My photo
पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

07 August 2014

स्त्री ही दोषी क्यों...

कुछ समय पहले एक पढ़े लिखे प्रोफेसर साहब का अपनी पत्नी को सड़क पर घसीट कर मारना -पीटना समाचार चैनलों की सुर्ख़ियों में रहा । कारण था घर के भीतर बैठी प्रेमिका । कल एक और ऐसा ही समाचार इन चैनल्स पर दिखा जिसमेँ एक पत्नी ने पति की प्रेमिका को भरे बाजार पीटा । इस मामले में पत्नी ने अपने पति से रिश्ता रखने वाली महिला को सज़ा दी । पहले वाले केस में पति ने दूसरा रिश्ता रखा और खुद ही पत्नी को इसकी सज़ा भी दे दी। दोनों परिस्थतियां कमोबेश एक सी हैं पर सज़ा  महिला को ही मिली । इन दोनों ही मामलों में भरी भीड़ के सामने एक स्त्री की अस्मिता ही दाव पर लगी । 

सवाल ये है कि इन रिश्तों का हिस्सा तो पति भी रहे हैं । ये  दोनों पति क्या किसी भी तरह से दोषी नहीं ? हर हाल में महिला को ही दोष देने वाली हमारी मानसिकता में कब बदलाव आएगा ? मैं यह नहीं कहती कि इन महिलाओं का कोई दोष नहीं होगा  । पहले मामले में पत्नी और दूसरे मामले प्रेमिका, निसंदेह गलती उनकी भी हो सकती है पर इस गलती में इन दोनों ही पुरुषों की भी उतनी ही भागीदारी है जितनी की इन महिलाओं की । जब ऐसा है,  तो दंड केवल स्त्री के हिस्से ही क्यों ? मामला चाहे जो हो हर बार महिला को समाज की ओर से प्रताड़ना ही क्यों मिलती है ? 

हमारे समाज में किसी महिला के सिर दोष मढ़ना सबसे सरल काम है । खासकर तब, जब ये मामला उसके चरित्र से जुड़ा हो । फिर तो सोचने विचारने की ज़रुरत ही नहीं । जो चाहे कह दीजिये लोग गंभीरतापूर्वक सुन भी लेगें और मान भी लेंगें । इन दोनों मामलों में भी यही तो हुआ । क्योंकि यदि पत्नी दोषी है तो प्रेमिका का कोई दोष नहीं । और प्रेमिका ने गलती की है तो पत्नी अपनी जगह सही है । लेकिन विडंबना देखिये की दोनों ही रूपों में महिला को दंड मिला । यदि किसी शादीशुदा पुरुष से रिश्ता रखने और उसका परिवार तोड़ने वाली महिला को सज़ा मिल सकती है तो उस पुरुष को भी भरे बाजार दंड मिलना चाहिए जो अपने ही परिवार को तोड़ने वाले इस रिश्ते में भागीदार है । अफ़सोस की बात है कि  होता इससे विपरीत ही है । ऐसे मामलों में स्वयं पत्नियों, माओं और बहनों को अचानक ये लगने लगता है कि उनका पति,बेटा या भाई तो गलत हो ही नहीं सकता । ऐसे में पत्नी हो या प्रेमिका दोनों ही पुरुष को दोष न देकर उनसे जुड़ी महिलाओं को संदेह की नज़र से देखती हैं ।  

कितने ही तालिबानी फरमान हैं जो दूर दराज़ के गावों में पंचायते आये दिन जारी करती रहती  हैं । जिनमें गलती परिवार के पुरुष की होती है और सज़ा उस घर की महिला के लिए तय कर दी जाती  है । इस तथाकथित सभ्य समाज में क्यों कोई महिला किसी पुरुष की पत्नी, बेटी, बहन या प्रेमिका होने का दंड भोगे । गलती करने पर किसी महिला को सज़ा में छूट मिले मैं ये नहीं कहती पर अपराध में पुरुष की जितनी भागीदारी है उतनी सज़ा तो उसे भी मिलनी ही चाहिए । 

55 comments:

Rajendra kumar said...

आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (08.08.2014) को "बेटी है अनमोल " (चर्चा अंक-1699)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

आभार

विभा रानी श्रीवास्तव said...

यदि किसी शादीशुदा पुरुष से रिश्ता रखने और उसका परिवार तोड़ने वाली महिला को सज़ा मिल सकती है तो उस पुरुष को भी भरे बाजार दंड मिलना चाहिए जो अपने ही परिवार को तोड़ने वाले इस रिश्ते में भागीदार है ।
दंड मिलना hi चाहिए

harivanshsharma said...

