टर्बन्ड टोर्नेडो अब थम गया है | फौजा सिंह, जिन्होनें जीवट का नया आदर्श स्थापित किया, संसार भर में यह सन्देश देने में सफल रहे कि संकल्पशक्ति से सब संभव है । समस्याओं, अवसादों से पार पाना भी और जीवन को पूरे उत्साह से जीते हुए आगे बढ़ना भी । संभवतः वे संसार के एक अकेले ऐसे व्यक्ति हैं , या यूँ कहें की खिलाड़ी हैं जिनका रिटायर होना एक अजब गजब सा समाचार है । हो भी क्यूँ नहीं ? 101 वर्ष की आयु में किसी धावक का थमना है भी आश्चर्यचकित करने वाला ही ।
फौजा सिंह यूँ तो हिंदुस्तान के ही रहने वाले हैं | पर मन में ये प्रश्न कई बार उठता है कि क्या वे भारत में रहते हुए ये सब कर पाते ? जिस आयु में उन्होंने फिर से खेल के संसार को अपना सहारा बनाया, यहाँ संभव था ? उनकी आशाओं भरी सोच को वास्तविकता का धरातल मिल पाता ? क्या अवसाद में घिरा एक बुजुर्ग यूँ संसार में दिलेरी की मिसाल कायम कर पाता | संभवतः नहीं | समय के साथ हमारे सामाजिक परिवेश में बहुत कुछ बदला है | पर इतना कुछ बदलने के बाद भी बुजुर्गों की एक परिपक्व छवि ही सुहाती है सभी को | उसी रूप में उनको स्वीकार भी किया जाता है | हमारे यहाँ तो मानो आयु के अलग अलग खांचे बने हुए हैं | इन बने बनाये आयु वर्गों ने हमें बांध रखा है | कुछ इस तरह कि इनसे इतर कुछ सोचना कभी तो घर परिवार के लोगों को गंभीर समस्या लगने लगता है और कभी हास्यास्पद |
एक उम्र के बाद हमारे यहाँ कोई कुछ करने की ठाने तो उसके हौसले को पस्त करने के लिए अनगिनत बातें करामातें मौजूद हैं | बड़ी उम्र के लोगों के लिए जीवन को नीरसता से जीना और बनी बनाई राह पर चलते रहना ही स्वीकार्य है यहाँ | सहयोग की अपेक्षा तो की ही नहीं जा सकती | जिस उम्र में फौजा सिंह ने एक नई मिसाल कायम की, हमारे यहाँ तो संभवतः किसी बुजुर्ग के ऐसे हौसले को स्वीकार्यता ही न मिले | दुखद ये कि इस असहमति में परिवार और समाज दोनों बढ़ चढ़कर भागीदारी निभाते हैं |
सोचती हूँ हमारे यहाँ बुजुर्गों का एक बड़ा प्रतिशत ऐसा है जिनका मनोबल और इच्छाशक्ति युवाओं से कहीं बढ़कर है | साथ ही अनुभवों के आत्मविश्वास से पूरित भी | ऐसे में वे कई तरह से अपना योगदान समाज और परिवार में दे सकते हैं | साथ ही कुछ ऐसा भी कर सकते हैं जो आयु के इस पड़ाव पर भी उन्हें जीवंत और जागरूक होने का आभास करवाए | ताकि उन्हें भी ज़िन्दगी न रुकी सी लगे और न ही थकी सी |
56 comments:
jivan me sfurti,utsah ka nav sanchar karti utsahvrdhk prastuti( 2 new posts- 1.lipt kar.....nav vama ...)
Bilkul sahi likha hai.... Buzurgo ko hamarey desh mein zabardasti budha bana diya jata hai... Nazariye ko badalne ki zarurat hai...
प्रेरक जीवन!!
बहुत ही सुन्दर जानकारी देती पोस्ट |आभार
उम्र की रफ़्तार को धता बताने वाले फ़ौज सिंह का जीवन दिलचस्प है और प्रेरक भी !
भारत और लंदन में एक मूल अन्तर है, लंदन में लोग इसी जीवन को सम्पूर्ण जीना चाहते हैं, उनके यहां मोक्ष की कल्पना नहीं है जबकि हमारे यहाँ पैदा होते ही व्यक्ति मोक्ष के लिए सोचने लगता है और इस जीवन को ढंग से जी नहीं पाता है। लेकिन मुझे इसका विपरीत अनुभव आया, और कईयों से पूछा तो उनका भी समान था। जब अमेरिका अपने पुत्र के पास जाओ तो वहाँ एक प्रश्न पूछा जाता है कि तुम्हारे माता-पिता हैं? इनका यहाँ मन लग रहा है? ये मन्दिर वगैरह नहीं जाते क्या? मुझे लगता है कि यह कैसी सोच है? जहाँ माता-पिता होते ही कहा जाता है कि मन्दिर में जाकर बैठ जाओ। कोई यह नहीं कहता कि अरे इन्हें हम सबके साथ लाओ, कुछ हम इनसे सीखेंगे और कुछ ये सीखेंगे। भारत में वृद्ध लोगों के लिए बहुत सी जगह हैं जहाँ वे खुशहाल जीवन जीते हैं, यदि चाहें तो दौड़ भी लगा सकते हैं कोई मना करने वाला नहीं है।
आर्थिक कमजोरी भारत में मोक्ष जैसे हालात आने ही नहीं देती.
