीतर पैठ रखती है वही संवेदना लेखन में उकेरना इतना कठिन क्यों ?
आपने तो मेरे मन की बात कह दी
क्या बात है!
अच्छा अच्छा पढ़ने से सहायता मिलती है
अब शब्द बेचारे क्या करें जो जैसा जहाँ चाहे धर देता है
टांक देता है अभिव्यक्ति में,अनुभूति में
शब्दों के संदर्भ में बेहतरीन आलेख
बधाई
कभी शब्द मिले तो भाव नहीं, कभी भाव मिले तो शब्द नहीं . कभी अनुभव है,अनुभूति भी है,पर शब्दों का मेल नहीं.शब्द हमेशा छोटा पड़ता है.
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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अभिव्यक्ति के लिए शब्द ज़रूरी पर कभी कभी न जाने कहाँ विचरण कराते हैं शब्द ..... सटीक लिखा है ..... लेकिन लिखने के लिए पढ़ते रहना ज़रूरी है ।
उचित शब्द और प्रभावी वाक्य रचना ही विचार को सार्थक और स्पष्ट करते है,और इसी के अभाव में विचार उलझ जातेहै.
ये समस्या आप के ही नहीं लगभग सभी के साथ होती है कई बार ऐसा होता है कि मन करता है एक साथ कई विषयों पर लिखने का मन होता है तो कई बार कुछ भी नहीं सूझता।पर इस बात पर सबके अलग अलग अनुभव हो सकते हैं कि कहने की बजाए लिखना ज्यादा कठिन है।ये कोई जरूरी भी नहीं।बहुत सी ऐसी बातें हैं जिन्हें हम कह नहीं सकते लेकिन उन पर लिखते खुलकर हैं।कहते हुए तो हम इस बात का भी ध्यान रखते हैं कि सुनने वाला इसमें कितनी रुचि ले रहा है या इस विषय में उसकी कितनी समझ है इन प्रभाव हम पर पड़ता है लेकिन लिखा सभी के लिए जाता है अतः जो भी बताना चाहते हैं वह खुलकर लिख सकते हैं।
prabhavsahli prastuti,
शब्द बड़े मनमौजी है, समय देकर मनाना पड़ता है, एक बार आ जायें तो बार बार उयोग में लाकर साधना पड़ता है।
आप तो हमेशा ही अच्छा लिखती हैं ....
बिल्कुल दिल की बात लिख दी आपने मोनिका जी!
हीर जी से सहमत हैं हम... आप सच में बहुत अच्छा लिखतीं हैं! अब यही देखिए ना! इस विचार से हर कोई गुज़रता होगा... मगर आपने इसे कितनी ख़ूबसूरती से बयाँ कर दिया... :-)
~सादर!!!
यह सभी लिखने वालों के साथ होता है, कई बार ऐसा होता है कि 4/5 पोस्ट एक साथ बन जाती है और कभी कभी दिमाग एकदम भिखारी के कटोरे जैसा हो जाता है.
रामराम.
सही कहा आपने.......यही बात आपके लेखन के प्रति समर्पण को दर्शाती है......जब तक स्वयं संतुष्ट न हो दूसरों से अपेक्षा करना vyarth सा लगता है........आपके लेखों में विषयों और शब्दों के चयन का सुन्दर समागम देखने में आता है......ऐसे ही लिखती रहें...........शुभकामनायें।
beshak ak behatareen prastuti
ठीक कहा आपने।
कभी कभी तो मन ऐसा सुप्त होता है कि..खैर यह समस्या आम है,एक फेज है.
monika ji ...ye sahaj hi sabke saath hota hai...bahut sahi pakda hai aapne :)
कई बार ऐसा भी होता है, किसी विषय पर लिखने बैठो और पता नहीं कहाँ से उमड़ते-घुमड़ते इतने सारे विचार आ जाते हैं कि वह विषय गौण हो जाता है और किसी दुसरे विषय पर ही लेखनी चल जाती है.
उचित समय पर उचित शब्द और प्रभावी वाक्य हमारे विचार को सही दिशा देते है.
यह अनवरत खोज ..यह पिपासा ही तो कुछ नया रचवाती है ... सुन्दर व विचारपूर्ण लेख!