फिर क्यों हर स्त्री चाहती है,उसे पुत्र की ही प्राप्ति हो।ओर मातृत्व का सौभाग्य प्राप्त हो,परन्तु क्या वोह अपने पुत्र को अच्छे संस्कार दे पाती है?
आप द्वारा लिखी रचना यथार्त प्रस्तुति है।

सदा said...

गलती करने पर किसी महिला को सज़ा में छूट मिले मैं ये नहीं कहती पर अपराध में पुरुष की जितनी भागीदारी है उतनी सज़ा तो उसे भी मिलनी ही चाहिए.........बिल्‍कुल सहमत हूँ आपकी इस बात से
सार्थक प्रस्‍तुति

Rohitas Ghorela said...

जरूरी है मानसिकता बदलनी पड़ेगी
हल भी हमें ही निकलना है .... क्यूँ है ना ??
हमारा काम केवल समीक्षा करना तो नहीं.. :)

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बिलकुल मानसिकता भी बदले और केवल समीक्षा भी न हो.... ये सोच आखिर कब तक .?

राजीव कुमार झा said...

जब तक मानसिकता नहीं बदलेगी,इस तरह की हरकतों पर रोक नहीं लग सकती.आज के इस युग में भी इस तरह की हरकतें निंदनीय हैं.

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

अभी हमें बहुत लंबा रास्‍ता तय करना है


रश्मि प्रभा... said...

अगर आप किसी के साथ नहीं रहना चाहते तो छोड़ दीजिये, मारपीट क्यूँ ! और स्त्री जो जीवन में आई तो पति को आड़े हाथ लीजिये, स्त्री को क्यूँ मारना

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

बहुत कठिन है डगर ………………

shikha varshney said...

दिल्ली अभी बहुत दूर है.

Vaanbhatt said...

गलत बात को सहन करना गलत है...पर जिस देश में हम हैं...वहां लोगों में व्यवस्था परिवर्तन की कोई ललक नहीं है...सबको अपनी-अपनी पड़ी है...आध्यात्मिक लोग हैं...जी लेते हैं भगवान के भरोसे...पत्नी हो या प्रेमिका सब पूर्व जन्म के कर्मों का फल मान के सब्र कर लेते हैं...सजा का प्रावधान भले हो...पर सजा कितनों को मिल पाती है...हम जज नहीं हैं जो पति-पत्नी के बीच आयें...पर जीवन के हर क्षेत्र में कितने लोग हैं...जो सही और सच के साथ खड़े होने की हिम्मत दिखा पाते हैं...विचारणीय पोस्ट...

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

मेरी एक पोस्ट थी "पति, पत्नी और वो" (चुँकि लिंक छोड़ने की आदत नहीं है, इसलिये नहीं दे रहा हूँ)... जिसमें मेरे स्वर्गीय पिताजी ने "पुरुष" की पिटाई की थी... अंजाम क्या हुआ वो तो आपको वहीं पता चलेगा. ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ पुरुषों को पत्नी और प्रेमिका दोनों ने मिलकर पीटा है और सरेआम पीटा है.

आपने जिन घटनाओं का ज़िक्र किया है यदि केवल उसी के सन्दर्भ में बात करूँ तो यहाँ दोनों स्त्रियों के अन्दर एक दूसरे के प्रति
के प्रति दुश्मनी का भाव भरा है, क्योंकि दोनो6 एक दूसरे को अपने "पुरुष" को हथियाने वाली सम्झ रही होती हैं और कोई भी लूज़र नहीं बनना चाहतीं. इसलिये गुस्सा एक दूसरे पर उतारती हैं!

रही बात पुरुष को सरेआम सज़ा देने का तो सचमुच अभी एक लम्बा रास्ता है तय करने को!!

प्रतिभा सक्सेना said...

समाज में पुरुष का बोल-बाला है - स्त्री उस पर निर्भर मानी जाती है (जिसका भऱण-पोषण करे - भार्या)-द्वितीय श्रेणी जैसी .और फिर 'समरथ को नहीं दोष' वाली उक्ति भी चरितार्थ होती है .

Shalini kaushik said...

purush koi faisla nari se poochkar nahi karte aur isliye hamesha hi nari doshi thahrayi jayegi .nice article .

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

यही तो विडम्बना है।

vandana gupta said...

bilkul sahi aaklan

Unknown said...

स्त्री प्रकृति की सबसे अनमोल देन है इसका हमेशा आदर करें...
के. पी. सिंह

Meena Pathak said...

