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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

28 March 2012

सच का सामना या .....निजता का मोल


आज के दौर में निजता यानि की प्राइवेसी का भी अपना मूल्य है । उस निजता का जो कभी अनमोल हुआ करती थी । तभी तो सच को स्वीकार करने के नाम पर एक आम हिन्दुस्तानी से लेकर जाने माने चहेरों तक, सभी की हिम्मत देखते ही बनती है । इसे  मनोरंजन कहिये  या स्वयं के जीवन के सारे भेद खोलने के मूल्य का खेल,  करना बस इतना है कि आइये और सच को स्वीकारिये । सच, जो आपके अपने जीवन से जुड़ा है । सच ,जिसे  आपने अभी तक किसी अपने से भी साझा न किया हो । 

दर्शकों के मनोविज्ञान को भलीभांति समझने वाले टीवी चेनल्स तो ' दर्शक अपने विवेक से काम लें ' इतना कहकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेते हैं । ऐसे में स्वयं दर्शकों को सचमुच विवेक और सजगता से काम लेना चाहिए । क्योंकि इन कार्यक्रमों को बनाने वाले और इनका हिस्सा बनने वाले तो अपने आर्थिक हित साधने में जुटे हैं । तभी तो जो लोग जीवन भर अपनों के सामने मुखौटा पहने रहते हैं वे टीवी के ज़रिये सबके सामने सच बोलने में जुटे हैं । 

हमारी निजता का संरक्षण हमारी जिम्मेदारी भी है और कर्तव्य भी । ऐसे में मनोरंजन के नाम उसका मोल लगाकर परोसने का काम खूब फल फूल रहा है । अपने निजी जीवन को बेपर्दा करने के लिए मानो होड़ सी लगी है । सच कहने के नाम पर अपने  ही जीवन के किस्से बेचे जा रहे हैं । ऐसा हो भी क्यों नहीं ? , हर सवाल , हर जवाब और हर हर आंसू का तयशुदा मोल जो मिलता है ।

कहीं रियलिटी टीवी के नाम पर घर के झगड़े सुलझाये जा रहे हैं तो कहीं सच कहने के बहाने ऐसा कुछ कहा जा रहा है जो व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर मात्र बिखराव ही ला रहा है । एक समय था जब आम आदमी से लेकर चर्चित चहरों तक , हर कोई यही चाहता था कि उसके जीवन की निजी बातें लोगो के सामने ना आयें । ऐसे में टीआरपी के लिए रचे जा रहे आडम्बर में आम आदमी का यूँ भागीदार बनना मेरी तो समझ से परे है । 

मैं यहाँ टीवी संस्कृति को दोष नहीं देना चाहती क्योंकि हम आमतौर पर अपनी गलतियाँ भी औरों पर मढ़ देने की आदत के शिकार हैं। इन कार्यक्रमों में भाग लेने वाले लोग अपने विवेक से काम क्यों नहीं लेते ? और अगर नहीं लेते तो शायद उसकी भी अपनी वजह है । कभी कभी सोचती हूँ कि इन कार्यक्रमों से जीतने की धनराशी का प्रावधान हटा दिया जाय तो कितने लोग आकर सच कहना चाहेंगें ? मुझे तो यह सच स्वीकारने से ज्यादा जीवन के भेद बेचने का खेल लगता है । 

93 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

जीवन में न जाने कितने तथ्य ऐसे हैं जो मन में ही रहें तो ही सबका हित है..

Madhuresh said...

सही कहा आपने, कुछेक serials के अंश देखकर बड़ा ही अजीब सा लगा eg रोडीज, सच का... TRP के लिए न जाने क्या क्या हो रहा है!
इससे अधिक विडम्बना ये लगी कि 'सुरभि' जैसे serials अब न तो पसंद किये जाते हैं, न प्रसारित हो रहे हैं...

Anupama Tripathi said...

बहुत सार्थक आलेख है ....पैसा कमाने का ध्येय और हमारा विघटित समाज ....जो आम समाज में नहीं हो रहा वो दिखा कर लोगों को बिगडने का रास्ता बताया जा रहा है ...!!
अफ़सोस ...पैसे के पीछे भाग रही है दुनिया ...

Smart Indian said...

@मुझे तो यह सच स्वीकारने से ज्यादा जीवन के भेद बेचने का खेल लगता है
वह भी पैसे के लिये - यदि किसी और पर दोषारोपण के लिये पैसा भी मिले और दूरदर्शन पर दर्शन भी तो कई लोग आराम से आगे आ जायेंगे। :(

Ramakant Singh said...

