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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

03 November 2015

हौसला देतीं समीक्षात्मक टिप्पणियाँ - देहरी के अक्षांश पर

 मेरे पहले काव्य संग्रह को लेकर हौसला देतीं समीक्षात्मक टिप्पणियाँ आपसे साझा कर  रही  हूँ । जो रश्मि प्रभा जी,  डॉ.  अरविन्द मिश्रा जी और सारिका चौधरी  ने दी हैं। … आप सभी  का आभार । 

देहरी के अक्षांश पर ...
कलम में परिवर्तन की आग भरकर, हर परिस्थिति को ध्यान में रखकर लिखना डॉ मोनिका शर्मा की विशेषता है, तभी - बिना उनके आग्रह के मैंने उनका संग्रह "देहरी के अक्षांश पर" मँगवाया, जो बोधि प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है। नवरात्री के बीच में पुस्तक मेरे हाथ में थी, शक्ति शक्ति के आगे नतमस्तक थी। 

मोनिका के शब्दों को जेहन में रखकर संग्रह को पन्ने पन्ने पढ़ा है, "अच्छा लग रहा कि एक गृहणी के तौर पर जिस आँगन में जिम्मेदारियों से जूझते हुए, एक- एक अक्षर और शब्द को सहेजते हुए अपने सृजनकर्म आगे बढ़ा रही हूँ वह पुस्तक के रूप में मेरे सामने है । हालाँकि नियमित लेखन और घरेलू उत्तरदायित्वों को निभाते हुए यह कर पाना कठिन भी रहा


ऐसे में सभी सखियों से कहना चाहूंगी कि हमारे सामाजिक-पारिवारिक ढाँचे में महिलाओं का सृजनशील रहना आसान काम नहीं है । लेकिन खुद को सक्रिय रखिये । हर परिस्थिति में और उम्र के हर पड़ाव पर । आप जिस क्षेत्र से भी जुड़ी हैं, चलती रहिये । ठहराव ना आने दीजिये । हाँ, मुश्किलें भी आएँगी और सब कुछ सहजता से भी नहीं होगा | लेकिन क्रियाशील रहिये .... सबको संभालिये लेकिन आपके भीतर जो आप बसती हैं.... उसे जीवित रखने की जिम्मेदारी भी उठाइये ।"



घर परिवार की धुरी वह 
फिर भी अधूरी ....

यह है एक संक्षिप्त भाव उस बहुत गहरी स्थिति का, जिसे हम समझते हुए भी नहीं समझते, जिसे देहरी के आगे ज्वलंत शब्दभावों के तेल से भरकर मोनिका ने अखंड जलाया है ! मैं कोई समीक्षक नहीं, लेकिन जीवन की इन बारीकियों को बारीकी से पढ़ने की कोशिश करती हूँ, क्योंकि उस अक्षांश के अनुभवों से गुजरी हूँ ! गौर कीजिये इस संग्रह पर और इस समर्पण पर -

"गृहस्थी की धुरी पर सतत संघर्षशील माँ को समर्पित " 


"देहरी के  अक्षांश  पर":एक फेसबुकीय टिप्पणी
अनेक तरह की सामजिक सीमाओं और वर्जनाओं में प्रतिपल कैद रहने वाली गृहिणी की अपनी पहचान स्थापित करने की कशमकश और कशिश कवयित्री के पहले कविता संकलन 'देहरी के अक्षांस पर' में बेलौस अभिव्यक्त हुयी है। उसके हर पल का संघर्ष, परिवार समाज के प्रति उसकी ईमानदार प्रतिबद्धताओं की निरंतर अनदेखी से उपजा आक्रोश इस संकलन की कविताओं में अपनी रचनात्मक नि:सृति और शमन पाता है।
देहरी या चौखट का प्रतीक उसकी असीम ऊर्जावान संभावनाओं पर पितृसत्तात्मक अंकुश को बयां करता है। वह जीवन के हर पल की विसंगतियों में जहां तालमेल और संतुलन बनाने का जीतोड़ संघर्ष करती हैं वहीं उसके हिस्से की शाश्वत विडंबनाएं उसे संतप्त किये रहती हैं और इसी द्वंद्व से फूटती है कविता की अजस्त्र धार जो बहुत ही सहजता से बेबस और विवश किन्तु निरंतर संघर्षरत नारी की अंतर्कथा को व्यक्त कर जाती है। कवयित्री निसंदेह एक सिद्धहस्त शब्द शिल्पी भी हैं और उनकी यह क्षमता कविताओं की बुनावट में एक विशिष्ट प्रभावान्विति उत्पन्न करती है। 

