अमानवीय सोच और क्रूरता की कोई हद नहीं बची है अब | छोटी-छोटी बातों से उपजी रंजिशें रक्तपात की घटनाओं का कारण बन रही हैं | हाल ही में अलीगढ़ के टप्पल इलाके में तीन साल की बच्ची की नृशंस हत्या इसी की बानगी है | गौरतलब है कि हाल ही में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में महज 10 हजार रुपए के लिए इस घटना को अंजाम दिया गया। यह रकम बच्ची के पिता से उधार ली गई थी और आरोपी उसे वापस नहीं कर पाया था। जिसके चलते आरोपी और बच्ची के पिता के बीच बहस हुई थी | सवाल है इस पूरे प्रकरण में उस मासूम की क्या गलती है ? उसे किस बात की सजा दी गई ? जबकि उधार चुकाने को लेकर परिवारजनों से बहस करने वाले आरोपी ने अपने साथी के साथ मिल कर बच्ची का अपहरण किया और फिर हत्या कर कूड़े में फेंक दिया | पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक, मौत का कारण दम घुटना है | लेकिन मौत से पहले बच्ची को बहुत ज़्यादा पीटा गया है | आत्मा को झकझोर देने वाले इस मामले में मासूम बच्ची का सड़ा-गला देखकर शव पुलिसवालों का ही नहीं पोस्टमार्टम करने वाले चिकित्सकों का भी दिल दहल गया |
दरअसल, आपसी रंजिश, बेवजह का आक्रोश और नैतिक पतन ऐसी अमानवीय घटनाओं को अंजाम देने वाले अहम् कारण बनते जा रहे हैं | दुःखद है कि ऐसी अमानवीय वृत्तियाँ अब इंसानी मन पर कब्ज़ा जमाकर बैठ गई हैं | नतीजनतन, ना सही गलत सोचने की सुध बची है और ना ही इंसानियत का मान करने का भाव | ऐसे में मन को झकझोर देने वाली इन घटनाओं की पुरावृत्ति इनका सबसे दुखद पहलू है | छोटी बच्चियों के साथ बर्बरता की बात हो या आपसी रंजिश के चलते जान ले लेने का मामला | ऐसी घटनाएं आये दिन हो रही हैं | आस-पड़ोस हो, रिश्तेदारी हो या कोई सड़क पर चलता कोई अनजान इंसान | जाने कैसा आक्रोश है कि जान ले लेने की बर्बर घटनाएं बहुत आम हो गई हैं ?
दरअसल, आपसी रंजिश, बेवजह का आक्रोश और नैतिक पतन ऐसी अमानवीय घटनाओं को अंजाम देने वाले अहम् कारण बनते जा रहे हैं | दुःखद है कि ऐसी अमानवीय वृत्तियाँ अब इंसानी मन पर कब्ज़ा जमाकर बैठ गई हैं | नतीजनतन, ना सही गलत सोचने की सुध बची है और ना ही इंसानियत का मान करने का भाव | ऐसे में मन को झकझोर देने वाली इन घटनाओं की पुरावृत्ति इनका सबसे दुखद पहलू है | छोटी बच्चियों के साथ बर्बरता की बात हो या आपसी रंजिश के चलते जान ले लेने का मामला | ऐसी घटनाएं आये दिन हो रही हैं | आस-पड़ोस हो, रिश्तेदारी हो या कोई सड़क पर चलता कोई अनजान इंसान | जाने कैसा आक्रोश है कि जान ले लेने की बर्बर घटनाएं बहुत आम हो गई हैं ?
8 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (21-06-2019) को "योग-साधना का करो, दिन-प्रतिदिन अभ्यास" (चर्चा अंक- 3373) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 21/06/2019 की बुलेटिन, " अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 2019 - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
कानून की असहायता और न्याय मिलने का लंबा समय अपराधअपराधोंं की पृष्ठभूमि है. :(
कानून की असहायता और न्याय मिलने का लंबा समय अपराधोंं की पृष्ठभूमि है.
जीवन जब अर्थहीन लगने लगता है, भीतर कोई ख़ुशी महसूस नहीं होती, तब क्रोध का दानव सीमा से बाहर हो जाता है, मानव को मानव बने रहने के लिए केवल भोजन, घर और कपड़ा ही नहीं चाहिए, चाहिए कुछ मूल्य, कुछ आदर्श, कुछ प्रेम और आत्मीयता, जो सब आज खोते जा रहे हैं.
सच है अधीरता,और अशिष्टता के कारण भी ऐसी घटनाओ की आवृति बढ़ी है।
बढता भीड़तंत्र ... असंवेदनशीलता, स्वार्थीपन, भागम-भाग सा जीवन, सब कुछ प् लेने की होड़ ...
जाने क्या क्या है जो आज सबको ग्रस रहा है ... लगता है पूरी दुनिया गर्त में जा रही है ...
बेहतरीन सृजन
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