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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

28 June 2011

विदेशों में भारतीय महिलाओं का जीवन- संघर्ष की मिसाल........!



अपने देश, घर-परिवार और समाज से दूर हमेशा के लिए विदेशों में आ बसे परिवारों की महिलाओं का जीवन जब करीब से देखा और जाना तो लगा कि यहां भी जद्दोज़हद कुछ कम नहीं है। नई जगह और नये लोग ....... स्थान और परिस्थितियों का बदलाव एक ही देश में हो तो भी जीवन ठहर सा जाता है |  ऐसे में आप समझ ही सकते हैं कि पूरे तरह एक नये परिवेश में आकर बसना किसी भी महिला के लिए कितना मुश्किलों भरा हो सकता है.....?  


महिलाओं के सन्दर्भ में यह बात इसलिए कर रही हूँ क्योंकि जिस पारिवारिक-सामाजिक माहौल को ये परिवार पीछे छोड़कर आते हैं उससे महिलाएं पुरुषों से ज्यादा जुडी होती हैं| साथ देश में रहते हुए उनका वास्ता घर से बाहर की जिम्मेदारियों से कम ही पड़ता है | जबकि यहाँ आने के बाद भीतर बाहर का कोई फर्क ही नहीं रह जाता |  

ट्रैफिक के नियमों से लेकर जिंदगी की रफ्तार तक यहां सब कुछ अलग है । कभी कभी देखकर हैरान हो जाती हूं कि किस तरह यहां आने वाली महिलाओं ने सब कु छ आत्मसात कर लिया है। नौकरी करती हैं......... बिजनेस में हाथ बंटा रही हैं......... घर-परिवार संभाल रही हैं........। बच्चों को नये माहौल में जीना सिखा रही हैं........ साथ ही पुराने संस्कारों से जोङकर रखने का प्रयास कर रही हैं..........वे मुझे हर मोर्चे पर पूरी शिद्दत से डटी नज़र आती है। 

गौर करने की बात यह भी है भारत के विपरीत यहां घर का काम करने के लिए भी कोई नौकर नहीं होते। घर हो बाहर किसी तरह का कोई सपोर्ट सिस्टम नहीं। ऐसे में उनके माथे पर चिंता की लकीरों के साथ ही आत्मविश्वास की ओज देखकर एक भारतीय  के नाते गर्व महसूस होता है। 

यहां आकर बसे परिवारों में हर उम्र की महिलाएं शामिल है। एक उम्र के बाद इतना बङा बदलाव और उसके परिणामस्वरूप उपजने वाली परिस्थितियों से सामंजस्य बनाना आसान नहीं होता। ऐसे में यहां कुछ बुजुर्ग महिलाओं का हौसला देखकर जीवन के प्रति एक नयी आशा का संचार होता है। 

विदेशों में जीवन को सरल बनाने के अनगिनत साधन होने के बावजूद यहां जिंदगी बहुत जटिल है। सब कुछ ऊपर से जितना सहज और सरल दिखता है भीतर से उतना ही बंधा बंधा सा है। 

ऐसे में अपने जीवन का लंबा समय देश में बिताने के बाद  पराई धरती पर बसने और वहां की भाषा से लेकर कार्य-संस्कृति तक, हर चीज से तालमेल कर लेने वाली भारतीय महिलाओं की हिम्मत सच में संघर्ष की मिसाल है। 

94 comments:

Shalini kaushik said...

sahi kaha monika ji bharatiy mahilaon ko yun hi sare vishva me mahtva mila hai.bahut sarthak post.

शिखा कौशिक said...

aapse poori tarah se sahmat hoon monika ji.bharatiy mahilaon ki ye himmat aur kahin bhi swayam ko vahan ke vatavaran ke anusar dhal lene ki unki kshmta naman yogya hai.shandar post badhai.

तरुण भारतीय said...

आपने एकदम सही लिखा है कदम कदम पर संघर्ष है ....भारत की महिलाओ ने पूरी दुनिया में चुनोतियों का सामना करके .अपने आप को स्थापित किया ...सार्थक लेख

Suman said...

महिलाएं चाहे देश में हो चाहे विदेश में
उनका जीवन बचपनसे ही संघर्ष में ही
बीतता है ! अच्छी पोस्ट !

