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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

26 April 2013

पुरुष की नकारात्मक प्रवृत्ति का शिकार अंततः एक स्त्री ही बनती है- एक अवलोकन


हमारी सामाजिक और पारिवारिक व्यवस्था ही कुछ ऐसी है कि एक स्त्री का जीवन केवल उसके अपने नहीं बल्कि घर के पुरुषों के व्यवहार से भी प्रभावित होता है ।  निश्चित रूप से इन मामलों के कुछ अपवाद भी हमारे परिवेश में मिल ही जायेंगें पर एक सामान्य अवलोकन से कुछ ऐसा परिदृश्य ही सामने आता है । पुरुषों के स्वाभाव और प्रवृत्ति को घर की महिलाएं सबसे ज्यादा झेलती हैं । 

अगर शराब पीते हैं तो उन कमज़ोर आदमियों की इस लत के चलते सबसे ज्यादा दर्द घर की औरतों को ही उठाने पड़ते हैं । अनगिनत औरतें इस पीड़ा को जीती हैं । इस लत के चलते मिलने वाले दुःख और दर्द को  एक माँ, पत्नी, बहन और बेटी भी झेलती है । जबकि उनका इसमें न कोई दोष होता है और ना ही कोई भागीदारी । 

हिंसात्मक व्यवहार है तो अपना शक्ति सामर्थ्य और क्रूरता दिखाने  के लिए घर की महिलाएं ही सबसे सुरक्षित शिकार लगती हैं । हिंसात्मक व्यवहार में शाब्दिक और भावनात्मक उत्पीड़न तो अपने आप ही शामिल हो जाते हैं । 

अंतर्मुखी हैं तो संवाद बंद कर देंगें । देखने में आता है कि यह बातचीत ना तो दोस्तों की टोली के साथ बंद  होती और ना ही  दफ्तर के साथियों से । आमतौर पर इस गुण को भी घर की महिलाएं ही सबसे ज्यादा झेलती हैं । अपने ही परिवेश में ऐसे अनगिनत लोग मिल जायेंगें जो अपने काम के अलावा मिलने वाले समय को घर के बाहर ही बिताना पसंद करते हैं और घर में आते ही चुप्पी धारण कर लेते हैं । 

बहिर्मुखी हैं, तो अपना बड़बोलापन  सबसे ज्यादा घर स्त्रीयों को कुछ न कुछ नकारात्मक और पीड़ादायक बोल-सुना कर ही व्यक्त किया जाता है । इस आदत के चलते कई सारी नकारात्मक टिप्पणियाँ और उपमाएं माँ , बहन, पत्नी और बेटी,  चाहे जो सामने हो, शब्द बन मुखरित हो जाती है । 

इनमें से किसी आदत के चलते अगर आर्थिक हानि होती है तो उसका खामियाज़ा भी घर हर की स्त्रीयों को ही उठाना पड़ता है । उन्हें ही अपनी आवश्यकताओं  में कटौती करनी पड़ती है । शराब जैसी लत में तो महिलाओं की स्वयं की कमाई गंवाने की स्थितियां भी बन जाती हैं । अपनी मेहनत  की कमाई न देने पर शारीरिक हिंसा तक झेलने को विवश होती हैं । 

अंततः यदि  इन बुरी आदतों के चलते कोई  पिता,पति, भाई और बेटा शारीरिक या मानसिक व्याधि का शिकार बन जाता है तो उसकी देखभाल का जिम्मा भी घर की किसी न किसी महिला के हिस्से ही आता है । पुरुष की प्रत्येक नकारात्मक प्रवृत्ति का शिकार अंततः एक स्त्री ही बनती है । न केवल शारीरिक  बल्कि मनोवैज्ञानिक रूप से भी घर की महिलाएं पुरुषों की गलतियों का अघोषित दंड भोगती हैं ।

