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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

07 January 2016

पीड़ादायी है जवानों का जान गंवाना


देश के लिए शहीद होना सेना के जवानों का सबसे बड़ा बलिदान है। पठानकोट एयरफोर्स स्टेशन पर हुए आतंकी हमले में देश ने अपने 7 वीर जवानों को खो दिया । इस आतंकवादी हमले के बाद  सोशल मीडिया से लेकर आमजन के घर-परिवारों तक  जवानों के बलिदान और वीरगाथा की बात हो रही हैं । हों भी क्यों नहीं, अपनी सरजमीं की सुरक्षा के जीवन का बलिदान देने वाले जवान हैं ही नमन योग्य ।  यह दुर्भाग्य ही है कि  देश  के होनहार जवानों के जाने पर  हर बार यूँ ही आंखें  नम होतीं हैं । ह्रदय विदीर्ण होता है और  मन में आक्रोश भर जाता है । क्योंकि जवानों का यूँ असमय चले जाना केवल राजनीतिक रीति- नीति के आधार पर  समझी जाने वाली बात नहीं । ऐसे हमलों में सेना के जवानों का शहीद होना पूरे समाज के मनोविज्ञान को प्रभावित करता है ।  देश की सुरक्षा से जुड़े  चिंतनीय हालात  सामने लाता है । उन परिवारों पीड़ा दर्शाता है जिन्होंनें देशसेवा के लिए अपने घर का एक सदस्य खो दिया होता है । हालाँकि यह भी एक बड़ा सच है  कि ऐसे हमलों में जान  गंवाने वाले सैनिकों के परिवारों का दर्द उनके अपनों के अलावा  कोई नहीं समझ सकता ।   

जिस तरह से दुनियाभर में खौफ़नाक़  फिदायीन हमले बढ़ रहे हैं उनसे जूझने वाले सशस्त्र बालों की समस्याएं भी बढ़ रही हैं । बरसों से आतंक का दंश झेल रहे हमारे देश के जवानों के लिए  भी आये दिन होने वाले इन जानलेवा हमलों से कई समस्याएं खड़ी हो रही हैं । यह अफसोसजनक ही है अपनी ज़िंदगी को दूसरों की ज़िंदगियाँ  छीन लेने के लिए लगा देने वाले चंद सिरफिरों की वजह से जवानों के पूरे परिवार जीवन भर का दंश भोगने को अभिशप्त हो जाते हैं ।  हर साल ऐसी मुठभेड़ों में कितने ही सैनिक देश और आमजन की सुरक्षा के लिए अपनी जान  न्यौछावर कर देते हैं । हर  बार  देश की जनता और उनके परिवारों का मन इस पीड़ा भोगता है । यह सच है कि शहीद हुए जवानों के परिवारों की  मदद के लिए सरकारी स्कीमें चलाई जाती हैं ताकि उनके परिवार अच्छी जिंदगी बसर कर सकें और देश के जान देने वालों के अपनों के परिवार को चलाने में किसी किस्म की कोई दिक्कत पेश आए  लेकिन  सैनिकों के परिवारजनोंके   जीवन से जाने वाले इंसान की कमी कभी नहीं  भरी जा सकती । उनका परिवार जीवन भर के लिए इस दुःख को जीने के लिए को अभिशप्त हो जाता है । 

यह एक बड़ा सवाल है कि देश भर में अपनी ड्यूटी के दौरान वतन की रक्षा  करते हुए शहीद होने वाले  इन बहादुरों पर देश को गर्व तो  है  पर इन्हें हम कब तक यूँ ही खोते रहेगें ?  इतने काबिल और होनहार अफसरों को खोना उनके परिवारों के लिए ही नहीं देश के लिए भी बड़ी  क्षति है । पठानकोट एयरफोर्स स्टेशन पर हुए हमले में शहीद सूबेदार फतेह सिंह 1995 में दिल्ली की कॉमनवेल्थ शूटिंग स्‍पर्धा में स्वर्ण और रजत पदक हासिल किये थे  । वे एक बेहतरीन शूटर और बहादुर आफिसर थे । कॉमनवेल्थ गेम्स में निशानेबाजी में स्वर्ण और रजत पदक सहित 69 मैडल जीतने वाले फतेहसिंह निशानेबाजी का हुनर युवाओं को भी सिखाना चाहते थे।  इसके लिए वो पंजाब में खुद का शूटिंग रेंज बनाने की तमन्ना रखते थे । पठानकोट एयरबेस में एनएसजी की टीम का प्रतिनिधित्व कर रहे निरंजन कुमार भी इसी हमले में शहीद हुए हैं ।  युवा ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल निरंजन कुमार के परिवार का दुःख समझना किसी के लिए कठिन नहीं क्योंकि वे अपने पीछे  पत्नी  दो साल की बेटी छोड़ गए हैं । मासूम बच्ची के सिर से पिता का साया उठा गया यह पीड़ा हर देशवासी के मर्म भेदने वाली है ।एयरबेस के हमले में आतंकियों से जूझते हुए जान देने वाले गुरसेवक सिंह का वैवाहिक जीवन मात्र एक महीने पहले शुरु हुआ था । महज चौबीस साल के गुरसेवक सिंह आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद  हुए हैं  । कैसी विडंबना है कि बिना ख़ता की  सज़ा  के सामन हमारा देश और  शहीदों के परिवार आतंक के इस दर्द को  झेलने को विवश हैं । 