जीवन के तथ्य मन में ही रहें तो ही सबका हित है

ANULATA RAJ NAIR said...

मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूँ.....
मुझे तो यह सच स्वीकारने से ज्यादा जीवन के भेद बेचने का खेल लगता है...

कोई अपना तमाशा मुफ्त में नहीं बनवाता...

सादर.

Arvind Mishra said...

सच आज यह जरुरत टीवी चैनलों के चलते ज्यादा है की लोग अपने विवेक को जागृत करें !

पी.एस .भाकुनी said...

कदाचित चन्द कागज के टुकड़ों का आकर्षण और प्रलोभन ही प्रतिभागियों को अपनी निजता को सार्वजनिक करने को विवश करता है और ऐसे कार्यक्रमों को बढावा मिलता है......लेकिन दुर्भाग्य से " दर्शक अपने विवेक से काम लें ' कह कर टीवी चैनल भी कही-न-कहीं अपनी जिम्मेदारियों को दर्शकों पर ही थोपते नजर आते हैं...बहरहाल उपरोक्त विचारणीय चिंतन हेतु आभार.............

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

जो मन को अच्छा लगता है वही देखने की कोशिश करता है,दोषी हम सब लोग है,

MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,

Coral said...

बहुत सार्थक लेख मोनिकाजी .... आज के दौर में निजतासे जादा धन रुतबा इन सब का मोल बढ़ गया है... अपना तमाशा बनाकर प्रसिध्ही एव पैसा बनाना एक व्यापार होगया है! इस अधि दौड में हम ये भूल गए है की आज जो बो रहे है उसके कल फल कैसे होंगे !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

दोष उन्ही लोगो का अधिक है जो सम्मिलित होते है, दरह्सल इनके लिए निजता शब्द की कोई महता ही नहीं , पैसा ही सब कुछ होता हैं इन लालचियों के लिए !

रश्मि प्रभा... said...

दोष न टीवी का न बनानेवालों का
अश्लीलता ही चाहिए सबको
जितनी अश्लीलता , उतना मार्केट वैल्यू
टीआरपी देखिये और जानिए
बेसब्री से इंतज़ार करते हैं लोग
........ निजता प्यारी हो तब न
यहाँ तो निजता को भुनाया जाता है
सच के नाम पर
झूठ बेचा जाता है !

Dr.NISHA MAHARANA said...

एक समय था जब आम आदमी से लेकर चर्चित चहरों तक , हर कोई यही चाहता था कि उसके जीवन की निजी बातें लोगो के सामने ना आयें । ab to log janbujh kar aisa karte hain.

मनोज कुमार said...

सब प्रसिद्धि पाने का अपना-अपना तरीक़ा है। हम ही इनके बहकावे में आ जाते हैं।
वैसे यह कोई नई बात तो है नहीं। कई साहित्यकारों ने अपनी आत्मकथा में ऐसे निजी प्रसंगों को सार्वजनिक कर अपनी पुस्स्तकें खूब बिकवाईं।

कुमार राधारमण said...

न जाने ये कैसे लोग हैं जो अपनी समस्या अपनों के बीच न सुलझाकर चैनल के ज़रिए सुलझाना चाहते हैं।सब प्रायोजित है। कार्यक्रम की लोकप्रियता संबंधी दावों की खबरें भी।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

ऐसे सारे शो पैसा कमाने का जरिया हैं ... टी आर पी का खेल है ... स्क्रिप्ट सब लिखी होती है ...जनता बेवकूफ बनती है ...

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत ही अच्छा आलेख


सादर

Yashwant R. B. Mathur said...

कल 30/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

virendra sharma said...