कुमार राधारमण said...

महिलाएँ शुरू से संघर्ष ही करती रही हैं। यह उनके जीवट का प्रमाण है। यह वह क्रांति नहीं है जो बाहर दिखती हो,मगर संघर्ष की यह लौ को एक दिन वांछित परिवर्तन लाएगी,यह उम्मीद तो बंधाती ही है।

दिनेशराय द्विवेदी said...

विदेश की बातें हम कम ही समझ पाते हैं, अभी तो भारत को ही 10 प्रतिशत से अधिक कहाँ समझ पाए हैं।

Arvind Mishra said...

निश्चित ही अपने जाने पहचाने परिवेश के मुकाबले नए और अनजाने से माहौल में और जहाँ पुरुष नारी का फर्क नहीं सा है बड़ी मुश्किलें आती ही होंगी ...


इस वाक्य को थोडा संशोधित किया जा सकता है क्या?
गौर करने बात यह भी है भारत की तरह यहां घर का काम करने के लिए भी कोई नौकर नहीं होते।

गौर करने की बात यह भी है भारत के विपरीत यहां घर का काम करने के लिए भी कोई नौकर नहीं होते।

श्यामल सुमन said...

कथ्य आपका ठीक है जीवन ही संघर्ष
छुपा हुआ संघर्ष में जीवन का उत्कर्ष.
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
http://meraayeena.blogspot.com/
http://maithilbhooshan.blogspot.com/

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) said...

भारतीय नारी को तो वेदों में भी स्थान एक शशक्त नारी का मिला है , शक्ति है तभी तो हर संभव असम्भव हर कार्य को चेहरे में तेज़ लिए मुस्कुराती हुई संपन्न करती है, वो देश में हो या विदेश में...........अच्छा लगा आपकी सही सोंच के साथ ये रचना को पढ़कर ..

Rakesh Kumar said...

भारतीय महिलाएं आस्था और निष्ठा के बल पर विदेशों में भी अपना परचम लहराने लगीं हैं.
आपका लेख सुन्दर व सार्थक है.विदेश में भी उनका संघर्ष निर्भर करता है कि वे किस देश में हैं.

Unknown said...

Monika ,aapne sahi baat kaha hai . yahan himmat ki baat nahi hai baat hai mauka ka . videsh me kaam karne ki puri aajadi hoti hai lekin Yahan taang khichane vaale hi hote hai..badhiyahai mauka ka . videsh me kaam karne ki puri aajadi hoti hai lekin Yahan taang khichane vaale hi hote hai..badhiya

Satish Saxena said...

आपने बहुत अच्छा विषय दिया है लिखने के लिए ! भारतीय महिलाएं विदेशों में जिस तरह अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुई हैं वह दुनियां के अन्य देशों के लिए सबक है !
आभार इस लेख के लिए !

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@ अरविन्द जी ...
ज़रूर किया जा सकता है......संशोधित वाक्य अधिक प्रभावी और सहज लगा रहा है आभार......

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@ दिनेश राय जी ...
सही कहा आपने देश हो या विदेश समझने को अभी बहुत कुछ बाकी है....... मेरी पोस्ट अवलोकन मात्र है .....तमाम सुख सुविधाओं के बावजूद पराई धरती पर प्रवासी महिलाओं के जीवन का संघर्ष कुछ कम नहीं है |

Rahul Singh said...

कोई संदेह नहीं.

कविता रावत said...

sach mein main bhi sochti hun ki kyon hamare naseeb mein itna kaam likha hai.. ghar aur baahar har jagah mahiloaon ke liye sangharsh se bhara hai..
saarthak aalekh ke liye aabhar

प्रवीण पाण्डेय said...

दोनों ही परिवेश भिन्न हैं, दोनों में ही सफलतापूर्वक निभा ले जाना कुशलता का द्योतक है।

पी.एस .भाकुनी said...