आज जबकि हर ओर बदलाव लाने की बात हो रही है, अपने परिवेश में देखे जाने ये बिंदु मन में आये । इन्हें साझा करते हुए यही सोच रही हूँ कि महिलाओं की स्थिति में सुधार मोर्चे नहीं देहरी के भीतर का बदलाव ही ला सकता है । वो भी पुरुषों की सोच और व्यवहार का परिवर्तन । क्योंकि जिस बेटे के व्यवहार और आदतों में नकारात्मकता नहीं रहेगी वो अपनी पत्नी के साथ भी मानवीय व्यवहार ही करेगा । अपनी पत्नी को मान देने वाला व्यक्ति अपनी बिटिया और बहन को भी स्नेह और सुरक्षा ही देगा। अपनी सोच और व्यवहार में सकारात्मकता रखने वाला कोई भी पुरुष जब अपने घर में सधा  और सम्माननीय व्यवहार करेगा तो घर के बाहर भी  किसी स्त्री के मान को ठेस पहुँचाने का विचार उसके मन में नहीं आएगा ।

75 comments:

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

माता निर्माता भवति

ashish said...

घर की स्त्रियों को सम्मान देने वाला ही बाहर स्त्रियों को सम्मान देता है . ये सटीक अवलोकन और निष्कर्ष है .

जयकृष्ण राय तुषार said...

बहुत ही गहन विश्लेष्णात्मक आलेख |आभार

Sujit Sinha said...

यह अवलोकन समीचीन और और गौरतलब है | स्त्रियों को 'अबला', परमुखापेक्षी समझा जाता है | नतीजतन सारी दुर्भाग्यपूर्ण स्थितियों की त्रासदी उन्हें ही झेलनी पड़ती है|अक्सर देखा जाता है कि स्त्रियाँ इन जहालातों को नियति मानकर चुप्पी साध लेती हैं | उनकी ये चुप्पी सदियों से उन्हें अबला घोषित किये जाने का मनोवैज्ञानिक नतीजा है |ज्ञताव्य है कि घरेलू हिंसा की शिकार न केवल निरक्षर महिलाएं रही बल्कि पडी-लिखी महिलाएं भी हैं | इससे पता चलता है कि घरेलू हिंसा का एक कारण हमारी सड़ी-गली परम्पराएँ रही हैं जिससे महिलाएं निकल नही पाती है |बदलाव की बयार चल रही है ,भले ही मंथर गति से ही सही |

वाणी गीत said...

घर का सकारात्मक माहौल ही बाहर के बदलाव की नींव बनता है , इसलिए इसकी शुरुआत घर से ही हो ,समाज के जिस हिस्से से हम बराबरी की मांग करते हैं , वह जब तक बदलना ना चाहे , बदलाव सिर्फ कागजी ही होंगे . आपके विचारों से शत प्रतिशत सहमत हूँ . मैं भी यही आवाज़ बार बार उठती रही हूँ हिंदी ब्लॉगिंग में :)

प्रवीण पाण्डेय said...

एक की नकारात्मकता सब पर प्रभाव डालती है और बच्चों पर तो सर्वाधिक। संवाद के माध्यम से गाँठें खुलती हैं, समय लगता है।

प्रतिभा सक्सेना said...

आदमी अपनी मनमानी को सहज अधिकार समझता है-लोकलाज का विचार कर बहने-बेटियाँ पत्नियाँ और माँ तक चुप्पी लगा जाती हैं .

Ramakant Singh said...

कभी कभी इन्हीं घटनाओं के कारण स्वयं से भिसवल करना पड़ता है की ऐसा क्यूँ कर ?
बहुत ही सुन्दर विश्लेषनात्मक लेख बधाई ...सुप्रभात

साहित्य और समीक्षा डॉ. विजय शिंदे said...

