गृहस्थी की धुरी पर भागते दौड़ते, जिम्मेदारियों से जूझते हुए आखिर आ ही गया मेरा पहला कविता संग्रह ' देहरी के अक्षांश पर ' .... माँ, बहन, बेटी और पत्नी के जीवन से जुड़े भावों को मुखरित करता यह संकलन देहरी के भीतर और बाहर नारी जीवन से जुड़े उन रंगों से रूबरू करवाता है जो हर स्त्री जीती है.… देहरी के अक्षांश पर .. | अच्छा लग रहा कि एक गृहणी के तौर पर जिस आँगन में जिम्मेदारियों से जूझते हुए एक- एक अक्षर और शब्द को सहेजते हुए अपने सृजनकर्म आगे बढ़ा रही हूँ वह आज पुस्तक के रूप में मेरे सामने है । हालाँकि नियमित लेखन और घरेलू उत्तरदायित्वों को निभाते हुए यह कर पाना कठिन भी रहा ।
ऐसे में सभी सखियों से कहना चाहूंगी कि हमारे सामाजिक-पारिवारिक ढाँचे में महिलाओं का सृजनशील रहना आसान काम नहीं है । लेकिन खुद को सक्रिय रखिये । हर परिस्थिति में और उम्र के हर पड़ाव पर । आप जिस क्षेत्र से भी जुड़ी हैं, चलती रहिये । ठहराव ना दीजिये । हाँ, मुश्किलें भी आएँगी और सब कुछ सहजता से भी नहीं होगा लेकिन क्रियाशील रहिये .... सबको संभालिये लेकिन आपके भीतर जो आप बसती हैं उसे जीवित रखने की जिम्मेदारी भी उठाइये ।
17 comments:
हार्दिक बधाई
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (21-10-2015) को "आगमन और प्रस्थान की परम्परा" (चर्चा अंक-2136) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
देहरी के अक्षांश पर प्रकाशित होने के लिए बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं। मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है।
गांधी जी के पास एक महिला अपना बच्चा ले कर आई - किसी कारणवश उसे गुड़ खाने से परहेज़ करना था .
गांधी जी ने कहा अबी तो नहीं कह पाऊंगा चार दिन बाद आना. वह आई चार दिन बाद बच्चे को लेकर .गांधी ने समझाया ,बच्चा मान गया.हमारे कहने से नहीं सुना ,और बापू ने भी चार दिन बाद क्यों बुलाया ,महिला ने पूछा तो उत्तर मिला -जब तक मैं स्वयं गुड़ खाना नहीं छोड़ूँगा मेरी वाणी प्रभावहीन रहेगी .
आप भी यही कर रही हैं मोनिका जी .
हार्दिक बधाई और अशेष शुभकामनाएँ।
हार्दिक शुभकामना ....
फेसबुक पर अपडेट देखा था। एक बार फिर से बहुत-बहुत शुभकामनाएं इस उपलब्धि के लिए। आशा है 'देहरी के अक्षांश पर' सफलता की कई ऊंचाईयां छूएगी!
आपको नवरात्रि, दुर्गा-पूजा एवं दशहरा की सादर शुभकामनाएं!
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं!
सुभम है ।Seetamni. blogspot. in
हार्दिक शुभकामनाये स्वीकार कीजिये।
हार्दिक शुभकामनाये स्वीकार कीजिये।
इस प्रकाशन पर ढेर सारी बधाइयाँ मोनिका जी. यह तो सच है की घर गृहस्ती के चक्कर में सारा समय किधर निकलता है पता ही नहीं चलता.
आपकी प्रकाशित कृति सबके लिए प्रेरणास्रोत बने, बधाई और शुभकामनाएं ।
प्रथम कृति प्रथम संतान सरीखी होती है |आपको ढेरों बधाई और शुभकामनाएँ |
बधाई...
देर से आपके ब्लॉग पर आया और आपके पहले कविता संग्रह पर बधाई प्रेषित नहीं कर पाया, इसके लिए क्षमा चाहता हूँ। बहुत-बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं।
ढेरों शुभकामनाएं
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