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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

07 April 2013

मेरा मानवीय कद

चैतन्य
तुम बड़े हो रहे हो
सीख गए हो जूते के फीते बांधना
साथ ही अपनी बातों को साधना
आ गयी  है तुम्हें 
मन की कहने, मोह लेने की 
अद्भुत कला 
जुटा लेते हो कितनी ही
ऊर्जा हर दिन
 चेतना जगाता चैतन्य 
अभिनव सीखने-जानने की 
और मुझे सिखाने  की

तुम्हारे अनगिनत प्रश्नों के
उत्तर खोजने की चाह 
अब नई ऊर्जा ले आई है 
मेरे भी विचारों में 
साथ ही चला आया है 
परछाइयों से खेलने का धैर्य और 
कहानियां गढ़ने का सामर्थ्य भी

मेरे लिए   अब 
चन्द्रमा का आकार 
कछुये की चाल 
तितलियों के पंख 
फूलों के रंग 
शोध के विषय हैं  

सीखने की इस नई शुरुआत ने 
ज्ञान  के कितने ही द्वार 
खोल दिए हैं 
जो मुझे मुझसे जोड़ने के लिए हैं 
संवेदनाओं का पाठ
पढ़ने के पथ पर
तुम्हारा साथ
मनुष्यता के भावों से
परिचय करवा रहा है
हाँ, चैतन्य तुम बड़े हो रहे हो
और साथ ही बढ़ रहा है
माँ के रूप में
मेरा मानवीय कद ।

71 comments:

Amrita Tanmay said...

सच! ये पाठशाला निराली है ..

साहित्य और समीक्षा डॉ. विजय शिंदे said...

बेटे के प्रेम में आप पूरी तरिके से डूब चुकी है मोनिका जी। आपको खुशियां मुबारक और प्रार्थना कि किसी की नजर न लगे। चैतन्य का चैतन्यमयी रूप है, बिल्कुल बालकृष्ण और आप यशोदा मैया के साथ देवकी मैया भी। आप वात्सल्य रस में सराबोर है और अपने साथ पाठकों को भी वह आनंद बांट रही है। बेटे के प्रति इतना वात्सल्य मां के अलावा कौन कर सकता है भला।

प्रतिभा सक्सेना said...

कितना सुन्दर एहसास-कितना औदात्य और कितनी गरिमा से आपूर्ण होने लगता है मातृत्व पाकर नारी का व्यक्तित्व,जैसे जीवन नये बोधों से खिल उठा हो!

विभा रानी श्रीवास्तव said...

मैं आपको समझ रही हूँ ...
गुजर चुकी हूँ कब,क्यूँ ,कहाँ ,किसलिए की राहों से
नित नए अनजाने अनगिनत अनसुलझे सवालों से
शुभकामनायें !!

Ranjana verma said...

सच बहुत मजेदार होती है बच्चों की पाठशाला ...

Rajendra kumar said...

समय के साथ साथ बच्चे भी बहुत कुछ सीखते जाते है और बहुत सारे प्रश्न पूछ पूछ कर हमे भी सिखाते जाते हैं.बहुत ही सुन्दर भाव,चैतन्य को शुभाशीष.

रश्मि प्रभा... said...

माँ एक करिश्मा है
ईश्वर का दिया अद्भुत वरदान
चैतन्य .... इस वरदान की काया में
मैं चैतन्य हो गई
....
माँ सिर्फ पाठशाला नहीं होती
बच्चे पकी जिज्ञासा से भरी किताब से
वह हर क़दमों पर ज्ञान का उजाला पाती है
....
घर-बाहर-
उससे पर्याप्त ऑक्सीजन लेना
व्याधियुक्त कीटाणुओं से बचाव .... एक डॉक्टर भी नहीं कर पाता !
मैं यानि तुम्हारी माँ -
गुडिया घर बाहर आई
तो तुम्हें पाया
और तुमसे मेरी दहलीज़
मेरा आँगन
मेरा बागीचा ...विस्तृत हुआ
अर्थवान हुआ ....
मैंने मन से लेकर कमरों तक
दुआओं के लाल धागे बांधे
नज़र से बचाने के लिए कुछ काले धागे !
हो सकता है मेरे चेहरे में मेरी उपरी बनावट की कमजोरी दिखे
पर तुमसे बेहतर कोई नहीं समझ सकता
कि मेरा मन - हिमालय भी है,त्रिवेणी भी,अमरनाथ की गुफा भी
संजीवनी भी,विषकन्या भी ....
ईश्वर का तेजस्वी त्रिनेत्र .....

ANULATA RAJ NAIR said...

चैतन्य तुम बड़े हो रहे हो...
आज तुहारा सर माँ के कंधे पर है....
जल्द ही अपनी माँ से भी बड़े हो जाओगे....
और वो आयेगी तुम्हारे काँधे तक :-)

अनु

Dr. sandhya tiwari said...

