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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

13 March 2013

वक्तव्य बदलने का खेल


कहते हैं कि अपने मन मस्तिष्क में सब कुछ सोचा तो जा सकता है पर सब कुछ कहा नहीं जा सकता । क्योंकि शब्द जिसके मुख से उच्चारित होते हैं, उस व्यक्ति विशेष के लिए हमारे मन में गरिमा और विश्वसनीयता के मापदंड तय करते हैं । इस विषय में यह मान्यता होती है कि कही गयी बात बोलने वाले व्यक्ति ने विचार करने के बाद ही कही होगी । चर्चित चेहरों के विषय में बात ज्यादा लागू होती है क्योंकि समाज में उन्हें एक आदर्श व्यक्तित्व के रूप में देखता है । संभवतः इसीलिए कहा गया है कि प्रसिद्धि अपने साथ उत्तरदायित्व भी लाती  है । जिसे निभाने के लिए सबसे पहला कदम तो यही है कि विचार रखने से पहले सोचा समझा जाय ।

वो नहीं ....................................ये कहा था 
शब्द जब तक अकथित हैं विचारों के रूप में केवल हमारी अपनी थांती हैं । मुखरित होने के बाद शब्द हमारे नहीं रहते । इसीलिए जो कहा जाय, वो सधा और सटीक हो, यह आवश्यक  है। यूँ भी शब्दों के प्रयोग को लेकर विचारशीलता बहुत मायने रखती है । स्वयं को व्यक्त करते समय यह विचार करना आवश्यक है कि आपकी अभिव्यक्ति मर्यादित है या नहीं । जो कह डाला उसे बदलने या अपने कहे की जिम्मेदारी ना लेने से हमारे ही विचारों की विश्वसनीयता संदेह के घेरे में आती है । 

हमारे यहाँ तो अपने ही शब्दों में उलटफेर करना एक खेल के समान है । राजनेता, अभिनेता और  सामाजिक कार्यकर्ता से लेकर एक आम नागरिक तक, अपने द्वारा कथित वक्तव्यों से पलटने के इस खेल में निपुण  हैं | 'मेरी कही बात का गलत अर्थ निकाला गया है ' या 'मेरे कहने का का अभिप्राय वो नहीं है जो आप समझ रहे हैं ' जैसे वाक्य कहकर अपने द्वारा कहे शब्दों का अर्थ-अनर्थ सब बराबर कर देते हैं ।  इस मार्ग को तो यहाँ अनगिनत बुद्धिजीवियों ने भी बड़े गर्व के साथ अपनाया है । 

प्रश्न ये उठता है कि घर  से लेकर स्कूल तक हमारी प्रारंभिक शिक्षा-संस्कारों में ही अपने कहे शब्दों की जिम्मेदारी लेने की सीख क्यों दी जाती ? क्यों नहीं यह पाठ पढ़ाया जाता कि जो कहें सोच विचार कर कहें ?क्योंकि यदि व्यक्तिगत रूप से हम सब अपने वक्तव्यों के लिए जवाबदेह बनते हैं तो कई सारी सामाजिक , पारिवारिक  समस्याओं का निपटारा तो यूँ ही हो जायेगा । ऐसा इसलिए कि जब सोच विचार कर कहेंगें तो  उस जिम्मेदारी को निभाने में भी पीछे नहीं रहेंगें । मानसिकता ही कुछ ऐसी विकसित होगी कि कथनी और करनी में कोई अंतर न रह जायेगा । अंततः यही  सोच  हमें वास्तविकता से जोड़ने का काम करेगी । जो  देश, समाज और परिवार के प्रति जिम्मेदारियों के भाव को जन्म देगी । 

जो कहा जा चुका है उसका स्पष्टीकरण देने की परस्थितियाँ ही  न बनें  इसके लिए यह आवश्यक  है कि अपने विचारों को साझा करने से पहले शब्द और उनका भावी अर्थ हमारे ही मन-मस्तिष्क में स्पष्ट हो।   हमें इतना तो याद रखना ही होगा कि मुखरित शब्दों में कभी संशोधन नहीं होता । 

58 comments:

Kartikey Raj said...

