My photo
पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

13 December 2011

धन-बल को मिलने वाला मान है भ्रष्टाचार की जड़ ....!

भ्रष्टाचार का एक बड़ा कारण हम सब की, समग्र रूप से हमारे समाज की वो मानसिकता है जिसमें धन का, धनी व्यक्ति का मान बहुत ऊँचा बना कर रखा है | हमारे समाज में  धनी व्यक्ति को कभी भय तो कभी लोभ-लालच के चलते जनता हमेशा श्रेष्ठ स्थान देकर पूजनीय बना देती  है | इसी सोच ने आज हमारे जीवन में धनार्जन को सर्वोपरि बना दिया है | जो जितना धनी उसका जीवन उतना ही आसान और उसके हिस्से उतना ही मान सम्मान | मुझे लगता है कि जब तक यह सोच हमारे परिवारों और समाज में मौजूद है हम चाहे जितने अनशन कर लें, मोर्चे निकाल लें , भ्रष्टाचार को समूल नष्ट करने का मार्ग मिल ही नहीं सकता | जब हम उन विषयों पर गंभीरता से विचार करते हैं जिनसे यह स्पष्ट हो सके कि भ्रष्टाचार आखिर हमारे सिस्टम में है, तो है क्यों ...?  तो धन-बल को दिया जाने वाला मान एक प्रमुख कारण के रूप में सामने आता है |
भ्रष्टाचार का मुद्दा सिर्फ नेताओं और सरकारी अफसरों तक ही सीमित नहीं है | हमारे समाज में हर व्यक्ति को लगता है कि धन अर्जित कर लिया तो बल आसानी से जुटाया जा सकता है | पैसा और पावर हाथ आया तो फिर सब कुछ उनकी मुठ्ठी में | इसीलिए हर व्यक्ति के मन में अधिक से अधिक धनार्जन की सोच पनपती है | यह इच्छा बलवती हो उठती है कि बस पैसा कमाया जाय बाकि सब मुश्किलें तो फिर यूँ ही हल हो जायेंगीं |  ज़ाहिर सी बात है कि ईमानदारी के मार्ग पर चलकर जीवन की ज़रूरतें तो पूरी हो सकती हैं पर धन-बल जुटाने की इच्छाएं नहीं | बस....यहीं से भ्रष्टाचार की शुरुआत होती है कभी न ख़त्म होने वाले अभिशाप के सामान | 
भ्रष्टाचार कोई रोग नहीं है जिससे हमारा देश जाने अनजाने संक्रमित हो गया है | यह तो सीधे सीधे उस धन को जुटाने की तरकीब है जिसके बल पर हमारे सामजिक-पारिवारिक वातावरण में कोई व्यक्ति सम्मान अर्जित करता  है, स्वयं को स्थापित कर पाता है |  आज के दौर में हमारे समाज में धन का मान सद्गुणों से कहीं ज्यादा है | पैसे के आते ही अवगुण भी गुण बन जाते हैं , यह समझना कठिन नहीं है  कि जिस धन को एकत्रित करने से समाज में इन्सान की  प्रतिष्ठा बढती हो, उसे मान सम्मान मिलता हो, उसे जुटाने में वो किस हद तक जायेगा , या फिर जा रहा है ?

ऐसे देश में भ्रष्टाचार कैसे खत्म हो सकता है ,  जहाँ किसी व्यक्ति का मान उसकी बेटी की शादी में खर्च किये गए धन से निर्धारित होता है |  जहाँ  समाज की नज़र में किसी एक मनुष्य की मनुष्यता बौनी हो जाती है दूसरे के आलीशान मकान के आगे | किसी घर के आगे खड़ी महँगी गाड़िया तय करती हैं कि उसे कितना सम्मान मिलेगा ? किसी परिवार की महिलाओं के  झाले-झुमकों का वज़न तय करता है कि उन्हें मिलने वाले मान-सम्मान का माप-तौल क्या होगा ? 

