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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

05 April 2013

फोन स्मार्ट और यूज़र स्लो

एक समय था जब कई सारे फोन नंबर मौखिक याद थे । इतना ही नहीं कई पते ठिकाने और अन्य आम जीवन से जुड़ी जानकारियां सहेजने को मस्तिष्क स्वयं ही तत्पर रहा करता था । कभी इसके  लिए विशेष श्रम भी नहीं करना पड़ता था  । कारण कि कोई और विकल्प ही नहीं था अपने दिमाग को काम में लेने के अलावा  । मोबाइल  फोन के आविष्कार ने यह समस्या हल की । पहली बार मोबाईल लिया तो अच्छा ही लगा था । सब कुछ कितना सरल हो गया था । अपनी स्मरणशक्ति की थाह मापने की तब आवश्यकता ही नहीं रही थी ।  

तकनीक का विकास कहीं ठहरता नहीं । भले ही  हमारी आवश्यकताएं पूरी हो रही हों, हम जो है उसी में संतुष्ट हों । फिर भी कुछ ना कुछ नया हमारे समक्ष परोसा ही जायेगा । इसी तर्ज़ पर संचार की दुनिया में  कुछ साल पहले समार्ट फोन भी मोबाइल के मायावी संसार को और मायावी बनाने के लिए आ पहुंचा । भारत ही नहीं वैश्विक स्तर पर भी इसे हाथों हाथ लिया गया । हो भी क्यों नहीं ? स्मार्ट फोन का सुंदर संसार हथेली में सहेज कर रखना किसे नहीं भाता । सभी को लगा मानो संसार भर की सूचनाएं और त्वरित सुविधाएँ  जैसे टीवी, कम्प्यूटर, केलकुलेटर,  घड़ी,  रेडियो सबको एक साथ मुठ्ठी में भर लिया हो ।

नाम और फोन नंबर के अलावा भी अब तो हर जानकारी हमारी अँगुलियों की सीमा में आ गयी । हम सबका आत्मविश्वास भी बढ़ गया । चाहे जो जानना हो , सब कुछ पहुँच में आ गया । ध्यान देने योग्य बात ये रही कि इस दौरान  तकनीक पर  हमारा भरोसा जितना बढ़ता गया अपने आप के ऊपर से उसी अनुपात में कम भी होता गया । अब अगर कुछ स्मरण भी रहता तो भी हमेशा हथेली में रहने वाले समार्ट फोन से जानकारी लेकर प्रमाणित कर लेना अनिवार्य बन गया । विश्वास ही नहीं होता कि जो फोन नंबर या किसी का अता-पता हमारे मस्तिष्क में सुझाया है, वो सही भी हो सकता है । जैसे-जैसे समय बीतता गया हमारे हाथ का फोन और स्मार्ट होता गया और हम स्लो । 


हमारी दिखावा संस्कृति को भी स्मार्ट फोन की उपलब्धता खूब भायी । इसकी वजह भी थी । आमतौर पर  दूसरे महंगें टेक्नीकल गैजेट्स घर पर ही विराजमान रहते हैं । कहकर बताना पड़ता है कि इन दिनों क्या और कितने का खरीदा है । जबकि स्मार्ट फोन सदा साथ चलने वाला गैजेट है । तभी तो मुठ्ठी में भरी आर्थिक हैसियत की बानगी को बिना ज़रुरत भी अपनाया गया । आवश्यकता के लिए नहीं संतुष्टि के लिए । संतुष्टि जो सीधे-सीधे हमारी प्रतिष्ठा से जुड़ी थी । कारण कोई भी हो हम जितना स्मार्ट फोन को अपनाते गए वो उतना ही निखरकर हर साल हमारे सामने आता रहा। स्मार्टफोन की स्मार्टनेस बढ़ती गयी और हमने उसे अपना भर लेने में ही अपने आप को स्मार्ट समझ लिया । तकनीक के विस्तार में हमारा मस्तिष्क कितना संकुचित हुआ इतना विचार करने का समय भी नहीं दिया स्मार्टफोन ने । 