विचारों को तुरंत न सहेजा जाए तो फुर्र हो जाते हैं।
कुछ 'भाव' उद्दंड प्रकृति के होते हैं जो 'शब्दों' पर सवार बहुत मुश्किल से होते हैं ।
सच लिखा आपने , ऐसा अक्सर होता है ।
आज की ब्लॉग बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन पर मेरी पहली बुलेटिन में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है। सादर आभार।।
बहुत सही कहा. कई वार विचारों और शब्दों के बीच आंखमिचौली का खेल भी
सहना पडता है...
sahi kaha aapne shabdon ke saath kai baar vicharo ko bhi sangharsh karna padta hai ...........
bhetrin likhkha hai aapne bhot khub
संवाद का एक बड़ा हिस्सा वाकहीन संवाद का होता है जो कि आमने सामने की स्थिति मे काफी स्पष्ट होता है तो भी गलतफहमियाँ हो जाती हैं। लेखन की डगर तो बहुत कठिन है। फिर भी संवाद तो मानवीय आवश्यकता है, आफ्टर ऑल, मैन इज़ ए सोशल एनिमल ...
बहुत ही सारगर्भित पोस्ट |
रचनात्मक कार्य के पीछे स्वयं के अंतर्द्वंद को बहुत अच्छे से व्यक्त किया है आपने. कुछ छूट जाने की बात बिलकुल ठीक कहा है. पर यही कमी अगले सृजन को परिष्कृत करने में मदद भी करती है.
िजनके पास सुदृढ शब्दावली हैं वे अच्छे लेखक बन जाते हैं।
शब्दों को अगर डाट-डपट कर रचना में पिरो भी दिया जाय फिर भी वह निस्तेज ही रहते हैं और रचना निर्जीव. भावों को सटीक शब्दों में गूंथ कर ही रचना में सुचारू प्राण प्रवाह होता है.
vani di ke baat se sahmat hoon :)
सच कहा आपने
शब्द और अर्थ को जो समेटे वही साहित्य (हित का भाव लिए )होता है
जब कोई जल-स्त्रोत(विचार) प्रस्फुटित होता है तो भूमि(मन) उसकी जल-धार(शब्द)को अवशोषित करने लगती है.जल-धार का निरंतर प्रवाह भूमि की तृषा बुझाते हुये आगे बढ़ता जाता है.उसका मार्ग अपने आप बनता जाता है और शनै:-शनै: निर्मलता के साथ-साथ पावनता भी समाहित होते जाती है.इस प्रक्रिया में बरसों लग जाते हैं.तब कहीं जाकर यह निर्मलता और पावनता जन-जन के लिये कल्याणकारी होती है.अनवरत प्रयास और कठिन साधना से ही जन हितकारी साहित्य का जन्म होता है.आपके विचारों से शत-प्रतिशत सहमत.सादर...
सहमत हूं आपकी बात से ... शब्द, भाव और अर्थ जब जब तक मन को नहीं जांचते तब तक लेखन पूर्ण नहीं लगता ...
और शायद यश बात सच भी है ... तभी तो एक ही विषय पे अलग अलग लिखने वाले लेखों में कोइ बहुत अच्छा लगता है कोई कम ...
सार्थक अभिव्यक्ति...
बिलकुल सही ...कोई भी लेख लेखक के भावनात्मक कर्म को उजागर करती है |
अनुभूति शब्दों का पैरहन पहन ही मुखर होती है टेलर मेड पैरहन थीम के अनुरूप .भाव अभिव्यक्ति और शब्दों की यात्रा संग संग होती है .
बहुत ही सुन्दर आलेख. कई बार जब वांछित शब्द नहीं मिलते तो मायूस हो जाता हूँ।
बहुत ही सुन्दर आलेख. कई बार जब वांछित शब्द नहीं मिलते तो मायूस हो जाता हूँ।
bilkul...mere saath bhi hota hai aur shaayd sab ke saath!!
Worth Reading
बहुत सुंदर पोस्ट । सतत अभ्यास से क्या नही हो सकता । शब्दों का सही चयन भी ।
sahi kaha aapne shdon yadi sahajta se nayen to rachna sunder nahi banti prabhavhin rahti hai .
rachana
आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज ३० मई, २०१३, बृहस्पतिवार के ब्लॉग बुलेटिन - जीवन के कुछ सत्य अनुभव पर लिंक किया है | बहुत बहुत बधाई |
वाह ,बेह्तरीन
बहुत बेहतरीन .सुंदर पोस्ट।
it carries on and on..
and I agree with you... sometimes everything is in your head..
but write it down is something you fail to do.. a constant drought of words
सार्थक आलेख शब्द वाकई में कभी कभी छली हो जाते हैं ।
जिस बात को हम सोचते रह गए आपने उसे आकार दे दिया. बेहद खूबसूरत शब्दों में आपने हमारे मन की बात भी कह दी...
