राजस्थान या राजस्थानी संस्कृति से जुङे लोगों के लिए लहरिया सिर्फ कपङे पर उकेरा गया डिजाइन या स्टाइल भर नहीं है। ये रंग बिरंगी धारियां शगुन और संस्कृति के वो सारे रंग समेटे हैं जो वहां के जन जीवन का अटूट हिस्सा हैं। यहां सावन में लहरिया पहनना शुभ माना जाता है। आज भी गांव ही नहीं शहरी संस्कृति में भी लहरिया के रंग बिरंगे परिधान अपनी जगह बनाये हुए है। लहरिया की ओढनी या साङी आज भी महिलाओं के मन को खूब भाती है।
राजस्थान के उल्लासमय लोक सांस्कृतिक पर्व तीज के अवसर पर धारण किया जाने वाला सतरंगी परिधान लहरिया खुशनुमा जीवन का प्रतीक है। सावन में पहने जाने वाले लहरिये में हरा रंग होना शुभ माना जाता है । जो कि प्रेरित है प्रकृति के उल्लास और सावन में हरियाली की चादर ओढे धरती माँ के हरित श्रृंगार से ।
लहरिया राजस्थान का पारंपरिक पहनावा है । सावन के महीने में महिलाएं इसे जरूर पहनती हैं। शादी के बाद पहले सावन में तो बहू-बेटियों को बहुत मान-मनुहार के साथ लहरिया लाकर दिया जाता है। आज भी राजसी घरानों से लेकर आम परिवारों तक लोक संस्कृति की पहचान लहरिया के रंग बिखरे हुए है।
कहते हैं कि प्रकृति ने मरूप्रदेश को कुछ कम रंग दिए तो यहां लोगों ने अपने पहनावे में ही सात रंग भर लिए, लहरिया उसी का प्रतीक है। रेगिस्तान में बसे लोगों के सृजनशील मन ने तीज के त्योंहार और लहरिया के सतरंगी परिधान को जीवन का हिस्सा बना प्रकृति और रंगों से नाता जोड़ लिया | तभी तो राजस्थान के अनूठे लोक जीवन की रंग बिरंगी संस्कृति के द्योतक लहरिया पर कई लोकगीत भी बने है।
हमारी संस्कृति के परिचायक कई रीति रिवाज हैं जो यह बताते है कि हमारे परिवारों में बहू-बेटियों की मान मनुहार के अर्थ कितने गहरे हैं ? सावन के महीने में तीज के मौके पर मायके या ससुराल में बहू-बेटियों को लहरिया ला देने की परंपरा भी इसी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा रही है और आज भी है । यह त्योंहार यह बताने का अवसर है कि बहू-बेटियों के जीवन का सतरंगी उल्लास ही हमारे घर आंगन का इंद्रधनुष है।
बहुत सुन्दर आलेख...बधाई
ReplyDeleteलोकरंग में डूबकर लिखे इस लेख को बारबार पढ़ने का मन करेगा |डॉ० मोनिका जी दिल से आपको बधाई और शुभकामनायें |
ReplyDeleteमैंने भी देखी है रंग बिरंगी इन्द्रधनुषी लहरिया -मन को भा जाती है!
ReplyDeleteमनुष्य के उल्लासपूर्ण संस्कृति का हिस्सा है लहरिया
I wanted to wear Indian dress today as it's Teej. Your post is coming on a day of celebration...Lovely...Lehariya is a beautiful pattern which brings color and joy. Nice post!
ReplyDeletelahariya par laharaati hui sunder post..
ReplyDeleteसावन में जब चारों तरफ हरियाली ही हरियाली छाई होती है या फिर बरसात में घुल कर सभी रंग धूसर हो चुके होते हैं तो लहरिया आँखों को सुख देता है।
ReplyDeleteलोक-लुभावन लहरिया ओढनी का साक्षात संस्कृति दर्शन।
ReplyDeleteयाद दिला दिया आपने वह लोकगीत………
मने ल्याय दो नी ल्याय दो जी ढोला लहरियो सा………
जयपुर में शायद ही कोई महिला तीज पर बिना लहरिये के नजर आये , वो सामान्य गृहिणी हो या बड़ी अफसर ...
ReplyDeleteलोक परंपरा और आधुनिकता एक साथ समेटे यह शहर , मुझे प्यार हो गया है इस शहर से ...सच्ची !
