चैतन्य
तुम बड़े हो रहे हो
सीख गए हो जूते के फीते बांधना
साथ ही अपनी बातों को साधना
आ गयी है तुम्हें
मन की कहने, मोह लेने की
अद्भुत कला
जुटा लेते हो कितनी ही
ऊर्जा हर दिन
अभिनव सीखने-जानने की
और मुझे सिखाने की
तुम्हारे अनगिनत प्रश्नों के
उत्तर खोजने की चाह
अब नई ऊर्जा ले आई है
मेरे भी विचारों में
साथ ही चला आया है
परछाइयों से खेलने का धैर्य और
कहानियां गढ़ने का सामर्थ्य भी
मेरे लिए अब
चन्द्रमा का आकार
कछुये की चाल
तितलियों के पंख
फूलों के रंग
शोध के विषय हैं
सीखने की इस नई शुरुआत ने
ज्ञान के कितने ही द्वार
खोल दिए हैं
जो मुझे मुझसे जोड़ने के लिए हैं
संवेदनाओं का पाठ
पढ़ने के पथ पर
तुम्हारा साथ
मनुष्यता के भावों से
परिचय करवा रहा है
हाँ, चैतन्य तुम बड़े हो रहे हो
और साथ ही बढ़ रहा है
माँ के रूप में
मेरा मानवीय कद ।
तुम बड़े हो रहे हो
सीख गए हो जूते के फीते बांधना
साथ ही अपनी बातों को साधना
आ गयी है तुम्हें
मन की कहने, मोह लेने की
अद्भुत कला
जुटा लेते हो कितनी ही
ऊर्जा हर दिन
चेतना जगाता चैतन्य |
और मुझे सिखाने की
तुम्हारे अनगिनत प्रश्नों के
उत्तर खोजने की चाह
अब नई ऊर्जा ले आई है
मेरे भी विचारों में
साथ ही चला आया है
परछाइयों से खेलने का धैर्य और
कहानियां गढ़ने का सामर्थ्य भी
मेरे लिए अब
चन्द्रमा का आकार
कछुये की चाल
तितलियों के पंख
फूलों के रंग
शोध के विषय हैं
सीखने की इस नई शुरुआत ने
ज्ञान के कितने ही द्वार
खोल दिए हैं
जो मुझे मुझसे जोड़ने के लिए हैं
संवेदनाओं का पाठ
पढ़ने के पथ पर
तुम्हारा साथ
मनुष्यता के भावों से
परिचय करवा रहा है
हाँ, चैतन्य तुम बड़े हो रहे हो
और साथ ही बढ़ रहा है
माँ के रूप में
मेरा मानवीय कद ।
71 comments:
सच! ये पाठशाला निराली है ..
बेटे के प्रेम में आप पूरी तरिके से डूब चुकी है मोनिका जी। आपको खुशियां मुबारक और प्रार्थना कि किसी की नजर न लगे। चैतन्य का चैतन्यमयी रूप है, बिल्कुल बालकृष्ण और आप यशोदा मैया के साथ देवकी मैया भी। आप वात्सल्य रस में सराबोर है और अपने साथ पाठकों को भी वह आनंद बांट रही है। बेटे के प्रति इतना वात्सल्य मां के अलावा कौन कर सकता है भला।
कितना सुन्दर एहसास-कितना औदात्य और कितनी गरिमा से आपूर्ण होने लगता है मातृत्व पाकर नारी का व्यक्तित्व,जैसे जीवन नये बोधों से खिल उठा हो!
मैं आपको समझ रही हूँ ...
गुजर चुकी हूँ कब,क्यूँ ,कहाँ ,किसलिए की राहों से
नित नए अनजाने अनगिनत अनसुलझे सवालों से
शुभकामनायें !!
सच बहुत मजेदार होती है बच्चों की पाठशाला ...
समय के साथ साथ बच्चे भी बहुत कुछ सीखते जाते है और बहुत सारे प्रश्न पूछ पूछ कर हमे भी सिखाते जाते हैं.बहुत ही सुन्दर भाव,चैतन्य को शुभाशीष.
माँ एक करिश्मा है
ईश्वर का दिया अद्भुत वरदान
चैतन्य .... इस वरदान की काया में
मैं चैतन्य हो गई
....
माँ सिर्फ पाठशाला नहीं होती
बच्चे पकी जिज्ञासा से भरी किताब से
वह हर क़दमों पर ज्ञान का उजाला पाती है
....