सूक्ष्म निरीक्षण के साथ सार्थक अभिव्यक्ति। बाते और घटनाएं बहुत छोटी होती है पर हमेशा शिकार नारी ही। बाहर कोई सुनता नहीं तो घर की महिलाओं को हमेशा सुनाया जाता है। बाहर भी किसी महिला को कोई पुरुष सुनाने लगे तो उसे उसकी औकात दिखाई जाती है पर घर में ऐसे नहीं होता। चाहे पुरुष लिहाज नहीं रख रहा हो तो भी घर की स्त्री लिहाज रखती है कारण केवल शांति बनी रहे इसलिए। पर हमेशा का लिहाजभरा बर्ताव जब कमजोरी समझा जाने लगे तो झटका तो देना पडेगा। पुरुष अगर अधिकार दिखा रहा है तो भाई सोचे कि परवार ही ऐसी जगह है जहां सब मर्जों की दवां होती है अतः परिवार के सदस्यों को सन्मानित करना अपने आप को सन्मानित करने जैसा है। मोनिका जी आपके आलेख का पाठकों पर जरूर प्रभाव पडेगा।

विभा रानी श्रीवास्तव said...

घर का सकारात्मक माहौल ही बाहर के बदलाव की नींव बनता है , इसलिए इसकी शुरुआत घर से ही हो ,समाज के जिस हिस्से से हम बराबरी की मांग करते हैं , वह जब तक बदलना ना चाहे , बदलाव सिर्फ कागजी ही होंगे .
आपके विचारों से शत प्रतिशत सहमत हूँ ........

विभा रानी श्रीवास्तव said...

घर का सकारात्मक माहौल ही बाहर के बदलाव की नींव बनता है , इसलिए इसकी शुरुआत घर से ही हो ,समाज के जिस हिस्से से हम बराबरी की मांग करते हैं , वह जब तक बदलना ना चाहे , बदलाव सिर्फ कागजी ही होंगे .
आपके विचारों से शत प्रतिशत सहमत हूँ ........

सुज्ञ said...

गम्भीर अवलोकन, यथार्थ निष्कर्ष साथ ही परफेक्ट समाधान!!

Anupama Tripathi said...

अपनी सोच और व्यवहार में सकारात्मकता रखने वाला कोई भी पुरुष जब अपने घर में सधा और सम्माननीय व्यवहार करेगा तो घर के बाहर भी किसी स्त्री के मान को ठेस पहुँचाने का विचार उसके मन में नहीं आएगा ।

बहुत सार्थक बात ...!! आपके विचारों से सहमत हूँ मोनिका जी ....!!

रचना said...

आज जबकि हर ओर बदलाव लाने की बात हो रही है, अपने परिवेश में देखे जाने ये बिंदु मन में आये । इन्हें साझा करते हुए यही सोच रही हूँ कि महिलाओं की स्थिति में सुधार मोर्चे नहीं देहरी के भीतर का बदलाव ही ला सकता है । वो भी पुरुषों की सोच और व्यवहार का परिवर्तन । क्योंकि जिस बेटे के व्यवहार और आदतों में नकारात्मकता नहीं रहेगी वो अपनी पत्नी के साथ भी मानवीय व्यवहार ही करेगा । अपनी पत्नी को मान देने वाला व्यक्ति अपनी बिटिया और बहन को भी स्नेह और सुरक्षा ही देगा। अपनी सोच और व्यवहार में सकारात्मकता रखने वाला कोई भी पुरुष जब अपने घर में सधा और सम्माननीय व्यवहार करेगा तो घर के बाहर भी किसी स्त्री के मान को ठेस पहुँचाने का विचार उसके मन में नहीं आएगा ।

yae sab sadiyon sae kehaa jaa rahaa haen aur badlav kyaa aayaa rape ki gatnaa kaa aakdaa badh rahaa haen

kyaa rape kewal aaj ho rahey haen jii nahin sadiyon sae gharo ke andar hotae rahey haen aur logo isko ignore karnae ki aur ladkiyon ko pardae me rakhnae ki salaah bhi daetae rahey haen