फौजा सिंह अभी चुके नहीं हैं, बस उस तरह की नुमाइशी दौड़ों में हिस्सा नहीं लेंगे.
@ Indian Citizen
थमने का अर्थ यही है कि अब वे मैराथन नहीं दौड़ेंगे |
अब वे प्रतिस्पर्धी दौड़ नहीं लगायेंगें | बस, अपनी सेहत बनाये रखने के लिए उनकी दौड़ जारी रहेगी | जिसका सीधा सा अर्थ ये है कि वे अब तक क्रियाशील रहे और आगे भी रहेंगें |
यह पोस्ट का हिस्सा है ...............
यदि मनोबल और इच्छाशक्ति है,तो उम्र बाधक नही होती है,फ़ौज सिंह जी ने इतिहास रचते हुए मिसाल कायम की,,,
Recent post: रंग,
सोचती हूँ हमारे यहाँ बुजुर्गों का एक बड़ा प्रतिशत ऐसा है जिनका मनोबल और इच्छाशक्ति युवाओं से कहीं बढ़कर है | साथ ही अनुभवों के आत्मविश्वास से पूरित भी | ऐसे में वे कई तरह से अपना योगदान समाज और परिवार में दे सकते हैं | साथ ही कुछ ऐसा भी कर सकते हैं जो आयु के इस पड़ाव पर भी उन्हें जीवंत और जागरूक होने का आभास करवाए | ताकि उन्हें भी ज़िन्दगी न रुकी सी लगे और न ही थकी सी ............
उम्दा अभिव्यक्ति .....
सजीव चित्रण ........
सार्थक लेखन ...........
फौजा सिंह का जीवन प्रेरणा स्रोत है ....
यहाँ तो चारपाई से भी बुजुर्ग अपने होने का प्रमाण देते रहते हैं. हाँ! फौजा सिंह की तरह तो नहीं पर अपने तरीके से.
टर्बन्ड टोर्नेडो, रनिंग बाबा और सिख सुपरमैन को प्रणाम। साथ-साथ ही आपको भी बधाई इतना आशावान और जीवनात्मक आलेख लिखने के लिए।
हमारे यहाँ बुजुर्गों का एक बड़ा प्रतिशत ऐसा है जिनका मनोबल और इच्छाशक्ति युवाओं से कहीं बढ़कर है| साथ ही अनुभवों के आत्मविश्वास से पूरित भी| ऐसे में वे कई तरह से अपना योगदान समाज और परिवार में दे सकते हैं|
बिलकुल ठीक कहा आपने, मगर मुझे ऐसा लगता है कि ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती इस प्रयास के लिए कुछ हमें स्वयं अपनी मानसिकता को बदल ना होगा तो कुछ हमारे यहाँ के बुज़ुर्गों को भी अपने सामाजिक दायरे से ऊपर उठकर या बाहर आकर सोचना होगा।
तभी यह संभव होगा...
बहुत ही सार्थक प्रस्तुति,इनका जीवन बहुत ही प्रेरणाप्रद है.
fouja singh ji ka jeevan ek prerana hai...ise sajh karne ke liye abhar..
प्रेरक रचना
Gyan Darpan
ठान लिया जाये तो क्या नहीं किया जा सकता है।
कोई एेसा इन्सान भी हो सकता है, भरोसा ही नहीं होता
जिंदादिली का दूसरा नाम है फौजा सिंह ...
आज आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ ...अद्वितीय लेखन कार्य है आपका ...बहुत अच्छा लगा पढ़ कर ...
Nice post
इनका नाम तो सुना था पर इतनी जानकारी नहीं थी।ऐसा हौसला युवाओं के लिए भी प्रेरणादायी है।
अजित जी ने सही कहा है की हमारे यहाँ बुजुर्गो से बस गंभीरता ओढ़ कर भजन कीर्तन करने की उम्मीद की जाती है , यहाँ तक की उन्हें ठीक से जीवन भी नहीं जीने दिया जाता है । वौइसे आप को यद् होगा की आमिर के कार्यक्रम सत्यमेव जयते में दो बुजुर्ग महिलाए आती थी जिन्होंने उस आयु में पिस्टल चलाना सिखा था और कई प्रतियोगिताओ में भाग भी लिया था , आप जो चाहे भारत में कर सकते है बस आप को हिम्मत करने की जरुरत है ।
आपने बाबा फौजासिंहजी की जीवटता से हमें सुंदर प्रस्तुति द्वारा सुपरिचित कराया इसके निमित्त हार्दिक धन्यवाद!आपके द्वारा उठाया गया यह मौलिक प्रश्न विचारणीय है कि क्या भारत में रहते हुए उनके लिए ऐसा करना संभव हो पाता.