घर-बाहर-
उससे पर्याप्त ऑक्सीजन लेना
व्याधियुक्त कीटाणुओं से बचाव .... एक डॉक्टर भी नहीं कर पाता !
मैं यानि तुम्हारी माँ -
गुडिया घर बाहर आई
तो तुम्हें पाया
और तुमसे मेरी दहलीज़
मेरा आँगन
मेरा बागीचा ...विस्तृत हुआ
अर्थवान हुआ ....
मैंने मन से लेकर कमरों तक
दुआओं के लाल धागे बांधे
नज़र से बचाने के लिए कुछ काले धागे !
हो सकता है मेरे चेहरे में मेरी उपरी बनावट की कमजोरी दिखे
पर तुमसे बेहतर कोई नहीं समझ सकता
कि मेरा मन - हिमालय भी है,त्रिवेणी भी,अमरनाथ की गुफा भी
संजीवनी भी,विषकन्या भी ....
ईश्वर का तेजस्वी त्रिनेत्र .....
चैतन्य तुम बड़े हो रहे हो...
आज तुहारा सर माँ के कंधे पर है....
जल्द ही अपनी माँ से भी बड़े हो जाओगे....
और वो आयेगी तुम्हारे काँधे तक :-)
अनु
बच्चों की पाठशाला बहुत मजेदार होती है नारी का व्यक्तित्व पूर्ण होने लगता है...
माँ की ममता ...बेटे से सुख ...
भगवान का दिया सब से बड़ा आशीर्वाद है ...
सदा बना रहे ...
जिंदगी एक पाठशाला है ,माँ प्रथम शिक्षक -शिक्षक वही जो पहले सीखे फिर सिखाय-शिक्षक वही जो पहले विद्यार्थी है-यही जिंदगी है
LATEST POSTसपना और तुम
माँ और बच्चे दोनों ही एक दूसरे की पाठशाला बन जाते हैं .... बहुत प्यारी रचना ... खूबसूरत एहसास को लिए हुये
टिप्पणी स्वरूप रश्मि जी ने सब कुछ कह दिया है ...
बच्चे के साथ माँ भी बहुत कुछ सीखती है और बाँटती है अपना अनुभव,बच्चों के प्रश्नों के उत्तर देना तो कामचलाऊ है हो सके तो उसके प्रश्नों पर तीखी धार दीजिये ताकि,आगे चलकर सार्थक प्रश्न और उनके उत्तर खोज सके क्योंकि रोज प्रश्न बदल रहे !
Anupam!!!
अद्भुत अनुभव। और संवेदनात्मक वर्णन।
ऐसी कविताओं में गलत शब्द अखरते हैं।
सीखाने के स्थान पर (सिखाने)और परछाइ के स्थान पर (परछाई) करने का कष्ट करें।
सचमुच कितनी ही चीज़ों को बच्चे नयी दृष्टि से देखने के लिए मजबूर कर देते हैं..
बहुत ही सुन्दर रचना
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 9/4/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।
सचमुच बच्चे बड़े होने के साथ हम बचपन को एक बार फिर से जीते हैं , फर्क बस इतना की अब हम सीखते नहीं बल्कि सिखाते हैं, सवाल नहीं करते जवाब देते हैं. बहुत सुन्दर अहसास होता है एक माँ के लिए... समेटिये अपने आंचल में इन ममत्व और प्यार भरे पलों को... शुभकामनायें
शुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया .और मुझे सीखाने कीकृपया सिखाने की कर लें .
खोले दिए हैं (खोल दिए करें ),बेटे के प्रेम से आप्लावित बेटे से सीखने को आतुर माँ ,रीझना और सीखना ,विकास के सौपानों को साक्षी भाव देखना माँ का एक अप्रतिम गुण है .बढ़िया भावसंसिक्त प्रस्तुति .
एक बड़ी कविता प्रेम और यथार्थ का अद्भुत संयोजन |बच्चों का बड़ा होते जाना एक तरफ सुकून देता है दूसरी तरफ उनकी बालसुलभ हठ से हम वंचित होते जाते हैं |
Bahut sundar udgaar. Shubhkamnae
Ramram
kabhi kabhi koi rachna itni adbhut hoti hai ki samajh nahi aata ab iske aage kya kaha jaye........... shubhkamnayen
माँ की अद्भुद होती है पाठशाला..
beautiful.....
bahut sunder bhavpurn kavita
संवेदनाओं का पाठ
पढ़ने के पथ पर
तुम्हारा साथ
मनुष्यता के भावों से
परिचय करवा रहा है-------
वाह बहुत ही मार्मिक और भावुक
जीवन में बच्चों के ही साथ बड़ा होना पड़ता है
सार्थक रचना
bahut sunder bhavpurn rachana
चैतन्य की बाल सुलभता से महिमामंडित होती ममता!
