तीन साल पहले आज ही के दिन स्त्री अस्मिता को ही नहीं मनुष्यता को भी तार- तार कर देने वाला वो भयावह वाकया हम शायद ही कभी भुला पाएं या फिर भुला भी दें, हम तो माहिर हैं ही सब कुछ भूल जाने में । वरना हर दिन यूँ ज़ख्म नहीं मिलते हमें । खैर, आमजन भले ही भूल जाएँ निर्भया के माता-पिता आज भी न्याय के लिए लड़ रहे हैं। क्योंकि ना तो उन दरिंदों को अभी तक फांसी हुई जिनकी पहचान जगजाहिर है और ना ही नाबालिग होने के नाम पर बच निकलने वाले इस अमानुष की पहचान सामने आई जिसने बर्बरता की हर सीमा पार की । यही वो दुष्ट है जिसने निर्भया को सबसे ज्यादा चोट पहुंचाई थी। पर मैं आज इस अफ़सोसजनक हादसे को याद करना चाहती हूँ और सभी याद दिलाना भी कि हम जिसकी पहचान तक नहीं जानते वो जुवेनाइल अपराधी अब आजाद होने को तैयार है और उसने बाल सुधार गृह में रहने की सजा पूरी कर ली है । यह नाबालिग दोषी अब 20 साल का हो चुका है और वह 20 दिसंबर को छूटकर बाहर आ सकता है।
ऐसे में सवाल यह है कि अब जबकि वह नाबालिग नहीं रहा तो सरकार और कानून उसकी पहचान क्यों छुपा रहे हैं ? निर्भया का परिवार और माँ बाप जिस दर्द को बिना गलती के भोग रहे हैं उसी दर्द से इस जानवर के परिवार को क्यों बचा रहे हैं ? क्यों नहीं उनके आस-पड़ौस और रिश्ते नातेदारी के लोग भी उस परिवार की असलियत जाने जिसमें इस दरिंदे को परवरिश मिली है ? क्यों नहीं वे अपनी गली में शर्म से सिर झुककर निकलें कि यह यह अमानुष उनके घर का सदस्य है ? अब तक कानून की ओट में वो छुपा रहा । पर अब हम जानना चाहते हैं कि कौन है ये दरिंदा जिसने बहन कहकर निर्भया को भरोसा देते हुए बस में बैठने को कहा और फिर इंसान की ज़ात को ही शर्मिंदा कर दिया ? आखिर सरकार क्यूँ छुपा रही है उसकी पहचान ?
इस देश का हर इंसान चाहता है कि कानून का सहारा लेकर वो सज़ा से तो बच गया लेकिन समाज में उसके प्रति जो घृणा है उसे वो ज़रूर देखे और जीये भी । लेकिन यह तब तक संभव नहीं जब तक उसकी पहचान उजागर ना हो । एक स्त्री की देह से राक्षस की तरह खेलने वाले के जीवन में कभी किसी की बेटी ना आये, उसका घर ना बसे, इसके लिए उसका नाम जगज़ाहिर होना ज़रूरी है । यह सब कुछ तभी संभव है जब उसका अपना समाज ही नहीं देश का हर नागरिक उसका नाम पता जानेगा । उसे कानून की ओर से कड़ी सज़ा नहीं मिली यह स्त्रीत्व, समाज और इंसानियत की सबसे बड़ी हार है लेकिन हमारी उससे बड़ी पराजय तब होगी जा किसी सार्वजानिक स्थल वो हमारे आसपास ही पूरे सम्मान के साथ घूम रहा होगा और हम उसे पहचान ना सकेंगें । वह किसी बस या ट्रेन में हमारे साथ ही सफ़र कर रहा होगा और उसे हमारी नफ़रत भरी निगाह भी ना मिलेगी । उस दरिंदें का परिवार उसी मान सम्मान के साथ जीता और खुशियां मनाता रहेगा जैसा कि अब तक होता आया है। ऐसा हुआ तो हम एक बार फिर हार जायेंगें ।