जब अच्छा मनुष्य होने के प्रमाण भी धन ही देने लगे तो पैसा बटोरने की मानसिकता को तो बढ़ावा मिलेगा ही |   समाज ही नहीं हमारे यहाँ तो परिवार और नाते रिश्तेदारों में भी उसी में भी उसी की पूछ-परख होती है जो अच्छा कमाता खाता है | कौन कितना सफल या असफल है यह भी उसकी कमाई के आधार ही आँका जाता है | कई बार धार्मिक, सामाजिक आयोजनों में तन-मन से सहयोग देने वालों के बजाय धन से सहयोग करने वालों कहीं ज्यादा माननीय बनते देखा है | यह दुखद है कि  धन-बल के  इस खेल में मनुष्यता और मौलिक प्रतिभा कहीं खो गए हैं | हर एक व्यक्ति इस भागदौड़ भरे जीवन में सिर्फ पैसा बटोरने के पीछे लगा है | ताकि वो भी अधिक से अधिक धन जुटा कर उस संभ्रांत वर्ग का हिस्सा बन सके जिसे हर सुख और सम्मान का अधिकारी माना जाता है | बस ...यही सोच भ्रष्टाचार को जन्म भी देती है और बढ़ावा भी |  

87 comments:

kshama said...

Jab aadamee paisa batorne lagta hai to uska koyee ant hee nahee hota! Jitna batoro kam hai!

Saru Singhal said...

Rightly said Monica, I agree with your views. We need to change our mentality first.

vijai Rajbali Mathur said...

आपका यह लेख तो मेरे भुक्त-भोगी निजी अनुभवों की कसौटी पर शत-प्रतिशत खरा और सच्चा लगा। रिश्वतख़ोरी सरकारी विभागों से ज्यादा निजी क्षेत्र मे है परंतु वहाँ इसे कमीशन,सेल्स प्रमोशन,इनसेनतिव,पब्लिक रिलेशन,आदि-आदि नाम दे दिये जाते हैं। ऐसा धन संग्रह करने वालों का रक्षा-कवच हैं NGOs जिनहे सरकार के साथ-साथ कारपोरेट घरानों से प्रचुर अनुदान मिलता है और ऐसे ही लोग आम जनता को मूर्ख समझ कर भ्रष्टाचार विरोधी 'अन्ना आंदोलन' चला रहे हैं।

प्रवीण पाण्डेय said...

सच कहा आपने, जब तक समाज में धन को चरित्र से अधिक मान मिलता रहेगा, भ्रष्टाचार को बल मिलता रहेगा।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

भ्रष्टाचार की जड़ पर प्रहार करता लेख ... धन के प्रति बढती लालसा का करण ही भ्रष्टाचार को जन्म देता है ...

Amrita Tanmay said...

मनुष्यता विलुप्त होते शब्दों में आ गया है .

kumar zahid said...

कई बार धार्मिक, सामाजिक आयोजनों में तन-मन से सहयोग देने वालों के बजाय धन से सहयोग करने वालों कहीं ज्यादा माननीय बनते देखा है | यह दुखद है कि धन-बल के इस खेल में मनुष्यता और मौलिक प्रतिभा कहीं खो गए हैं | हर एक व्यक्ति इस भागदौड़ भरे जीवन में सिर्फ पैसा बटोरने के पीछे लगा है | ताकि वो भी अधिक से अधिक धन जुटा कर उस संभ्रांत वर्ग का हिस्सा बन सके जिसे हर सुख और सम्मान का अधिकारी माना जाता है | बस ...यही सोच भ्रष्टाचार को जन्म भी देती है और बढ़ावा भी |


भ्रष्टाचार की जड़ पर प्रहार करता ईमानदार लेख

गिरधारी खंकरियाल said...

समाज में नैतिक स्तर की कमीं के कारण ये सब हो रहा है.

virendra sharma said...

.हाँ इस सोच को ही बदलना पड़ेगा -'बाप बड़ा न भैया ,भैया ,भैया सबसे बड़ा रुपैया .'पैसा सबका बाप है ?

***Punam*** said...

zaroorat hai hamen apni mansikta badalne ki...

Atul Shrivastava said...

भ्रष्‍टाचार.......
क्‍यों..... किसलिए.... किस वजह से.....
एक सटीक और सार्थक लेख।
सच कहा, पहले दिखावा बंद होना चाहिए.....

V G 'SHAAD' said...

लोगों को समझाना चाहिए कि धनवान व्यक्ति को इतिहास में जगह नहीं मिली.कितने लोगों
को पता है कि ५० साल पहले या १०० साल पहले दुनिया का सबसे अमीर आदमी कोन था, जबकि
जिन लोगों ने अन्य फिल्ड में काम किया वो प्रसिद्ध हो गए.

Jay dev said...

sundar ji ...achcha likha hai aapne ..

कुमार राधारमण said...