बच्चों की पाठशाला बहुत मजेदार होती है नारी का व्यक्तित्व पूर्ण होने लगता है...

अशोक सलूजा said...

माँ की ममता ...बेटे से सुख ...
भगवान का दिया सब से बड़ा आशीर्वाद है ...
सदा बना रहे ...

कालीपद "प्रसाद" said...


जिंदगी एक पाठशाला है ,माँ प्रथम शिक्षक -शिक्षक वही जो पहले सीखे फिर सिखाय-शिक्षक वही जो पहले विद्यार्थी है-यही जिंदगी है
LATEST POSTसपना और तुम

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

माँ और बच्चे दोनों ही एक दूसरे की पाठशाला बन जाते हैं .... बहुत प्यारी रचना ... खूबसूरत एहसास को लिए हुये

Suman said...

टिप्पणी स्वरूप रश्मि जी ने सब कुछ कह दिया है ...
बच्चे के साथ माँ भी बहुत कुछ सीखती है और बाँटती है अपना अनुभव,बच्चों के प्रश्नों के उत्तर देना तो कामचलाऊ है हो सके तो उसके प्रश्नों पर तीखी धार दीजिये ताकि,आगे चलकर सार्थक प्रश्न और उनके उत्तर खोज सके क्योंकि रोज प्रश्न बदल रहे !

गिरधारी खंकरियाल said...

Anupam!!!

Harihar (विकेश कुमार बडोला) said...


अद्भुत अनुभव। और संवेदनात्‍मक वर्णन।

ऐसी कविताओं में गलत शब्‍द अखरते हैं।
सीखाने के स्‍थान पर (सिखाने)और परछाइ के स्‍थान पर (परछाई) करने का कष्‍ट करें।

rashmi ravija said...

सचमुच कितनी ही चीज़ों को बच्चे नयी दृष्टि से देखने के लिए मजबूर कर देते हैं..
बहुत ही सुन्दर रचना

Rajesh Kumari said...

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 9/4/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।

संध्या शर्मा said...

सचमुच बच्चे बड़े होने के साथ हम बचपन को एक बार फिर से जीते हैं , फर्क बस इतना की अब हम सीखते नहीं बल्कि सिखाते हैं, सवाल नहीं करते जवाब देते हैं. बहुत सुन्दर अहसास होता है एक माँ के लिए... समेटिये अपने आंचल में इन ममत्व और प्यार भरे पलों को... शुभकामनायें

virendra sharma said...

शुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया .और मुझे सीखाने कीकृपया सिखाने की कर लें .

खोले दिए हैं (खोल दिए करें ),बेटे के प्रेम से आप्लावित बेटे से सीखने को आतुर माँ ,रीझना और सीखना ,विकास के सौपानों को साक्षी भाव देखना माँ का एक अप्रतिम गुण है .बढ़िया भावसंसिक्त प्रस्तुति .

जयकृष्ण राय तुषार said...

एक बड़ी कविता प्रेम और यथार्थ का अद्भुत संयोजन |बच्चों का बड़ा होते जाना एक तरफ सुकून देता है दूसरी तरफ उनकी बालसुलभ हठ से हम वंचित होते जाते हैं |

ताऊ रामपुरिया said...

Bahut sundar udgaar. Shubhkamnae

Ramram

अपर्णा देवल said...

kabhi kabhi koi rachna itni adbhut hoti hai ki samajh nahi aata ab iske aage kya kaha jaye........... shubhkamnayen

Maheshwari kaneri said...

माँ की अद्भुद होती है पाठशाला..

अपर्णा देवल said...

beautiful.....

tbsingh said...

bahut sunder bhavpurn kavita

Jyoti khare said...

संवेदनाओं का पाठ
पढ़ने के पथ पर
तुम्हारा साथ
मनुष्यता के भावों से
परिचय करवा रहा है-------
वाह बहुत ही मार्मिक और भावुक
जीवन में बच्चों के ही साथ बड़ा होना पड़ता है
सार्थक रचना

tbsingh said...

bahut sunder bhavpurn rachana

Arvind Mishra said...

चैतन्य की बाल सुलभता से महिमामंडित होती ममता!
चैतन्य बहुत प्यारे हैं -अनगिन आशीष

Jyoti Mishra said...

wow..
loved that... and I wish he keeps growing :)

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बेटे को जीवन के बोध का अहसास सबसे पहले माँ ही कराती है,माँ ही ज्ञान देने की पहली गुरु होती है !!!

RECENT POST: जुल्म

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

ममत्व भरे सुंदर उद्गार..........

वाणी गीत said...

