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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

05 September 2015

राष्ट्र और समाज की दिशा तय करते हैं कर्मशील नागरिक


 चैतन्य का कोना 


कर्म के समर्थक कृष्ण सही अर्थों में जीवन गुरु है। क्योंकि हमारे कर्म ही जीवन की  दशा  और दिशा तय करते हैं ।  कर्म की प्रधानता उनके संदेशों में सबसे ऊपर है । मुझे उनका यह सन्देश जीवन सहजता से जिए जाने वाला भाव लगता है । जो ना केवल हमारी बल्कि हमसे जुड़े अन्य लोगों की ज़िन्दगी पर भी सदैव सकारात्मक असर ही डालता है । देश दुनिया का भी इस सोच में भला ही है ।  आज जबकि हिंसा और असहिष्णुता हर  ओर दिखती है कर्म का  सिद्धांत संभवतः हर समस्या का हल है । इन्हीं आम जीवन से जुड़े विचारों की वजह कृष्ण ईश्वरीय रूप में भी आम इंसानों से जुड़े से दीखते हैं । मनुष्यों  ही नहीं संसार के समस्त  प्राणियों के लिए उनका एकात्मभाव देखते ही बनता है।  सच भी है कि आज के दौर में  भी नागरिक ही किसी देश की नींव सुदृढ़ करते हैं ।  वहां बसने वाले लोगों की  वैचारिक पृष्ठभूमि  और व्यवहार यह तय करते हैं कि उस देश का भविष्य कैसा होगा ?  मानवीय व्यवहार और संस्कार की शालीनता बताती है कि वहां जनकल्याण को लेकर कैसे भाव हैं । अधिकतर समस्याओं का हल  देश के  नागरिकों  के विचार और व्यवहार पर ही निर्भर है । ऐसे में कृष्ण कर्मशील होने का सन्देश  सृजन की सही राह सुझाता है । संकल्प की शक्ति देता है । कर्मठता का भाव पोषित  करता है । यही शक्ति हर नागरिक के लिए  अधिकारों सही समझ और कर्तव्य निर्वहन के दायित्व की सोच की  पृष्ठभूमि बनती है । 

कृष्ण  की दूरदर्शी सोच समस्या नहीं बल्कि समाधान ढूँढने की बात करती है । जो कि राष्ट्रीय और  सामाजिक समस्याओं के सन्दर्भ में भी लागू होती है । तभी तो  भाग्य की बजाय कर्म करने पर विश्वास  करने सीख देने वाला मुरली मनोहर का दर्शन आज के दौर में सबसे अधिक प्रासंगिकता रखता है । कर्ममय जीवन के समर्थक कृष्ण जीवन को एक संघर्षों से भरा मार्ग ही समझते हैं । हम  मानवीय मनोविज्ञान के आधार पर समझने की कोशिश करें तो पाते हैं कि अकर्मण्यता जीवन को दिशाहीन करने वाला बड़ा कारक है । यही बाते बताती हैं कि  कृ ष्ण का जीवन हर तरह से एक आम इंसान का जीवन लगता है। तभी तो किसी आम मनुष्य के समान भी वे दुर्जनों के लिए कठोर रहे तो सज्जनों के लिए कोमल ह्दय।  उनका यह व्यवहार भी तो प्रकृति से प्रेरित ही लगता है और कर्म की सार्थकता लिए है । 

इंसान के  विचार और व्यवहार स्वयं उनके ही नहीं बल्कि  राष्ट्र और समाज की भी दिशा तय करते हैं । कृष्ण के सन्देश  इन दोनों पक्षों के परिष्करण पर बल देते हैं । एक ऐसी जीवनशैली सुझाते हैं जो सार्थकता और संतुलन लिए हो । समस्याओं से जूझने की ललक लिए हो । गीता में वर्णित उनके सन्देश जीवन रण में अटल विश्वास के साथ खड़े रहने की सीख देते हैं । मानवीय स्वभाव की विकृति और सामाजिक  कुरीतियों के खिलाफ जनजागरण करने वाले योगेशवर कृष्ण सही अर्थों में अत्याचार और अहंकार के विरोधी हैं । ये दोनों ही बातें  समाज में असमानता और विद्वेष फैलाने वाली हैं ।  यही वजह है कि उन्हें बंधी-बधाई धारणाओं और परंपराओं की जड़ता को तोड़ने वाला माना गया है । उनका चिंतन  राष्ट्र-समाज के लिए  हितकर विचारों को प्रोत्साहन देने वाला है । 

जगत सारथि और जनमानस के शिक्षक श्रीकृष्ण   को नमन 

20 comments:

रश्मि प्रभा... said...

