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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

27 July 2011

महिलाओं की सफलता के पीछे भी है पुरुषों का हाथ.....!


अक्सर यह सुनने में आता है की पुरुषों की सफलता के पीछे किसी न किसी(माँ ,पत्नी, बहन) रूप में एक महिला का हाथ होता है। ऐसे में यह सवाल भी लाज़मी है की दुनिया भर में अपनी कामयाबी का परचम लहराने वाली भारतीय महिलाओं के पीछे क्या किसी पुरुष का सहयोग और साथ नहीं है? यह सच है की औरतों के साथ कुछ घरों आज भी सामंतवादी सोच के चलते अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता पर तस्वीर के दूसरे पहलू पर भी गौर करना जरूरी है। हमारे समाज में आज ऐसे घरों की भी कमी नहीं है जहाँ पूरे घर-परिवार से लड़कर भी पिता अपनी बेटियों को घर से दूर पढने और काम करने की इज़ाज़त देकर उनका हौसला बढ़ा रहे है। ऐसे जीवनसाथी भी मिल जायेंगे जिनके साथ और सहयोग से कई लड़कियां शादी के बाद भी अपनी पढाई लिखाई जारी रख रही हैं और करियर में नए आयाम छू रही है। बहन की कोई इच्छा पूरी न होने पर माता-पिता से लड़ने वाले भाई भी कम नहीं । मैंने ऐसे कई घर देखे हैं जहाँ करियर और पढाई के बाबत बहन पर रोकटोक हो तो भाई बहन की जमकर वकालत करते हैं।


आये दिन सफलता की नयी इबारत लिख रही महिलाओं के पीछे भी किसी न किसी रूप में पुरुषों का सहयोग जरूर है। फिर चाहे वो मनोबल और मार्गदर्शन देने वाले पिता हों, संबल देने वाला जीवनसाथी या बहन की सफलता से गौरान्वित होने वाले भाई।


मौजूदा दौर में सशक्त बनती बेटियों के पीछे उनके स्नेहिल पिताओं का बहुत बड़ा हाथ है। क्योंकि बात चाहे ऊंची तालीम की हो या करियर बनाने की बेटियों को पीछे रखने का विचार भी उनके मन में नहीं होता। 


आज के पापा बेटी की परवरिश में भी कोई कमी नहीं रखना चाहते। अनुशासन और व्यवहारिकता का पाठ पढ़ने वाले पापा ही बेटी के सपनों को पंख फ़ैलाने का असमान देते हैं । पिता के रूप में एक पुरुष बेटी के जीवन की नींव  को वो मजबूती देता है जिसके दम पर वो पूरी जिंदगी हौसले के साथ जी सकती है। तभी तो आजीवन बेटियां अपने पिता के व्यक्तित्व से प्रभावित रहतीं हैं। इसी तरह स्नेह और सुरक्षा का नाता भाई बहन का होता है। भाई जो चाहे उम्र में छोटा हो या बड़ा बहन के लिए हमेशा फिक्रमंद रहता है। आजकल कई घरों में देखने में आ रहा है की बहन कि पढ़ाई या नौकरी के बारे में अगर माता-पिता को कोई संकोच होता है तो भाई उन्हें समझाते हैं कि लड़कियों का पढना लिखना कितना जरूरी है? हर तरह से बहन का बचाव करना हमारे यहाँ के भाई अपना फ़र्ज़ समझाते है।


शादी के बाद किसी महिला के लिए संबल और स्नेह का स्रोत होता है पति का साथ। बीते कुछ बरसों में जीवनसाथी की सोच में आये सकारात्मक बदलावों ने महिलाओं को और सशक्त किया है। वे पत्नी की तरक्की में अपना पूरा योगदान दे रहे हैं। देखने में आ रहा है उन्हें पत्नी कि कामयाबी और उपलब्धियां हीन भावना नहीं देतीं बल्कि गौरव का अहसास कराती हैं । बहुत अच्छा लगता है यह देखकर कि शादी के बाद भी कई पति अपनी पत्नी को आगे पढने और आत्मनिर्भर बनने की राह सुझाते हैं और ज़रुरत पड़े तो परिवार के उन सदस्यों से भी लड़ जाते हैं जिनकी सोच रूढ़िवादी है।


हमारे समाज में ऐसे परिवारों की गिनती आज भले कम है जहाँ बेटियां पिता की विरासत तक संभाल रही हैं पर हकीकत यह भी है की इस संख्या में हो रहा इजाफा उस बदलाव की ओर इशारा करता है जहाँ पुरुषों को हर हाल, हर रूप में शोषक की उपाधि देना सही नहीं है। क्योंकि जिंदगी के अच्छे-बुरे वक़्त में पिता, पति या भाई किसी न किसी रूप में पुरुष भी हमारे साथ खड़े नज़र आते है।

95 comments:

Smart Indian said...