शब्दों के बारे में आपने बहुत ही अच्छा लिखा है..... आभार

अज़ीज़ जौनपुरी said...

bahut hi gambhir bat aap ne kahi hai, जो कहा जा चुका है उसका स्पष्टीकरण देने की परस्थितियाँ ही न बनें इसके लिए यह आवश्यक है कि अपने विचारों को साझा करने से पहले शब्द और उनका भावी अर्थ हमारे ही मन-मस्तिष्क में स्पष्ट हो। हमें इतना तो याद रखना ही होगा कि मुखरित शब्दों में कभी संशोधन नहीं होता ।

Anita Lalit (अनिता ललित ) said...

बिल्कुल सही बात कही है आपने!
तभी तो ये कहावत है....'कमान से निकला तीर और मुँह से निकले शब्द... कभी वापस नहीं लौटते...'
~सादर!!!

Anupama Tripathi said...

सार्थक आलेख ....!!

ओंकारनाथ मिश्र said...

अपने देश के नेताओं को यह लेख पढ़ने की जरूरत है. इस खेल में उनकी निपुणता का क्या कहना.

वाणी गीत said...

बहुत आसान होता है वक्तव्य बदलना , मगर शब्दों की टीस रह जाती है। ऐसा कहा ही क्यों जाए जिसे बदलना पड़े !!
उचित एवं विचारणीय !

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

शब्द शक्ति है,शब्द भाव है.
शब्द सदा अनमोल,
शब्द बनाये शब्द बिगाडे.
तोल मोल के बोल,

Recent post: होरी नही सुहाय,

Rajendra kumar said...

बहुत ही सार्थक संदेश देती बेहतरीन आलेख.

सुज्ञ said...

बिना सोचे समझे किए गए अपने कथन को फिर सही स्थापित करने के लिए वक्रता अपनाई जाती है.अहं को सहलाने मात्र के लिए जिम्मेदारी से किनारा किया जाता है.इसी भ्रम में मूल्यवान विश्वसनीयता किनारे चली जाती है.

बहुत सार्थक व अति महत्वपूर्ण विचार को वाचा दी है आपने!!

मामूली से अहंकार से पूरा व्यक्तित्व धूल में मिल जाता है और व्यक्ति को खबर तक नहीं लगती.

विभा रानी श्रीवास्तव said...

स्वयं को व्यक्त करते समय यह विचार करना आवश्यक है कि आपकी अभिव्यक्ति मर्यादित है या नहीं । जो कह डाला उसे बदलने या अपने कहे की जिम्मेदारी ना लेने से हमारे ही विचारों की विश्वसनीयता संदेह के घेरे में आती है ।
सहमत हूँ आपके लिखे गए आलेख से ....
शुभकामनायें !!

Amrita Tanmay said...

पूर्ण सहमति...

Dr (Miss) Sharad Singh said...

बेहतरीन ...
बहुत सार्थक लेख....

virendra sharma said...

इसीलिए तो इतने सारे मुहावरे ,लोकोक्तियाँ प्रचलित हैं :पहले तौलो ,फिर बोलो ,/तीर कमान से छूटा तीर ,मुख से निकसे बोल वापस नहीं आते ,शब्द और बोल दोनों बूमरांग करते हैं .यहाँ तो लोग हल्फिया बयान से भी मुकर जाते हैं .तिहाड़ तीर्थ में सु -शोभित सभी राजनीतिक धंधे बाज़ ,थूका हुआ चाट चुके हैं .मीडिया ने गलत समझा ,मेरा वक्तव्य तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत किया है .अब 'राजा भैया "शब्दों के मतलब भी समझाते हैं .

बढ़िया चिंतन शील आलेख .आपकी टिपण्णी के लिए शुक्रिया .

कालीपद "प्रसाद" said...


"सोच कर बोलना चाहिए " लेकिन "लोग बोलकर सोचते है " यही गड़बड़ी है
latest postउड़ान
teeno kist eksath"अहम् का गुलाम "

rashmi ravija said...