मैं यहाँ टीवी संस्कृति को दोष नहीं देना चाहती क्योंकि हम आमतौर पर अपनी गलतियाँ भी औरों पर मढ़ देने की आदत के शिकार हैं। इन कार्यक्रमों में भाग लेने वाले लोग अपने विवेक से काम क्यों नहीं लेते ? और अगर नहीं लेते तो शायद उसकी भी अपनी वजह है । कभी कभी सोचती हूँ कि इन कार्यक्रमों से जीतने की धनराशी का प्रावधान हटा दिया जाय तो कितने लोग आकर सच कहना चाहेंगें ? मुझे तो यह सच स्वीकारने से ज्यादा जीवन के भेद बेचने का खेल लगता है ।
सच बेचना सच का सौदा करना एक खेल एक मनोरंजन बन गयाहै .यही बदलते दौर का सच है .अब लोग अपना समय ही नहीं सब कुछ बेचने को तत्पर हैं .ट्यूशन खोर अपना समय बेचता है (ज्ञान नहीं ),गरीब अपनी किडनी ,नाम के लिए मशहूरी के लिए कुछ भी करेगा ऐसे भी हैं कई (डर्टी पिक्चर का सच ),सच में अब सत्व नहीं रहा नमक में नमक जिसका मर्जी नमक खाओ और नमक हरामी करो ,नमक हराम बन जाओ यह नए मिजाज़ का दौर है -"कोई हाथ भी न मिलाएगा ,जो गले मिलोगे तपाक से ,ये नए मिजाज़ का शहर है ,ज़रा फासले से मिला करो ."अच्छी विचार उत्तेजक पोस्ट .

सदा said...

बहुत सही कहा है आपने ... सार्थकता लिए हुए सटीक लेखन ...आभार ।

अशोक सलूजा said...

ये इंसान का जीवन है ...अच्छा-बुरा ,सच-झूठ ,बचपन से बुढ़ापे तक ..एक लम्बा सफ़र ...
बचपन की शरारते ,जवानी की शोखियाँ ...
कुछ शरारते ,कुछ शोखियाँ और कुछ सच सिर्फ अपनी ही निजि सम्पति होनी चाहिए ...
उसीमे सब का भला है ....!
बाकि सब पैसे का खेल !
खुश रहें !

Brijendra Singh said...

सत्य के सत्व को नहीं दिखा सकते..यह दर्शकों के विवेचनशक्ति पर ही निर्भर करता है..
बेहद सार्थक लेख लिखा है आपने..आभार !!

kshama said...

मुझे तो यह सच स्वीकारने से ज्यादा जीवन के भेद बेचने का खेल लगता है ।
Bilkul sahee kah rahee hain aap!

Anonymous said...

सार्थक आलेख !

avanti singh said...

bahut achcha lekh hai,kafi ajib hai ye sab par kya kiya jaa sakta hai

Sunitamohan said...

ek baar suna tha ki isi programm me ek shakhs ne apne vivahettar sambandhon ki baat kah dali thi aur baad me uski patni ne khudkushi kar li thi, jane ye sach tha ya ye bhi ek tarika tha program ko promote karne ka......? Magar ek baat samajh nahi ata ki ye program chalte kaise hain jabki jisse bhi maine sach..., rakhi ka....boss....jaise karykramon k baare me baat ki, usne inhe napasand hi kiya!

Bhawna Kukreti said...

कल के अंश देखकर बड़ा ही अजीब सा लगा, समाज में कहीं- कहीं जो हो रहा है ...... देखकर सच में बड़ा अफ़सोस है. लेकिन ये भी विडम्बना है कि अपना तमाशा बनाकर हमारा विघटित समाज पैसे के पीछे भाग रहा है .

shikha varshney said...

अब तो जितना खुलोगे उतना महंगा बिकोगे.

Shikha Kaushik said...

sach ke nam par n jane kya kya kiya jaa raha hai .sarthak post .aabhar

Dr. sandhya tiwari said...

आपने बहुत ही अच्छा सवाल उठाया है मोनिका जी , ये रियलिटी शो ऐसे बेहुदे शो परोसने लगे है कि इनसे मन उब चूका है

Anonymous said...

बिलकुल सहमत हूँ आपसे.....टीवी पर अब सिर्फ दिखावा और ढोंग ही बचा है हर जगह यहाँ तक की न्यूज़ भी इनसे अछूते नहीं बचते।

सच कहने से कहीं अधिक सच सुनना कहीं घटक हो जाता है लोगों के लिए कहने वाला तो कह कर खुद को हल्का कर लेता है पर सुनने वालों का विश्वास टूटता है तो सब बिखरता सा चला जाता है .........बहुत ही सार्थक विषय पर सुन्दर पोस्ट।

ashish said...

सब कुछ प्रायोजित है जी . सब कुछ बिकता है की तर्ज पर , सटीक विश्लेषण

सुज्ञ said...

बहुत ही गम्भीर चिंतन!!
दुखद स्थिति है, निजता स्वय सौदागर बन गई है।

अरुण चन्द्र रॉय said...

बहुत सार्थक आलेख है .

Hindi4tech said...

Nice Post...

संध्या शर्मा said...