ऐसी घटनाओं में जवानों को खोना ऐसी क्षति जिसकी भरपाई संभव ही नहीं । सरकार भले ही शहीदों के परिवारों की  चिंता  भी करती है और उनकी संभाल के लिए कई योजनाएं भी चलाती है लेकिन इस कमी को कभी पूरा नहीं किया जा सकता है । यह वाकई कष्टकारी और चिंतनीय है कि  कुछ लोगों की विकृत मानसिकता कितने ही परिवारों को सदा के लिए पीड़ा और दर्द दे जाती है|  ( राज एक्सप्रेस के सम्पादकीय पृष्ठ  पर  प्रकाशित  मेरे लेख से)       

                                                    

19 comments:

Himkar Shyam said...

सटीक विश्लेषण। देश के लिए जान लुटाने वाले इन जवानों को नमन। इस हमले का सबसे बड़ा सबक यह है कि सुरक्षा में लगी तमाम एजेंसियों के बीच समन्वय को पुख्ता किया जाए और ऐसे मामलों में किसी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाए।

गिरधारी खंकरियाल said...

वास्तव मे स्थिति चिन्ताजनक है। शहीदो को सादर श्रद्धा सुमन व नमन अर्पित करते हैं।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (09-01-2016) को "जब तलक है दम, कलम चलती रहेगी" (चर्चा अंक-2216) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Asha Joglekar said...

देश के लिये जाँ निसार करने वाले इन नौ-जवानों को सिर्फ नमन ही नही हमारी मदद भी चाहिये। सरकार घोषणाएँ तो बहुत करती है पर इनके परिवारों तक मदद पहुँचते पहुँचते सालों लग जाते हैं। हमें आवाज ुढानी चाहिये कि सरकार इन के लिये तुरंत कारवाई करे। अपनी लालफीताशाही ना चलाये। आतंकवाद का बहादुरी से मुकाबला करते हुए शहादत पाने वाले सूबेदार फतह सिंग, लेफ्टिनंट कर्नल निरंजन कुमार, गुरसेवक सिंह समेत सभी जवानों को शतशः नमन।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

हार्दिक आभार

आकाश सिंह said...

Bahut hi sanjidagi se likhi hue, dil ko jakhjhor denewali Ghatna !!
Shahido ko sradhanjali..

JEEWANTIPS said...

सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार! मकर संक्रान्ति पर्व की शुभकामनाएँ!

मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...

सदा said...

Padha tha link pe ja k bhi jb post hua tha .....behad sarthak or sashakt likhha hai aapne.....

Kailash Sharma said...

ऐसी घटनाओं में सैनिकों की क्षति निश्चय ही दुखद है...नमन इन वीर शहीदों को..

abhi said...

Sahi likha hai aapne monica ji. Aakhir kab tak ye silsila chalta rahega. Iska koi na koi upaaye to nikalna hi chahiye. Hum kab tak apne bhaiyon ki kurbaaniyon ko sahenge. Humari suraksha mein wo din raat tainaat rahte hain. A Big salute to them!

कविता रावत said...

सार्थक विचारशील प्रस्तुति ...

कविता रावत said...

आखिर कब तक ?? कई सवाल उठकर उन्हें अनुत्तरित ही रहना होता है ....
सार्थक चिंतनशील प्रस्तुति

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

एकदम सही यक्षप्रश्न उठाती हुई पोस्ट......

Satish Saxena said...

विचारणीय पोस्ट , मंगलकामनाएं आपको !

शुभा said...

सही कहा आपने कब तक हम अपने वीर जवानों को ऐसे ही खोते रहेंगे ।सवाल तो कई उठते हैं लेकिन जवाब कहाँ ?,

महेन्‍द्र वर्मा said...

सही प्रश्न उठाया है आपने । समाज, देश और शहीदों के परिजनों के लिए सचमुच बहुत पीड़दायक है यह ।

दिगम्बर नासवा said...

सार्थक विचारनिए चिंतन का विषय है ये ... क्यों ऐसा माहोल समाज, दुनिया में होता जा रहा है की ऐसी नौबत आये की जवानों को अपनी जान गवानी पड़े ... पता नहीं संसार किस दिशा में जा रहा है पर इसका अंत नज़र नहीं आ रहा ...

Amrita Tanmay said...

ऐसी विडंबना बस आंखों को डबडबा जाती है ।

अरुण चन्द्र रॉय said...

प्रासंगिक और समीचीन लेख.

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