jis din har aurat apnae andar ek badlav laayegi ki wo apnae pitaa , bhai , baetae yaa pati sae turant alag ho jayegii agr wo kisi bhi aurat kaa apmaan kartaa haen US DIN HI BADLAAV SAMBHAV HAEN

aur yae logic galat haen ki jo apnae ghar ki stri kaa samman karaegaa wo bahar ki stri kaa bhi karegaa kyuki jyadaatar purush apnae ghar ki stri ko maa , behin , beti aur patni maantae haen aur ghar sae bahar ki stri ko mehaj ek shareer

post achchhi haen lekin practical nahin haen kyuki jo aap keh rahii haen sadiyon sae kehaa jaa chukaa haen

पूरण खण्डेलवाल said...

सार्थक लेख !!

Rajendra kumar said...

घर का सकारात्मक माहौल ही बाहर के बदलाव की नींव बनता है,सूक्ष्म निरीक्षण के साथ सार्थक अभिव्यक्ति।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत साधा हुआ अवलोकन ... घर की देहरी के अंदर से ही बदलाव संभव है ....

virendra sharma said...

सार्थक तार्किक यथार्थ परक विश्लेषण .सुन्दर अनुकरणीय .

सु-मन (Suman Kapoor) said...

विचारणीय ...दुःख होता है स्थिति किस हालत तक पहुँच गई है ...

शारदा अरोरा said...

सही लिखा है ...दिखावा करने वालों के भी घर से उनकी अच्छाई का सर्टिफिकेट मिले ...तभी उन्हें अच्छा मानो ...

vandana gupta said...

गहन विश्लेषण किया है

ANULATA RAJ NAIR said...

बिलकुल सटीक बात कही है आपने...
स्त्रियाँ भुगतती हैं पुरुषों के नकारात्मक रवैये...
और घर के माहौल को सुन्दर बनाने का एकतरफा प्रयास भी करती हैं.....पर सशक्त स्त्रियाँ बेहतर चरित्र वाले बच्चे देती हैं समाज को.

अनु

संध्या शर्मा said...

महिलाओं की स्थिति में सुधार मोर्चे नहीं देहरी के भीतर का बदलाव ही ला सकता है... यही सच्चाई है शुरुआत घर परिवार से होना जरुरी है बदलाव अपने आप आ जायेगा...

Harihar (विकेश कुमार बडोला) said...

दुर्दशा पर अच्‍छा विश्‍लेषण।

nayee dunia said...

बिलकुल सही बात .......

अरुन अनन्त said...

आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (28-04-2013) के चर्चा मंच 1228 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

ashokkhachar56@gmail.com said...

गम्भीर अवलोकन......

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

अपनी पत्नी को मान देने वाला व्यक्ति अपनी बिटिया और बहन को भी स्नेह और सुरक्षा ही देगा। अपनी सोच और व्यवहार में सकारात्मकता रखने वाला कोई भी पुरुष जब अपने घर में सधा और सम्माननीय व्यवहार करेगा तो घर के बाहर भी किसी स्त्री के मान को ठेस पहुँचाने का विचार उसके मन में नहीं आएगा ।
Recent post: तुम्हारा चेहरा ,

amit kumar srivastava said...

विषय 'सोचनीय' .......स्थिति 'शोचनीय'

संजय @ मो सम कौन... said...

सही निष्कर्ष है, परिवार ही पहली पाठशाला है।

Dr.NISHA MAHARANA said...

bahut accha .....sarthak nd satik ......lekh ...

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

भारत में इतना पतन! कभी सोचा भी न होगा.

Maheshwari kaneri said...

बिलकुल सही सटीक बात ..गहन विश्लेषण किया है आप ने..

स्वप्न मञ्जूषा said...

आकलन सही और तर्कसंगत हैं।

Ranjana verma said...

सकारात्मक और सही तार्किक विश्लेषण.... आभार

Dr. sandhya tiwari said...

