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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

24 April 2014

शब्द निरर्थक नहीं होते





शब्द, मात्र अक्षरों के समूह भर नहीं
अपना अर्थ और आधार
साथ लिए चलते हैं
शब्द निरर्थक नहीं होते
जब भी कहे जाते हैं
सम्प्रेषित करते हैं
किसी ना किसी भाव को
प्रेम बरसाते हैं या
पीड़ा देते हैं
द्वेष उपजाते हैं या
आत्मीयता को पोषित करते हैं
जीवन को सहेजते भी हैं शब्द
और तार तार भी कर देते हैं
आत्मविश्वास जगाते हैं या
भयभीत करते हैं
सराहना लिए होते हैं या
आलोचना का उपहार लाते हैं
चेतना जगाते हैं या
अंधकार की ओर ले जाते हैं
आरोप लगाते हैं या
अपनापन जताते हैं
शब्द,  बाध्यता जताते हैं
या आभार प्रदर्शन करते हैं
शब्द, मात्र अक्षरों के समूह भर नही.....

47 comments:

amit kumar srivastava said...

शब्द तो लिखने या बोलने वाले व्यक्ति का अक्स होते हैं । जब भी वे शब्द सुनाई अथवा दिखाई पड़ते हैं ,वह 'अक्स' साफ़ साफ़ नज़र आता है ।

वाणी गीत said...

शब्द अपने अर्थ रखते हैं , ध्वन्यात्मक होकर स्पंदित करते हैं , सार्थक और प्रेरक के तौर पर तो कभी उदासी और हीनता के बोध में !
विचारणीय

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

पीछे मैंने अपने ब्लॉग पर इसी विषय पर एक आलेख लिखा था. शब्द तो बेजान होते हैं, एक अर्थ निहित होता है उनमें जिसे शब्दकोष में स्थान मिलता है, सन्देह की स्थिति में उसका अर्थ पता लगाने के लिये. लेकिन शब्दों का प्रयोग तो कोई व्यक्ति करता है और तब जाकर शब्द एक व्यक्तित्व का रूप लेते हैं. गौतम, महावीर, कृष्ण या जीसस इन सबों ने जो शब्द कहे वो उनके व्यक्तित्व के कारण पूजनीय ग्रंथ बन गये. लेकिन आज चुनावी वातावरण में यही शब्द तेज़ाब बनकर फैल रहे हैं.
शब्दों का मर्म समझाने की बहुत ही सार्थक कोशिश!!

Arvind Mishra said...

इसलिए ही तो ब्रह्म कहे गए हैं शब्द !

Anupama Tripathi said...

जीवन को सहेजते भी हैं शब्द
और तार तार भी कर देते हैं
आत्मविश्वास जगाते हैं या
भयभीत करते हैं
सराहना लिए होते हैं या
आलोचना का उपहार लाते हैं....

बिलकुल सहमत हूँ ...........शब्द बोध बहुत ज़रूरी है ....शब्द तो अपनी बात कहते हैं और हम अपनी भावना से उन्हें समझते हैं .....पगला गन्दे या पग लागन दे ....संगीत में शब्द से ज्यादा भाव पर अहमियत दी गई है ........शब्द व भाव मिलकर ही अस्तित्व पूर्णता पाता है ........!!
सार्थक अभिव्यक्ति ....

प्रतिभा सक्सेना said...

शब्दों मे तोप,तलवार और बंदूक की गोाली से भी अधिक सामर्थ्य होती है .

राजीव कुमार झा said...

शब्द निरर्थक नहीं होते
जब भी कहे जाते हैं
सम्प्रेषित करते हैं
किसी ना किसी भाव को
प्रेम बरसाते हैं या
पीड़ा देते हैं
बहुत सुंदर. शब्दों के भाव भी अलग-अलग होते हैं.

Yashwant R. B. Mathur said...

कल 26/04/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !

Rahul... said...

जीवन को सहेजते भी हैं शब्द
शब्दों में ही सब कुछ है.…

sudhir saxena 'sudhi' said...

शब्द तो जीवन भर साथ ही चलते हैं
शब्द चाहे सार्थक हों, निरर्थक.....
मीठे शब्द अच्छे लगते हैं
कड़वे शब्द सीधे चोट करते हैं
अहंकार पर.....
हमारे ही कुछ शब्द
पालते-पोसते हैं अहंकार को
और कभी-कभी दूसरे के शब्द
हमारे अहंकार को ललकारते हैं
और इस तरह हो जाते हैं-
अच्छे शब्द, बुरे शब्द.....
शब्द ब्रह्म हैं, नाद हैं, गूंज हैं।
अगर शब्दों के मायनों में उलझे रहेंगे
तो मन दुखेगा.....
अनेकानेक संदर्भों में विचार योग्य आपकी कविता का दिल से स्वागत.....
-सुधीर सक्सेना 'सुधि' जयपुर
मो. 09413418701
e-mail: sudhirsaxenasudhi@yahoo.com

Vaanbhatt said...

शब्दों के प्रयोग मात्र से अर्थ का अनर्थ हो सकता है...

shikha varshney said...

सबसे बलवान और समर्थ...शब्द ...

Web Services Master said...

Bahut hi sundar prastuti*
Wo shabda hi hain jo insaan ke man me vicharon kii abhivyakti paida karte hain*
bahut hi achha lekh*
Thank u so much
and aap time nikalkar hamare blog par v jarur visit kijiyega apko bahut achha lagega and hame bahut khushi hogi*

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गिरधारी खंकरियाल said...

शब्द ब्रह्म हैं, शब्द अनन्त हैं।

कौशल लाल said...

सुन्दर ....

