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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

02 August 2019

स्वास्थ्य सेवाओं की दयनीय स्थिति

हाल ही में आई नीति आयोग की रिपोर्ट  ‘हेल्दी स्टेट प्रोगेसिव इंडिया’ ने  देश की स्वास्थ्य सेवाओं की दयनीय स्थिति को सामने रखा है | ‘स्वस्थ राज्य, प्रगतिशील भारत’ रिपोर्ट के इस दूसरे संस्करण में सामने आये बिगड़ती  चिकित्स्कीय सेवाओं के हालात वाकई चिंतनीय हैं | गौरतलब है कि इस अध्ययन के अंतर्गत नीति आयोग ने राज्यों की एक रैंकिंग जारी की है।  23 संकेतकों  को  आधार बनाकर राज्यों की सूची  तैयार की गई है | ये सभी संकेतक जीवन सहेजने से जुड़ी बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं के सूचक हैं |  इनमें  नवजात  मृत्यु दर, प्रजनन दर, जन्म के समय लिंगानुपात, संचालन व्यवस्था-अधिकारियों की नियुक्ति और अवधि  के  साथ ही   नर्सों और डॉक्टरों के खाली पद आदि शामिल हैं |  भारत में चिकित्सकीय सेवाओं की  दुःखद हकीकत बयान करने वाली इस रिपोर्ट  को केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, विश्व बैंक और नीति आयोग ने मिलकर तैयार किया है।  रिपोर्ट को तीन हिस्सों बड़े राज्य, छोटे राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में बांटकर बनाया गया है | 21 प्रदेशों की  इस फेहरिस्त में देश के सबसे बड़े राज्य,  उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बदतर बताई गई है।  यू पी के बाद क्रमश: बिहार और  ओडिशा जैसे राज्यों को स्थान दिया गया है | दरअसल,  भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश में स्वास्थ्य सेवाओं की जर्जर स्थिति हमेशा से ही चिंता का विषय रही है | जीवन रक्षा से जुड़ी चिकित्स्कीय सेवाओं की स्थिति नागरिकों को निराश ही करती  आई  है | ( जनसत्ता में प्रकाशित लेख का अंश )

5 comments:

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्मदिवस - मैथिलीशरण गुप्त और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (05-08-2019) को "नागपञ्चमी आज भी, श्रद्धा का आधार" (चर्चा अंक- 3418) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

दिगम्बर नासवा said...

सही लिखा है आपने ... बुनियादी सेवायें नहीं हैं देश में और ५ ट्रिलियन की इकॉनमी तक जाने की बात करते हैं हम ... ये खुद से भी छलावा है ...

गिरधारी खंकरियाल said...

सच्चाई यही है कि मध्यम वर्गीय व्यक्ति तो इलाज से भी वंचित है।

#vpsinghrajput said...

सही कहा आपने

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