रहीम ऐसे ही तो नहीं कह गए

"ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय
औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय "

किसी विवाद में पद जाए, स्पष्टीकरण देना पड़े, किसी का मन दुखे ऐसे शब्द बोले ही क्यूँ जाएँ

Harihar (विकेश कुमार बडोला) said...

उपयोगी विचार।

shikha varshney said...

अब तो एक खेल बन गया है ये..जो मन में आया बोल दो ..बाद में कह देंगे यह मतलब नहीं था.

Rajput said...

कुछ सामान लेकर वापिस लेना सुना था, मगर आजकल लोग (नेता) "शब्द" भी वापिस ले लेते हैं। अब सायद "तीर कमान से और बात जुबान से " वाला जुमला बदलना पड़ेगा :)

जयकृष्ण राय तुषार said...

किसी संत कवि ने कहा है -बोली एक अमोल है जो कोई बोले जानि ......
बहुत सुन्दर मनोविश्लेष्णात्मक आलेख |आभार

Madan Mohan Saxena said...

बहुत ही सुन्दर. आभार

Maheshwari kaneri said...

बहुत सही मोनिका जी कुछ कहने से पहले ये सोचना भी जरूरी है कि सुननेवाला उसे सही समझ पाता है..सार्थक पोस्ट..

Dr.NISHA MAHARANA said...

sahi bat .....kathni karni men antar nahi hona chahiye.....

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत ही सारगर्भित बात कही है आपने, शुभकामनाएं.

रामराम.

Arvind Mishra said...

अब ऐसी शिक्षा दी कहाँ जाती है ? विचारणीय मुद्दा!

प्रवीण पाण्डेय said...

बोलते समय कहाँ दिमाग़ खुलता है, जब मूढ़ों को उनकी बातों का अर्थ लोग समझाते हैं तब समझ में आता है।

शिवनाथ कुमार said...

मुख से निकली बात वापस नहीं आती ,,,
बोलने से पहले सोच तो लेना ही चाहिए ...
सार्थक प्रस्तुति
सादर !

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

कम्युनिकेशन यही होता है कि जो कहा जाये वही सामने वाले तक पहुँचे.
मेरे लिखने का वह मतलब नहीं है ये तो मीडिया ने तोड़-मरोड़ तक प्रस्तुत किया है... :) ही ही..

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बिल्कुल सही कहा
सार्थक लेख

सच कहूं तो लोग शब्दों का जाने अनजाने बहुत दुरुपयोग भी कर रहे हैं..

Rachana said...

kahte hain na yahi munh pan khilata hai yahi munh.......................

meri ma samjhati thi achchha bolo soch kar bolo
bahut satik likha hai
rachana

Tamasha-E-Zindagi said...

बहुत सुन्दर और सार्थक आलेख | आभार


कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page

amit kumar srivastava said...

अपने कथन पर सदैव स्टैंड लेना चाहिए । सही बात ।

अजित गुप्ता का कोना said...

नि:संदेह अपनी बात कहने से पहले दस बार सोचना चाहिए लेकिन जो लोग सार्वजनिक जीवन में हैं उनकी बात के कई अर्थ भी लगा लिए जाते हैं। उनके आधे वाक्‍यों को लेकर भी तूफान मचा लिया जाता है। इसलिए इस फितरत के बारे में क्‍या कहा जा सकता है?

Suman said...

विचारों में विश्वसनियता तभी रहती है जब वक्तव्य देते समय मनुष्य उन विचारों के प्रति होशपूर्वक हो, बोलने का भान हो, परिणामों का भान हो नहीं तो शब्द उन निकले हुए तीर की तरह है जो आपिस नहीं लौटते हम कितना ही प्रयत्न करे !

दिगम्बर नासवा said...