बहुत सुन्दर लेख :
ReplyDeleteसच सावन का अपना अलग ही मज़ा है, हर चीज़ नई नई नजर आती है सावन में |
परिवेश की रंगन्यूनता को कपड़ों से भर लिया राजस्थान ने, वाह।
ReplyDeleteपरिचित करने के लिए आपको धन्यवाद,बढ़िया पोस्ट.
ReplyDeleteहमारी लोक संस्कृति का हमारे जीवन के साथ गहरा सम्बन्ध है लोक संस्कृति की हरेक चीज हमारी जिन्दगी में रंग भरने वाली है .....!
ReplyDeleteवाह! लहरिया के बारे में जानकर अच्छा लगा.
ReplyDeleteआपका यह कहना सार्थक लगा कि
यह त्योंहार यह बताने का अवसर है कि बहू-बेटियों के जीवन का सतरंगी उल्लास ही हमारे घर आंगन का इंद्रधनुष है।
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
राजस्थान यूँ भी साल भर त्यौहारों से ओत-प्रोत रहता है. कठोर जिंदगी, रेतीली और रेगिस्तानी ज़मीन. यह त्यौहारों की मस्ती और लहरिया ही उनकी जिंदगी की कठिनाइयों में खुशियाँ भरते हैं.
ReplyDeleteराजस्थान की रंग बिरंगी लोक संस्कृति मन को लुभाती है. .लहरिया जनमानस में रची बसी है संस्कृति का हिस्सा बनकर . सुँदर आलेख .
ReplyDeleteउल्लास का प्रतीक लहरिया.. बहुत सुन्दर आलेख..
ReplyDeleteसंस्कृति से सुरुचिपूर्ण परिचय ।
ReplyDeleteयह त्योंहार यह बताने का अवसर है कि बहू-बेटियों के जीवन का सतरंगी उल्लास ही हमारे घर आंगन का इंद्रधनुष है।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत बात कही है .. राजस्थान में रंगों के महत्त्व पर अच्छी पोस्ट
मुझे भी राजेस्थानी लहरिया और वहा की चुनरी साड़ी काफी पसंद है |
ReplyDeleteआपकी Post अच्छी है। कुछ और लेखकों के लिंक भी हमें अच्छे लगे तो उन्हें भी हम यहां ले आए ताकि अगर आपकी चर्चा सोना लगे तो यह सहायक चर्चा ‘सुहागा‘ साबित हो।
ReplyDeleteहमारा यह प्रयास कैसा लगा ?
आप भी बताइयेगा।
देखिए अलग-अलग लेखकों के कुछ लिंक्स
1- अच्छी टिप्पणियाँ ही ला सकती हैं प्यार की बहार Hindi Blogging Guide (22)- Kunwar Kusumesh
http://hbfint.blogspot.com/2011/08/hindi-blogging-guide-22.html
2- औरत हया है और हया ही सिखाती है , ‘स्लट वॉक‘ के संदर्भ में
http://hbfint.blogspot.com/2011/08/blog-post_5673.html
3- हाइकु गीत ----- दिलबाग विर्क
http://hbfint.blogspot.com/2011/08/blog-post_97.html
4- मुस्कुरा दिया करना
http://hbfint.blogspot.com/2011/08/blog-post_1517.html
5- ये हैं क्रिकेट के बद्तमीज़
http://hbfint.blogspot.com/2011/08/blog-post_1989.html
6- राष्ट्र गान--किसकी जय गाथा- Sadhana Vaid
http://hbfint.blogspot.com/2011/08/blog-post_02.html
7- ख़ुशख़बरी और मुबारकबाद Good news
http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/08/good-news.html
--
*हिंदी ब्लॉगिंग http://hbfint.blogspot.com* को बढ़ावा देने के मक़सद से ही
आपको यह लिंक प्रेषित किए जाते हैं जिन्हें आप अपने मित्रों को फ़ॉरवर्ड कर दिया
करें ताकि नए लोग हिंदी ब्लॉगिंग से जु़ड़ें। अगर आपको इन लिंक्स के आने से
परेशानी होती है तो कृप्या सूचित करें ताकि आपका नाम सूची से हटाया जा सके।
हमारा मक़सद आपको परेशान करना नहीं है। अगर आप भी अपना ब्लॉग संचालित करते हैं
या आप सामान्य नेट यूज़र हैं और हिंदी ब्लॉगर्स से कोई विचार साझा करना चाहते
हैं तो आप भी अपनी पोस्ट का लिंक या कंटेंट भेज सकते हैं। उसे ज़्यादा से
ज़्यादा हिंदी ब्लॉगर्स तक पहुंचा दिया जाएगा। शर्त यह है कि यह कंटेंट
देशप्रेम की भावना को बढ़ाने वाला और समाज के व्यापक हित में होना चाहिए। हिंदी
ब्लॉगिंग को सार्थक दिशा देना ही ‘ब्लॉग की ख़बरें‘ का मक़सद है।
धन्यवाद !