सच कहा है आपने लोग पैसे और प्रसिद्धि के लिए किस हद तक गिर जाते हैं देखकर विश्वास नहीं होता, बहुत अफ़सोस होता है सब देखकर... सार्थक आलेख के लिए आपका आभार

Suman said...

मुझे भी यही लगता है सब प्रसिद्धि पाने का अपना-अपना तरीक़ा है।
जागरूकता की जरुरत है बस यह शो एक बार ही देखा है .......

Unknown said...

इन कार्यक्रमों में भाग लेने वाले लोग अपने विवेक से काम क्यों नहीं लेते ? और अगर नहीं लेते तो शायद उसकी भी अपनी वजह है । कभी कभी सोचती हूँ कि इन कार्यक्रमों से जीतने की धनराशी का प्रावधान हटा दिया जाय तो कितने लोग आकर सच कहना चाहेंगें ? ---sahmat....

Unknown said...

इन कार्यक्रमों में भाग लेने वाले लोग अपने विवेक से काम क्यों नहीं लेते ? और अगर नहीं लेते तो शायद उसकी भी अपनी वजह है । कभी कभी सोचती हूँ कि इन कार्यक्रमों से जीतने की धनराशी का प्रावधान हटा दिया जाय तो कितने लोग आकर सच कहना चाहेंगें ? sahmat hun.

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

जो दिखता है, वो बिकता है,
सीधा सा फार्मूला है।

वैसे आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूं, कई सोचता हूं आखिर ये सब कहां जाकर रुकेगा।

Sunil Kumar said...

बहुत ही अच्छा आलेख

Shalini kaushik said...

man ki bat aapne shabdon me uker di.aabhar.

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

सच उतना ही होना चाहिए जिससे किसी को क्लेश न हो। मैने इस सिरियल की कुछ कड़ियाँ देखी। अधिकतर लोगों के विवाहेत्तर संबंधों पर सवाल थे और उसे स्वीकारने के बाद समाचार आया कि उनका विवाह विच्छेद हो गया। ऐसा सच भी क्या जो गृहस्थी को तार-तार कर दे………।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

मैं न देखता हूँ और देखने वालों को भी रोकने की कोशिश करता हूँ.

संतोष पाण्डेय said...

मुझे लगता है की मनोरंजन के सारे साधनों के केंद्र में खाया-पिया- अघाया- उकताया वर्ग है जिसकी संख्या आज भी 20 प्रतिशत से ज्यादा नहीं है.ऐसे में नुक्कड़, बुनियाद जैसे धारावाहिक गायब ही होंगे.

जयकृष्ण राय तुषार said...

बहुत ही अच्छा आर्टिकल है |

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

सच्चा सार्थक चिंतन...
सादर.

संजय भास्‍कर said...

सच कहा है आपने पर बहुत अफ़सोस होता है सब देखकर... सार्थक आलेख के लिए आपका आभार

Maheshwari kaneri said...

विल्कुल सही कहा है आपने ...बहुत सार्थक आलेख है ...

रश्मि प्रभा... said...

http://urvija.parikalpnaa.com/2012/03/blog-post_30.html

Satish Saxena said...

मगर इस मानसिकता के लिए हम सब जिम्मेवार हैं ...
मानव जीवन में नित्य घटतीं घटनाओं का २० प्रतिशत भी लोगों को नहीं पता चलता क्योंकि वह बताने लायक नहीं होता !
समाज की भर्त्सना का डर है, अँधेरे में( चुपचाप ) कुछ भो हो मगर दिन में भुला दिया जाता है ..
दोषी अगर कोई है तो हम सब हैं ...
निस्संदेह यह सबसे रुचिकर विषय है और जब खुद को बेचने वाले तैयार हैं तो धन कमाने वाले भी आ गए !
कौन दोषी है ??
शुभकामनायें आपको !

Saras said...

quick money के साथ साथ 'instant fame'भी एक वजह है .....बहुत सुन्दर और प्रभापूर्ण लेख !

Sadhana Vaid said...

आपकी बात से शत प्रतिशत सहमत हूँ मोनिका जी ! आजकल धनलोलुपता इतनी बढ़ गयी है कि लोगों को अपनी भूलों, गुनाहों और पापों को भी कैश कराने में कोई संकोच बाकी नहीं रह गया है और मनोरंजन के नाम पर कुछ चैनल्स इसका भरपूर फ़ायदा भी उठा रहे हैं और खुद भी दौलतमंद हो रहे हैं ! ऐसे कार्यक्रमों पर स्थायी बैन लग जाना चाहिये !

गिरधारी खंकरियाल said...