सुना है कि अब तो एक ऐसा स्मार्ट फोन भी बाज़ार में है जो पानी में भी बेकार नहीं होता । ऐसे में कई बार सोचना पड़ता है कि स्मार्ट फोन तो ऐसा जो पानी में  भी ख़राब नहीं होता और हम इतने ख़राब हो चले हैं कि डूबने भी लगें तो अपना समार्ट फोन ही टटोलेंगें कि अब क्या किया जाय ? कहाँ से क्या खोज कर सहायता ली जाय ? कुछ  इसी तरह का एक दूसरा स्मार्ट फोन है जिसे हम अपनी दृष्टि मात्र से नियंत्रित कर सकते हैं । यह तकनीकी सफलता का चरम  ही कहा जायेगा कि एक ऐसा गैजेट भी आखिर आ ही पहुंचा जो हमारी नज़रों के इशारों पर चलेगा । हम जो स्वयं को अपने अधीन रखना भूलते जा रहे हैं।  

निर्भरता की सीमा के पार तकनीक पर निर्भरता । हमारे घर का, अपनों का फोन नम्बर भी हमें मशीन बताये तो समझ ही सकते हैं कि कितने अधूरे हैं हम इन गैजेट्स के बिना । तकनीक की प्रगति से भिन्न कई सारे पहलू हैं इस  यांत्रिक निर्भरता के ।  निश्चित रूप से ये सभी पहलू सकरात्मक तो नहीं हैं। स्मार्टफोन जैसे गैजेट्स के चमचमाते मायावी संसार में हम स्वयं ही धुँधले  हुए जा रहे हैं । तकनीक की विकास यात्रा में हमारा अपना यूँ पिछड़ना अखरता है कभी कभी । 

51 comments:

अज़ीज़ जौनपुरी said...

aap sahi kah rahi hain,

Rohitas Ghorela said...

विज्ञान एक वरदान के साथ-साथ अभिशाप भी हैं .. स्मार्ट फोने हमारी समरण शक्ति पर हमला बोल रहा हैं।
बेहद विचारणीय लेख।

मेरे ब्लॉग पर भी आइये ..अच्छा लगे तो ज्वाइन भी कीजिये
पधारिये आजादी रो दीवानों: सागरमल गोपा (राजस्थानी कविता)

ओंकारनाथ मिश्र said...

इसके अच्छे पहलू तो हैं ही पर तकीनकी विकास के साथ हमारे ज़िन्दगी में चैन के पल कम होते गए हैं. अब दिन भर फ़ोन ईमेल एस एम एस..दो पल चैन के बिन फ़ोन बजे मुश्किल होता जा रहा है.

amit kumar srivastava said...

मानवीय संवेदनाओं और वेदनाओं को समाप्त करते ये उपकरण .....।

बिलकुल सच और सही बात ।

वाणी गीत said...

ये सच है की आधुनिक तकनीक हमारी स्मरण शक्ति को लील रही है , हम कुछ याद नहीं रखते , गूगल है न !

Amrita Tanmay said...

अखरता तो है पर अकड़ है कि कम नहीं होता है ..

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

जीवन तो सुगम हो रहा है पर दिमाग़ सहीं में आरामतलब होता जा रहा है

Yashwant R. B. Mathur said...


कल दिनांक 07/04/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!

ashish said...

तकनीक पर निर्भरता शायद हमारी मस्तिष्क की निर्भरता पर भारी पड़ रही है . ये भी सच है की बिना जरुरत के भी लोग केवल दिखावे के लिए गजेट्स का प्रयोग करते है.

ANULATA RAJ NAIR said...

सटीक बात.....
जैसे कोई baby फ़ूड सरेलेक खा रहें हों...बिना पकाए,बिना चबाये...बिना मेहनत!!

अनु

Satish Saxena said...

सही कहा आपने ..
हमारी आत्मनिर्भरता घटी है !

Saras said...

वाकई ..हमारी स्मरण शक्ति अब जवाब दे गयी है ...सही तो है शरीर के अनावश्यक अंग जैसे झड जाते हैं...वैसे ही न इस्तेमाल करने पर उनकी शक्ति क्षीण होती जाती है ....बहुत सुन्दर और कॉम्प्रेहेंसिव आलेख......हर पहलू को बखूबी समझा ..पहचाना, उसका सही विश्लेषण और प्रस्तुति ...अति उत्तम...:)

कालीपद "प्रसाद" said...

आदमी स्वभाव से खोजी होते हैं और आलसी भी. उसके खोज ने उसे मदद की तो वह आलसी होते चला गया.
LATEST POST सुहाने सपने
my post कोल्हू के बैल

Rajendra kumar said...