आज कृष्ण जन्म और शिक्षक दिवस का एकसाथ होना इस बात को बल देता है

Himkar Shyam said...

सोलह कलाओं में पारंगत श्रीकृष्ण हमारे सच्चे मार्गदर्शक हैं. जीवन के हर पहलू को बेहतर तरीके से जीने की शिक्षा दी.

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी और शिक्षक दिवस की शुभकामनाएँ

राजीव कुमार झा said...

बिलकुल सही कहा है कि इंसान के विचार और व्यवहार राष्ट्र और समाज की दिशा तय करते हैं.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.जन्माष्टमी की मंगल कामनाएं !

कविता रावत said...

जन्माष्टमी और शिक्षक दिवस के संयोग पर सुन्दर सामयिक चिंतन प्रस्तुति। .
जन्माष्टमी और शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!

गिरधारी खंकरियाल said...

सजीव, सामयिक, और सार्थक।

Anonymous said...

जय श्री कृष्ण

रचना दीक्षित said...

सही कहा मोनिका जी श्री कृष्ण जनमानस के शिक्षक है.

सही सन्देश देती सार्थक प्रस्तुति.

कहकशां खान said...

बिल्‍कुल सही कहा आपने। कर्मशील लोग ही राष्‍ट्र का भविष्‍य होते हैं। पर हमारे देश का दुर्भाग्‍य है कि यहां आलस और काम के प्रति ईमानदारी और जिम्‍मेदारी का आभाव बहुतायत में देखा जाता है। पूरी दुनिया जापानियों का लोहा उनकी कर्मशीलता के कारण ही मानती है।

दिगम्बर नासवा said...

कृष्ण एक ऐसे विचारक, नायक और युग-पुरुष हैं जिनके आचरण से, कथनी करनी से, उनके ज्ञान से और गान से पुरानी वर्जनाएं टूटती और नयी सोच और दिशा की रौशनी दिखाई देती है ... उनका मार्ग कर्म को प्रेरित करता है ...
बहुत ही सार्थक चिंतन ...

Amrita Tanmay said...

धर्मों के विरोध ने दुनिया को बहुत गन्दी कलह से भर दिया है जिसमें कृष्ण को भी समझने के लिए तैयार कौन है ?

Kailash Sharma said...

बहुत सारगर्भित आलेख...

JEEWANTIPS said...

सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....

Suman said...

सही कहा आपने कृष्ण कर्म समर्थक है लेकिन उनके कहने में और हमारे समझने में जरा सी भूल यह हो जाती है कि वे निष्काम निरपेक्ष कर्म की बात कहते है और हम बिना अपेक्षा के कोई भी कर्म करने की सोच भी नहीं सकते ! इसलिए आज हम देखते है हर मनुष्य अपने कर्म से भटक गया है ! कर्म सिद्धांत पर आधारित बहुत सुन्दर गीता में ज्ञान दिया है कृष्ण ने अर्जुन को और अर्जुन के बहाने हम सब को आज भी उपलब्ध है होता रहेगा ! सुन्दर लगा आलेख आपका !

महेन्‍द्र वर्मा said...

भाग्य की बजाय कर्म पर विश्वास रखना ही श्रेयस्कर है ।
कर्म की महत्ता पर प्रेरक आलेख ।

जमशेद आज़मी said...

बिल्‍कुल सही फरमाया आपने। कर्मशील नागरिक ही देश की दिशा तय करते हैं।

Jyoti Dehliwal said...

मोनिका जी, सही कहा आपने... मनुष्य के कर्म ही उसकी दशा और दिशा तय करते है।

सदा said...

Karm se hi jiwan ko gati milti hai prerak aalekh

Vinars Dawane said...

बहुत ही सार्थक रचना ....

Jyoti khare said...

सच है कर्म ही भाग्य बनाता है, पर भाग्य का भी बहुत योगदान होता है
प्रभावी आलेख
सादर

Unknown said...

बहुत बढ़िया AchhiBaatein.com

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