निजता ही जीवन के मूल्य हैं

Kewal Joshi said...

अवश्यमेव चिंतन योग्य विचार. कई बार 'सच' प्रदर्सन से सामाजिक बुराइयां पनपने का अंदेसा रहता है.
'धन' के पीछे 'अंधी दौड़'.

Pallavi saxena said...

जहां तक मेरी समझ कहती है मुझे नहीं लगता इस बात का दोष हम किसी एक चेज़ या व्यक्ति को दे सकते है शायद इस बात के लिए कहीं न कहीं सभी जिम्मेदार है जैसे समय ,हम,और यस टीवी संस्कृति भी समय बदला तो लोगों का नज़रिया बादल गया जिसके चले आज हर कोई बस कैसे न कैसे पैसा कमाना चाहता है। इसलिए टीवी वाले trp के चाकर में रियालिटी शो के नाम पर कुछ भी दिखते है और पैसा बनाते ठीक वैसे ही जनता भी बेवकूफ नहीं है वो भी सिर्फ मानो रंजन मात्र के लिए ऐसे प्रोग्राम देखा करती है। वरना कौन जाकर देखता है की किस प्रोग्राम ने इनाम के डैम पर या फिर SMS के डैम पर कितना कमाया....रही बात सच स्वीकारने की तो वो भी कोई नहीं स्वीकारता सब बस पब्लिसिटी पाने के तरीके हैं और आज की जनता भी यह फंडे अब खूब समझती है।

Vandana Ramasingh said...

पारिवारिक झगडों को सुलझाते या पागलों की तरह लड़ते कलाकारों की असलियत सभी जानते हैं कि कितनी नाटकीयता है पर टाइम पास के बहाने घरों में टीवी चलते रहते हैं और सदस्यों के बीच दूरी बढती जाती है आखिर परिवार टूटेंगे तो बाज़ार को निजता के नाम पर घर में घुसने और पैर पसारने का मौका मिलेगा सब लोग एक टीवी देखेंगे तो टीवी कैसे बिकेंगे पति पत्नी बच्चों सब के अलग अलग टीवी हो जाएँ तो अच्छा है न ...कमाने वाले कमाएंगे और लोग पैसा निजता और परिवार सुकून सब कुछ गवां बैठेंगे ...

ऋता शेखर 'मधु' said...

शत प्रतिशत सहमत हूँ...

संजय कुमार चौरसिया said...

बहुत सुन्दर और प्रभापूर्ण लेख !

डा श्याम गुप्त said...

इन कार्यक्रमों में भाग लेने वाले लोग अपने विवेक से काम क्यों नहीं लेते ? ---यही तो होना चाहिये...सब पैसे का खेल है जी...

rashmi ravija said...

aapki new post nahi dikh rahi..

राजन said...

पता नहीं जो लोग इस कार्यक्रम में सच बोलने का दावा करते हैं उसमें सच ही होता हैं या पैसों के लालच में चैनल के कहने पर लोग ये सब कहने को तैयार हो जाते हैं.बीच में इसका दूसरा सीजन भी आया था जिसमें भ्रष्टाचार को थीम बनाया गया था लेकिन वो बुरी तरह फ्लॉप रहा लेकिन सुना हैं कि अब कुछ बदलाव किया गया है.

वीरेंद्र सिंह said...

सही बात है आपकी....लोगों को विवेक से काम लेना चाहिए..लेकिन कहते हैं कि जब हरे-हरे नोट दिखाई देते हैं तो विवेक को अनसूना कर दिया जाता है।

आपको श्रीरामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं!

महेन्‍द्र वर्मा said...

आपकी बातें विचारणीय हैं।
निजता का संरक्षण होना चाहिए।

रचना दीक्षित said...

सच में यह चिंता का विषय है. टीवी के कार्यकृम दर्शकों को गुमराह कर रहे हैं.

Anonymous said...

TRP ke liye ho raha hain sab kuch
ganda hain par dhandha hain ye

दिगम्बर नासवा said...

सब कुछ प्रायोजित सा लगता है टी वी पे तो ... क्या पता वो सच होता भी या बस कला का नमूना की जनता को कैसे बेवक़ूफ़ बनाया जाय ...

Jyoti Mishra said...

all is the game of money..
these days ppl r ready to do almost anything 4 that..

Idiot box is full of shit... I say why viewers watch it... if we all stop than producers will automatically learn their lesson..
coz money loss is the biggest lesson one can learn today :P

G.N.SHAW said...

मोनिका जी पैसे में वह तागत है की सच उगलवा ही लेता है !

