ज़िन्दगी संभलती नहीं है |
ये पकड़ो तो वो छूट जाता है और वो संभालो तो ये बिखर जाता है |
हर लेखक अपनी रचना के बाद मर जाता है | नई रचना के लिए वह फिर से जन्म लेता है |
साहित्य की समझ हो तो पत्रकारिता में भी निखार आता है |
लेखन, समय और एकांत चाहता है |
ये बातें "पाखी" के संपादक प्रेम भारद्वाज जी और विविध भारती में अपनी आवाज के लिए ख़ास पहचान रखने वाले यूनुस खान जी के संवाद का हिस्सा हैं जो हाल ही में जयपुर में होने वाले साहित्यिक आयोजनों की श्रृंखला "सरस साहित्य संवाद" में सुनने को मिलीं | मुझे भी इस सार्थक संवाद को सुनने-गुनने का अवसर मिला | प्रेम भारद्वाज जी ने अपने जीवन और रचनाकर्म से जुड़े कई पहलुओं पर खुलकर बात की |
उनके बचपन की स्मृतियों से लेकर वर्तमान जीवन की जद्दोज़हद तक, बहुत कुछ इस सार्थक संवाद का हिस्सा रहा | सम्पादकीय जिम्मेदारियों और लेखन से सम्बंधित बातों के साथ ही जीवन से जुड़े कई संवेदनशील पक्षों पर भी प्रेम जी ने अपने विचार और भाव साझा किये | यूनुस जी ने भी उनसे जो सवाल किये वे एक लेखक को ही नहीं मानवीय मन को भी कुरेदने वाले थे | संभवतः यही वजह रही कि इस संवाद के दौरान सुनने वालों की आँखें भी कई बार नम हुयीं |
स्त्री हर रूप में किस तरह एक इंसान का जीवन गढ़ती है, यह प्रेम भारद्वाज जी बातें सुनकर और पुख़्ता हुआ | बातचीत के दौरान अपनी माँ और पत्नी की बात करते हुए वे स्वयं भी भावुक हुए और सुनने वाले भी | अब तक उनका लिखा ही पढ़ा था | इसलिए उन्हें सुनते यह भी महसूस हुआ कि शब्दों के पीछे भी मन में कितनी संवेदनाएं दबी रहती हैं |
हम सब जानते ही हैं कि उनके लिखे सम्पादकीय आमतौर पर चिंतन मनन की पृष्ठभूमि तैयार करते हैं...... कभी विचारणीय सवाल उठाते हैं..... तो कभी विवादों की बात करते हैं | ऐसे में एक श्रोता के तौर पर यह संवाद उनकी सृजनशीलता के साथ साथ इंसानी मन की परतें खोलने वाला भी लगा | पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़ी होने के चलते पत्रकारिता और साहित्य के साथ को लेकर कही गयी उनकी बात विचारणीय भी लगी और समझने योग्य भी | इस सार्थक साहित्यिक आयोजन के लिए ईशमधु तलवार जी का आभार और शुभकामनाएं |
9 comments:
सुन्दर पोस्ट
सार्थक पोस्ट, आभार !
सार्थक पोस्ट ... किसी लेखक के ह्रदय को सुनना और जानना एक अलग ही अनुभव होता है ...
रोचक पोस्ट ...
साझा करने के लिए आभार
आभार आपका
सार्थक पोस्ट
साझा करने के लिए शुक्रिया !
बहुत सुन्दर, सार्थक और सारगर्भित चिंतन...आभार साझा करने के लिए...
पढ़ा भी, सुना भी और सीखा भी। अनुकरणीय।
आदरणीया डॉ मोनिका जी सार्थक और उत्कृष्ट लेखन ,,अच्छी जानकारी रोचक
भ्रमर ५
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