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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

01 December 2018

मेहनत और प्रतिबद्धता का मुक्का

 डेलीन्यूज़ में 

 चैंपियन खिलाड़ी एमसी मैरी कॉम ने महिला विश्व मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक हासिल करने के बाद  आंसुओं के साथ कहा कि 'मैं भारत को स्वर्ण पदक के अलावा और कुछ नहीं दे सकती' लेकिन सच तो यह कि देश को गौरवान्वित करने साथ ही मैरी ने भारत की महिलाओं को प्रतिबद्धता और हौसले की सौगात दी है | वे एक माँ और पत्नी की भूमिका का निर्वहन करते हुए ऐसे क्षेत्र में उपलब्धि हासिल कर विश्व चैम्पियन बनीं हैं जिसमें महिलाओं का दखल न के बराबर था | हालाँकि शुरुआत से ही मैरी का सफर  आसान नहीं रहा पर संघर्ष और प्रतिबद्धता के बल पर  उन्होंने मुक्केबाजी की दुनिया में अपना ही नहीं देश का भी नाम रौशन किया है  |  गौरतलब है कि हाल ही में भारत की दिग्गज खिलाड़ी एमसी मैरी कॉम ने  महिला विश्व मुक्केबाजी चैम्पियनशिप के10वें संस्करण में 48 किलोग्राम भारवर्ग का खिताब अपने नाम कर लिया है  | यूक्रेन की युवा खिलाड़ी हाना ओखोटा को 5-0 से मात देकर मैरी कॉम, स्वर्ण पदक  हासिल कर  छह वर्ल्ड चैंपियनशिप जीतने वाली दुनिया की पहली खिलाड़ी बन गई हैं |  इससे पहले मैरी  ने साल 2002, 2005, 2006, 2008 और साल 2010 में विश्व चैंपियनशिप का खिताब  अपने नाम किया था |  इसके अलावा  मैरी  2001 में रजत पदक भी जीत चुकी हैं।  मैरी कॉम अब  विश्व चैम्पियनशिप (महिला एवं पुरुष) में सबसे अधिक पदक जीतने वाली खिलाड़ी भी बन गईं हैं | 
 दैनिक जागरण में 
हाल ही में भारत की मेजबानी में 70 देशों की 300 महिलाएं दिल्ली में आयोजित अन्तराष्ट्रीय मुक्केबाजी के महाकुम्भ में शामिल हुईं तो भारतीय महिला मुक्केबाजों से काफी उम्मीदें लगी हुईं थी   | गौरतलब है कि 12 साल पहले जब हमारा देश इसका मेजबान था तब कोई विशेष कामयाबी हमारे हिस्से नहीं आई थी | महिला मुक्केबाजी जैसी स्पर्धा में भारत की स्थिति बेहद कमज़ोर थी | यह होना लाजिमी भी था क्योंकि इस क्षेत्र में महिलाओं का आगे आना अनगिनत  मुश्किलों को पार करने जैसा था |  हमारे सामाजिक-पारिवारिक ढांचे में शारीरिक सौष्ठव वाली इस खेल में बेटियों का दखल सहज स्वीकार्य नहीं था | लेकिन हालिया बरसों में भारत में विश्वस्तरीय महिला मुक्केबाज़ खिलाड़ी अपनी पहचान बना रही हैं | यही वजह है कि अब इस खेल में बेटियों की भागीदारी को लेकर भी लोगों की राय बदल रही है | तीन बच्चों की मां और भारत की स्टार महिला मुक्केबाज एमसी  मैरी कॉम खुद मणिपुर में बॉक्सिंग अकादमी चलाती हैं | कभी खेतों  में काम करते हुए अपना बचपन बिताने वाली देश की इस बेटी ने अपने से 13 साल छोटी प्रतिद्वंदी को हराकर छठी बार विश्व महिला बॉक्सिंग में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचा है । मैरी  की  साल 2008 में विश्व मुक्केबाजी और 2014 में एशियन गेम्स में  गोल्ड मेडल लाने वाली जीत तो  यकीनन  स्त्रीमन की दृढ़ता की ही बानगी है |  यह सुखद भी है और सराहनीय भी कि ये दोनों ही स्वर्ण पदक मैरी कॉम ने माँ बनने के बाद  हासिल किये थे | तभी तो उनकी कामयाबी के सफ़र ने महिला बॉक्सिंग के प्रति देश भर में लोगों का नजरिया भी बदला है | यहाँ तक कि  युद्ध की विभाषिका के हालातों से जूझते हुए अपने  परिवार से छुपकर मुक्केबाजी करने वाली सोमालिया की रमाला अली भी मैरी कॉम को अपनी प्रेरणा मानती हैं |