न धन की चाह खत्म होगी,न भ्रष्टाचार। तरक़ीबें ज़रूर बदल जाएंगी जिनसे ऐसी करतूतें सार्वजनिक होनी मुश्किल हो जाएं।

vandana gupta said...

एक बेहद विचारणीय और सारगर्भित आलेख्………आज दिखावे और ऊंचा ओहदा पाने की प्रवृत्ति ही भ्रष्टाचार को बढावा देती है………काफ़ी गहन विश्लेषण किया है।

अशोक सलूजा said...

जब अच्छा मनुष्य होने के प्रमाण भी धन ही देने लगे तो.....भ्रष्टाचार ही जिंदाबाद ..!
इस सच को निगलेगा कौन ?
आप की अच्छी सोच को ..
बधाई !

Unknown said...

एकदम सटीक कथन. भौतिकतावादी सोच और और और अधिक की हवास हमें निरंतर गर्त में धकेल जाती है तब भ्रटाचार का जन्म होता है.जरूरते और उनको किसी भी तरह पूरा करने के रास्ते भ्रटाचार की और जाते ही है .

Urmi said...

आपने बिल्कुल सही कहा है ! मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ! इंसान को हमेशा खुश रहना चाहिए चाहे उनके पास कम धन क्यूँ न हो नाकि सदा लालची बनके रहना चाहिए क्यूंकि ये कहावत सटीक है "लालच बुरी बला है!"

Maheshwari kaneri said...

धन के प्रति बढती लालसा का करण ही भ्रष्टाचार का जन्म होता है..बहुत सही और सटीक आलेख...

Anju (Anu) Chaudhary said...

माया बदली ,ना बदले मायाराम
चाहे बदले दुनिया सारी
हम तो ऐसे ही रहेगे
इसी तर्ज़ पर चले
दुनिया की रीत निराली ...

shikha varshney said...

भ्रष्टाचार की जड़ को सही पहचाना आपने.सार्थक आलेख.

शिक्षामित्र said...

समस्या लगातार विकट होते जाने के ही आसार हैं।

Shikha Kaushik said...

जब अच्छा मनुष्य होने के प्रमाण भी धन ही देने लगे तो पैसा बटोरने की मानसिकता को तो बढ़ावा मिलेगा ही | समाज ही नहीं हमारे यहाँ तो परिवार और नाते रिश्तेदारों में भी उसी में भी उसी की पूछ-परख होती है जो अच्छा कमाता खाता है -sateek likha hai aapne .bhrashtachar ki jad yahi hai aur iska upay hi nahi kiya jaa raha hai to bhrashtachar mite kaise .achchhi post .aabhar

सदा said...

भ्रष्‍टाचार की परत दर परत खोलता सार्थक व सटीक लेख ... आभार ।

जयकृष्ण राय तुषार said...

मोनिका जी बहुत ही उम्दा पोस्ट |समाज में जब से अपराधियों का बहिष्कार बंद हुआ ,अपराध और भ्रष्टाचार बढ़े |

रश्मि प्रभा... said...

ऐसे देश में भ्रष्टाचार कैसे खत्म हो सकता है , जहाँ किसी व्यक्ति का मान उसकी बेटी की शादी में खर्च किये गए धन से निर्धारित होता है | bilkul sahi kaha

Arvind Mishra said...

भारतीय समाज में भ्रष्टचार की जड़ें हमारे समाज में ही गहरे फ़ैली हुयी हैं -एक बड़े बदलाव की जरुरत है !

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप ने सही कहा। जिस के पास धन संपत्ति है उसे समाज में मान मिलता है। उस के पास यह संपत्ति किस तरह आई है या वह किस तरह यह संपत्ति बना रहा है इसे कोई नहीं देखता। यह समाज का स्थापित मूल्य है। वास्तव में इस मूल्य को बदलना होगा। श्रम को एक श्रेष्ठ मूल्य के रूप में स्थापित करना होगा। लेकिन सामाजिक मूल्यों को शासकवर्ग स्थापित करता है। आज का शासकवर्ग पूंजीपति जमींदार वर्गों से बनता है। जब तक ये सत्ता में बने रहेंगे तब तक यह मूल्य भी बना रहेगा। श्रम के सम्मान का मूल्य तभी स्थापित हो सकता है जब कि श्रमजीवीवर्ग शासक वर्ग में परिवर्तित हो जाए। उस के लिए पहले श्रमजीवी वर्ग को एकजुट हो कर संगठित होना पड़ेगा। अर्थात इस मूल्य को श्रमजीवी वर्ग की वही क्रांति बदल सकती है जो मौजूदा पूंजीपति-जमींदार वर्ग को सत्ताच्युत कर स्वयं सत्ता हासिल कर ले।

अरुण चन्द्र रॉय said...