हर पीड़ा औरत से होकर ही गुजरती है चाहे वो कोई भी परिस्थिति क्यों न हो भुगतना भी उसे ही पड़ता है और समाधान के लिए भी वही संघर्ष करती है |

Arvind Mishra said...

आपके प्रेक्षण चुभते हैं मगर सच हैं ! क्या कहें! यह केवल अनुभूत हो सकता है बस !मगर यह भी तो देखिये फिर भी कितने ही मामलों में नारी अपराजेय हो उभरती है!

Tamasha-E-Zindagi said...

बहुत खूब.... विचारणीय लेख

कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page

ताऊ रामपुरिया said...

पूर्णरूपेण सहमत, बहुत ही सटीक और प्रभावी आलेख.

रामराम.

अजित गुप्ता का कोना said...

स्‍त्री और पुरुष एक युगल हैं तो पुरुष की कमियों का खामियाजा महिला को ही भुगतना पड़ता है। लेकिन जब हम परिवार की बात करते हैं तब एक पुरुष का खामियाजा सम्‍पूर्ण परिवार को भुगतना पड़ता है जिसमें महिला और पुरुष दोनों होते हैं। लेकिन यह भी सत्‍य है कि माँ निर्मात्री होती है, उसने अपना कर्तव्‍य छोड़ दिया है इसलिए संतानें इतनी उदण्‍ड हो रही हैं।

कालीपद "प्रसाद" said...


घर घर में घटित होनेवाले घटनायों को लोग नजर अंदाज कर देते है लेकिन आपकी विश्लेषात्मक लेख उनकी आखें खोलने के लिए काफी है.
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दिल की आवाज़ said...

सार्थक लेख ......

महेन्‍द्र वर्मा said...

त्रासद है यह सब।
सकारात्मक सोच का संस्कार विकसित हो, इसकी शुरुआत अपने-अपने घरों से ही करनी होगी।

दिगम्बर नासवा said...

आपकी सभी बातों से ईतेफाक रखता हूं ... घर मिएँ, अपनी सोच में अपने व्यवहार में सबसे पहला परिवर्तन लाना जरूरी है ...
सच है की किसी भी बात का प्रभाव घर की नारी पे सबसे ज्यादा पड़ता है ... उसे ही सबसे ज्यादा झेलना होता है ...

Anonymous said...

"कोई भी पुरुष जब अपने घर में सधा और सम्माननीय व्यवहार करेगा तो घर के बाहर भी किसी स्त्री के मान को ठेस पहुँचाने का विचार उसके मन में नहीं आएगा"

अक्षरसः सत्य

रचना दीक्षित said...

पुरुषों की सोच और व्यवहार में अगर अंतर आये तभी आज की नारियों के प्रति बढती समस्याओं का इलाज़ हो सकता. समस्या की जड़ उनकी पुरुश्बादी सोच ही है.

सारिका मुकेश said...

आपने बहुत अच्छे बिन्दुओं की तरफ इशारा किया है...हमें उस और ध्यान देना होगा....

Amrita Tanmay said...

मनोवृतियों के अंतर का अति सुन्दर विश्लेषण..पर...

शोभा said...

रचनाजी आप सही कह रही है पर कई जगह उल्टा भी होता है कई पुरुष बाहर बहुत सभ्य होते है बाहरी स्त्रियों को बहुत सम्मान देते है पर घर पर उनका व्यवहार कठोर हो जाता है और बाहर से मिले तनाव को घर की स्त्रियों पर निकाला जाता है.

Rajput said...