आज 03- 08 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
____________________________________
राजस्थान से सम्बंधित मुझे नई जानकारी मिली.आभार.
ReplyDeleteआपके लेख में साक्षात संस्कृति का दर्शन है..सुन्दर प्रस्तुति....
ReplyDeletehamari sanskriti ye rang bhut bhaya.
ReplyDeleteबहुत सुंदर लेख। वैसे आपके विषय और उससे जुडी जानकारी का कोई जवाब नहीं।
ReplyDeleteकाफी जानकारी मिले आपकी इस पोस्ट से......ये रंग ही तो हमारी देश की भिन्न संस्कृतियों की शान हैं|
ReplyDeleteबहुत सुन्दर आलेख...बधाई
ReplyDeletethanx!!!!4 yur comment...
ReplyDeletemujhe raj. culture bahut pasand hai..n sarees toooo...
राजस्थानी परिधान वैसे हमेशा से मुझे लुभाते रहे हैं .लहरिया के बारे में बताने के लिए आभार
ReplyDeleteलहरिया तो राजस्थान की पहचान है.....रंग-बिरंगी लहरिया....बहुत ही मनमोहक लगती है.
ReplyDeleteरंग बिरंगी इन्द्रधनुषी लहरिया जीवन का सतरंगी उल्लास... बहुत सुन्दर आलेख...बधाई मोनिकाजी...
ReplyDeleteयही तो सुदृढ़ संस्कृति के परिचायक है ! बहुत सुन्दर
ReplyDeleterajasthan ka ek pahnava lahriya hai,
ReplyDeletebhar ki orton ka man bhi ise pahnne ka karriya hai...
rajasthan ke baare me btati ek rachna
jai hind jai bharat
लोक रंग से रंगी बहुत अच्छी जानकारी ...
ReplyDeleteलोक संस्कृति और परम्पराएं जीवन में हमेशा ही उल्लास भर देने का काम करती है लहरिया के परिचय के लिए आभार.
ReplyDeleteतीज के त्यौहार की आपको बहुत बहुत शुभकामनाये |
ReplyDeleteye sab pata nahi tha jo apki aaj ki post se rajasthan ki sanskriti ke bare me pata chala.
ReplyDeleteaabhar.
इसे कहते हैं...जीवन में रंग भरना...पूरा का पूरा राजस्थान ही चटक और शोख रंगों में बयां होता है...
ReplyDeleteडॉ मोनिका शर्मा जी-अभिवादन तीज पर रंग बिखेर कर सुन्दर जानकारी दी मन खिलाया आप ने ..आप सब को शुभ कामनाएं इस पर्व पर ..
ReplyDeleteसार्थक लेख ...
शुक्ल भ्रमर ५
भ्रमर की माधुरी
yeah these sarees looks wonderful... even my mom has a pair of it.
ReplyDeletelooks fab n traditional too :)
लहरिया से जुडी लोक संस्कृति और जन मानस की झांकी जहां हरियाली का अभाव वहां हरियाली बना पैरहन ,जीवन में रंग की रस धार भरता है .उम्र बढ़ने के साथ जैसे जैसे जीवन में रंगीनी कम होती है आदमी रंगों की तरफ खिंचा चला आता है .रास्ते भी आने जाने के बदल जातें हैं .हर आदमी रंगीनी देखना जीना चाहता है .लहरिया जीवन के इन्द्रधनुषी उल्लास रंगों को लोक जीवन में उतारना ही तो है .अच्छी पोस्ट .