भ्रष्टाचार की जड़ पर प्रहार करता लेख ..

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

एक बहुत बड़ा अवयव है, महंगाई. एक ऐसा कुचक्र रचा है इन लोगों ने.

Monika Jain said...

agree with you...very nice post :)

MUKESHSATI.MUKKI @GMAIL.COM said...

विद्दा धनम् सर्व धनम् प्रधानम्। नाकि रूपया धनम्

डॉ टी एस दराल said...

इसीलिए तो लगता है कि वो इन्सान कहाँ मिलेगा जो भ्रष्ट न हो । सभी को धन का लालच घेरे रहता है ।
आज सारी मान मर्यादा पैसे के इर्द गिर्द ही दिखाई देती है ।

मदन शर्मा said...

आपने बिल्कुल सही कहा है ! मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ!

रंजना said...

आपके एक एक शब्द में अपने शब्द मिलाती हूँ....

बहुत ही सटीक और सही कहा आपने...

Nisheeth said...

हमारे समाज में भ्रस्ताचार इस कदर फ़ैल चूका की है की हम इसके आदि हो चुके हैं . इसे हटाने के लिए न सिर्फ हमें अपने सिस्टम को सुधारना होगा बल्कि अपने आप में भी परिवर्तन लाना होगा.

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

सच्चाई उजागर करता लेख.

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

सही लिखा है आपने कि दुनिया नेता-अफ़सरों के अलावा भी है.. बल्कि हालत तो ये है कि कई लोगों को तो यह भौंडा प्रदर्शन ही उन्हें समाज में जगह दिलवाता है

Jyoti Mishra said...

u nailed it right on head...
first we need bring change with in than only we can fight wid things like corruption.

Awesome read !!

रेखा said...

सार्थक और सटीक आलेख ..

Suman said...

भ्रष्टाचार की जड़े काफी मजबूत हो गई है
मुश्किल है अब मिटा पाना !
अच्छा विश्लेषण किया है !

उपेन्द्र नाथ said...

आपने बहुत ही अच्छा विश्लेषण किया है. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति.

शहर कब्बो रास न आईल
साहब का कुत्ता

दिगम्बर नासवा said...

ये स्थिति २० वर्ष पहले नहीं थी ... तब समाज में ऐसे व्यक्ति का मान ज्यादा था जो कुछ सेवा कार्य जैसे अध्यापक, सेवा का कार्य करने वाला इंसान होता था ... पर आज समय तेज़ी से बदल रहा है ... बस पैसे का बोलबाला रह गया है ... किस माध्यम से कमाया ये कूई नहीं देखना चाहता ...

Anonymous said...

ऐसे देश में भ्रष्टाचार कैसे खत्म हो सकता है , जहाँ किसी व्यक्ति का मान उसकी बेटी की शादी में खर्च किये गए धन से निर्धारित होता है |

किसी परिवार की महिलाओं के झाले-झुमकों का वज़न तय करता है कि उन्हें मिलने वाले मान-सम्मान का माप-तौल क्या होगा ?

समाज ही नहीं हमारे यहाँ तो परिवार और नाते रिश्तेदारों में भी उसी में भी उसी की पूछ-परख होती है जो अच्छा कमाता खाता है | कौन कितना सफल या असफल है यह भी उसकी कमाई के आधार ही आँका जाता है | कई बार धार्मिक, सामाजिक आयोजनों में तन-मन से सहयोग देने वालों के बजाय धन से सहयोग करने वालों कहीं ज्यादा माननीय बनते देखा है |

मोनिका जी बहुत सही और सटीक जगह प्रहार किया है आपने...........बिकुल सहमत हूँ आपसे मैंने पहले भी कई बार ऐसे मौको पे कहा है की हमे खुद को बदलना होगा तभी बदलाव आ सकता है.......ऐसी सटीक और सशक्त लेखनी के लिए आपको हैट्स ऑफ |

संध्या शर्मा said...

बिलकुल सही कहा है आपने भ्रष्टाचार को यदि जड़ से मिटाना है तो शुरुआत परिवार से करनी होगी...
गहन विश्लेषण...

दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-729:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

NKC said...

aapne yah baat bilkul sahi kaha aaj ye koi kis tarike se doulat kamaya,bus doulat walon ki pooja suru ho jati hai,aur jiske pass doulat hai to mano achchha insaan wahi hai ka certificate mil jata hai use.

अजित गुप्ता का कोना said...

आपकी पोस्‍ट एक पक्ष को ही उजागर कर रही है। धनिक व्‍यक्ति का समाज और परिवार में तभी सम्‍मान होता है जब वह परिवार और समाज के लिए कुछ करता है। हमारे यहाँ श्रेष्ठियों की परम्‍परा रही है, उन्‍होंने समाज और परिवार के लिए बहुत कुछ किया है। विवाह के समय आज जो फिजूलखर्ची हो रही है वह अवश्‍य ठीक नहीं है। मेरी राय में यदि लोग अपने धन का दूसरों के लिए उपयोग करना शुरू कर दें तो उन्‍हें सम्‍मान अवश्‍य मिलेगा और यदि व्‍यक्ति अपने धन का उपयोग केवल भोगवाद बढ़ाने के लिए करता है तो वह भ्रष्‍टाचार को उत्‍पन्‍न करता है। ऐसे व्‍यक्ति को समाज और परिवार में सम्‍मान नहीं होता है।

sangita said...

प्रथम आपका आभार की आप मेरे ब्लॉग पर आईं|
हमेशा की तरह समाज की वर्तमान देशकाल परिस्थितियों की ओर इंगित करता सार्थक लेख|शुरुवात हम ही करेंगे और अपने बच्चों को भी यही सिखाएं तो आने वाला समय निश्चित ही सकारात्मक सोच के साथ प्रगति करेगा |

ऋता शेखर 'मधु' said...

विचारणीय और सारगर्भित आलेख...समाज का सच यही है...

virendra sharma said...

बेशक पड़ प्रतिष्ठा को ही धन प्रतिष्ठा मानने की गलती समाज करता रहा है .पड़ अरिजीत किया जाता है योग्यता से धन के लिए यह ज़रूरी नहीं है .ल्सख्मी का वाहन तो वैसे भी उलूक ही है .आपकी टिपण्णी से सदा और भी अच्छा लिखने की प्रेरणा मिलती है .

विभा रानी श्रीवास्तव said...

आपने सही लिखा है की पैसा और बल , दोनो एक साथ हो तो इंसान ,अपने को भगवान् समझने लगता है.... !

Neeraj Kumar said...

आपने बिल्कुल सही कहा है। भ्रष्टाचार चरित्र पतन का एक रुप ही तो है जो समाज मेँ गहरे तक पैठ गया है।
किन्तु मैँ असहमत हूँ उस टिप्पणी से जो कहते हैँ कि यह आज की बीमारी है। पुराणोँ और महाभारत से लेकर प्रेमचंद की कहानियोँ तक धन का महत्व और धनी की प्रतिष्ठा दर्शाती है।

Rajeev Panchhi said...

There are various aspects of corruption having various reasons!

Rajput said...

एक दुसरे से आगे निकलने और बड़ा दिखने की हौड़ ने ही जन्म दिया है भ्रष्टाचार के राक्षस को.
इंसान पेट की भूख से नहीं अपनी मानसिकता से मर रहा है.

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बिल्कुल सहमत,
सच तो ये है कि यही भ्रष्टाचार की जड़ है।

दीपा said...

aapne sahi kha

deepa said...

u r right.

G.N.SHAW said...

मोनिकाजी आज के लेख को सतप्रतिसत अंक ! बेटे को नौकरी लगते ही - पिता पूछ बैठता है की उपरवार आमदनी है या नहीं !जड़ - जड़ में भ्रष्टाचार ! बधाई !

निवेदिता श्रीवास्तव said...

भ्रष्टाचार का मूल कारण हम सब खुद ही हैं ..... इसके लिए जरूरी है की हम अपनी मानसिकता बदलें !

Satish Saxena said...

बढ़िया बेनकाब लेख ....
आभार आपका !

दर्शन कौर धनोय said...

आज तो भ्रष्टाचार शब्द भी बहुत हल्का हो गया हैं ..मानो कोई टोस्ट या बिस्कुट हो ..एकदम हमारी रोज मर्या की जिन्दगी में घुलमिल गया हैं ! जरा भी आश्चर्य नहीं होता ....