चैतन्य बहुत प्यारे हैं -अनगिन आशीष
wow..
loved that... and I wish he keeps growing :)
बेटे को जीवन के बोध का अहसास सबसे पहले माँ ही कराती है,माँ ही ज्ञान देने की पहली गुरु होती है !!!
RECENT POST: जुल्म
ममत्व भरे सुंदर उद्गार..........
माँ होते ही स्त्री का व्यक्तित्व दृढ अनंत हो जाता है (अपवाद छोड़ दे तो ) ....
भावनात्मक अभिव्यक्ति ने दिल को छू लिया !
चैतन्य,तुम बडे हो रहे हो----
बहुत सुंदर-मां की गरिमा का उत्कर्ष
मेरे लिए तो
चन्द्रमा का आकार
कछुये की चाल
तितलियों के पंख
फूलों के रंग
शोध के विषय हैं अब ......
@ अब तुम बढे हो गए हो ......कहीं-कहीं पर यह जुमला बच्चों पर प्रेशर का काम भी कर जाता है,
सुंदर प्रस्तुति……
मान के असीम स्नेह को शब्दों में ढलती अनुपम पोस्ट ।
माँ के असीम स्नेह को शब्दों में ढलती अनुपम पोस्ट ।
bacche bade hote ma ke sapne bhi aakar lene lagte hain....
और साथ ही बढ़ रहा है
माँ के रूप में
मेरा मानवीय कद ।.........सुन्दर रचना ........
चेत - अन्य ...
और साथ ही बढ़ रहा है
माँ के रूप में
मेरा मानवीय कद
यह वह ऊंचाई है जिसको पाये बिना सम्पूर्णता नहीं आती ... बहुत ही भावमय करता लेखन
आभार
सीखने की इस नई शुरुआत ने
ज्ञान के कितने ही द्वार
खोले दिए हैं
जो मुझे मुझसे जोड़ने के लिए हैं
संवेदनाओं का पाठ
पढ़ने के पथ पर
तुम्हारा साथ
मनुष्यता के भावों से
परिचय करवा रहा है
हाँ, चैतन्य तुम बड़े हो रहे हो
और साथ ही बढ़ रहा है
माँ के रूप में
मेरा मानवीय कद ।
माँ और बेटा का मेल होता है तो ज्ञान और विज्ञान का कद हमेशा बढ़ जाता है .
आजकल उल्टा ही हो गया है बड़ों की पाठशाला से ज्यादा बच्चों की पाठशाला से सीखना ज्यादा सुखद अनुभव देता है। क्यूंकि इसमें नित नयी खोज अपने ही नज़रिये की नयी जानकारी सी देती प्रतीत होती है। जिसे जानने और समझने के बाद ऐसा लगता है हमने ऐसा क्यूँ नहीं सोचा पहले या हम ऐसा क्यूँ नहीं सोच पाये। :)
कृपया मेरी आंखों से रह गईं और विरेन्द्र कुमार शर्मा जी की सजग आंखों से पकड़ी गई गलती (खोले दिए हैं)के स्थान पर(खोल दिए करें)कर लें। पुन:आपकी कविता ने विचित्र प्रकार से मोहा है मन को। ऐसा होता है कि हम बहुत कुछ सोचते-विचारते हैं। और कभी हम स्वयं तो कभी हमारा कोई कवि मित्र उस सोचे-विचारे की भावनाओं को सुन्दर शब्द पहना देता है। आपके प्रत्युत्तरों का धन्यवाद।
वाह क्या कहने लाजवाब प्रस्तुति
बेहतरीन रचना। और मास्टर चैतन्य की ये पिक भी बड़ी क्यूट और प्यारी है .
चैतन्य को हमारा ढेरों स्नेह!! :)
सादर
मधुरेश
प्रेम ओर स्नेह के साथ साथ भविष्य का रोमांच भी नज़र आ रहा है आपके शब्दों में ... शायद ये बच्चों का सबसे अच्छा समय होता है माता पिता के लिए ... उनके साथ खेलना ओर उन्हें भविष्य की प्रेरणा देना ...
अपने समय का भरपूर प्रयोग करें ओर आनंद लें ...
