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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

09 February 2014

स्मृतियाँ साथ चलती हैं


अपने बीते कल की ओर मुड़कर देखने की चाह हर मन में होती है । तभी तो यादें हमारे ह्रदय में स्थान पातीं हैं । जीवन का सहारा बनती हैं। खट्टी हों या मीठी स्मृतियाँ सदा अपनी सी लगती हैं । बैठे बैठे कभी मन ही जीवन के संस्मरण दोहराने लगता है तो कभी मस्तिष्क जन बूझकर उन यादों की  गहराई तक ले जाता है जो पीछे छूट गयीं हैं । जाने  ह्रदय के कौन से कोने में इतना स्थान खली पड़ा रहता है हर स्मृति को स्थान मिल जाता है । कितने ही चरित्र और घटनाएं हमारे भीतर जीवंत बनी रहती हैं । कभी कचोटती हैं तो कभी मुस्कुराहटें बिखेर देती हैं । स्मृतियाँ यह सिखाती समझाती हैं कि जीवन आगे बढ़ता है पर पीछे कुछ नहीं छूटता । 

स्मृतियाँ चाहे अनचाहे मन की चौखट पर दस्तक दे ही देती हैं । अधिकार जताती हैं और हमारे समय और ऊर्जा को लेकर स्वयं को पोषित करती हैं । इन्हें तो हमारा दखल भी बर्दाश्त नहीं । जितना उपेक्षित करो उतनी ही दृढ़ता मन के द्वार खटखटाती हैं । यादों के आगे मन की विवशता भी देखते ही बनती है ।  जब चाहकर भी इनकी अवहेलना नहीं की जा सकती । बिना झाड़ -पौंछ ही ये नई  सी रहती हैं,  इन्हें विस्मृत किया ही नहीं जा सकता । 

शाम ढले अँधेरे में बैठे बैठे यूँ ही किसी का मन बीते दिनों को यात्रा पर निकल पड़ता है तो कोई यात्रा करते हुए जीवन की स्मृतियों में डूब जाता है । कभी हकीकत का कड़वा घूँट और कभी कल्पना से भी परे एक मिठास । स्मृतियाँ कुछ विशिष्ट होती हैं । हमारी सफलता असफलता के साथा ही दृढ़ता और समझौते सभी कुछ सहेजे यादें पुरानी  नहीं पड़तीं । कभी कभी लगता है जीवन जिस गति से आगे बढ़ता है बीता समय उसके साथ इतना तालमेल कैसे बनाये रखता है । कितने ही दर्द कितनी ही पीड़ाएं जाने  कल ही बात हों । सदा जीवंत रूप में साथ चलती हैं । कितने ही सुख, कितनी ही खुशियां मन को घेरे रहती हैं । 

स्मृतियाँ दुःख को समेटे हों या सुख को । एक बात हमेशा देखने में आती है कि इन्हें सहेजना हमें एक सुखद अनुभूति देता है । जीवन का ऐसा बहुत कुछ जो देखा-जिया हो, हम स्वयं से छूटने नहीं देना चाहते । चाहे उसमे पीड़ा हो या प्रेम । स्मृतियों के रूप में बीते जीवन को जीना और याद करना हर मन को सुहाता है । स्मृतियों के सागर में उठते गिरते रहने का भी अपना आनंद है । तभी तो कभी यूँ बैठकर यादों का पिटारा खोल अपनों से बतियाना कितना आनंददायी लगता है । 

स्मृतियाँ प्राणवान  होती हैं । जीवंत और अनमोल। हमें  जीना-सोचना सिखाती हैं ।  हमारे अपने ही  जीवन को सम्बोधित यादें बीते कल का प्रतिबिम्ब बन हर क्षण हमारे सामने रहतीं हैं । स्मृतियाँ बारम्बार यह आभास करवाती हैं कि न तो इन्हें भुलाया जा सकता है और न ही बिसराना कभी सम्भव हो पाता  है । ये तो साथ चलती हैं जीवन भर । तभी तो स्मृतियों के ये बिखरे सूत्र हमें सदैव बांध कर रखते हैं, अपने आप से । सम्भवतः इसीलिए हम उन्हें कभी विदा नहीं कर पाते और ये स्वयं तो विदा लेना ही नहीं चाहतीं । 


67 comments:

जयकृष्ण राय तुषार said...