भारत में जहाँ एक आम खिलाड़ी के लिए संघर्षपूर्ण स्थितियां हैं, वहां मुक्केबाजी जैसे क्षेत्र में तो बेटियों के लिए पहचान बनाना और भी कठिन है | लेकिन कुछ सालों हमारे यहाँ कई महिला मुक्केबाज़ पूरी शिद्दत से इस क्षेत्र में आगे आ रही हैं | सुखद है इनके साथ पारिवारिक सहयोग भी है | खुद मैरी कॉम भी अपनी  कामयाबी के लिए अपने  पति  ओनलर के सहयोग और साथ की बात करती रही हैं | हमारे यहाँ आज भी  बड़ी संख्या में महिलाएं  पारिवारिक दायित्वों के कारण अपने काम से दूरी बना लेती हैं | महिला खिलाड़ियों के जीवन में तो मातृत्व और वैवाहिक  जीवन की जिम्मेदारियों के चलते यह विराम बहुत आम है |  क्योंकि इस क्षेत्र ने सिर्फ नियत समय की ड्यूटी ही नहीं करती होती बल्कि खुद को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ और सक्रिय रखना भी जरूरी है |  ऐसे में अपनों का सहयोग और भरोसा किसी भी क्षेत्र में महिलाओं  के लिए आगे बढ़ने की राह सहज  बनाता है | साथ ही समाज का बदलता नजरिया भी बॉक्सिंग की दुनिया में बेटियों के दखल की बड़ी वजह है | आज पिंकी जांगड़ा, सीमा पूनिया, लवलीना बोरगोहेन , स्वीटी बूरा और सिमरनजीत कौर जैसी विश्वस्तरीय महिला मुक्केबाज़ भारत की पहचान बना रही हैं | भारत में ही आयोजित 10वीं  विश्व महिला बॉक्सिंग चैंपियनशिप में भी भारत की चार बॉक्सर सेमीफाइनल में पहुंची हैं  |  इनमें  सिमरनजीत कौर और लवलीना  ने  कांस्य पदक अपने नाम किये हैं | जबकि सोनिया ने  रजत पदक अपने नाम किया | महिला मुक्केबाजी के इस महाकुम्भ में मैरी कॉम के हर भारतीय को गर्वित करने वाले विश्व रिकॉर्ड के साथ एक गोल्ड, एक सिल्वर और दो ब्रॉन्ज मेडल देश की झोली में आये हैं |

जिस देश में  खेल के मैदान में तिरंगा लहराने का सपना देखने वाली बेटियों के लिए उलझनें आर्थिक ही नहीं सामाजिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करने वाली भी होती हैं, वहां अभावों और विषमताओं की आग में तपकर आगे आने वाली मैरी कॉम जैसी माँओं और बेटियों का सफ़र यकीनन प्रेरणादायी है | जीतने के जज़्बे के मायने समझाने वाली ऐसी कहानियाँ बताती हैं कि बेटियाँ किसी भी मोर्चे पर कम नहीं हैं | इतनी परेशानियाँ उठाकर वे आगे बढ़ सकती हैं तो जरा सोचिये कि सहजता, सुरक्षा और समानता का माहौल पाकर वे सफलता के किस शिखर को छू सकती हैं | मुक्केबाजी जैसे क्षेत्र में भारत की महिलाओं का बढ़ता दबदबा कई मायनों में एक तयशुदा सोच से बाहर आने की बानगी है | इन महिला खिलाड़ियों के संघर्ष को देखकर आशा और विश्वास को एक नया आधार मिलता है | विशेषकर मैरी कॉम की सफलता  तो आत्मविश्वास, जीतने का जज़्बा, माँ का समर्पण और एक स्त्री के मन की दृढ़ता का उदाहरण है, जो कई बेटियों को आगे बढ़ने की प्रेरणा देगा | 

7 comments:

Kailash Sharma said...

मैरी कॉम देश के लिए एक प्रेरक महिला हैं...बहुत सुन्दर आलेख..

radha tiwari( radhegopal) said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (03-12-2018) को "द्वार पर किसानों की गुहार" (चर्चा अंक-3174) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी

गिरधारी खंकरियाल said...

भारत मे यों तो नारियो के कई बलशाली व वैभवशाली अध्याय है, उनमें मैरी कौम ने एक नया अध्याय जोड़ दिया है। वे बधाई के पात्र है।

ब्लॉग बुलेटिन said...

आज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की २२५० वीं बुलेटिन ... तो पढ़ना न भूलें ...


यादगार मुलाक़ातें - 2250 वीं ब्लॉग बुलेटिन " , में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

गोपेश मोहन जैसवाल said...

पैसे कमाने में भले ही विराट कोहली और महेंद्र सिंह धोनी सभी भारतीय खिलाड़ियों आगे हैं लेकिन तिरंगे को ऊंचा उठाने में हमारी महिला खिलाड़ी, पुरुष-खिलाड़ियों से कहीं आगे हैं.
मोनिका शर्मा ने अपने प्रेरणादायक आलेख में मैरीकॉम और महिला-मुक्केबाज़ी के विषय में बहुत उपयोगी और रोचक जानकारी दी है.

दिगम्बर नासवा said...

प्रेरणा देती है मेरी कोम की जीवन गाथा ...
आज की नारी कमजोर नहीं ... जुझारू है और स्वयं अपना मार्ग बनाना जानती है ....
बहुत बधाई की पात्र है मेरी ....

राजेश ढांडा said...

सधा हुआ लेखन। बहुत बहुत शुभकामनाएं।

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