Jay dev said...

डॉ॰ मोनिका शर्मा जी मैं कुछ विचारो से इसे स्प्ष्ट करता हूँ ...

बचपन गया तो जवानी में आये , दुनिया देखने से पहले ही बेरोजगार कहलाये ....
कहना क्या है जो सच है वो कहता हूँ , अपनी जरूरत और मज़बूरी के कारण बेरोजगारों की लाइन में खड़ा रहता हूँ...
अब तो जिंदगी एक दौड़ सी है मेरी और हर नयी सुबह शुरू होती है एक नयी उम्मीद से मेरी ...
फिर भी शाम आते मैं निराश सा हो जाता हूँ, अपनी चप्पलो को रगड़ने के बाद भी " मैं बेरोजगार रहा जाता हूँ "....
तुम ही कहो इतनी तकलीफों के बाद मिली नौकरी में " मैं क्या ईमानदार रह पाउगा " ??
कह देना भ्रष्टाचारी मुझे जिस तरह बेरोजगारी की गली छेल रहा हूँ , उसे भी सहलुगा |
तुमको जो बड़ी-बड़ी बाते करनी है कर दो, मुझे अनैतिक भी कहना है कह दो " मैं सब सहुगा " |
" मैं भ्रष्ट आचरण वाला हूँ " तो ये जानकर भी खुश रहूगा |
कम से कम तब, " मैं खुद को बेरोजगार तो नहीं कहुगा " |

Naveen Mani Tripathi said...

ak achhi pravishti ke lia abhar.

Anonymous said...

बहोत अच्छे आपने भ्रष्टाचार को जडो को हि बता दिया !

प्रेम सरोवर said...

आपका पोस्ट मन को प्रभावित करने में सार्थक रहा । बहुत अच्छी प्रस्तुति । मेर नए पोस्ट 'खुशवंत सिंह' पर आकर मेरा मनोबल बढ़ाएं । धन्यवाद ।

rashmi ravija said...

भ्रष्टाचार कोई रोग नहीं है जिससे हमारा देश जाने अनजाने संक्रमित हो गया है | यह तो सीधे सीधे उस धन को जुटाने की तरकीब है जिसके बल पर हमारे सामजिक-पारिवारिक वातावरण में कोई व्यक्ति सम्मान अर्जित करता है, स्वयं को स्थापित कर पाता है |

बिलकुल सही कहा...यही वजह है कि भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है...समाज में खुद को स्थापित करने कि चाह ने भ्रष्टाचार को बहुत बढ़ावा दिया है.

Unknown said...

सही कहा आपने;;; और मैं आपके पक्ष से पूरी तरह सहमत हूँ..
nice post

Unknown said...

bahut hi satik baat kahi hai dr.monika ji

prerna argal said...

bahut sahi aur satic lekh.bahut badhaai aapko,

आपकी पोस्ट आज की ब्लोगर्स मीट वीकली (२२) में शामिल की गई है /कृपया आप वहां आइये .और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आपका सहयोग हमेशा इसी तरह हमको मिलता रहे यही कामना है /लिंक है

http://hbfint.blogspot.com/2011/12/22-ramayana.html

दिवस said...

सहमती रखता हूँ आपसे|
हमारे आस-पास भी जब हम किसी धनि व्यक्ति को देखते हैं तो यह आंते हुए भी ये इसका सारा धन रिश्वतखोरी का है, उसके लिए सम्मान सूचक शब्द निकलते हैं, किनती वही जब कोई गरीब म्हणत मजदूरी से अपना घर चलाता है तो उससे ऐसे बात करते हैं जैसे उनके पास दिल ही नहीं है|
यही मानसिकता भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है|

Kunwar Kusumesh said...

भ्रष्टाचार का मुद्दा सिर्फ नेताओं और सरकारी अफसरों तक ही सीमित नहीं है | हमारे समाज में हर व्यक्ति को लगता है कि धन अर्जित कर लिया तो बल आसानी से जुटाया जा सकता है ..............वाह , बड़ी साफ़गोई और सादगी से सही बात कह दी आपने.क्या बात है.....वाह वाह,मोनिका जी.

Dr. Rajrani Sharma said...

