My photo
पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

24 February 2016

ज़िन्दगी संभलती नहीं है ...


ज़िन्दगी संभलती नहीं है | 
ये पकड़ो तो वो छूट जाता है और वो संभालो तो ये बिखर जाता है |
हर लेखक अपनी रचना के बाद मर जाता है | नई रचना के लिए वह फिर से जन्म लेता है | 
साहित्य की समझ हो तो पत्रकारिता में भी निखार आता है | 
लेखन, समय और एकांत चाहता है | 

ये बातें "पाखी" के संपादक प्रेम भारद्वाज जी और विविध भारती में अपनी आवाज के लिए ख़ास पहचान रखने वाले यूनुस खान जी के संवाद का हिस्सा हैं जो हाल ही में जयपुर में होने वाले साहित्यिक आयोजनों की श्रृंखला "सरस साहित्य संवाद" में सुनने को मिलीं | मुझे भी इस सार्थक संवाद को सुनने-गुनने का अवसर मिला | प्रेम भारद्वाज जी ने अपने जीवन और रचनाकर्म से जुड़े कई पहलुओं पर खुलकर बात की |

उनके बचपन की स्मृतियों से लेकर वर्तमान जीवन की जद्दोज़हद तक, बहुत कुछ इस सार्थक संवाद का हिस्सा रहा | सम्पादकीय जिम्मेदारियों और लेखन से सम्बंधित बातों के साथ ही जीवन से जुड़े कई संवेदनशील पक्षों पर भी प्रेम जी ने अपने विचार और भाव साझा किये | यूनुस जी ने भी उनसे जो सवाल किये वे एक लेखक को ही नहीं मानवीय मन को भी कुरेदने वाले थे | संभवतः यही वजह रही कि इस संवाद के दौरान सुनने वालों की आँखें भी कई बार नम हुयीं | 
स्त्री हर रूप में किस तरह एक इंसान का जीवन गढ़ती है, यह प्रेम भारद्वाज जी बातें सुनकर और पुख़्ता हुआ | बातचीत के दौरान अपनी माँ और पत्नी की बात करते हुए वे स्वयं भी भावुक हुए और सुनने वाले भी | अब तक उनका लिखा ही पढ़ा था | इसलिए उन्हें सुनते यह भी महसूस हुआ कि शब्दों के पीछे भी मन में कितनी संवेदनाएं दबी रहती हैं |

हम सब जानते ही हैं कि उनके लिखे सम्पादकीय आमतौर पर चिंतन मनन की पृष्ठभूमि तैयार करते हैं...... कभी विचारणीय सवाल उठाते हैं..... तो कभी विवादों की बात करते हैं | ऐसे में एक श्रोता के तौर पर यह संवाद उनकी सृजनशीलता के साथ साथ इंसानी मन की परतें खोलने वाला भी लगा | पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़ी होने के चलते पत्रकारिता और साहित्य के साथ को लेकर कही गयी उनकी बात विचारणीय भी लगी और समझने योग्य भी | इस सार्थक साहित्यिक आयोजन के लिए ईशमधु तलवार जी का आभार और शुभकामनाएं |

9 comments:

जयकृष्ण राय तुषार said...

सुन्दर पोस्ट

Suman said...

सार्थक पोस्ट, आभार !

दिगम्बर नासवा said...

सार्थक पोस्ट ... किसी लेखक के ह्रदय को सुनना और जानना एक अलग ही अनुभव होता है ...
रोचक पोस्ट ...

Anonymous said...

साझा करने के लिए आभार

डॉ. मोनिका शर्मा said...

आभार आपका

मुकेश कुमार सिन्हा said...

सार्थक पोस्ट
साझा करने के लिए शुक्रिया !

Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर, सार्थक और सारगर्भित चिंतन...आभार साझा करने के लिए...

गिरधारी खंकरियाल said...

पढ़ा भी, सुना भी और सीखा भी। अनुकरणीय।

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

आदरणीया डॉ मोनिका जी सार्थक और उत्कृष्ट लेखन ,,अच्छी जानकारी रोचक
भ्रमर ५

Post a Comment