मामला चाहे जो हो हर बार महिला को समाज की ओर से प्रताड़ना ही क्यों मिलती है ? इस सवाल का शायद कोई जवाब न मिले और हाँ माँ ही अपने बेटे को सही संस्कार देती है .............यहाँ भी माँ ही गलत | ..क्या पुरुष बेटों की तमन्ना नही रखते ? फिर क्यूँ जबरन माँ की कोख खाली करा दी जाती है अगर बेटी हो गर्भ में तो ?????

Harihar (विकेश कुमार बडोला) said...

सही बात उठाई है पर गलती की दुष्‍प्रेरणा कहां से मिलती है.....इस बिन्‍दु पर ज्‍यादा विस्‍तार से सोचने की जरूरत है।

Pratibha Verma said...

बिलकुल सही कहा आपने आखिर सजा की हकदार नारी ही क्यों ???

Bhavana Lalwani said...

kyonki aurat ko hi doshi maanne ka riwaj ban gaya hai .. aisa karna aasan hai uar iske liye aapko koi kuchh nahi kahega .. aajkal toh fir bhi TV print media aur internet ki mehrbaani se ye ghatnaayein turant saamne aa jaati hai aur log jaagte hain varna jo ghatnaayein saamne nahi aa paati un maamlon ka toh raam hi maalik

राज 'बेमिसाल' said...

जब हम ऐसी मानसिकता को बदलना चाहते हैं..और बदलने के लिए निकलते हैं..तो अक्सर स्त्री ही स्त्री की दुश्मन नज़र आती है ... चाहे वो किसी भी रूप में क्यों न हो... माँ हो ....बहन हो... दोस्त हो...

BLOGPRAHARI said...


प्रिय ब्लॉगर, आपका ब्लॉग ब्लॉगप्रहरी पर जोड़ लिया गया है. अब आपका ब्लॉग ब्लॉगप्रहरी पर प्रकाशित हो सकता है. आप अपनी रचनाओं को अधिक से अधिक लोगों तक पहुचाने के लिए ब्लॉगप्रहरी नेटवर्क पर अपनी सक्रियता बनाये रखें.

धन्यवाद!
ब्लॉगप्रहरी नेटवर्क
प्रिय ब्लॉगर, आपका ब्लॉग ब्लॉगप्रहरी पर जोड़ लिया गया है. अब आपका ब्लॉग ब्लॉगप्रहरी पर प्रकाशित हो सकता है. आप अपनी रचनाओं को अधिक से अधिक लोगों तक पहुचाने के लिए ब्लॉगप्रहरी नेटवर्क पर अपनी सक्रियता बनाये रखें.

धन्यवाद!
ब्लॉगप्रहरी नेटवर्क

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

विचारणीय पोस्ट अच्छे विन्दुओं को लेकर, मंथन बहुत जरुरी है और दोष सच में किसका है तह तक जा के फिर ही दोष दिया जाए क्या स्त्री क्या पुरुष गलती दोनों से होती है ....आइये सच को परखें जाँचे ..फिर
भ्रमर ५

Himkar Shyam said...

सटीक सवाल उठाया है आपने. उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले समय में हालात बदलेंगे.

सु-मन (Suman Kapoor) said...

विचारणीय पोस्ट

rohit said...

आपकी प्रस्तुति यथार्थ का दर्शन है। संवेदना सहिष्णुता सहनशीलता और त्याग का आभूषण की स्वामिनी नारी, एक योगी के सामान है। दुर्भाग्य से भौतिकता समाज में अपने चरम पर है और हाँ यह मृगमरीचिका जीवन के दोनों ही घटकों को भ्रमित करने में सफल भी दिखायी दे रही है। जिम्मेदार तो हैं ही हम।

दिगम्बर नासवा said...

पुरुष प्रधान समाज में हर किसी की सोच ऐसी बनी हुयी है ... चाहे पुरुष हो चाहे स्त्री ... दरअसल बहुत बार स्त्री ही स्त्री को दोष देने लग जाती है जाने अनजाने ही ... चाहे कसूर पुरुष का ही हो ... इस मानसिकता को बदलने में कई वर्ष लगने वाले हैं ... फिर भी बदल जाए तो भी अच्छा ही है ...

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

बेहद उम्दा और विचारोत्तेजक लेख....
नयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ
रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनायें....

संजय @ मो सम कौन... said...

मुझे लगता है कि जिस दिन हम किसी अपराधी को धर्म/जाति/वर्ग/जेंडर आदि के कवच के बिना देखने लगेंगे, उस दिन सही मायने में व्यवस्था स्थापित हो जायेगी।

Satish Saxena said...

प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

वाह!

Yashwant R. B. Mathur said...

कल 12/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !

डॉ. मोनिका शर्मा said...

आभार

डॉ. मोनिका शर्मा said...