ठीक कहा है आपने ...
पर मुझे लगता है जानता तो हर कोई है की उसने क्या बोला .. बस दूसरों की प्रतिक्रिया देख के बातें बनाने लगते हैं सब ...
वैसे मीडिया जरूर बातों को सेलेक्टिव सुनाता है जहाँ सफाई की जरूरत कई बार जरूरी हो जाती है ...

kavita verma said...

sach kaha shabdon ka prayog bahut soch samjh kar karna chahiye..or unka maan rakhana chahiye..

Asha Joglekar said...

सच ही कहा । सोच समझ के बोले वही समझदार ।
बहुत बढिया लेख ।

सदा said...

मुखरित शब्दों में कभी संशोधन नहीं होता ।
बेहद सार्थक एवं सटीक प्रस्‍तुति ...
बिल्‍कुल सही कहा है आपने
आभार

Kailash Sharma said...

हमें इतना तो याद रखना ही होगा कि मुखरित शब्दों में कभी संशोधन नहीं होता ।

... बहुत गहन और सार्थक कथन..बहुत सटीक आलेख..

G.N.SHAW said...

यही गुण तो सोने पे सुहागा , पर सोना सभी नहीं होते | ज्यादा कलई होते है |

virendra sharma said...


सुर्ख़ियों में बने रहने का राज रोग है वक्तव्य बदलना .राजनीतिक धंधेबाजों का शगल है .

Satish Saxena said...

शब्द अमर हैं ...
वे कभी नष्ट नहीं होते !
आभार आपका एक अच्छे लेख के लिए !

Akhtar Kidwai said...

bahut hi saarthk lekh hai ,bdhai aap ko......

SANJAY TRIPATHI said...

आजकल जहाँ रोज ही वक्तव्य देने के बाद अगले दिन कहा जाता है कि मेरी बात को तोड-मरोड कर कहा गया है या फिर out of cotext quote किया गया है,आपका आलेख ऐसे लोगों को सोचने के लिए मजबूर करेगा-यही उम्मीद है.

इमरान अंसारी said...

बिलकुल सही कहा आपने कहावत है...तोल-मोल के बोल.....
पर अक्सर हमारे अचेतन से वो सब निकलता है जो कचरा अन्दर भरा पड़ा है।

इमरान अंसारी said...

बिलकुल सही कहा आपने कहावत है...तोल-मोल के बोल.....
पर अक्सर हमारे अचेतन से वो सब निकलता है जो कचरा अन्दर भरा पड़ा है।

संध्या शर्मा said...

बिल्‍कुल सही बात... सार्थक एवं सटीक प्रस्‍तुति ...

Alpana Verma said...

विचार कर बोला जाए तो न जाने कितनी समस्याएँ उत्पन्न ही न हों.
सार्थक लेख.

Aditya Tikku said...

too good - simple yet on the dot --***

रचना दीक्षित said...

आजकल इसके ठीक विपरीत बड़ा बोलने के चक्कर में लोग कुछ भी बोल देते है. लेकिन यह गंभीर विषय है जिसके बारे में सभी को सावधानी बरतनी चाहिये.

Ranjana verma said...

सार्थक रचना

babanpandey said...

sacchi baat... होली के अवसर पर थोडा गुलाल मेरे तरफ से भी स्वीकार करे

Jyoti Mishra said...

so much at stake between sender and receiver..
for proper communication so many things are needed..
interesting read

Dinesh pareek said...

बहुत सुद्नर आभार आपने अपने अंतर मन भाव को शब्दों में ढाल दिया
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
एक शाम तो उधार दो

आप भी मेरे ब्लाग का अनुसरण करे

Dinesh pareek said...

बहुत सुद्नर आभार आपने अपने अंतर मन भाव को शब्दों में ढाल दिया
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
एक शाम तो उधार दो

आप भी मेरे ब्लाग का अनुसरण करे

mark rai said...

saamyik aur jwalant vishay par vichaar ....thanks for such valuable post.

kanu..... said...

poore article se agree karti hu

मन्टू कुमार said...

Vartmaan ke paripekshya me bahut hi satik aur umda lekh...
Aabhar...

BS Pabla said...

4 U :-)

http://blogsinmedia.com/?p=23839

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