सीखने वाले हमेशा सीखते रहते हैं ..यहाँ तो सीख भी रहे हैं रिवीसन भी हो रहा है .अच्छी प्रस्तुति ..सादर ..मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
सभी को व्यस्त रखते चैतन्य
हाँ, चैतन्य तुम बड़े हो रहे हो
और साथ ही बढ़ रहा है
माँ के रूप में
मेरा मानवीय कद ।
....बहुत सुन्दर स्नेहमयी प्रस्तुति..यह सम्बन्ध ऐसे ही प्रगाढ़ होता रहे...शुभकामनायें!
सचमुच!
बच्चों के सवालों के जवाब ढूँढते-ढूँढते... हम खुद भी अक़्लमंद हो जाते हैं! :-)
~सादर!!!
नवसंवत्सर की शुभकामनायें
आपको आपके परिवार को हिन्दू नववर्ष
की मंगल कामनायें
aagrah hai mere blog main sammlit hon
aabhar
सीखने की इस नई शुरुआत ने
ज्ञान के कितने ही द्वार
खोल दिए हैं
जो मुझे मुझसे जोड़ने के लिए हैं
संवेदनाओं का पाठ
पढ़ने के पथ पर
तुम्हारा साथ
आदरणीया मोनिका जी वात्सल्य छलक पड़ा वचपन याद आया सीखने और जुड़ जाने से सुन्दर सम्बन्ध वचपन निराला होता ही है प्रिय के साथ साथ आप को भी शुभ कामनाएं
भ्रमर ५
माँ, मातृत्व की कितनी परिभाषाएँ रचती है !
अद्भुत !
पांच साल तक बच्चे में न सिर्फ सीखने की प्रीटेंड प्ले की अद्भुत क्षमता होती है हर छोटी सी बात में वह मनोरंजन ढूंढ लेता है मग्न रहता है .बच्चे अद्भुत दाता गुरु हैं इसीलिए कहा गया -चाइल्ड इज दी फादर आफ मैन .शुक्रिया आपकी टिपण्णी के लिए .
माँ के रूप में आपकी संवेदना और मानवीय कद को सलाम.
सच में हम बच्चों के साथ बच्चे बन जाते हैं ,ओर बड़े भी उनके साथ ही होने लगते हैं....
जीवन के मायने बदलने लगते हैं
चैतन्य को स्नेहाशीष....
नव वर्ष आपको सपरिवार
मंगल मय हो..
सच में हम बच्चों के साथ बच्चे बन जाते हैं ,ओर बड़े भी उनके साथ ही होने लगते हैं....
जीवन के मायने बदलने लगते हैं
चैतन्य को स्नेहाशीष....
नव वर्ष आपको सपरिवार
मंगल मय हो..
यही तो है जीवन के अधूरे सपने की पूर्णाहुति |
बहुत ही सुन्दर कविता
'वात्सल्य रस' से आप यूं ही ओतप्रोत होती रहे और चैतन्य को बहुत बहुत स्नेहिल आशीष ।
वात्सल्य का सुंदर शब्द चित्र
.शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का .
समय के पंख बहुत बलशानी होते हैं, एकदम से उड़ जाता है
खुशियां मुबारक
यह जीवन की अलग अनुभूति है. सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति.
शुक्रिया आपकी अमूल्य टिप्पणियों का .
बहुत उम्दा .अर्थपूर्ण,सुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति.
ऐसे जीवंत और अर्थपूर्ण भाव साझा करने का आभार .....
बहुत सुन्दर | सार्थक कविता | आभार
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
दिल पे हाथ रख के कहिये मोनिका जी, कद तो स्त्री का पुरुष से सदैव बड़ा होता है-हम पुरुष चाहए कितने भी तर्क दे,- लेकिन अगर "चैतन्य" लड़का न होकर लड़की -"चिंतन" -होती तो अपेक्षाकृत आप का कद और ऊँचा होता,A-और ऊँचा होता B- इतना ही ऊँचा रहता, C-नीचा हो जाता ? आपका उत्तर जो भी हो--- आपकी सहज अभिव्यक्ति अमूल्य है...अति सुन्दर !!
दिल पे हाथ रख के कहिये मोनिका जी, कद तो स्त्री का पुरुष से सदैव बड़ा होता है-हम पुरुष चाहए कितने भी तर्क दे,- लेकिन अगर "चैतन्य" लड़का न होकर लड़की -"चिंतन" -होती तो अपेक्षाकृत आप का कद और ऊँचा होता,A-और ऊँचा होता B- इतना ही ऊँचा रहता, C-नीचा हो जाता ? आपका उत्तर जो भी हो--- आपकी सहज अभिव्यक्ति अमूल्य है...अति सुन्दर !!
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