बहुत ही सार्थक लेख। आजकल के हालात से इसकी पुष्टि भी दिन-ब-दिन हो ही रही है ।

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

महिलाओं की स्थिति में सुधार मोर्चे नहीं देहरी के भीतर का बदलाव ही ला सकता है ।
बिल्कुल सही

रचना said...

shobha
baat ghar aur bahar ki haen hi nahin
baat haen purush ko yae kis tarah samjhayaa jaaye ki naari uskae barabar ki insaan haen naa ki mehaj ek shareer

meri nazar me monica ne apni post me jo niskarsh diyaa haen wo sadiyon sae chal rahaa haen lekin sthiti bigad rahee haen is liyae yae niskarsh sahii ho hi nahi saktaa

kanun kaa kadaii sae palan karna hogaa aur bashishkaar karna ko

shikha varshney said...

और पुरुषों की सोच में बदलाव कैसे हो ? जब हम खुद अपने घर में उनकी सोच को बदलने का प्रयास करें.

मीनाक्षी said...

असल में स्त्री के मन की देहरी के भीतर का बदलाव ज़रूरी है....अपने आप को मान सम्मान देना ही उसमें आत्मबल ला सकता है, आत्मबल ऐसा कि घर के पुरुष सही मायने में स्त्री को पहचान सकें और उसे अपने बराबर मान सकें... बराबरी का भाव आते ही हम एक दूसरे के दायरे और वजूद का मान रखते हैं...

mukti said...

बिल्कुल सही कहा आपने. परिवार हमारे समाज की इकाई है, जब तक परिवार के अन्दर बदलाव नहीं आएगा, समाज भी नहीं बदलेगा. सब कुछ झेलती औरतें ही हैं, तो पहल भी वहीं से होनी चाहिए. उन्हें हर गलत बात का विरोध करना चाहिए. चुपचाप सहते जाने से ही आज स्थिति इतनी बिगड़ गयी है.

Jyoti khare said...

सार्थक अवलोकन
वाकई स्त्री जो सहती है,वह कह नहीं पाती
संवेदना की तह तक जाता आलेख
उत्कृष्ट प्रस्तुति

आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
कहाँ खड़ा है आज का मजदूर------?

virendra sharma said...

आज जबकि हर ओर बदलाव लाने की बात हो रही है, अपने परिवेश में देखे जाने ये बिंदु मन में आये । इन्हें साझा करते हुए यही सोच रही हूँ कि महिलाओं की स्थिति में सुधार मोर्चे नहीं देहरी के भीतर का बदलाव ही ला सकता है । वो भी पुरुषों की सोच और व्यवहार का परिवर्तन । क्योंकि जिस बेटे के व्यवहार और आदतों में नकारात्मकता नहीं रहेगी वो अपनी पत्नी के साथ भी मानवीय व्यवहार ही करेगा । अपनी पत्नी को मान देने वाला व्यक्ति अपनी बिटिया और बहन को भी स्नेह और सुरक्षा ही देगा। अपनी सोच और व्यवहार में सकारात्मकता रखने वाला कोई भी पुरुष जब अपने घर में सधा और सम्माननीय व्यवहार करेगा तो घर के बाहर भी किसी स्त्री के मान को ठेस पहुँचाने का विचार उसके मन में नहीं आएगा ।

sach kahaa hai bdlaav ghar kee dehri hi laayegee -charity begins at home .

Manohar Chamoli said...

शत- प्रतिशत सहमत..

Jyoti Mishra said...

i think negativity has a tendency to grab the shreds of positivism in its surroundings..
for some reason I think sometimes women do too many compromises... and when she realizes that.. it's already too late in most of the cases

अभिमन्‍यु भारद्वाज said...

बहुत सही लिखा आपने
हिन्दी तकनीकी क्षेत्र की रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारियॉ प्राप्त करने के लिये क़पया एक बार अवश्य देंखें
MY BIG GUIDE

Suman said...

सार्थक अवलोकन !

राजेश सिंह said...

eye opening indeed

Kailash Sharma said...

बहुत सार्थक विवेचन...

Kailash Sharma said...

बहुत सार्थक विवेचन...

उड़ता पंछी said...

बहुत सच्ची बात लिखते हो आप !!