विदेशों में रह रहे भारतीय महिलाओं की दशा एवं दिशा से पूर्णत: अनभिग्य हूँ. हाँ इतना अवश्य कहूँगा की यहाँ अपने देश में भी महिलाओं का जीवन कम संघर्षपूर्ण नहीं है. मेरा अनुमान तो यही था की विदशों में बसे भारतीय महिलाये बेहतर हालातों में जीवन यापन कर रही होंगी. वैसे (संघर्ष ही जीवन है ) यह बात सिर्फ महिलाओं पर ही नहीं अपितु पुरुषों पर भी लागू होती है )
उपरोक्त पोस्ट हेतु आभार व्यक्त करता हूँ,

Yashwant R. B. Mathur said...

आदरणीया मोनिका जी,
इस आलेख के माध्यम से आपने एक बहुत ही अनछुए पहलु पर प्रकाश डाला है .

सादर

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

भारतीय महिलायें अपने को हर परिस्थिति में ढाल लेती हैं ... अच्छा लेख

अजित गुप्ता का कोना said...

अमेरिका में महिलाओं का संघर्ष देखा है, बहुत कठिन है। लेकिन वहाँ अच्‍छी बात यह है कि पति और पत्‍नी दोनों मिलकर घर का काम करते हैं इसलिए यह संघर्ष बोझिल नहीं होता। मुझे तो सबसे ज्‍यादा हैरानी कार ड्राइविंग में होती है। इतनी छोटी-छोटी लड़कियां जैसे चाइना की, इतनी बड़ी-बड़ी गाडियां चलाती हैं और वो भी लम्‍बी दूरी पर।

दर्शन कौर धनोय said...

बिलकुल ठीक कहा मोनिका जी,विदेशो में तो और भी ज्यादा जटिल समस्या हैं ...ये वहाँ रहने वाले ही जान सकते है और भोगते है ..फिर भी भारत मैं विदेशो का आकर्षण कम नही है ..

सदा said...

बिल्‍कुल सही कहा है सटीक एवं सार्थक लेखन ।

Amrita Tanmay said...

सुन्दर व सार्थक लेख |सादर

anshumala said...

विदेश का तो नहीं जानती पर अपने भारत में भी ये सब होता है यहाँ मुंबई में कितनी गांव से आई महिलाओ को यहाँ की भागमभाग से तालमेल बैठाते देखा है यही हल शयद विदेश में भी यहाँ की महिलाओ के साथ होता होगा |

Dr (Miss) Sharad Singh said...

विदेशों में भारतीय महिलाएं किस प्रकार स्वयं को स्थापित रखने के लिए संघर्ष करती हैं, यह मुद्दा अकसर अनदेखा रह जाता है. मोनिका जी, आपने इस विषय को सबके सामने रखा और इतना महत्वपूर्ण लेख लिखा है कि आपको इस हेतु हार्दिक साधुवाद है.

vandana gupta said...

सही कह रही हैं जो इन सबसे गुजरता है वो ही समझ सकता है और भारतीय महिलाओ की यही खासियत है हर परिवेश मे खुद को ढाल लेती है।

Dr Varsha Singh said...

अत्यंत सार्थक एवं महत्वपूर्ण लेख....

rashmi ravija said...

सही चित्रण किया है...नए परिवेश में सामंजस्य बिठाने का प्रयास करती महिलाओं का.

सुज्ञ said...

भारतीय नारी के अदम्य साहस और फ्लेक्सीब्लीटि को आपने रेखांकित किया है। एक विशेष भिन्न संस्कृति से तालमेल कर सभी जिम्मेदारीओं को निभा ले जाने वाली भारतीय महिलाओं की हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी।

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

जी बिल्कुल.. सही। मैने कई बार देखा है, यही महिलाओं अपने देश में आसान से काम को अंजाम देने में संकोच करती हैं, जबकि विदेशों में उससे कठिन काम को आसानी से कर लेती हैं। ऐसा क्यों है, ये तो कहना मुश्किल है, लेकिन आदमी भी कम नहीं है। यहां रेलवे स्टेशन पर 20 किली का बैग उठाने के लिए लोग कुली लेते हैं, यही आदमी विदेशों में 70 - 80 किलो वजन उठाकर ऐसे चलते हैं, जैसे ये उनका रोज का काम है।
बधाई मोनिका जी, बहुत सुंदर विषय और लेख

G.N.SHAW said...