माँ होते ही स्त्री का व्यक्तित्व दृढ अनंत हो जाता है (अपवाद छोड़ दे तो ) ....
भावनात्मक अभिव्यक्ति ने दिल को छू लिया !

मन के - मनके said...


चैतन्य,तुम बडे हो रहे हो----
बहुत सुंदर-मां की गरिमा का उत्कर्ष

पी.एस .भाकुनी said...

मेरे लिए तो
चन्द्रमा का आकार
कछुये की चाल
तितलियों के पंख
फूलों के रंग
शोध के विषय हैं अब ......
@ अब तुम बढे हो गए हो ......कहीं-कहीं पर यह जुमला बच्चों पर प्रेशर का काम भी कर जाता है,
सुंदर प्रस्तुति……

इमरान अंसारी said...

मान के असीम स्नेह को शब्दों में ढलती अनुपम पोस्ट ।

इमरान अंसारी said...

माँ के असीम स्नेह को शब्दों में ढलती अनुपम पोस्ट ।

Dr.NISHA MAHARANA said...

bacche bade hote ma ke sapne bhi aakar lene lagte hain....

Unknown said...

और साथ ही बढ़ रहा है
माँ के रूप में
मेरा मानवीय कद ।.........सुन्दर रचना ........

Archana Chaoji said...

चेत - अन्य ...

सदा said...

और साथ ही बढ़ रहा है
माँ के रूप में
मेरा मानवीय कद
यह वह ऊंचाई है जिसको पाये बिना सम्‍पूर्णता नहीं आती ... बहुत ही भावमय करता लेखन
आभार

Ramakant Singh said...

सीखने की इस नई शुरुआत ने
ज्ञान के कितने ही द्वार
खोले दिए हैं
जो मुझे मुझसे जोड़ने के लिए हैं
संवेदनाओं का पाठ
पढ़ने के पथ पर
तुम्हारा साथ
मनुष्यता के भावों से
परिचय करवा रहा है
हाँ, चैतन्य तुम बड़े हो रहे हो
और साथ ही बढ़ रहा है
माँ के रूप में
मेरा मानवीय कद ।

माँ और बेटा का मेल होता है तो ज्ञान और विज्ञान का कद हमेशा बढ़ जाता है .

Pallavi saxena said...

आजकल उल्टा ही हो गया है बड़ों की पाठशाला से ज्यादा बच्चों की पाठशाला से सीखना ज्यादा सुखद अनुभव देता है। क्यूंकि इसमें नित नयी खोज अपने ही नज़रिये की नयी जानकारी सी देती प्रतीत होती है। जिसे जानने और समझने के बाद ऐसा लगता है हमने ऐसा क्यूँ नहीं सोचा पहले या हम ऐसा क्यूँ नहीं सोच पाये। :)

Harihar (विकेश कुमार बडोला) said...

कृपया मेरी आंखों से रह गईं और विरेन्‍द्र कुमार शर्मा जी की सजग आंखों से पकड़ी गई गलती (खोले दिए हैं)के स्‍थान पर(खोल दिए करें)कर लें। पुन:आपकी कविता ने विचित्र प्रकार से मोहा है मन को। ऐसा होता है कि हम बहुत कुछ सोचते-विचारते हैं। और कभी हम स्‍वयं तो कभी हमारा कोई कवि मित्र उस सोचे-विचारे की भावनाओं को सुन्‍दर शब्‍द पहना देता है। आपके प्रत्‍युत्‍तरों का धन्‍यवाद।

नादिर खान said...

वाह क्या कहने लाजवाब प्रस्तुति

Madhuresh said...


बेहतरीन रचना। और मास्टर चैतन्य की ये पिक भी बड़ी क्यूट और प्यारी है .
चैतन्य को हमारा ढेरों स्नेह!! :)
सादर
मधुरेश

दिगम्बर नासवा said...

प्रेम ओर स्नेह के साथ साथ भविष्य का रोमांच भी नज़र आ रहा है आपके शब्दों में ... शायद ये बच्चों का सबसे अच्छा समय होता है माता पिता के लिए ... उनके साथ खेलना ओर उन्हें भविष्य की प्रेरणा देना ...
अपने समय का भरपूर प्रयोग करें ओर आनंद लें ...

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

सीखने वाले हमेशा सीखते रहते हैं ..यहाँ तो सीख भी रहे हैं रिवीसन भी हो रहा है .अच्छी प्रस्तुति ..सादर ..मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है

प्रवीण पाण्डेय said...

सभी को व्यस्त रखते चैतन्य

Kailash Sharma said...

हाँ, चैतन्य तुम बड़े हो रहे हो
और साथ ही बढ़ रहा है
माँ के रूप में
मेरा मानवीय कद ।

....बहुत सुन्दर स्नेहमयी प्रस्तुति..यह सम्बन्ध ऐसे ही प्रगाढ़ होता रहे...शुभकामनायें!