बेशक़!

Apanatva said...

shat pratisht sahmat aapke vicharo se .soch rahee hoo meree soch aap tak pahuchee kaise.........?
Aabhar .

Apanatva said...

shat pratisht sahmat aapke vicharo se .soch rahee hoo meree soch aap tak pahuchee kaise.........?
Aabhar .

Saru Singhal said...

Like your post, females need more support than males to march forward in life. I hope the number of families who support their female members in their growth increase with time.

SANDEEP PANWAR said...

दोनों की सफ़लता में दोनों पक्षों का अहम रोल होता है। किसी एक का नहीं।

Sunil Kumar said...

आपकी बात से सहमत , चलिए किसी ने तो पुरुषों की तरफदारी की :)

S.N SHUKLA said...

मोनिका जी
बहुत महत्वपूर्ण पोस्ट , आमतौर महिलाओं की यह धारणा है की पुरुष ही महिलाओं की प्रगति में बाधक हैं , लेकिन आप ने तर्कपूर्ण ढंग से इस अवधारणा को गलत साबित किया , आभार

सुज्ञ said...

सकारात्मक विचार!! अच्छी भावनाओं की प्रशस्ती गुणवान लोगो की अभिवृद्धि में सहायक होती है।

Arvind Mishra said...

सिक्के के इस दूसरे पहलू को बड़ी ख़ूबसूरती ,सच्चे और प्रभावशाली तरीके से उठाया है आपने !

geetachandna said...

बहुत अच्छा लगा पढ़ कर ,ऐसा ही तो है.

Rakesh Kumar said...

आपकी सोच बहुत सार्थक है मोनिका जी.
बहुत दिनों बाद आपको ब्लॉग पर देख कर खुशी हुई.
मेरे ब्लॉग पर आप आयीं इसके लिए आभारी हूँ.

DR. ANWER JAMAL said...

Very nice post.
नारी त्याग की मूर्ति होती है, वह मां, बहन, बेटी और पत्नी होती है। अक्सर औरतें ख़ुद को इन्हीं रूपों में गौरवान्वित भी समझती हैं

Ankit pandey said...

आज लोगों की सोच बदलती जा रही है. आशा है की महिलाओं की स्थिति सुधर जाएगी.
बेहतर पोस्ट, आभार

विभूति" said...

बिलकुल सही कहा आपने....

महेन्‍द्र वर्मा said...

सही तथ्य है।
महिला और पुरुष एक दूसरे के पूरक ही तो हैं।
सार्थक लेख के लिए आभार, मोनिका जी।

Unknown said...

बेहद सही और सामयिक विचार अब स्थिति बदल गयी है अपनी सहधर्मिणी को निरंतर प्रगति के सोपान चढ़ते देखना अब ईर्ष्या नहीं गर्व महसूस होने लगा है समाज को. निश्चित रूप से यदि हर सफल पुरुष के पीछे स्त्री होती है तो हर सफल स्त्री के पीछे भी पुरुष ही होता है .

Satish Saxena said...

सुखद है यह पढना ....
बेटियों का पिता पर सबसे अधिक हक़ होना चाहिए और इसका अहसास भी !
शुभकामनायें आपको !

मुकेश कुमार सिन्हा said...

ham purushon ki awaaj ban gayee aap to:)

thanku thanku:D

Fani Raj Mani CHANDAN said...

Men and women both acts as subsidiary to each other and it is very important to understand the fact. They both can evolve by supporting each other in their progress.

Very good article, it was a pleasure reading it.

Regards
Fani Raj

Anonymous said...

यदि मैं आपकी उपरोक्त पोस्ट से असहमति जताता हूँ तो क्या मैं महिला शास्क्तिकरण पक्षधर हो जाता हूँ ? ........लेकिन मैं आपकी उपरोक्त पोस्ट से पूर्णत: सहमती व्यक्त करता हूँ , क्योकि सिक्के के इस दूसरे पहलू को बड़ी ख़ूबसूरती और सकारात्मक सोच के साथ आपने पाठकों से समक्ष पेश किया है , ऐसा निष्पक्ष लेखन अक्सर कम ही पढने को मिलता है ,
आभार उपरोक्त पोस्ट हेतु............
पी.एस.भाकुनी

प्रवीण पाण्डेय said...