मोनिका जी यह जरुरी भी है की हम जहां रहते है , वहा के पहलुओ को समझे और माने , अन्यथा परेशानी लाजमी है ! सुन्दर लेख !

राज भाटिय़ा said...

अरे वाह... बहुत सही बात कही, सहमत हे आप की बात से,

संध्या शर्मा said...

आपने बिलकुल ठीक कहा है... कदम कदम पर संघर्ष है ....भारत की महिलाओ ने पूरी दुनिया में चुनोतियों का सामना करके भी खुद को एक पहचान दी है वहां की भाषा से लेकर कार्य-संस्कृति तक, हर चीज से तालमेल बिठाना अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है ...सार्थक लेख

गिरधारी खंकरियाल said...

महिलाएं ही तो सामजस्य बनाने में दक्ष होती हैं. ये उनका प्राकृतिक गुण है, पिता के घर से पति के घर, में भी तो सामजस्य बनाती है महिलाएं .

तब स्वदेश हो, प्रदेश हो या विदेश, स्वाभविक गुण हमेशा राह आसान कर देता है

अरुण चन्द्र रॉय said...

सार्थक लेख....भारतीय महिलाएं विदेशों में भी अपना परचम लहराने लगीं हैं.

ashish said...

सच्चाई कोप बयां करता आलेख . अपने परिवेश से निकलकर विपरीत परिवेश में स्वयं को ढाल लेना दुष्कर कार्य होता है . हमने बहुत से उदहारण देखे है जो इस प्रक्रिया से होकर गुजरे है.

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

परदेश की बसी माँ-बहन-बेटियाँ अब तो अंतरजाल पर भी झंडे गाढ रही हैं भाई|

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल ३० - ६ - २०११ को यहाँ भी है

नयी पुरानी हल चल में आज -

Anonymous said...

अपने आप को स्थापित करने के लिए विदेशों में संघर्ष तो पुरुष भी करते हैं लेकिन महिलाएं भी ऐसा कर रही हैं जान कर ख़ुशी हुई और गर्व भी और सबसे बात अच्छी लगी कि वहां पुरुष और महिलाओं में कोई फर्क नहीं है.

हमेशा कि तरह सार्थक और उम्दा लेख.

Patali-The-Village said...

आपका लेख सुन्दर व सार्थक है|

Sushil Bakliwal said...

विदेश में बसने के तमाम आकर्षण के बावजूद अपनी जडों को छोडना और सर्वथा भिन्न परिवेश में स्वयं को ढालना युवावस्था में तो शायद ठीक भी हो किन्तु अधपकी उम्र तक तो ये सामंजस्य वाकई कठिन से कठिनतम होता चला जाता है ।

naresh singh said...

मोनिका जी ,नारी का दूसरा नाम ही संघ्रर्ष है । नारी देश मे रहे या विदेश मे वो तो हर जगह संघर्ष करके ही अपनी जगह बनाती है ।

shikha varshney said...

मोनिका जी ! इस विषय पर मैं घंटों बोल सकती हूँ. खुद जिया हुआ परिवेश है. यहाँ बस आपसे सहमत होते हुए आपके चिंतन का धन्यवाद करना चाहूंगी.

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

कहावत है "जैसा देश वैसा भेष" विदेशों में रहने वालों को भाषा एवं रहन सहन से सम्बंधित समस्याएं आती हैं, जिसका जिक्र आपने किया है. भारतीय महिलाएं परिस्थितियों के अनुसार संघर्ष करने में किसी से कम नहीं हैं.

आभार

RameshGhildiyal"Dhad" said...

mahila to dhuri hai jiwan ki...duniya k har desh, gaaw, gali mohalle me ek mahila hi hai jo jiwan deti hai...sajati aur sanwaarti hai...fir bhi afsos ek mahila hi beti nahi chaahti...jabki aaj k yug me bete nalayak aur beti laayak nikalti hain..meri to dhaarna hai ki mahilaaye achchhi aur sachchi dost hoti hai...namstubhyam...namastubhyam....namastubhyam...

डॉ. मनोज मिश्र said...

सार्थक पोस्ट लिखा है आपनें,बहुत बढियां.

रेखा said...

महिलाएं तो हमेशा ही संघर्षशील रही है चाहे कोई भी परिवेश हो.