हरकीरत ' हीर' said...

मोनिका जी तस्वीर में तो बहुत अंतर आ गया .....?
दुबली हो गयीं हैं कुछ ...

सब पैसे का खेल है ....

क्या आपने इसके ऊपर भी कोई पोस्ट डाली है ....
जो नहीं दिख रही ....?
जैसा कि रश्मि कह रही हैं ...?

Dr Xitija Singh said...

पैसा फेंक, तमाशा देख ...

Naveen Mani Tripathi said...

bahut hi mahatavpoorn lekh badhai

dinesh aggarwal said...

चिन्तनीय एवं विचारणीय.....

प्रेम सरोवर said...

सुन्दर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

Monika Jain said...

vicharneey lekh

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत बढ़िया आलेख ,सुंदर बेहतरीन पोस्ट,....

MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: मै तेरा घर बसाने आई हूँ...

Kailash Sharma said...

आज रियल्टी शो कितने रियल हैं सभी जानते हैं...चेनल टी आर पी बंटोरने और उसमें हिस्सा लेने वाले केवल पैसे के लिये अपना वह रूप भी दिखाने को तैयार हो जाते हैं जो वास्तविकता से बहुत दूर है...सब पैसे का चक्कर है...बहुत सारगर्भित आलेख..

Udan Tashtari said...

सहमत- विचारणीय!!

S.N SHUKLA said...

सार्थक पोस्ट, आभार.

Unknown said...

अत्यंत ही सारगर्भित आलेख ..टी आर पी और सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए टीवी
पर किये जाने वाले नाटक से प्रतीत होने लगे हैं ....

Rahul Singh said...

रियलिटी शो की संदिग्‍ध हकीकत.

Yashwant R. B. Mathur said...

आज 01/04/2012 को आपका ब्लॉग नयी पुरानी हलचल पर (सुनीता शानू जी की प्रस्तुति में) लिंक किया गया हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

रचना दीक्षित said...

यह खेल भी अजीब बनाबटी है. सवाल भी पहले खुद ही देने हैं फिर उन सवालों के जवाब देकर अपनी इज्जत आफजाई करवानी.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

मुझे तो यह सच स्वीकारने से ज्यादा जीवन के भेद बेचने का खेल लगता है ।
बेहतरीन प्रस्तुति,सुन्दर आलेख .....

RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....
RECENT POST...फुहार....: रूप तुम्हारा...

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

स्वयं दर्शकों को सचमुच विवेक और सजगता से काम लेना चाहिए । क्योंकि इन कार्यक्रमों को बनाने वाले और इनका हिस्सा बनने वाले तो अपने आर्थिक हित साधने में जुटे हैं । तभी तो जो लोग जीवन भर अपनों के सामने मुखौटा पहने रहते हैं..
आदरणीय मोनिका जी सार्थक लेख --समाज को जगाती हुयी विचारधारा - आइये सब सीमा में रह सुनें समझें और करें बनावटीपन से दूर ही रहें क्षति न होने दें
कुछ बदला हुआ नयापन अंदाज
जय श्री राधे
भ्रमर ५

abhi said...

खास कर के 'सच का सामना' सिरिअल से तो मुझे बेहद चिढ़ है..
और इस तरह के बाकी प्रोग्राम देखना भी पसंद नहीं करता...हाँ सच कहा आपने, अगर धनराशी हटा दी जाए, तब पता चले की कितने लोग सच बोलने सामने आते हैं!

Ragini said...

sara khel sirf paison ke liye hai...khud ke kapde utarkar sabke samne prastut ho jana ek ghatiya mansikta hai...lekin bahut sare log ise pasand bhi kar rahe hain....

अनामिका की सदायें ...... said...

mujhe to is karykram me bhaag lene wale log moorkh lagte hain jo apne jiwan ko daanv par laga kar sach bol kar paise wasoolte hain...kitne hi ghar toote honge is karykram me bhag lene k bad. lekin afsos fir bhi log aate hain?

vikram7 said...

behatariin prstuti ,badhaaii,saath hii naii rachana ka itajar.

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

सुन्दर अभिव्यक्ति.....बधाई.....

Sawai Singh Rajpurohit said...

Sundar post
aabhar aäpka:-)

Crazy Codes said...

Aaj ka pura samaj hi khula market hai. yahan har cheej bechi ja rahi hai aur uske liye koi bhi hathkande apnaye ja rahe hai...

Unknown said...

सच में एक सारगर्भित लेख

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