अब की गयी सहायता सार्थक होती दिखती है।

virendra sharma said...

बदलते दौर की आर्थक तस्वीर और पहलु है ये सकारात्मक बदलाव .

Arvind kumar said...

स्त्री और पुरुष दोनों ही एक दुसरे के पूरक है.....

जरुरत होती है तो बस स्वस्थ विचारों और निर्मल मानसिकता की........
अच्छा लिखा है आपने.....

मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है....

आदर सहित

vijai Rajbali Mathur said...

संकीर्ण सोच से हट कर बेबाक विचार प्रकट किए हैं इस पोस्ट मे।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बिना पिता या भाई या पति के सहयोग के लड़कियों के विकास का मार्ग अवरुद्ध हो जायेगा ...

सार्थक विश्लेषण ..

समयचक्र said...

बहुत सही है परन्तु आधुनिक युग में उन्नति सफलता के लिए दोनों का एक दूसरे का आपस में सहयोग भी जरुरी है ...

प्रज्ञा पांडेय said...

achcha likha hai aapne . jansandesh ke page number 9 par mera stree vishayak lekh sambhaw ho toh padhen ..

Anonymous said...

बिलकुल सही कहा जी

Maheshwari kaneri said...

दोनों ही एक दूसरे के पूरक होते हैं . इस लिए दोनों की सफ़लता में दोनों का अहम रोल होता है। किसी एक का नहीं।.. सुन्दर प्रस्तुति.....आभार..

संध्या शर्मा said...

"पुरुषों को हर हाल, हर रूप में शोषक की उपाधि देना सही नहीं है। क्योंकि जिंदगी के अच्छे-बुरे वक़्त में पिता, पति या भाई किसी न किसी रूप में पुरुष भी हमारे साथ खड़े नज़र आते है।"

मोनिकाजी मैं आपकी बातों से पूर्णरूप से सहमत हूँ...सकारात्मक विचार

sm said...

nice read
someone will be their always behind the success of anyone

सदा said...

आपकी बात से पूर्णत: सहमत हूं ...सटीक लेखन के लिये बधाई ।

एस एम् मासूम said...

अच्छा लेख. ऐसे ही लिखती रहे.

दिगम्बर नासवा said...

बहुत अच्छा लगा आपका लेख पढ़ कर .. किसी ने तो कहा पुरुष भी किसी काम के हैं परिवार में ...
किसी के भी विकास में मुझे लगता हैं दोनों की सहभागिता जरूरी है ...

अरुण चन्द्र रॉय said...

अच्छा लगा पढ़कर... वरना स्त्रियाँ तो पुरुषों को दुश्मन ही मानती हैं... स्त्री शशक्तिकरण में पुरुषों का बराबर योगदान है...

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

सहमत, बहुत तर्कपूर्ण ढंग से आपने बात कही है। मेरा मानना है कि महिलाएं और पुरुष एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और अगर आदमी की प्रगति में महिलाओं का हाथ होता है तो महिलाओं की प्रगति और कामयाबी में पुरुष का साथ होता है।

लेकिन मीनाक्षी जी मैं माफी के साथ कहना चाहूंगा कि इस विषय पर किसी पुरुष ने लेख लिखा होता तो हो सकता है कि यहां विरोध के स्वर दिखाई देते।
खैर बहुत सुंदर लेख

Anonymous said...

वाह मोनिका जी ....दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ आपका.......जहाँ ज़्यादातर यही पढ़ने और सुनने में आता है की पुरुष शोषक है.......वहीँ आपने तस्वीर का दूसरा रुख दिखाया है .......मेरा हमेशा से ये ही मानना है की हाथ की पाँचो उँगलियाँ बराबर नहीं होती.......अच्छा या बुरा इंसान होता है .......पुरुष या महिला नहीं........मुझे आपकी ये पोस्ट बहुत अच्छी लगी|

Unknown said...

Iske peechhe bhi puruson ka neejee swarth hai..badhiya post

रेखा said...

आपने सही ही लिखा है मैंने भी अपनी पढाई शादी के बाद ही पूरी की है और किसी भी महत्वपूर्ण कार्य में मुझे मेरे पति से भरपूर सहायता मिलती है

गिरधारी खंकरियाल said...

देशकाल परिश्थिति के अनुकूल सभी कुछ स्वतः परिवर्तित होता रहता है यही बदलाव बेटियों और बहनों के बारे में भी हो रहा है .