ऐसे कितने ही मामले अब तक सामने आ चुके हैं जिनमें ये मासूम नाबालिग और भी दुर्दांत अपराधी बनकर सुधारगृहों के बाहर आते हैं । अपराध के नए कारनामों को अंजाम देते हैं । जिस अमानुष का मन आज से तीन साल छोटी उम्र में नहीं पिघला उसकी ज़िन्दगी में उस हैवानियत को अंजाम देने के बाद जुड़े ये तीन साल उसमें कोई बदलाव ला सकते हैं मुझे इसकी कोई उम्मीद नहीं दीखती । इस मामले से जुड़ी एक रिपोर्ट में यह बात सामने भी आई थी कि इस जुवेनाइल रेपिस्ट को अपने किए अपराध पर कोई पछतावा नहीं है और ना ही बाल सुधार गृह को उसे सुधारने में कोई कामयाबी मिली है । ज़ाहिर सी बात है ऐसे लोग कभी सुधर भी नहीं सकते ।
हैरानी तो मीडिया पर भी है | निर्भया की पहचान खोज ली । उसके माता-पिता को समाचार चैनलों के दफ्तर तक ले आये । स्टूडियोज़ में बैठाकर उनकी पीड़ा के दम पर टीआरपी भी बटोर ली, लेकिन इस दरिंदे को लेकर अब तक उन्हें कोई सुराग ना मिला है । कमाल ही है । निर्भया की मां चाहती हैं कि इस जुवेनाइल रेपिस्ट को लोग पहचानें ...... हम सब चाहते हैं...... देश का हर नागरिक चाहता है कि उसकी पहचान उजागर हो । उसकी तस्वीर ही नहीं उससे जुड़ी हर जानकारी सार्वजनिक होनी चाहिए ताकि जो लोग उसके मददगार बनें, उसे घर में पनाह दें, उनकी मानसिकता भी लोगों के सामने आ सके । समाज उनका बहिष्कार कर सके ।
17 comments:
कुछ बातों,प्रश्नों पर बस दिमाग की नसें खींचती हैं, कहने को आक्रोशित चंद शब्द
व्यवस्था,स्थिति अति भयावह
वाकई, जाने कब तक ?
मौजू सवाल और मन को मथते संदर्भ: आततायियों का नाम और चेहरा सार्वजनिक हो और वे सामाजिक बहिष्कार के भी भागी बने
जी , आभार
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17-12-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2193 में दिया जाएगा
आभार
कठोर सजा का भय न होने से ऐसे हैवान कभी इंसान नहीं बन पाते ... ऐसे लोगों की पहचान सार्वजनिक न होना कानून व्यवस्था पर से भरोसा उठने जैसा है
बिलकुल सही कहा कविता जी
आभार आपका
बेहद उम्दा पोस्ट😊
शुक्रिया सारिका
Unaki pehchan ho aur use sarwjanik banana Jaye taki Samaj se wah pratadit hote rahen . Kam se Kam itani to saja mile unhe.
i har
इस तरह के दोषियों को जितनी कड़ी सजा दी जाय कम है.जुवेनाइल के नाम पर ऐसे दोषियों के बचने का रास्ता न निकले.
ऐसे हिंसक मानव पशु, मानवता का गला घोंटने में कामयाब रहते हैं , काश उनको ऐसी ही मौत दी जाए
बेचारगी इतनी है कि कानून और अदालतो का सम्मान करना ही पड़ता है।
मोनिका जी,बिलकुल सही कहा आपने। समाज द्वारा बहिष्कृत किए जाने पर ही शायद ऐसे लोग कुछ सुधर सके। ऐसे जघन्य अपराध करने से पहले उनकी रूह कांप उठे।
आपका कहना एकदम सही है । सजा मिलनी चाहिए सब
जानते है , पर कुछ कर नहीं सकते ।
कानून की देश तब सोचेगा जबब इस विषय पे एक होगा ... आक्रोश के समय कुछ लोग गायब रहते हैं बाद में ऐसी बारों का विरोध भी करते हैं ...
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