अशोक सलूजा said...

मोनिका जी, में आप के कहे को यहाँ साँझा कर सकता हूँ ...? मेरी छोटी बेटी भी १५ साल से
कैनाडा,टोरोंटो में है ...
आप सब खुश रहें !

Vaanbhatt said...

खुल के कोई उड़ने तो दे...बहुत जटिलताएं हैं यहाँ समाज में...

अनामिका की सदायें ...... said...

पहले भी इस बारे मे काफ़ि कुछ सुना है और आज आपकी पोस्ट ने और हालात स्पश्ट कर दिये. और इसिलिये कयि बार विचार आता है कि नारि की स्थिति हर जगह दुरूह है.

सुन्दर लेख.

kshama said...

ऐसे में अपने जीवन का लंबा समय देश में बिताने के बाद पराई धरती पर बसने और वहां की भाषा से लेकर कार्य-संस्कृति तक, हर चीज से तालमेल कर लेने वाली भारतीय महिलाओं की हिम्मत सच में संघर्ष की मिसाल है।
Sach hai! Mai to soch ke ghabra jaatee hun!

virendra sharma said...

अनुमोदन करता हूँ डॉ .मोनिका आपके प्रेक्षण और विश्लेषण का .यहाँ दैनिकी सुबह ५-६ बजे से शुरू होती है .बच्चे हैं तो उन्हें पहले तैयार करना .खुद तैयार होना .बच्चों को अगर छोटें हैं तो प्ले स्कूल छोड़ना बड़े हैं तो एलिम्नेतरी स्कूल .कई मर्तबा दो बच्चे हैं .तो दो विपरीत दिशाओं में दौड़ और फिर दफ्तर .शाम को ६ -७ बजे वापसी .फिर खाने का जोड़ .बेशक पति यहाँ हिस्सेदार होता है घरेलू काज का कोई परमेशवर वरमेश्वर नहीं .वापसी में वह उठाता है बच्चों को .लौंड्री रूम में कपडे धोने की और किचिन जिसे कहतें हैं वहां बरतन धोने की भी मशीन होती है .आटा गूंथने की भी .सब कुछ फ्रोज़िंन भी मिलता है सूजी के हलवे से लेकर कड़ी पकौड़ी तक लेकिन अमूमन भारतीय शाम को ताज़ा ही खाने की कोशिश में रहता है .
गोरे घर लौटते कुछ भी ड्राइव वे से उठाकर रास्ते में ही गाडी ड्राइव करते करते टूंग लेतें हैं .बच्चे अपने आप क्रिब में सोयेंगें .कोई लोरी लप्पा नहीं .कोई गोदी नहीं .हमारे वाले यहाँ भी लाडले और चूजी बने रहतें हैं मम्मी नहीं पापा के हाथ से खाना है ।
अच्छा विश्लेषण है आपका ।

दिवस said...

परिवार, समाज व राष्ट्र का भविष्य एक स्त्री ही निश्चित कर सकती है, अत: उसे तो सबल होना ही होगा|
जीवन तो नाम ही संघर्ष का है| इसे चुनौती के रूप में स्त्री स्वीकार करती है| परिवार, कार्यालय व समाज में तालमेल एक स्त्री ही बैठा सकती है|
सच में स्त्री महान है| और भारतीय महिलाओं का तो कोई सानी ही नहीं है|
सच कहा है आपने कि विदेश में भी एक भारतीय स्त्री के लिए जीवन संघर्ष ही है|

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

सही कहा आपने।

वैसे संषर्घ तो जीवन के हर कदम पर है। जहां जीवन होगा, वहां संघर्ष तो रहेगा ही।

------
ओझा उवाच: यानी जिंदगी की बात...।
नाइट शिफ्ट की कीमत..

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

आपकी बात सही है....संवेदनापूर्ण सुन्दर लेख

Kunwar Kusumesh said...

पठनीय और सोचनीय पोस्ट .

Anonymous said...

सहमत हूँ आपकी बातों से......पर एक बात कहूँगा इस मामले में स्त्री और पुरुष की भावनाएं अलग नहीं हो सकती है....सब का तो अनहि कह सकता पर यकीन जानिए पुरुष भी देश, मिट्टी, परिवार, संस्कृति को लेकर उतने ही संवेदनशील होते अहिं जितनी महिलाएं...........सुन्दर आलेख |

Maheshwari kaneri said...