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

स्त्री-पुरूष दोनों ही समानरूप से सहभागी हैं पारिवारिक जीवन में किंतु बहुत से लोग हैं जो नारीवादी या पुरूषवादी होने का दम भरते फिरते हैं क्योंकि इससे, सामाजिक स्तर पर, उन्हें अपना उल्लू सीधा करने में सहातयता मिलती है, चाहे यह व्यक्तिगत मानसिकता का मामला हो या ध्यानाकर्षण की मानसिकता या फिर इसी तरह के दूसरे संदर्भ...

अजित गुप्ता का कोना said...

हमारा तो मानना है कि किसी की भी उन्‍नति में उसके परिवार का हाथ होता है।

जयकृष्ण राय तुषार said...

डॉ० मोनिका जी सार्थक बहस और सराहनीय आलेख बधाई और शुभकामनायें |

जयकृष्ण राय तुषार said...

डॉ० मोनिका जी सार्थक बहस और सराहनीय आलेख बधाई और शुभकामनायें |

Suman said...

बिलकुल सही कहा है आपने
सहमत हूँ आपसे बढ़िया विश्लेषण किया है !

Crazy Codes said...

kisi mahila ko purush ke samarthan mein likhte hue achha laga... don;t mind joke tha... khair mudde kee baat ye hai ki dono ka praspar aur samaan contibution hota hai kisi bhi safalta ya vifalta ke pichhe... baat aur hai ki aksar hum log safalta ka shrey khud ko asafalta ka shrey haalaat ko dete hai... achhi post hai...

SAJAN.AAWARA said...

u r right mam....
me aapki baato se sahmat hun
jai hind jai bharart

अनामिका की सदायें ...... said...

सच कहा आपने सभी पुरुष एक से नहीं होते और पांचो उंगलिया बराबर नहीं होती.

मोनिका जी लगता है आप मेरी पिछली किसी टिपण्णी से नाराज़ हो गयी हैं जो अब मेरे ब्लॉग पर नहीं आती. कृपया नाराजगी को कोई और राह दिखाइए. :)

आपके इंतजार में...

http://anamika7577.blogspot.com/2011/07/blog-post_27.html

http://raj-bhasha-hindi.blogspot.com/2011/07/blog-post_7377.html

Vaanbhatt said...

हर किसी को मेंटर की ज़रूरत होती है...वो स्त्री या पुरुष कोई भी हो सकता है...

डॉ. मनोज मिश्र said...

बहुत ही सामयिक पोस्ट,आभार.

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

पारस्परिक सहयोग से ही संसार का कार्य चलता है।

Anonymous said...

आपकी सोच और लेखन के बारे मैं तो कुछ कहने की सामर्थ्य नहीं है लेकिन इस पोस्ट को पढ़कर बहुत सुकून मिला - साभार धन्यवाद्

दिवस said...

सच में, बहुत गहरी बात कह दी आपने| चलिए किसी ने तो पुरुषों का भी पक्ष रखा|
मैं मानता हूँ कि कुछ रूढ़िवादी मानसिकता के लोगों के कारण महिलाओं को प्रताड़ित होना पड़ता है| किन्तु इस सब हंगामे ने तो बेचारे पुरुष की छवि को जल्लाद में बदल दिया है| आखिर पुरुष भी मानव है कोई राक्षस तो नहीं| किसी एक की गलती का दंड पूरे समुदाय को देना कहाँ तक उचित है?
बहुत दिनों के बाद आपके दर्शन हुए और वह भी इतनी सुन्दर पोस्ट के साथ| बहुत अच्छा लगा|
धन्यवाद...

upendra shukla said...

BILKUL SAHI BAAT

रजनीश तिवारी said...

बहुत सकारात्मक एवं सार्थक लेख। शुभकामनाएँ ।

G.N.SHAW said...

बहुत ही सामंजस्य भरा लेख ! सार्थक !यही तो एक सिक्के के दो पहलू है !

निर्मला कपिला said...

सहमत हूँ महिला पुरुष एक ही गाडी के दो पहिये हैं साथ मिल कर चलने से ही घर चलता है।

Yashwant R. B. Mathur said...

आपके विचारों से पूर्ण रूप से सहमत।

सादर

Urmi said...

मेरा तो ये मानना है कि पुरुष के कामयाबी के पीछे महिलाएं होती हैं और महिलाओं के कामयाबी के पीछे पुरुष होते हैं! दोनों के सहयोग से ही कामयाबी मिलती है वरना नामुमकिन है! बहुत सुन्दर और सटीक लिखा है आपने!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

रूप said...

sach kaha aapne , tarkik roop se utkrisht rachna . badhai !