बदलते समय के साथ हमारी तकनीक पर निर्भरता बढती जा रही है,सार्थक आलेख.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सही कहा है ... हम लोग अब स्लो होते जा रहे हैं .... इस समस्या को रोचकता से प्रस्तुत किया है ...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

ये बात सही है हमारी आत्मनिर्भरता घटी है,लेकिन
समयनुसार चलना हमारी मजबूरी है,फिर भी विचारणीय आलेख !!!

RECENT POST: जुल्म

अशोक सलूजा said...

पहले अपनों को भूले ..अब अपने को भूलने की बारी है ...?
शुभकामनायें!

Aditya Tikku said...

badiya-**

संध्या शर्मा said...

सही कह रहे हैं आप इन गैजेट्स पर निर्भरता इतनी बढ़ गई है कि खुद अपना नंबर तक याद नहीं रहता, दिमाग सुस्त होता जा रहा है तकनीकी विकास के दौर में, कमजोर हो रही है याददाश्त...सही विश्लेषण

virendra sharma said...

ई मेल हो या स्मार्ट फोन व्यक्ति की पूरी मानसिकता पर सोने उठने भजन कीर्तन संगीत सुनने पर भी हावी हैं .सर्वयापी माया है मोबाइल फोन .एक बहुत बढ़िया जानकारी विश्लेषण परक आलेख व्यंग्य भी लिए है अपने लघु कलेवर में रूपवाद भी .

Unknown said...

very meaningful article ... magar mujhe lagta hai ki samsya ke sath samadhaan ke bhi ek do point hote to beneficial hota ya ek do aise examples jaha sanchar suvidha ya so called smart fones jawab de gaye ho tab agar dimag se kaam nahi liya jaayega to kya kijyega .. mujhe thought bahut pasand aaya ..is par vichar karne ki jarurat hai aaj ke yug mei ...

विभा रानी श्रीवास्तव said...

हम जो स्वयं को अपने अधीन रखना भूलते जा रहे हैं..
सच्चाई ! सामयिक सार्थक अभिव्यक्ति !!
शुभकामनायें !!

G.N.SHAW said...

मोमबत्ती ज्यो - ज्यो जलती और प्रकाश देती है , उसके पीछे उसका अस्तित्व मिटता चला जाता है |लकड़ी जलेगी और राख ही बचेगी |कुछ - कुछ अंत की ओर .....

Shikha Kaushik said...

YOU ARE VERY RIGHT .

इमरान अंसारी said...

सहमत हूँ मानव खुद की बनाई मशीन पर इतना आश्रित हो गया है की उसका खुद का वजूद खोता जा रहा है......इस मोबाइल की वजह से आप सबसे अलग होकर भी अपने साथ अकेले नहीं रह पाते.......सटीक विषय उठाया आपने हमेशा की तरह :-)

Shalini kaushik said...

isiliye to kahte hain ki science is a good servant but a bad master .बहुत सही कहा है आपने आभार आ गयी मोदी को वोट देने की सुनहरी घड़ी .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MANजाने संविधान में कैसे है संपत्ति का अधिकार-1

Harihar (विकेश कुमार बडोला) said...

तकनीक की प्रगति से भिन्न कई सारे पहलू हैं इस यांत्रिक निर्भरता के । निश्चित रूप से ये सभी पहलू सकरात्मक तो नहीं हैं।.............सार्थक चिंतन।

आपको कभी-कभी पर मुझे हमेशा अखरता है।
आज प्रवीण जी ने अन्‍धेरे और रोशनी वाले लेख में तकनीक के प्रति अपना मोह पु:न दोहराया। आपने तकनीकी की नकारात्‍मकता को साझा कर तकनीक के बाबत मेरे मत को बल प्रदान किया है कि तकनीक सब कुछ नहीं है।

mark rai said...

its impact of over mechanisation...

Unknown said...

और तो और राइटिंग का भी कबाड़ा हो रहा है.....कॉपी पेन हाथ में लेकर बैठे तो विचार नहीं आते, उंगलियों को खिट-पिट की आदत जो हो गई है...

Madhuresh said...

स्मार्ट फोन तो ऐसा जो पानी में भी ख़राब नहीं होता और हम इतने ख़राब हो चले हैं कि डूबने भी लगें तो अपना समार्ट फोन ही टटोलेंगें कि अब क्या किया जाय ? कहाँ से क्या खोज कर सहायता ली जाय ?

हाहा, हास्य-पुट के साथ सार्थक आलेख

rashmi ravija said...