सुन्दर पोस्ट |अतीत के चलचित्र वाकई अद्भुत होते हैं |

Anonymous said...

अनमोल

वाणी गीत said...

स्मृतियों का खजाना और कीमत उम्र बढ़ते बढ़ती जाती है। पन्ने पलटते कई बार अहसास होता है कि उस समय जिये जाने वाले सुख और दुःख आपस में अपना स्थान बदल चुके होते हैं !

अजित गुप्ता का कोना said...

हम सब की जमा-पूंजी ये स्‍मृतियां ही होती हैं, इन्‍हें ही स्‍मरण करके हम जीवन में आनन्‍द ढूंढते हैं।

anshumala said...

कुछ स्मृतिया अपने आप गायब हो जाती है और उनकी जगह नहीं आ जाती है तो कभी कभी जब हम उन्हें भुलाने की चेष्टा करते है तो वो न जाने की जिद्द पर आ जाती है , कुछ सहेज के रखे जाने वाली होती है तो कुछ सदा के लिए हटा दी जाने लायक ।

मेरा मन पंछी सा said...

स्मृतियाँ सुखद हो या दुखद हरपल हम उन्हें साथ रखना चाहते है.....स्मृतियों से रुबरु कराती..सच से अवगत कराती सुन्दर पोस्ट...
:-)

शोभना चौरे said...

स्मृतियाँ ही अपने द्वारा किये सही गलत निर्णयो का भान कराती है और गलतियों से सिखने कि राह बनाती है। बहुत सुन्दर लेख।

शोभना चौरे said...

स्मृतियाँ ही अपने द्वारा किये सही गलत निर्णयो का भान कराती है और गलतियों से सिखने कि राह बनाती है। बहुत सुन्दर लेख।

राजीव कुमार झा said...

स्मृतियाँ ताउम्र हमारे साथ रहती हैं.कुछ स्मृतियों को तो हम संजोकर रखना चाहते हैं.उम्र के पड़ाव में कौन सी स्मृति दस्तक देने आ जाय,पता नहीं !

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

स्मृतियों का खजाना वक़्त के साथ बढ़ता जाता है । कुछ विस्मृत भी होता है लेकिन फिर भी ये सच है कि यादों में हम पूर्व समय को जी लेते हैं ।

Vaanbhatt said...

we are sum total of our past...स्मृतियाँ ही हमें हम बनातीं हैं...

दिगम्बर नासवा said...

कहीं पढ़ा था ... अतीत कितना ही दिखाद हो उनकी स्मृतियाँ हमेशा मधुर होती हैं .. और ये बातें तो दिल के करीब रहती हैं ..

विभा रानी श्रीवास्तव said...

आपके एक एक शब्द से सहमत हूँ ......

mridula pradhan said...

bahut achchi lagi......

Anupama Tripathi said...

सच कहा आपने स्मृतियाँ सुख -दुख में साथ देती ,हमे अपने आप से जोड़ती हैं ....!!

Pallavi saxena said...

यह स्मृतियाँ ही तो हैं जो सदा साथ निभाती है।

Dr.NISHA MAHARANA said...

puri tarah sahmat hoon ......jo wyatit hua wahi to atit hai use kaise bhool sakte hain ......

Dr.NISHA MAHARANA said...

puri tarah sahmat hoon ......jo wyatit hua wahi to atit hai use kaise bhool sakte hain ......

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस प्रस्तुति को आज की कड़ियाँ और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

संध्या शर्मा said...