Madhuresh said...

शब्दों से ही समग्र सृष्टि है, शब्दों के बग़ैर सब निरर्थक, केवल कोलाहल! सुन्दर अभिव्यक्ति।
सादर
मधुरेश

Prakash Jain said...

शब्द, मात्र अक्षरों के समूह भर नही.....

bilkul sahi....
ye shabd hi to hain jo hum sab ko jodte hain :-)

विभा रानी श्रीवास्तव said...

बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति .....

Himkar Shyam said...

शब्द निरर्थक नहीं होते हैं। शब्द का प्राण है अर्थ। शब्द अपना अर्थ नहीं छोड़ना चाहता। दरअसल शब्दों में मायने हम डालते हैं। अगर हम शब्द में मायने न डालें, तो शब्द ब्रह्म हैं, नाद हैं। लेकिन यह भी सच है कि वर्तमान समय में कुछ शब्द अपना अर्थ खो रहे हैं।
सुंदर और सार्थक पोस्ट...बधाई

Maheshwari kaneri said...

शब्द, बहुत कुछ कह जाते हैं और बहुत कुछ कर भी जाते है...

Sadhana Vaid said...

चिंतनीय आलेख ! शब्दों की आत्मा उस अर्थ में बसती है जिनका निर्वहन वे करते हैं ! जिन शब्दों से कोई भाव संप्रेषित नहीं होते वे मात्र अक्षरों के निर्जीव समूह भर हैं ! शब्दों के तार, चाहे वे लिखित हों या कहे गये, सीधे ह्रदय से जुड़ जाते हैं !

abhi said...

शब्द निरर्थक नहीं होते
जब भी कहे जाते हैं
सम्प्रेषित करते हैं
किसी ना किसी भाव को

सच कहा है आपने !

Ankur Jain said...

सही कहा..शब्दों की असीम शक्ति को समझना बहुत आवश्यक है...

दिगम्बर नासवा said...

शब्द एक शशक्त माध्यम होते हैं ... और भाव कि आत्मा इन्ही शब्दों में निहित रहती है ...
इनको समूह कहना अभिव्यक्ति कि अवहेलना है

Hari Joshi said...

शब्‍द वास्‍तव में अक्षरों का एक समूह नहीं हैं। अंतरजाल पर तो शब्‍दों से ही आपकी पहचान होती है।

Rakesh Kumar said...

सुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति जिस पर की गई टिप्पणियाँ
भी बहुत कुछ कह और सिखा रहीं हैं.
आभार.

Rakesh Kumar said...

सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति.

Anita said...

शब्दों की अहमियत बताती एक प्रभावशाली रचना..

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

उम्दा भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@मतदान कीजिए

virendra sharma said...

A GOOD WORD CAUSE NOTHING .

आदमी गुड़ न दे तो गुड़ जैसी बात तो कह दे।

निवेदिता श्रीवास्तव said...

शब्द अपने अर्थ स्पंदित करते हैं ......

Jyoti khare said...

शब्द ही जीवन को सार्थकता प्रदान करते हैं
जो सदैव जीवित रहते हैं
शब्दों की गहरी पड़ताल की है
सुन्दर रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई -----

आशा बिष्ट said...

यकीनन शब्द ही हैं ....जो अर्थ को बदलने का जोर रखते हैं
उन्हें सिर्फ अक्षर समूह कहना जल्दबाजी होगी
सुन्दर रचना

रश्मि प्रभा... said...

http://bulletinofblog.blogspot.in/2014/04/blog-post_30.html

Neeraj Neer said...

शब्द निरर्थक नहीं होते
जब भी कहे जाते हैं
सम्प्रेषित करते हैं
किसी ना किसी भाव को .....बहुत गहरी बात ..

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

सुन्दर रचना ..सच में शब्द बड़े कारगर हैं जीवन में चाहे मीठा खा ले चाहे मार
आभार
भ्रमर ५

सदा said...

शब्‍द जीवन का अभिन्‍न अंग होते हैं ..... सार्थकता लिये सशक्‍त प्रस्‍तुति
आभार

महेन्‍द्र वर्मा said...

शब्द ही जीवन को गतिशील रखते हैं ।
शब्द बिना सब सून........ आपकी यह प्रभावशाली कविता यही ध्वनित कर रही है ।

prritiy----sneh said...

शब्द निरर्थक नहीं होते

goodh rachna, achha laga paathan

shubhkamnayen

Asha Joglekar said...

शब्द ही तो हैं जो हमें औरों से अलग व्यक्तित्व देते हैं। सुंदर सार्थक अभिव्यक्ति।

Smart Indian said...

शब्द जीते-जागते हैं, उनका अपना व्यक्तित्व भी है और शक्ति भी.

Manoj Kumar said...

सुन्दर रचना !
मेरे ब्लॉग के पोस्ट के लिए manojbijnori12.blogspot.com यहाँ आये और अपने कमेंट्स भेजकर कर और फोलोवर बनकर हमारा अपने सुझाव दे !

Mithilesh dubey said...

क्या बात है। बहुत ही उम्दा रचना।

मुकेश कुमार सिन्हा said...

सामर्थ्यवान शब्द :)

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

शब्दों की सार्थकता को कहती सुन्दर प्रस्तुति .... काश ये आज के हमारे नेता भी समझ सकते .

Http://meraapnasapna.blogspot.com said...

wow....don`t hv words.....
really dis is an amazing post....:-)

Vandana Sharma said...

Bilkul sahi kaha aapney apni iss adbhut prastuti dwara. Shabdon ka istemaal yedi sahi tarikey se na kia jaye toh bahut kuch bigad sakta hai.

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