महिलाएं चाहे देश में हो चाहे विदेश में
उनका जीवन बचपनसे ही संघर्ष में ही
बीतता है ! सर्थक और सटीक लेख...आभार..

नश्तरे एहसास ......... said...

jeevan ka sahi matlab hi sangharsh hota hai par jis sangharsh se mahilaaon ne mukaam hasil kiye hai vo sarahniya hai,
sarthak post!!

प्रेम सरोवर said...

आपका यह आलेख अच्छा लगा.इस संबंध में मैंने भी एक आलेख अपने ब्लाग 'प्रेम सरोवर' में लिखा है।आप उस पोस्ट पर सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद।

amit kumar srivastava said...

बिलकुल सच...

एक अच्छा लेख...

upendra shukla said...

aapne sahi samasya sabhi ke saamne rakhi hai
samrat bundelkhand

पूनम श्रीवास्तव said...

monika ji
bahut hi alag si aur bahut hi sakaratmakta se bhari aapki post behad hi achhi lagi .
yah bilkul sahi hai ki kisi dusre desh me rah kar vahan ke anusaar apne ko anukul banane ke liye unhe bahut hi sangharshh karna padta hai par yah bhi ek sach hai ki ham bhartiy mahilao me sanghrsh karne ki pravriti shayad janm-jaat hi hoti hai isi liye vo apne aapko hae paristhitiyon me bahut hi aasasni se dhal leti hai .aur yah hamare liye bade hi garv ki baat hai .
aapka lekh padh kar vastav me ek alag se hi utsaah jagta hai man me .
vaise bhi aapki post hamesha ki tarah ek nayi khoj si lagti hai .aapki lekhni ko naman karti hun.
main aapki pichhli post par teen baar aai par comments dalne ke baad jaise hi post ke liye clik karti thi to net me hi koi samsya aa jaati thi .
vaise bhi aaj kal net ki problem kuchh jyaada hi ho rahi hai .
bahut hi sarthak lekhan ke liye bahut bahut badhai
dhanyvaad
poonam

smshindi By Sonu said...

आदरणीया मोनिका जी,
इस आलेख के माध्यम से आपने एक बहुत ही अनछुए पहलु पर प्रकाश डाला ह!

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

अपने ही देश में जहाँ संस्कृति और भाषा में समरूपता है,किसी दूसरे शहर बसना बड़ा ही कठिन होता है.पता नहीं दूसरे देश में कैसे सामंजस्य करते होंगे.बहुत कठिन होता होगा.आपने पोस्ट लिखने के बाद जरुर सोचा होगा कि काफी अनुभूतियों को शब्दों में नहीं मिले हैं,वर्ना अभी बहुत कुछ लिखना रह गया है.

Unknown said...

dr. sahiban saral,thode se shabdon meaapane kadavi sachchayi,sachchayi ke sath rakhi sadhuwad

वाणी गीत said...

भारतीय महिलाएं सामंजस्य स्थापित करने में अव्वल रही है , देश हो या विदेश !

virendra sharma said...

असल बात है यहाँ आकर मशीन की लय -ताल के साथ रिदम बनाके चलना .बेशक कहीं कोई अफरा तफरी नहीं .हर जगह एक अनुशाशन .नफासत .पहले आप हर चीज़ में .

Gopal Mishra said...

ऐसी बातें बता कर आप सचमुच एक सामजिक कार्य कर रही हैं...आपके लेख प्रेरणादायक होते हैं. धन्यवाद.

कमलेश खान सिंह डिसूजा said...

अत्यन्त सुन्दर लेख :
भारतीय नारी शक्ति की प्रतीक ! किसी भी परिवेश में वो अपने आपको ढाल लेना उकना एक गुण है चाहें वो अपना देश हों या विदेशी धरती हर जगह वो अपनी पहचान बना ही लेती हैं !

Admin said...

mahilayo ki soch aur unka kary karne ka tarika aur her chhetr me apna loha manva rahi hai
bahut sundar post

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

आखिर भारतीय नारी है !!