यादें ही तो हैं जिनमे हम जब जी चाहे अपने गुज़रे पल को जी सकते हैं, कभी आँखे नम कर जाती हैं कभी होंठो पर मुस्कान ले आती हैं ये खट्टी - मीठी सी यादें !

Vandana Ramasingh said...

"स्मृतियाँ चाहे अनचाहे मन की चौखट पर दस्तक दे ही देती हैं । अधिकार जताती हैं और हमारे समय और ऊर्जा को लेकर स्वयं को पोषित करती हैं । इन्हें तो हमारा दखल भी बर्दाश्त नहीं । जितना उपेक्षित करो उतनी ही दृढ़ता मन के द्वार खटखटाती हैं । यादों के आगे मन की विवशता भी देखते ही बनती है । जब चाहकर भी इनकी अवहेलना नहीं की जा सकती । बिना झाड़ -पौंछ ही ये नई सी रहती हैं, इन्हें विस्मृत किया ही नहीं जा सकता । "

बहुत सुन्दर भाषाप्रवाह रहता है मोनिका जी आपका और सार्थक चिंतन तो सदैव ही

प्रवीण पाण्डेय said...

स्मृतियाँ आहार भी देती हैं और विवश पाकर प्रहार भी करती हैं।

rashmi ravija said...

स्मृतियाँ तो हमेशा ही साथ बनी होती है...कुछ को एक बार फिर जी लेने को जी चाहे और कुछ को छलांग लगा,आगे बढ़ जाने को

Maheshwari kaneri said...

कहा आप ने स्मृतियाँ सुख -दुख में ,हमे अपने आप से जोड़ती हैं ....!! बहुत सुन्दर..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

स्मृतियाँ प्राणवान जीवंत और अनमोल होती है । हमें जीना-सोचना सिखाती हैं ।
RECENT POST -: पिता

Anita Lalit (अनिता ललित ) said...

स्मृतियों के बिना जीवन कितना नीरस हो जाएगा...
सुन्दर आलेख !

~सादर

abhi said...

हाँ एकदम सही कहा आपने....बिलकुल मेरी मन की बात कही है आपने ! :)

संजय भास्‍कर said...

स्मृतियों से रुबरु कराती..... सुन्दर पोस्ट..

इमरान अंसारी said...

स्मृतियाँ कभी नहीं मिटती | दुःख और सुख को समेटे ये अचेतन मन में कहीं बहुत गहरे सदा के लिए डेरा जमा लेती हैं | बहुत अच्छा लेख |

महेन्‍द्र वर्मा said...

@स्मृतियाँ दुःख को समेटे हों या सुख को । एक बात हमेशा देखने में आती है कि इन्हें सहेजना हमें एक सुखद अनुभूति देता है ।

इसीलिए तो कवि कहता है-
दुख के अंदर सुख की ज्योति
दुख ही सुख का ज्ञान.....

प्रेम सरोवर said...

शानदार प्रस्तुति से साक्षात्कार हुआ । मेरे नए पोस्ट "सपनों की भी उम्र होती है "पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है।

Rahul... said...

स्मृतियाँ प्राणवान होती हैं । जीवंत और अनमोल। हमें जीना-सोचना सिखाती हैं । हमारे अपने ही जीवन को सम्बोधित यादें बीते कल का प्रतिबिम्ब बन हर क्षण हमारे सामने रहतीं हैं । स्मृतियाँ बारम्बार यह आभास करवाती हैं कि न तो इन्हें भुलाया जा सकता है और न ही बिसराना कभी सम्भव हो पाता है । ये तो साथ चलती हैं जीवन भर ।......
sach kaha aapne

Amrita Tanmay said...

हमारे होने का यही प्रमाण भी है..

virendra sharma said...

स्व्प्न बनकर भी चली आती हैं साथ चलती हैं स्मृतियाँ। सुन्दर है भावाभिव्यक्ति।

virendra sharma said...