ReplyDeleteलहरिया से जुडी लोक संस्कृति और जन मानस की झांकी जहां हरियाली का अभाव वहां हरियाली बना पैरहन ,जीवन में रंग की रस धार भरता है .उम्र बढ़ने के साथ जैसे जैसे जीवन में रंगीनी कम होती है आदमी रंगों की तरफ खिंचा चला आता है .रास्ते भी आने जाने के बदल जातें हैं .हर आदमी रंगीनी देखना जीना चाहता है .लहरिया जीवन के इन्द्रधनुषी उल्लास रंगों को लोक जीवन में उतारना ही तो है .अच्छी पोस्ट .कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeletehttp://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2011/08/blog-post_04.html
और यहाँ भी -http://veerubhai1947.blogspot.com/और यहाँ भी -http://sb.samwaad.com/
बहुत सुन्दर आलेख... आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
laheriye ki saari ..waah
ReplyDeleteलहरिया उत्सव के बारे में बहुत ही अच्छी जानकारी मिली! ये रंगबिरंगी फूलों जैसा और इन्द्रधनुष के सतरंगी जैसा उत्सव पूरे राजस्थान में महिलाओं के लिए बहुत ही ख़ुशी और उमंग से भरा उत्सव है! बहुत ख़ूबसूरत आलेख!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://www.seawave-babli.blogspot.com/
इस ढंग से इसे जानकर बहुत अच्छा लगा ...
ReplyDeleteराजस्थान रंगों का प्रदेश है, यहाँ की चूंदड़ और लहरियां सतरंगी रंगों से सरोबार रहते हैं। त्योहार मनाने का अंदाज कोई राजस्थान से सीखे और वो भी जयपुर से। सच जयपुर बहुत याद आता है, आपकी पोस्ट ने जयपुर की याद दिला दी।
ReplyDeletesachmuch ,Rajasthan ki tahzeeb aur sanskriti atulniy hai !
ReplyDelete'लहरिया'
ReplyDeleteबचपन में दादी-नानी के मुंह से सुना था
और आज कल बुटीक वाले भी इस शब्द को अक्सर बोलते हुए सुने जा सकते हैं|
ओल्ड इज गोल्ड भाई|
बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteइस पोस्ट से,राजस्थानी संस्कृति के साथ आपका भावनात्मक लगाव एकम ज़ाहिर होता है। मनुष्य और प्रकृति यदि एक दूसरे के पूरक बन सकें,तो जीवन वास्तव में इंद्रधनुषी हो जाए।
ReplyDeleteलहरिया यकीनन मन में उल्लास भर देती है. सुन्दर आलेख के लिए आभार.
ReplyDeleteबेहतरीन लेखन के लिये आभार ।
ReplyDelete"सावन के महीने में तीज के मौके पर मायके या ससुराल में बहू-बेटियों को लहरिया ला देने की परंपरा भी इसी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा रही है और आज भी है । यह त्योंहार यह बताने का अवसर है कि बहू-बेटियों के जीवन का सतरंगी उल्लास"
ReplyDeleteमोनिका जी,
लोक संस्कृति का प्रतीक बन चुके रंग-बिरंगी इन्द्रधनुषी लहरिया की वर्तमान में उपस्थिति बहुत शुकून देनेवाली है.यह एक अदृश्य बंधन है जो अतीत को वर्तमान से आज भी जोड़े हुए है.अत्यंत ज्ञानवर्द्धक और सुन्दर लेख.
http://veerubhai1947.blogspot.com/
ReplyDeleteमंगलवार, २ अगस्त २०११
यौन शोषण और मानसिक सेहत कल की औरत की ....इसीलिए
Sexual assault, domestic violence can damage long-term mental health
सच अपनी सस्कृति के रंग बहुत प्यारे है .... सुन्दर प्रस्तुति...आपका कहना सच है इस मरू भूमि में रंगो की कोई कमी नहीं है !
ReplyDeleteसादर
तृप्ति
bahut sunder rangbirangi lahariya..........
ReplyDeletemonika जी, राजस्थान की लहरिया तो वैसे hee विश्वविख्यात है, आपके ब्लॉग पर इसे देखना और भी सुखदाई रहा...
ReplyDelete"कहते हैं कि प्रकृति ने मरूप्रदेश को कुछ कम रंग दिए तो यहां लोगों ने अपने पहनावे में ही सात रंग भर लिए, लहरिया उसी का प्रतीक है।"
बिलकुल सही कहा आपने...
लोक संस्कृति का हमारे जीवन के साथ गहरा सम्बन्ध है
ReplyDelete...बहुत सुन्दर आलेख
सावन में पहने जाने वाले लहरिये में हरा रंग होना शुभ माना जाता है । जो कि प्रेरित है प्रकृति के उल्लास और सावन में हरियाली की चादर ओढे धरती माँ के हरित श्रृंगार से
ReplyDeletebahut sundar likha hai ,tabhi to hame bhartiya hone par garv hai ,aesi sanskriti aur kahan ,milegi .