विश्व के किसी भी कोने में रहे .....अपनी छाप छोड़ने में सफल ही रहेगी

kavita verma said...

har paristhiti me dhal jana mahilaon ki fitrat me hota hai..isiliye har samaj har sabhyata me ladaki hi naye parivesh ko apnati hai... ek sarthak aakalan...

abhi said...

हाँ, कुछ ऐसी बातें बाहर रह रहे कुछ लोगों से सुना है..
अच्छी बात है ये तो..

Sawai Singh Rajpurohit said...

आदरणीया मोनिका जी,
आपकी बात सही.

शोभना चौरे said...

मोनिकाजी
आपकी हर पोस्ट जीवन को सकारात्मकता प्रदान करती है |महिलाये ही तो पूरे समाज में समंजस्य बिठाने का काम करती है और अब तो विदेश भी अपना ही समाज होता जा रहा है |
सुन्दर पोस्ट |

Vivek Jain said...

सार्थक लेख, नारी तो नाम ही संघर्ष का है,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

रजनीश तिवारी said...

बहुत अच्छा सार्थक लेख । विदेश में रहने वाली एक भारतीय महिला का जीवन संघर्ष ... अच्छा विषय ।

Urmi said...

बहुत बढ़िया और सार्थक पोस्ट! सच्चाई को आपने बड़े ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है ! जैसे जैसे मैं आपका पोस्ट पढ़ते गयी सोचने लगी कि मैं भी विदेश में हूँ और आपने सही बात का उल्लेख किया है!

Er. सत्यम शिवम said...

आपका स्वागत है "नयी पुरानी हलचल" पर...यहाँ आपके पोस्ट की है हलचल...जानिये आपका कौन सा पुराना या नया पोस्ट कल होगा यहाँ...........
नयी पुरानी हलचल

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

इस शमा को जलाए रखें।

------
तांत्रिक शल्‍य चिकित्‍सा!
…ये ब्‍लॉगिंग की ताकत है...।

दिगम्बर नासवा said...

विदेश में रहने के कारन बहुत पास से मैंने भी ये सब देखा है और महसूस किया है ...न सिर्फ बाहर बल्कि घर में भी चुनोतिपूर्ण परिस्थिति को भारतीय महिलायें बाखूबी संभालती हैं ...

रंजना said...

सही कहा आपने...ऊपर से सब कुछ जितना चमकीला होता है, अन्दर अपार कुहरा और संघर्ष भरा रहता है...

हमारे यहाँ बाल्यावस्था से ही लड़कियों को जिस तरह मानसिक रूप से तैयार किया जाता है, जीवन में विपरीत परिस्थतियों में तालमेल बिठाने की उनकी क्षमता उतनी ही उच्च होती है...इसलिए सहज ही वे एडजस्ट कर लेती हैं...

महेन्‍द्र वर्मा said...

यह जानकर अच्छा लगा कि भारतीय महिलाएं विदेशी कार्य-संस्कृति के माहौल के साथ तालमेल बना लेती हैं। उनकी यह हिम्मत सचमुच प्रशंसनीय है।

BrijmohanShrivastava said...

सच बात है बहुत अन्तर है यहां और वहां में

JAGDISH BALI said...

A meaningful analysis.

Rachana said...

mahilaon ka sangharsh kahan nahi hai .pr aapki baat se me puri tarah sahmat hoo
rachana

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह said...

Sunder aalekh,gahan samajh,aap bahut hi sunder likhti hai man se/aabhar
sader,
dr.bhoopendra
rewa
mp

amrendra "amar" said...

भारतीय महिलाएं आस्था और निष्ठा के बल पर विदेशों में भी अपना परचम लहराने लगीं हैं.
आपका लेख सुन्दर व सार्थक है.

Shabad shabad said...

अच्छी पोस्ट ....बहुत अच्छा विषय !

SHAYARI PAGE said...

nice..

Minakshi Pant said...

महिलाएं वो हर कला को जीने की ताकात है वो हर हाल में बदलना जानती है उसमे हर परिस्थिति से लड़ने की ताकात है शशयद उसी का नाम नारी है |
सुन्दर विषय पर चर्चा |

Pratibha Verma said...

सार्थक लेख !!!

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