हो सके तो इस छोटी सी पंछी की उड़ान को आशीष दीजियेगा

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

आदरणीया डॉ मोनिका जी अवलोकन आप का बिलकुल सही है सहमत हैं हम सब लेकिन जैसे पुरुष के कारण स्त्री को झेलना सहना होता है कहीं कहीं स्त्रियों के नकारात्मक प्रवृत्ति का शिकार पुरुष भी होते हैं तंग आ जाते हैं घर बार से ले कर बच्चों को देखना स्त्रियों के रहते भी हर काम करना बातें सुनना बहुत कुछ मानसिक रूप से त्रस्त लेकिन ये अपवाद ही है
भ्रमर ५

इमरान अंसारी said...

सटीक अवलोकन पेश किया है आपने......अक्सर ऐसा होता है बहार की कुंठा घर में निकलती है........सहमत हूँ आपसे।

Unknown said...

SARTHAK LEKHAN ......... LEKIN APWAD SAB JAGAH HOTE HAIN ...... MAHILAO KI WAZAH SE BHEE PURUSH KAI BAR BAHUT KUCH JHELTE HAI

virendra sharma said...


शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .जननी की सम्मान करना ज़रूरी है .अध्यात्म की और भी वाही ले जाती है .

निरुपमा said...

पहली बात... मैं नीलिमा जी की बात से इतेफाक रखती हूँ....कई पुरुष भी स्त्रियों की वजह से बहुत कुछ झेलते हैं....और ऐसी स्त्रियाँ भी बहुत हैं..
दूसरी बात...कि मैंने आपके लेख की जब पहली ही लाइन पढ़ी तो मुझे समझ में आ गया था कि आप बेहद अच्छा लिखती हैं...आपके लिखे हर लाइन के साथ मेरे चेहरे पर मुस्कान बिखरती रही.....बेहद सच लिखा आपने...लेकिन एक बात मैं और कहना चाहूंगी कि शराब.. एक माध्यम ज़रूर हो सकता है...लेकिन इंसान की सोच एक सी होती है, वो नशे में जो करता है वो उसकी सोच का नतीजा मात्र होता है...बुरा करने की कोई सीमा नहीं है मोनिका जी...इसका सबसे बड़ा उदाहरण एक पत्नी का रेप है जो उसी के पति के द्वारा बार बार किया जाता है...और वो उफ़ तक नहीं कर पाती...किसी से कह नहीं पाती.

Satish Saxena said...

सच कहा....

Anita Lalit (अनिता ललित ) said...

बहुत अच्छा विश्लेषण !
~सादर!!!

Pallavi saxena said...

गंभीर विषय पर सार्थक चिंतन, बदलाव की शुरुआत सबसे पहले स्वयं अपने ही घर से करने की जरूरत है।

virendra sharma said...

जबकि आध्यात्मिकता का उत्कर्ष भी वही है .शक्ति रूपा सरस्वती भी वही है .ईश्वरीय

विश्वविद्यालय ब्रहमा कुमारीज़ में उसका विशिष्ठ स्थान है .अध्यात्म की ओर भी वही ले जाती है

.मैंने इसे मेहसूस किया है .एक जीवन का स्थूल रूप है दूसरा अति-सूक्ष्म खजूराहो देवालय इसका

मूर्त रूप है जहां गर्भ गृह में सिर्फ शिवलिंग है . भोगवाद का उत्कर्ष भोगावती रूपा लास वेगस भी

मैंने करीब से देखा है .दृष्टी से ही सृष्टि का निर्माण होता है ,जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि .आपने सही

आवाहन किया है जो नहीं चेते समझो उनका सर्वनाश सुनिश्चित है .

ॐ शान्ति .

Unknown said...

आपके विचारोँ से पूरी तरह सहमत नहीँ हूँ , क्योँकि कई पुरुष भी कुछ महिलाओँ के कारण बुरी तरह त्रस्त है

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