सुजाता said...

आखिर ताली दोनों हाथो से बजती है ...........
एक सिक्के के दो पहलु होते है। विकास का पहला कारण तो स्त्री - पुरुष दोनों है मात्र एक की कल्पना बेमानी होगी ।

सुजाता said...

आखिर ताली दोनों हाथो से बजती है ...........
एक सिक्के के दो पहलु होते है । विकास का पहला कारण तो स्त्री - पुरुष दोनों है मात्र एक की कल्पना बेमानी होगी।

जयकृष्ण राय तुषार said...

बहुत ही सार्थक और आशावादी आलेख बधाई डॉ० मोनिका जी |

जयकृष्ण राय तुषार said...

बहुत ही सार्थक और आशावादी आलेख बधाई डॉ० मोनिका जी |

जयकृष्ण राय तुषार said...

बहुत ही सार्थक और आशावादी आलेख बधाई डॉ० मोनिका जी |

naresh singh said...

आपके विचार हमेशा नवीनता लिए हुए होते है |नारी और पुरूष जिंदगी की गाड़ी के दो पहिये है | दोनों का एक दुसरे को सपोर्ट करना जरूरी है |इसके बिना संसार की प्रगति संभव ही नहीं है | कुछ लेखक रटी रटाई बाते ही लिखते है | जबकि समाज कि सच्चाई कुछ अलग होती है |

kanu..... said...

aapne bahut sahi kaha monika ji.ek sarthak rachna ke lie badhai

Amrita Tanmay said...

मंथन करता पोस्ट .शुभकामना

Mani Singh said...

kabhi gadi naav par to kabhi naav gadi par ye dono ek dusre ke bina adhure hai

ashish said...

अनछुए विषय पर सशक्त लेख .अजीत गुप्ता जी की टिपण्णी सब कुछ कह गई .

मेरा साहित्य said...

aapke lekh hamesha nayi soch pr adharit hote hain .me bhi bahut bar yahi sochti hoon .mere lekhan ko sabhi ke samne lane me mere patidev ka haath hai .
bahut sunder likha hai
rachana

RAJWANT RAJ said...

bhut khoob .

ज्योति सिंह said...

आये दिन सफलता की नयी इबारत लिख रही महिलाओं के पीछे भी किसी न किसी रूप में पुरुषों का सहयोग जरूर है। फिर चाहे वो मनोबल और मार्गदर्शन देने वाले पिता हों, संबल देने वाला जीवनसाथी या बहन की सफलता से गौरान्वित होने वाले भाई।
bahut hi sundar likha hai main aapke vicharo se sahmat hoon .

ASHOK BAJAJ said...

आपको हरियाली अमावस्या की ढेर सारी बधाइयाँ एवं शुभकामनाएं .

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

स्त्री और पुरुष एक गाड़ी के दो पहिये ही तो होते हैं| दोनों का एक दूसरे को सहयोग होता है| किसी एक के बारे में ही बोलना सर्वथा अनुचित होगा|

निवेदिता श्रीवास्तव said...

मोनिका ,मैं भी इसी विचारधारा की हूँ .... समस्या किसी के सहयोग मिलने अथवा न मिलने की नहीं है ,इस पूरे विवाद का मूल कारण अपना वर्चस्व साबित करने की दूषित मनोवॄत्ति है जो कि अब कुछ ही घरों तक सीमित हो गयी है ...... इस पूरे विवाद का गलत असर उन पुरुषों की सहयोगी मानसिकता पर पड़ता है जो साथ देने के बाद भी कटघरे में खड़े कर दिये जाते हैं ........ शुभकामनायें !!!

P.N. Subramanian said...

बेटे हमें तुम पर नाज़ है. इज्ज़त रख ली.

Dr (Miss) Sharad Singh said...

बिलकुल सही कहा आपने...
यह भी सच है.

rashmi ravija said...

सच है....लड़कियों की उन्नति में उनके पिता-भाई की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता.....बस इनकी संख्या उत्तरोत्तर बढती रहे यही कामना है...बढ़िया आलेख

रश्मि प्रभा... said...

जिउ बिन देह नदी बिन वारी
तैसिही नाथ पुरुष बिन नारी ...

VIRASAT-E-HIND said...

mithak todkar sahi nazariya pesh karane ke liye sadhoowad dr.monika ji

Unknown said...