जो शब्द ह्रदय से निकले हैं
उन पर न कोई संशय आये
वाक्यों के अर्थ बहुत से हैं ,
मन के भावों से पहचानें !
मैंने तो अपनी रचना की, हर पंक्ति तुम्हारे नाम लिखी
क्या जाने अर्थ निकालेगी, इन छंदों का, दुनिया सारी !
स्वप्न गीत से हटा लिया टिपण्णी का ऑप्शन मेरे मीत ,
बुरा कहो या भला कुछ न कहेंगे मेरे गीत .
सही बात लिखी है.........अक्सर इस समस्या से दो-चार होते रहना पड़ता है....
अद्भुत ,
अनूठा...... सुंदर प्रस्तुति।
शब्द और अर्थ की समस्वरता ही शब्द साधना है .बढ़िया प्रस्तुति .
सीधी सरल और सपाट अभिव्यक्ति के लिए शब्दो का होना जरूरी है और शब्द भी ऐसे जो संख्या मे भले ही कम हो मगर अहसासात मे उसी कमी को पूरा करदे। बहुत शानदार रचना
सार्थक आलेख ....देर से आना हुआ :)
खूबसूरत शब्दों से शब्दों को बोल दिया !
पोस्ट !
वो नौ दिन और अखियाँ चार
हुआ तेरह ओ सोहणे यार !!
sach hai man ke har dwand har vichar ko shabdon me dhalna kathin hota hai ..sundar rachna ..
गद्य लेखन में एक लयबद्धता होती है वह लयबद्धता आपके लेखन में है
अभी तक मैंने जितने ब्लॉंग पढ़े उनमें सबसे बढि़या लेखन आपका है ।
"्सबसे बढि़या"
बहुत ही सुन्दर आलेख
बीच बीच में लिखते रहना ही चाहिए.
This is the best way to vent out ...
आपका यह लेख हम सभी के मन को अभिव्यक्त करता है. इस दुविधा से सभी गुजरते है।
एक सार्थक आलेख । सबके साथ ऐसा होता है । शब्दोँ का अभाव विचाराभिव्यक्ति मेँ बाधक । बधाई । सस्नेह
एक सार्थक आलेख । सबके साथ ऐसा होता है । शब्दोँ का अभाव विचाराभिव्यक्ति मेँ बाधक । बधाई । सस्नेह
अगली पोस्ट प्रतीक्षित रहती है आपकी .शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .ॐ शान्ति .
मेरी भी यही दिक्कत है कि भाव की गति हमेशा शब्दों से अधिक रहती है और बहुत कुछ शब्दहीन रह जाता है ......
कहां हैं। स्वास्थ्य ठीक है ना। बहुत दिनों से कोई खबर नहीं आपकी।
बैठक ठक ठक रोज, बड़े मसले हैं घटते |
ये जनसंख्या बोझ, चलो इस तरह निबटते ||
बहुत खूब .
unda-***
बेहद सशक्त भावाभिव्यक्ति ....शब्दों की पड़ताल करती तौलती उनका वजन अर्थ और भाव के साथ सामंजस्य का .सहज अनुभूत अभिव्यक्ति मन की परिवेश की .ॐ शान्ति .
वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
कभी यहाँ भी पधारें
सबसे ज़रुरी है-संवेदनशीलता के साथ अपने भीतर और बाहर दोनों को महसूस करना। जिस दिन यह होगा,शब्द अपने आप उतरेंगे। अन्यथा,लिखना तो कृत्रिम रूप से भी बहुत हो सकता है।
बेहतरीन...बधाई...
जी हाँ ये समस्या सब के साथ होती है, लिखने को हम बहुत कुछ सोचते है पर हम लिख नही पाते...
मोनिकाजी, कुछ इसी तरह के विचार मैनें अपने ब्लॉग की एक पोस्ट में कुछ महीनों पहले व्यक्त किये थे- http://filmihai.blogspot.in/2013/03/blog-post.html । यकीनन अपनी भावनाओं को हम पूर्णतः व्यक्त कर पाने में हमेशा असमर्थ रहते हैं...सार्थक प्रस्तुति।।।
बहुत सच्चाई के साथ लिखा है ... दिल को छू गया ...
लेखन में प्रवाह और सार दोनों का सम्मिश्रण है ..... सुंदर रोचक
आपकी टिप्पणियों का धन्यवाद .
बहुत सुन्दर
wow........behad achchi post....:-)
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