आपने बाबा फौजासिंहजी की जीवटता से हमें सुंदर प्रस्तुति द्वारा सुपरिचित कराया इसके निमित्त हार्दिक धन्यवाद!आपके द्वारा उठाया गया यह मौलिक प्रश्न विचारणीय है कि क्या भारत में रहते हुए उनके लिए ऐसा करना संभव हो पाता.
प्रेरक पोस्ट साथ ही आदरणीय फ़ौज सिंह को सलाम करता हूँ उनकी शेरदिली के लिए।
बहुत-बहुत-बहुत......अच्छा विषय चुना आपने! आपकी बात से शत-प्रतिशत सहमत हैं हम!
हमारे यहाँ.... उम्र एक बहुत बड़ी अवरोधक है कुछ कार्य-कलापों के लिए! इसीलिए यहाँ लोग समय से पहले ही बुढ़ापे की ओर बढ़ जाते हैं...जो बहुत ही दुख की बात है! काश! इसके लिए कुछ किया जा सकता....
~सादर!!!
कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली .भारत .....हा हा हा।।।।।।यहाँ तो बुजुगों के लिए काशी करवट है या फिर रोल बहादुर है (बहादुर नेपाली के लिए रूढ़ हो चुका है घरु सहायक के लिए ,बुरा लगे या भला अपन बिंदास बोलेगा .....
संकल्पशक्ति से सब संभव है ।
yakeenan ...
बहुत सार्थक प्रस्तुति..फौजा सिंह जी के ज़ज्बे को सलाम..
nc
सार्थक लेख ..
फौजा सिंह ने बुजुर्गों के लिए एक मिसाल कायम की है, आत्मविश्वास और संकल्पशक्ति से सब संभव है, उम्र भी बाधक नहीं बन सकती... बहुत सुन्दर प्रेरक आलेख
फ़ौज सिंह सच ऐसे धावक बने जिसने अपनी गति से उम्र को पीछे छोड़ दिया ....
प्रेरणा दाई स्रोत |
दृढ इच्छा शक्ति के प्रतीक हैं, बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
इच्छा शक्ति हो तो क्या भारत क्या लन्दन जीवन प्रेरक बनाना अपने ही हाथ में है ।
अब बड़े शहरों में बुजुर्गो की सकारात्मक सोच में काफी बदलाव आया है ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ !
सादर
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
अर्ज सुनिये
सीख लेने योग्य ..प्रेरित करता लेख साभार !
प्रेरणादायक और उत्साह सृजित करता सुंदर आलेख.
महाशिवरात्रि की शुभकामनायें.
prernadayak... shubhkamnayen...
वाह फ़ौज सिंह जी को नमन .....!!
..देखिये इतने बुजुर्ग भी इतने जिंदादिल इंसान हैं ....कमाल है ...!!
प्रेरणा देती ओर फौज सिंह के इस साहसी कारनामे को सभी तक लाती पोस्ट ...
नमन है उनकी हिम्मत ओर आत्म-विश्वास को ....आसान नहीं होता होंसला बनाए रखना ....
unke aage sabhi natmastak hai...
MONIKA ji achchha nahi laga aapka yah kahna ki bharat me aise kam sarahna nahi pate kya aap janti hain ki johri village me hamari old women nishanebazi me naam kama rahi hain.."महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें" आभार मासूम बच्चियों के प्रति यौन अपराध के लिए आधुनिक महिलाएं कितनी जिम्मेदार? रत्ती भर भी नहीं . .महिलाओं के लिए एक नयी सौगात WOMAN ABOUT MAN
प्रेरक सन्दर्भ ।
@ Shalini Ji
हमारे यहाँ ऐसा कुछ करना ही बहुत मुश्किल है | न साधन संसाधन हैं और न ही सामाजिक सहयोग.....
प्रेरणा के स्रोत हैं फौजा सिंह जी को सादर नमन
सच कहा आपने खांचों से निकलना अभी भी सहज नहीं है
जीवन्तता और जीवत की मिसाल हैं ये ...
atiutam---***
बहुत ही प्रेरक और सुन्दर जानकारी देता आलेख.
नीरज 'नीर'
KAVYA SUDHA (काव्य सुधा)
बहुत सुंदर प्रेरक प्रसंग !! इसीको कहते हैं हताशा के बीज में से आशा के अंकुर फूटना :)
बहुत सुंदर प्रेरक प्रसंग !! इसीको कहते हैं हताशा के बीज में से आशा के अंकुर फूटना :)
सादर जन सधारण सुचना आपके सहयोग की जरुरत
साहित्य के नाम की लड़ाई (क्या आप हमारे साथ हैं )साहित्य के नाम की लड़ाई (क्या आप हमारे साथ हैं )
Amazing.
Age does not matter too much in progress.
कभी कभी किसी का जीवन कितना प्रेरणा स्रोत बन जाता है ...
सुन्दर आलेख
साभार !
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