स्व्प्न बनकर भी चली आती हैं साथ चलती हैं स्मृतियाँ। सुन्दर है भावाभिव्यक्ति।

प्रेम सरोवर said...

प्रस्तुति प्रशमसनीय है। मेरे नरे नए पोस्ट सपनों की भी उम्र होती है, पर आपका इंजार रहेगा। धन्यवाद।

G.N.SHAW said...

Nothing but endless dream of human being.

Kailash Sharma said...

स्मृतियाँ तमाम उम्र साथ चलती रहती हैं...बहुत प्रभावी आलेख...

priyankaabhilaashi said...

बहुत सुन्दरता से दिखा गए आप स्मृतियों वाला ख़ज़ाना.. :-)

Suman said...

हमारे इस कंप्यूटर की भांति ही है हमारा मष्तिष्क अनंत स्मृतियों का संग्रह !
बहुत सुन्दर विमर्श उन स्मृतियों का !

प्रतिभा सक्सेना said...

स्मृतियाँ जीवन की जमा-पूँजी बन जाती हैं ,और कुछ तो हम सदा साथ रख भी नहीं सकते ,ये मन का साथ
निभाती हैं.

Satish Saxena said...

स्म्रतियां सहारा हैं जीवन का !!

Ankur Jain said...

अतीत चाहे कितना भी कड़वा क्युं न हो, उसकी यादें हमेशा मीठी होती है..सुंदर प्रस्तुति।।

Sachin Kumar Gurjar said...

सुन्दर प्रस्तुति , आभार !

Unknown said...

Exceptionally good. I have visited your blog for the first time and impressed by your writing style. Keep it up!!

निवेदिता श्रीवास्तव said...

स्मृतियां तो जीवन के हर लम्हे में संबल बनाये रखती हैं .....

Pramod Kumar Kush 'tanha' said...

बहुत ख़ूब

Dr (Miss) Sharad Singh said...

स्मृतियां का सुन्दर विवेचन ....

प्रेम सरोवर said...

हमें अपनी स्मृतियों को सजोकर रखना चाहिए। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।

virendra sharma said...

अपने बीते कल की ओर मुड़कर देखने की चाह हर मन में होती है । तभी तो यादें हमारे ह्रदय में स्थान पातीं हैं । जीवन का सहारा बनती हैं। खट्टी हों या मीठी स्मृतियाँ सदा अपनी सी लगती हैं । बैठे बैठे कभी मन ही जीवन के संस्मरण दोहराने लगता है तो कभी मस्तिष्क जन (जान बूझकर )

बूझकर उन यादों की गहराई तक ले जाता है जो पीछे छूट गयीं हैं । जाने ह्रदय के कौन से कोने में इतना स्थान खली (खाली )

पड़ा रहता है हर स्मृति को स्थान मिल जाता है । कितने ही चरित्र और घटनाएं हमारे भीतर जीवंत बनी रहती हैं । कभी कचोटती हैं तो कभी मुस्कुराहटें बिखेर देती हैं । स्मृतियाँ यह सिखाती समझाती हैं कि जीवन आगे बढ़ता है पर पीछे कुछ नहीं छूटता ।

सुन्दर मनोहर व्यतीत का झरोखा

Preeti Sharma said...

बहुत अच्छा लिखती हैं आप और जो सबसे महत्वपूर्ण बात है वो है संतुलित भाषा, और संयमित विचार।

प्रेम सरोवर said...

समय के साथ संवाद करती आपकी यह प्रस्तुित काफी सराहनीय है। मेरे नए पोस्ट DREAMS ALSO HAVE LIFE पर आपके सुझावों की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी।

संजय भास्‍कर said...

.......... तमाम उम्र साथ चलती रहती हैं स्मृतियाँ

प्रतुल वशिष्ठ said...

काफी समय बाद कुछ पुरानी नन्हीं स्मृतियाँ मुझे यहाँ खींच लायीं, आपको फेसबुकिया पार्टी में अपने कुछ अन्य परिचितों के साथ देखा तो मन हुआ घर ही चला जाए.