होम रेमेडी (चेहरा सुन्दर बनायें )
=======================
चेहरे को सुन्दर बनाने के लिए हम क्या कुछ नहीं करते,बाज़ार नए-२
प्रोडक्ट से भरा पड़ा है .क्या लगायें ,क्या छोड़े,हर प्रोडक्ट के बड़े-२ वादे.
लेकिन केमिकल से बने इन प्रोडक्ट्स से समय पूर्व ही चेहरा बड़ी उम्र
का नज़र आने लगता है.फिर उसे ढकने के लिए ,फिर कोई नया प्रोडक्ट.
या फिर पार्लर का सहारा ,दुनिया भर का खर्चा,समय की बरबादी,
के साथ सेहत की बरबादी सो अलग.
इतना करने पर मन का मायूश होना फ्री में मिलता है.
तो क्या करे ???????


एक नुस्का ,एक- दो सप्ताह भर आजमायें और फर्क देखें.
अलोएवेरा की ताज़ा पत्ती थोड़ी सी तोड़ लें .उसमें से निकालने वाला
रस चेहरे पर लगाना शुरू कर दें .१०-१५- मिनट बाद सूख जाने पर
पानी से धो लिया करें .फर्क देखें और प्रकृति को धन्यवाद देते नहीं
थकेंगे

रचना दीक्षित said...

बहुत सार्थक सोच है.लाजवाब प्रस्तुति

Dr Varsha Singh said...

सफलता की नयी इबारत लिख रही महिलाओं के पीछे भी किसी न किसी रूप में पुरुषों का सहयोग जरूर है......

बिलकुल सही कहा आपने.... सफल स्त्री के पीछे भी अक्सर पुरुष होता है .

कमलेश खान सिंह डिसूजा said...

एकदम यथार्थपूर्ण :
पुरुष और महिला दोनों ही एक एक दूसरे की सफलता में सहायक हैं, दोनों गाड़ी के दो पहिये हैं...

Unknown said...

समाज में सदभाव ओर सफलता एक दूसरे के बिना अपूर्ण ..बहुत ही प्रेरक कृतज्ञता ..
सादर !!!

Anonymous said...

महिला और पुरुष - ईश्वर के बनाए दो पहलू हैं - यह एक दूजे के पूरक हैं | एक दूसरे की सफलता और असफलता - दोनों ही शेअर्ड होती हैं :)

Sawai Singh Rajpurohit said...

आदरणीय मोनिका जी
बिलकुल सही कहा आपने

संजय भास्‍कर said...

आदरणीय मोनिका शर्मा जी
नमस्कार !
सकारात्मक विचार
निश्चित रूप से यदि हर सफल पुरुष के पीछे स्त्री होती है तो हर सफल स्त्री के पीछे भी पुरुष ही होता है

Unknown said...

Aapne abhi jo likha hai, sahi hai.. aur..
purani kahawat bhi galat nahi hai.. kabhi is navjat ki blog par bhi aaiye, aapka swagt hai..

virendra sharma said...

http://veerubhai1947.blogspot.com/
मंगलवार, २ अगस्त २०११
यौन शोषण और मानसिक सेहत कल की औरत की ....इसीलिए
http://sb.samwaad.com/2011/08/blog-post.h
Thanks for an instant response .

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

aap apni baaton ko bahut sarthak tarike se siddh karne ki koshish ki hai..aapka naam to hai jaana hua..mere blog pe nahi kabhi aapka aana hua..aayiye kabhi agar fursat mein ho to

prritiy----sneh said...

bahut sahi kaha hai, safalta kisi ki bhi ho usmein parivaar ke anya sadasyon ka saath hota hai.

achha lekh likha hai, padhkar achha laga.

shubhkamnayen.

तेजवानी गिरधर said...

मगर प्रचलित तो यह जुमला है कि हर पुरुष की सफलता के पीछे एक औरत का हाथ होता है, कारण ये है कि समाज आज भी पुरुषवादी है

राजन said...

बहुत अच्छा लगा इसे पढकर.आपने दूसरा पहलू भी दिखा दिया.आज बहुत से पुरुष महिलाओं का साथ देना चाहते है और दे भी रहे है.इसलिए नहीं कि उन्हें नारिवादियों से डर लगता है बल्कि इसलिए क्योंकि वो खुद ऐसा करना चाहते है.लेकिन फिर भी ये बदलाव ज्यादा नहीं है और अभी बहुत बदलाव आना बाकी है.

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