बहुत बढ़िया --मोनिका जी बधाई
आपने सही लिखा है पहले हम ही गलत रह चुन लेते हैं फिर पछताते हैं दुष्यंत का शेर याद आता है
किससे कहें कि छत कि मुंडेरों से गिर गए
हमने ही खुद पतंग उड़ाईथी शोकिया
बड़ी सशक्तअभिव्यक्तियाँ है आपकी --लिखें तो हमारा भी भला होगा ---जय श्री कृष्ण

Rajeev Ranjan said...

सही फ़रमाया आपने! हमने समस्या को तो पहचान लिया कि धन को मिलने वाला सम्मान ही अन्य चीजों को उपेक्षित कर रहा है. वजह लाजमी है- पैसा ही हर चीज की इकाई बन गयी है. इसका इलाज है - चारित्रिक धन को मजबूत करना होगा. इसके लिए चाहिए एक सही आदर्श. जब तक हम भारतवासी अपनी परंपरा -मातृ देवो भवः, पितृ देवो भवः, अतिथि देवो भवः और आचार्यो देवो भवः को पुनः घर घर में स्थापित नहीं करेंगे, आये दिन समस्याओं के लिए तैयार रहना पड़ेगा.

रचना दीक्षित said...

भ्रष्टाचार का अनुभव शायद किसी के लिए भी नया नहीं होगा लेकिन आजकल तो यह कैंसर की तरह पूरे तंत्र को खा चूका है. एक गंभीर चिंतन पेश किया है मोनिका जी आपने. बहुत बधाई इस सार गर्भित आलेख के लिए.

संतोष पाण्डेय said...

निश्चित ही धन (विद्या, ज्ञान, संतोष, आचरण नहीं) को बहुत महत्व व् सम्मान देने के कारण ही आज समाज दिशाहीन हो रहा है.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

धन को चरित्र से ज्यादा मान मिलना ही भ्रष्टाचार की जड़ है,...भ्रष्टाचार पर प्रहार करता सुंदर आलेख

मेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....

आफिस में क्लर्क का, व्यापार में संपर्क का.
जीवन में वर्क का, रेखाओं में कर्क का,
कवि में बिहारी का, कथा में तिवारी का,
सभा में दरवारी का,भोजन में तरकारी का.
महत्व है,...

पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे

sm said...

thoughtful article
thinking of society and respect for money both need to be change

रजनीश तिवारी said...

कहते हैं पैसा खुदा नहीं तो खुदा से कम भी नहीं! इस दुनिया में पैसे की कीमत कब घटेगी ? पैसों की कमी और पैसे बढ़ाने की लालच- दोनों मिलकर भ्रष्टाचार को दिन-दूना रात- चौगुना बढ़ा रहे हैं । आर्थिक रूप से जब अधिक से अधिक लोग सक्षम हो जाएंगे तभी भ्रष्टाचार ख़त्म होगा । अर्थात ये कब ख़त्म होगा पता नहीं !

Unknown said...

भ्रष्टाचार की समस्या का निदान होना अति आवश्यक है |

मेरा साहित्य said...

bhrshta char ka mul karan hai lalach aur lalach hi adhik dhn ki kamna hai atah dhan hi bharshtachar ki mul jad hai
sahi kaha hai aapne
rachana

Santosh Kumar said...

वो इन्सान कहाँ मिलेगा जो भ्रष्ट न हो ।

Sadhana Vaid said...

एक उच्चस्तरीय आलेख और बहुत ही प्रखर विचारों के साथ हमारी संकीर्ण एवं दूषित मानसिकता पर करारा प्रहार ! जब तक लोगों की यह सोच नहीं बदलेगी भ्रष्टाचार को मिटाना मुश्किल है ! भ्रष्टाचार कोई वस्त्र नहीं हैं कि जब निर्णय लिया उतार कर फेंक दिया ! यह पूरे समाज के सम्मिलित सोच और संस्कार में बदलाव की माँग करता है ! जिस दिन हमारी महत्वाकांक्षाओं का रूप बदलेगा, हमारे लक्ष्य बदलेंगे, मानसिक रूप से हमारा सकारात्मक उत्कर्ष होगा भ्रष्टाचार का संक्रमण स्वयमेव विलुप्त होता जायेगा ! इतने सार्थक आलेख के लिये बहुत-बहुत बधाई मोनिका जी !

शरद सिन्हा said...

सार्थक आलेख.

sudha tiwari said...

बिलकुल सही कहा मोनिका जी आपने.

sudha tiwari said...

बिलकुल सही कहा मोनिका जी आपने.

Kunwar Kusumesh said...

बिलकुल सही ,मोनिका जी .

Post a Comment