सच है ... घर पर बैठकर तसल्ली से बातें करने का सुख अन्यत्र नहीं! यहाँ तो नयी पुरानी सभी स्मृतियों से वास्ता है.


युवाओं का मोबाइल, वाट्सएप और फेसबुक पर लगातार रहना उनकी सामाजिकता को ख़त्म किये दे रहा है. बड़ी विचित्र बात देखने को मिलती है - आस-पास के लोगों की परेशानी पर उनका ध्यान नहीं जाता लेकिन मैसेज द्वारा मिली सूचनाओं पर रिप्लाई मैसेज से तुरंत रिएक्ट करते हैं. अगर वो ऐसा न करें तो उन्हें अफ़सोस करते भी देखा गया है. दुःख-दर्द से भरे मानवीय संवेदनाओं से जुड़े मैसेज उन्हें अँसुआते जरूर हैं लेकिन वे अपने आस-पास के समाज से मुख फेरे कान बंद किये खड़े रहते हैं . मुझे बीस वर्ष पहले के अक्सर वे पल याद आते हैं जब कॉलिज के युवाओं से आते-जाते दूसरे मुसाफिर भी बातें कर लिया करते थे. विविध विषयों पर चर्चा कर लिया करते थे. अब ऐसा देखने को नहीं मिलता. आज स्कूल-कॉलिज का हर किशोर-युवा और नौकरी पर जाता हुआ व्यक्ति भी मोबाइल में लगा रहता है. पीठ पर लदा मोटा बैग जो दूसरे यात्रियों को धकियाता है और कान में लगा इयरफोन उनकी कराह तक नहीं सुनता .

Shikha Kaushik said...

स्मृतियाँ चाहे अनचाहे मन की चौखट पर दस्तक दे ही देती हैं ।-very true

Dr (Miss) Sharad Singh said...

स्मृतियां वाकई जीवन को दिशा देती हैं...बहुत विचारपूर्ण सार्थक लेख ....

virendra sharma said...

यथार्थ का दर्पण होतीं हैं स्मृतियाँ हमारे कल के यथार्थ का अजो अब व्यतीत बन चुका है बढ़िया भाव व्यंजना आभार आपकी टिप्पणियों का

मुकेश कुमार सिन्हा said...

यादें याद आती है ......... :)

Himanshu Joshi said...

beautifully written , cohesive and engaging enough .. regards ma'm

संजय भास्‍कर said...

स्मृतियां वाकई जीवन को दिशा देती हैं...बहुत विचारपूर्ण सराहनीय है लेख ....

Recent Post शब्दों की मुस्कराहट पर ….अब आंगन में फुदकती गौरैया नजर नहीं आती

Http://meraapnasapna.blogspot.com said...

बहुत खूब लिखा हैं मैम :-)

सदा said...

स्मृतियों को संजोता मन बड़े ही सलीके से ....👍👍

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी लिखी रचना सोमवार 26 दिसंबर 2022 को
पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

संगीता स्वरूप

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी लिखी रचना सोमवार 26 दिसंबर 2022 को
पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

संगीता स्वरूप

Rupa Singh said...

बहुत सुंदर रचना...वाकई में स्मृतियां साथ चलती हैं...

Sudha Devrani said...

स्मृतियां वाकई बड़े अधिकार से आती जाती रहती हैं हम आगे बढ़कर जैसे स्मृतियों को ही जीवन भर संजोते रहते हैं धरोहर की तरह ।

रेणु said...

स्मृतियाँ उस बिताये गये समय से कहीं बेहतरीन लगती हैं यही सच है।बिछड़ गये अपने लोग, जगहें, चीजेँ और समय हमारे भीतर सजीवता से विद्यमान रहता है सदा-सर्वदा।सुन्दर लेख के लिए आभार 🙏🙏🌹🌹

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