आभार आपका

Kailash Sharma said...

हमारे समाज को स्त्रियों के प्रति अपनी सोच में बदलाव लाना होगा और स्त्रियों को उचित सम्मान देना होगा...बहुत सटीक आलेख...

कालीपद "प्रसाद" said...

प्रश्न उचित है | इसपर गहराई से विचार करने की आवश्यकता है !दण्ड तो दोनों को बराबर मिलना चाहिए और ये दण्ड परिवार वाले दे, तो ज्यादा प्रभावी होता है ,किन्तु ऐसा होता नहीं है | इसका कारण पत्नी को पति का दोष ,माँ को बेटे का दोष ,बहन को भाई का दोष दीखता नहीं और यदि दीखता है तो बहुत नगण्य लगता है |प्रेम के कारण वे निष्पक्ष नहीं हो पाते | मदर इंडिया जैसी माँ हों ,न्याय परायण पिता और बहन हो तो शायद स्थिति में परिवर्तन हो सकता |समाज के सोच में परिवर्तान हो सकता है |
अनुभूति : ईश्वर कौन है ?मोक्ष क्या है ?क्या पुनर्जन्म होता है ?
मेघ आया देर से ......

Suman said...

सहमत हूँ आप की बातों से, विचारणीय आलेख है !

Unknown said...

यथार्त प्रस्तुति....बहुत सटीक आलेख...

Unknown said...

bahut saty steek prabhaawi umdaa abhivyakti

Unknown said...

purush galat kare unhe unki sza waise hi milani chahiye jaise ek stri ko dete hai.. yadi ek purush stri ko aisa hone par nhi apnaata to stri ko bhi bahishkaar karna chaahiye...bajaay ki maaf karein

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
Jyoti khare said...

सच है स्त्री को ही क्यों दोषी ठहराया जाता है
स्त्री को प्रताड़ना नहीं सम्मान मिलना चाहिए
सार्थक और विचारपूर्ण आलेख
उत्कृष्ट प्रस्तुति -----
सादर ---

आग्रह है --
आजादी ------ ???

Unknown said...

Hi Monika ji

Very nice and deep thought post.
I have also started writing a Hindi blog regarding day to day issues. It is named Dainik Blogger (http://dainikblogger.blogspot.in/). Please visit and post your valuable suggestions or comments. I hope you like my blog.

Thanks
Ayaan

वन्दना अवस्थी दुबे said...

सही है...

Asha Joglekar said...

दोषी तो दोनों हैं तो दोनो को बराबर सजा हो। पहली घटना में पती का पत्नी को पीटना सरासर गलत है पिटना तो ुसे ौर उसकी प्रेमिका को चाहिये था। लेकिन समाज हमेसा स्त्री पर ही दोष मढता है और हम स्त्रियां ही इसमें सबसे आगे होती हैं। आपने एक सही विषय उठाया है।

hem pandey(शकुनाखर) said...

मानसिकता आज भी पूर्णतः बदली नहीं है।किन्तु धीरे धीरे सुधार अवश्य हो रहा है।

प्रेम सरोवर said...

हृदय.स्पर्शी,सुंदर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा।

virendra sharma said...

ध्यान आकर्षित करता है आपका विवेचन। ज्ञान ही इस विवाहेतर भोग का कारण है। विवाह की परिधी में रहकर भोग करना एक धार्मिक अनुष्ठान हो सकता है भोग कदापि नहीं।

निर्मला कपिला said...

समाज हमेसा स्त्री पर ही दोष मढता है सजा मे दोनो बराबर के ब्गागीदार होने चाहिये लेकिन उसमे हार फिर भी एक औरत की होगी वो है दूसरी औरत्1 सब से पहले औरत को खुद समझना होगा कि उसका कर्म उसके लिये या समाज के लिये क्या अर्थ रखता है1 इन दोनो केसों मे अगर सजा एक औरत और एक मर्द को मिलीगी तब भी दूसरी औरत बिना सजा पाये भी सजा जैसी जिन्दगी पायेगी1 औरत होते हुये हमे बुरा तो लगता है लेकिन औरत को दूसरी औरत के हक छीनने से पहले सोच्क़ना तो चाहिये ही1

संजय भास्‍कर said...

दोषी तो दोनों हैं तो दोनो को बराबर सजा हो।
बिल्‍कुल सहमत हूँ आपकी इस बात से

Dr.NISHA MAHARANA said...

tulsi das ke anusar ....samrath ko nahi dosh gussain .....kai bar pati bhi pitne lage hain ab par surkhiyon me aane me wakt lagega ....

Vinod Singhi said...

हकीकत बयानी.

Post a Comment