Anita Lalit (अनिता ललित ) said...

सचमुच!
बच्चों के सवालों के जवाब ढूँढते-ढूँढते... हम खुद भी अक़्लमंद हो जाते हैं! :-)
~सादर!!!

Jyoti khare said...

नवसंवत्सर की शुभकामनायें
आपको आपके परिवार को हिन्दू नववर्ष
की मंगल कामनायें

aagrah hai mere blog main sammlit hon
aabhar

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

सीखने की इस नई शुरुआत ने
ज्ञान के कितने ही द्वार
खोल दिए हैं
जो मुझे मुझसे जोड़ने के लिए हैं
संवेदनाओं का पाठ
पढ़ने के पथ पर
तुम्हारा साथ
आदरणीया मोनिका जी वात्सल्य छलक पड़ा वचपन याद आया सीखने और जुड़ जाने से सुन्दर सम्बन्ध वचपन निराला होता ही है प्रिय के साथ साथ आप को भी शुभ कामनाएं
भ्रमर ५

स्वप्न मञ्जूषा said...

माँ, मातृत्व की कितनी परिभाषाएँ रचती है !
अद्भुत !

virendra sharma said...

पांच साल तक बच्चे में न सिर्फ सीखने की प्रीटेंड प्ले की अद्भुत क्षमता होती है हर छोटी सी बात में वह मनोरंजन ढूंढ लेता है मग्न रहता है .बच्चे अद्भुत दाता गुरु हैं इसीलिए कहा गया -चाइल्ड इज दी फादर आफ मैन .शुक्रिया आपकी टिपण्णी के लिए .

संतोष पाण्डेय said...

माँ के रूप में आपकी संवेदना और मानवीय कद को सलाम.

Aditi Poonam said...

सच में हम बच्चों के साथ बच्चे बन जाते हैं ,ओर बड़े भी उनके साथ ही होने लगते हैं....
जीवन के मायने बदलने लगते हैं
चैतन्य को स्नेहाशीष....
नव वर्ष आपको सपरिवार
मंगल मय हो..

Aditi Poonam said...

सच में हम बच्चों के साथ बच्चे बन जाते हैं ,ओर बड़े भी उनके साथ ही होने लगते हैं....
जीवन के मायने बदलने लगते हैं
चैतन्य को स्नेहाशीष....
नव वर्ष आपको सपरिवार
मंगल मय हो..

G.N.SHAW said...

यही तो है जीवन के अधूरे सपने की पूर्णाहुति |

लोकेन्द्र सिंह said...

बहुत ही सुन्दर कविता

amit kumar srivastava said...

'वात्सल्य रस' से आप यूं ही ओतप्रोत होती रहे और चैतन्य को बहुत बहुत स्नेहिल आशीष ।

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

वात्सल्य का सुंदर शब्द चित्र

virendra sharma said...

.शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का .

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

समय के पंख बहुत बलशानी होते हैं, एकदम से उड़ जाता है

अज़ीज़ जौनपुरी said...

खुशियां मुबारक

रचना दीक्षित said...

यह जीवन की अलग अनुभूति है. सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति.

virendra sharma said...


शुक्रिया आपकी अमूल्य टिप्पणियों का .

Madan Mohan Saxena said...

बहुत उम्दा .अर्थपूर्ण,सुन्दर सार्थक‍ अभिव्यक्ति.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

ऐसे जीवंत और अर्थपूर्ण भाव साझा करने का आभार .....

Tamasha-E-Zindagi said...

बहुत सुन्दर | सार्थक कविता | आभार

कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page

Safarchand said...

दिल पे हाथ रख के कहिये मोनिका जी, कद तो स्त्री का पुरुष से सदैव बड़ा होता है-हम पुरुष चाहए कितने भी तर्क दे,- लेकिन अगर "चैतन्य" लड़का न होकर लड़की -"चिंतन" -होती तो अपेक्षाकृत आप का कद और ऊँचा होता,A-और ऊँचा होता B- इतना ही ऊँचा रहता, C-नीचा हो जाता ? आपका उत्तर जो भी हो--- आपकी सहज अभिव्यक्ति अमूल्य है...अति सुन्दर !!

Safarchand said...

दिल पे हाथ रख के कहिये मोनिका जी, कद तो स्त्री का पुरुष से सदैव बड़ा होता है-हम पुरुष चाहए कितने भी तर्क दे,- लेकिन अगर "चैतन्य" लड़का न होकर लड़की -"चिंतन" -होती तो अपेक्षाकृत आप का कद और ऊँचा होता,A-और ऊँचा होता B- इतना ही ऊँचा रहता, C-नीचा हो जाता ? आपका उत्तर जो भी हो--- आपकी सहज अभिव्यक्ति अमूल्य है...अति सुन्दर !!

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