इस संकलन पर कवयित्री डा.मोनिका शर्मा को कोटिशः बधाई। अभी उनसे बड़ी उम्मीदें हैं!



मोनिका दी की लिखी किताब 'देहरी के अक्षांश' पर एक शब्द में कहूँ तो पूर्ण रूप से एक स्त्री व माँ को समर्पित किताब हैं.....इनकी लिखी मन की बात सच मन को छू जाती हैं.....कुछ कविताएँ बहुत छोटी होने के बाद भी सन्देश बड़ा देती हैं...."अनमोल उपलब्धियां" नामक कविता पढ़कर आप स्त्री के त्याग को बख़ूबी समझ सकते हैं......आप हर कविता पढ़कर बस मन में एक ही बात सोच पाते हैं अरे, यह तो मेरे ही बारे में लिखा गया हैं.....और मोनिका दी की यह खूबी हैं कि वो जो लिखते हैं उसमें पाठक अपने आपको उन शब्दों के करीब पाता हैं, उसे यहीं लगता हैं कि हां, यह तो मेरे ही बारे में लिखा गया हैं.....इनकी माँ पर लिखी गई कविताएँ बताती हैं कि यह खुद भी एक बेहद अच्छी व प्यारी माँ हैं और बेटी भी।  तभी तो अपने आपको माँ से भी बख़ूबी जोड़ लेना आता हैं  । 
.बेटियों को समर्पित "उड़ान के लिए" एक बेहद अच्छी कविता हैं जिसकी आखरी पंक्ति ' अपने ही काट देते हैं उनके स्वप्न-पंख'  बिल्कुल सही व सार्थक हैं......चाहे कुछ भी करो पर कभी खोना मत बेटियों बात में दम है।  "आभासी अभिव्यक्ति" भी एक बेहतरीन कविता है
 और हम गदगद हैं 
कि क्लिक से क्रांति आ रही हैं  … 
"स्त्री हूँ मैं" कविता पूरा प्रभावित करती हैं और अपने होने के वजूद पर मुझे भी थोड़ा गौरवान्वित करती है। "मनुष्यता के मोर्चे" नामक कविता अपने आपमें बिल्कुल सही व सार्थक हैं......कुछ कविताएँ शब्दों पर लिखी गई हैं और शब्दों पर इनके द्वारा कुछ लिखा गया मैंने पहले भी इनके ब्लॉग पर भी पढ़ा है।  इतनी अच्छी पकड़ हैं इनकी शब्दों पर जो बख़ूबी बताते हैं कि यह शब्दों का महत्व जानते हैं तभी तो  शब्द, मात्र अक्षरों के समूह भर से कहीं अधिक हैं इनके लिए । अब यूँ एक-एक कविता का जिक्र करूँ तो शायद पोस्ट बेहद बड़ी हो जायेगी । पर बस इतना हैं कि यह हर एक   गृहिणी  को समर्पित किताब है  फिर चाहे वो मेरी माँ हो या मोनिका दी की या आप सबकी अपनी । .आप उनकी अनुपस्थिति में ही उनकी कीमत अच्छे से समझ पाते हैं कि सच   गृहिणी किसी भी नौकरीपेशा औरत से कम नहीं है ।  
 गृहिणी  एक साधारण स्त्री होकर भी सच में भूमिका असाधारण निभाती है.....यह किताब पूरी तरह से एक   व  गृहिणी गृहस्थी की धुरी पर सतत् संघर्षशील माँ को समर्पित है।  सबको एक बार जरुर पढ़नी चाहिए पाठक की तरह मेरी भी यहीं राय है ।  मोनिका दी का शुक्रिया औरतों को इतना मान व सम्मान देने के लिए। 

26 comments:

Anonymous said...

