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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

30 October 2019

क्यों है दायित्वबोध की कमी

राजस्थान के बीकानेर से सामने आये एक मामले में डाक विभाग  के एक डाकिये ने  बीते एक साल से डाक नहीं बांटी थी  | डाकिये के घर में  10 बोरी एटीएम कार्ड,  पैन कार्ड, चेक बुक, शोक संदेश, सरकारी नौकरी के नियुक्ति पत्र, आधार कार्ड, इंश्योरेंश के दस्तावेज़ और शादी के कार्ड मिले हैं  |  पोस्ट ऑफिस से डाक ले जाकर  वितरित करने के बजाय वह अपने घर पर बोरों में भर कर रखता जा रहा था |  काफी समय से उस क्षेत्र के  लोगों की शिकायत थी कि उन्हें डाक नहीं मिल पा रही है |  शिकायत जब उच्च स्तर तक पहुची तो जांच टीम भी  बोरों भरे में  सामान को देख कर  हैरान रह गई | 

दरअसल, यह वाकया अपने काम के प्रति जिम्मेदारी के भाव के अभाव को दर्शाता है  | अफ़सोस कि यह देश में एक अकेला मामला भी नहीं है | दफ्तर पहुँचने में लेटलतीफी करनी हो या दायित्व निर्वहन की राह में बच निकलने के रास्ते तलाशना, ऐसे लोग लगभग हर क्षेत्र में मिल जाते हैं |  सार्वजानिक सेवाओं  से जुड़े  कर्मचारी इस मोर्चे पर आम लोगों को सदा से ही निराश करते आये हैं | काम के प्रति टालमटोल की आदत हमारे वर्क कल्चर हिस्सा बन चुकी है | ऑफिस  में  जानबूझकर अपने  दायित्व निर्वहन में पीछे रह जाना तो बहुत से  कर्मचारियों  के लिए मानसिक संतुष्टि  देने वाली आदत है | उन्हें यह  सोचना भी जरूरी नहीं लगता कि उनकी ऐसी कार्यशैली कितने लोगों के जीवन को प्रभावित करती है | बीकानेर से सामने आये इस  मामले में भी पोस्टमैन की गैर-जवाबदेही की हरकत के कारण हजारों लोगों को  नुकसान हुआ होगा  |  नियुक्ति पत्र समय पर नहीं  मिलने से कई बेरोजगार युवा अपनी नौकरी से वंचित हो गए होंगें  | कितने ही लोग अपने नाते रिश्तेदारों के शोक और शादी समारोह में शामिल नहीं हो  पाए होंगें । कई तरह के जरूरी कागजात लोगों तक नहीं पहुंचे होंगें, जो उनके लिए बेहद उपयोगी थे |यह कटु सच है कि देश और समाज को बदलने की बड़ी-बड़ी बातों में अव्वल रहने वाले भारतीय  सबसे बड़ी चूक उस जिम्मेदारी को निभाने में करते हैं, जो बतौर नागरिक उनके हिस्से आती है |  ( NBT में प्रकाशित लेख का अंश  )  

10 comments:

Rohitas Ghorela said...

घूसखोरी की पहली सीढ़ी ही जवाबदेही या जिम्मेदारी की ना समझी है। सही कहा आपने देश मे अनगिनत मामले हैं ऐसे। लेकिन अब सुधार होने लगा है। लोग जागरूक होने लगे हैं। इसमें आप जैसे साहित्यकारों का अहम योगदान है। सार्थक लेख।
आभार।
यहाँ स्वागत है 👉👉 कविता 

Anita Laguri "Anu" said...

जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (01-11-2019) को "यूं ही झुकते नहीं आसमान" (चर्चा अंक- 3506) " पर भी होगी।

आप भी सादर आमंत्रित हैं….

-अनीता लागुरी 'अनु'
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viratthinktank said...

Madam aapke ke ish lekh ko padhkar mujhe bada ascharya ho rha hai.. kya mai ish lekh ko apne dusre sathio ke sath sajha kar sakta hu..

मन की वीणा said...

बहुत सही आंकलन करता लेख, आराम तलबी, आलस्य, गैरजिम्मेदाराना रवैया बहुत से क्षेत्रों में देश और समाज की उन्नति में साफ बाधक हो रहा है ।
यथार्थ लेखन।

Anonymous said...

"जवाबदेही की यह सोच भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा सकती है | कहना गलत नहीं होगा कि इस काम के प्रति लचरता का अगला पायदान घूसखोरी ही है"

डॉ. मोनिका शर्मा said...

आभार आपका

डॉ. मोनिका शर्मा said...

जरूर |

गिरधारी खंकरियाल said...

नैतिक पतन की पराकष्ठा है।

Lao Tzu said...

सच में बहुत उम्दा

कबीर के दोहे said...

शुभ कामनाये

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