इन गैजेट्स ने नवयुवकों का बहुत नुक्सान किया है...न तो लिखना सीखते हैं न कुछ याद रखना....स्पेल्लिंग चेक है..गूगल है .

Jyoti Mishra said...

डूबने भी लगें तो अपना समार्ट फोन ही टटोलेंगें ...
hehe laughed so hard on that :P

true.. day by day we are becoming more dependent on gadgets...
it ain't bad... but things can go out of hand if it becomes over-dependence
Isn't it :P

जयकृष्ण राय तुषार said...

यथार्थ से रूबरू कराता आलेख |

Maheshwari kaneri said...

सही कहा आपने.. विचारणीय लेख।

Harihar (विकेश कुमार बडोला) said...
This comment has been removed by the author.
Dr. sandhya tiwari said...

हम तो पूरी तरह निर्भर हो चुके हैं स्मार्ट फोन पर लेकिन इसमें वो मधुरता और कॉल आने का इंतजार नहीं है जो पुराने ज़माने के फोन में था

Smart Indian said...

अपन तो तब भी दिमाग पर ज़ोर नहीं डालते थे, अब भी वही हाल है। तब सूची कागज की नोटबुक में थी अब फोन में रहती है।

Vandana Ramasingh said...

और हम इतने ख़राब हो चले हैं कि डूबने भी लगें तो अपना समार्ट फोन ही टटोलेंगें कि अब क्या किया जाय


कहाँ तो अल्झाइमर का इलाज ढूंढना था कहाँ दिमाग को जंग लगने के छोड़ते जा रहे हैं हम

nayee dunia said...

सही कहा आपने ,सुविधाएँ बढ़ी हैं तो नुकसान भी है ...हमारी कल्पनाशीलता भी ख़त्म होती जा रही है हर बात सोचने से पहले ही हाज़िर ..तो फिर हमारा दिमाग़ तो कुन्द होगा ही....

प्रतिभा सक्सेना said...

एक ओर से दिमाग कुंठित होते जा रहे हैं!

अरुन अनन्त said...

आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज रविवार (07-04-2013) के चर्चा मंच 1207 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

रचना दीक्षित said...

गैजेट्स और उनका अनोखे संसार ने हमारा जीवन उनके बिना अधूरा बना दिया है. पता नहीं आगे क्या क्या आने वाला है.

virendra sharma said...

कुछ सीखने की नीयत हो तो दिमाग की स्लेट खाली होनी चाहिए .बेहतरीन उद्धरण .
एक सर्वयापी अवरोध है मोबाइल रचनात्मक कर्म में .सब जगह इसकी मौजूदगी है बेहूदगी की हद तक .कोई भी कार्यक्रम हो मोबाइल की सिग्नेचर टोन व्यवधान पैदा करेगी .

आशा बिष्ट said...

एकदम सही बात ।।।

दिगम्बर नासवा said...

हर तरक्की के अच्छे ओर बुरे पहलू तो होते ही हैं ... बहुत कुछ खुद पे भी निर्भर करता है की कैसे उसे लेना है ...
चिंतनीय विषय है ...

Onkar said...

सही कहा आपने

Jyoti khare said...


उत्कृष्ट प्रस्तुति
सार्थक

आग्रह है मेरे ब्लॉग jyoti-khare.blogspotin
में भी सम्मलित हों ख़ुशी होगी

Arvind Mishra said...

मनुष्य की स्मृति सचमुच क्षीण हो रही है हम इन गैजेट्स के भरोसे हैं और लापरवाह होते जा रहे हैं -यह किसी बड़ी समस्या को न उत्पन्न कर दें! आपने सही ध्यानाकर्षण कराया है !

अजित गुप्ता का कोना said...

मनुष्‍य की ही क्षमता है जो उसने इतना विकास कर लिया है। बस मस्तिष्‍क की प्राथमिकताएं बदल गयी हैं। कभी नम्‍बर याद रखना उसकी प्राथमिकता थी तो आज अन्‍य अनेक कार्य। ऐसे ही चलेगा, विकसित होती दुनिया में।

रश्मि शर्मा said...

बहुत बढ़ि‍या आलेख....यही तो हो रहा है

प्रवीण पाण्डेय said...

यन्त्र के तन्त्र का मन्त्र समझना आवश्यक है। जीवन सरल होना चाहिये, नहीं तो सब व्यर्थ है।

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