फिर से हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं

Himkar Shyam said...

हार्दिक बधाई। पुस्तक कैसे और कहाँ मिलेगी।

Himkar Shyam said...

हार्दिक बधाई। पुस्तक कहाँ और कैसे मिलेगी।

रश्मि प्रभा... said...

देहरी के अक्षांश पर इन टिप्पणियों से तुम्हें हौसला मिला तो हमारी उम्मीद बढ़ गई,
अगले संग्रह को पढ़ने की

डॉ. मोनिका शर्मा said...

ज़रूर …

Jyoti Dehliwal said...

मोनिका जी, बहुत-बहुत बधाई। आप इसी तरह और आगे बढती रहें यहीं शूभकामनाएं...

Suman said...

पुस्तक प्रकाशन की मेरी तरफ से भी
हार्दिक बधाई जी :)

अरुण चन्द्र रॉय said...

बधाई और शुभकामनाएं

अरुण चन्द्र रॉय said...

बहुत बहुत बधाई।

Jay dev said...

बहुत सी शुभकामनाएँ |

lori said...

o ji!!! mujhe bhi book chahye ye! itti busy rahi ki itne bade sahas ki badhaayi bhi n di apko! ab bahut saari badhai k baad bataiye ki ise KahaN se hasil kiya ja skta hai.

राजीव कुमार झा said...

हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

Kailash Sharma said...

हार्दिक शुभकामनाएं !

जमशेद आज़मी said...

बधाई और शुभकामनाएं।

Asha Joglekar said...

बहुत बधाई मोनिका जी। ऐसे ही नये नये मकाम हासिल करें।

Ankur Jain said...

हार्दिक शुभकामनाएं। टिप्पणियां पढ़कर पुस्तक पढ़ने की उत्कंठा बढ़ गई है। जल्द ही मंगवाते हैं।

RD Prajapati said...

BAHUT BAHUT BADHAI MONIKA JI

Unknown said...

बहुत - बहुत बधाई

Rishabh Shukla said...


सुन्दर रचना ......
मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन की प्रतीक्षा है |

http://hindikavitamanch.blogspot.in/
http://kahaniyadilse.blogspot.in/

JEEWANTIPS said...

सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....

JEEWANTIPS said...

सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....

महेन्‍द्र वर्मा said...

‘देहरी के अक्षांश पर’ की समीक्षाओं ने इसे पढ़ने की उत्कंठा जगाई है ।
शुभकामनाएं ।

डॉ. जेन्नी शबनम said...

पुस्तक प्रकाशन के लिए बहुत बहुत बधाई मोनिका जी. रश्मि प्रभा जी, अरविन्द मिश्रा जी एवं सारिका जी ने बहुत सुन्दर टिप्पणी की है, पुस्तक पढने की उत्कंठा बढ़ा गई.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

पुस्तक के प्रति ये टिप्पणियाँ नि: संदेह हौसला बढ़ाएंगी .... नारी के प्रति आज भी जो भाव समाज में हैं उनको आपने बहुत शिद्दत से महसूस किया है और अपनी रचनाओं में ढाला है .... इस पुस्तक के लिए आपको बधाई और शुभकामनाएं

सदा said...

Achchha lagta hai jb u protsahan milta hai kalam ko.....aap anvart pragti path pr u hi agrasar rhen..... Anant shbhkamnayen

दिगम्बर नासवा said...

हार्दिक शुभकामनायें ...

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