डॉ .मोनिका जी सेहत और मन से मनो -विज्ञान से जुड़े मामलों में आप भी दखल रखतीं हैं इसीलिए आपसे गुजारिश की यह पोस्ट बांचने की (यौन शोषण और बकाया ज़िन्दगी के रोग )आप आई दस्तक दी सार्थक ,आपका आभार .
ReplyDeletethanks for sharing...
ReplyDeletehttp://teri-galatfahmi.blogspot.com/
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
ReplyDeletehttp://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
bahut sahi kaha aapne. aapke blogs hamesha kuch naya kahte ya sikhate hai. happy belated teej
ReplyDeleteबहुत सुद्नर लेख... पढकर ही रंगों की और कला की प्रस्तुति हो गयी है .. बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteआभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
bahut sundar lga aapka lekh ..badhai
ReplyDeleteराजस्थान और वहाँ के परिधान के बारे में पढ़्कर याद आया कि एक बार हम भी खरीद लाये थे लेकिन यहाँ पहनकर बाहर जाने में लाज आती थी.. :)
ReplyDeleteचुनरी नहीं कुर्ता था.. :)
zindagi ke kagaz ko rango se bharne ka naam hi zindagi hain...
ReplyDeletesundar rachna....
सावन के महीने में तीज के मौके पर मायके या ससुराल में बहू-बेटियों को लहरिया ला देने की परंपरा भी इसी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा रही है
ReplyDeleteये नई जानकारी है मेरे लिए ......
हमारे यहाँ तो ऐसा कुछ नहीं ....
अच्छा लगा जानना..
ReplyDeleteएक बार मैं अहमदाबाद जा रहा था ट्रेन में..अधिकतर लोग राजस्थान के थे मेरे बोगी में, क्यूंकि ट्रेन जयपुर जाती थी..सभी औरतें राजस्थानी पोशाक में थी...बड़ा अच्छा लगा मुझे..राजस्थान की परंपरा हमेशा से मुझे अच्छी लगी है..
sundar lekh...
ReplyDeleteपरम्परा के रंगों से सराबोर एक सार्थक रचना।
ReplyDelete------
कम्प्यूटर से तेज़!
इस दर्द की दवा क्या है....
लहरिया के बारे में पढ़कर मन भी सप्तरंगी हो गया।
ReplyDeleteलघु लेख की भाषा-शैली मोहक लगी।
सावन का महीना, तीज का मौका, बहू-बेटियों को लहरिया देने की परंपरा और उसका सांस्कृतिक रहस्य विरासत बहुत सुंदर. तथ्यपूर्ण और नयी जानकारी के लिए बहुत आभार मोनिका जी.
ReplyDeleteमित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,आपकी कलम निरंतर सार्थक सृजन में लगी रहे .
ReplyDeleteएस .एन. शुक्ल
बहुत सुंदर रचना ! लाजवाब प्रस्तुती!
ReplyDeleteआपके पास दोस्तो का ख़ज़ाना है,
पर ये दोस्त आपका पुराना है,
इस दोस्त को भुला ना देना कभी,
क्यू की ये दोस्त आपकी दोस्ती का दीवाना है
⁀‵⁀) ✫ ✫ ✫.
`⋎´✫¸.•°*”˜˜”*°•✫
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☻/ღ˚ •。* ˚ ˚✰˚ ˛★* 。 ღ˛° 。* °♥ ˚ • ★ *˚ .ღ 。.................
/▌*˛˚ღ •˚HAPPY FRIENDSHIP DAY MY FRENDS ˚ ✰* ★
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!!मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये!!
फ्रेंडशिप डे स्पेशल पोस्ट पर आपका स्वागत है!
मित्रता एक वरदान
शुभकामनायें
Wish you a very happy friendship day .........
ReplyDeleteम्हारै लहरियै रा नौ सौ रुपिया रोकड़ा साऽऽ…
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
मोनिका जी
राजस्थान की संस्कृति और लोक रंग से सजी इस पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई !
मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओ के साथ
-राजेन्द्र स्वर्णकार
monika ji
ReplyDeletebahut hi badhiya lagi aapki yah prastuti
waqai me is lahariya rang ka itna sundar chitran aapne kiya hai ki jitni bhi tarrif karun ,kam hai.
shandaar post ke liye hardik
badhai-------
poonam
बहुत सुन्दर लेख.....
ReplyDeleteधन्यवाद....
बहुत सुन्दर आलेख मोनिका जी...बधाई,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
श्री गणेश उत्सव पर्व पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं...
ReplyDelete