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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

17 November 2011

अति महत्वाकांक्षा के भंवर में फंसती महिलाएं...!




राजस्थान की भंवरी देवी का किस्सा आज मीडिया के लिए ही नहीं आमजन के लिए चर्चा का विषय बना हुआ है | यूँ तो इस घटना के कई पक्ष हो सकते हैं पर मैं जिस विषय पर बात करने जा रही हूँ वो है आज के समय में महिलाओं में आई  अति महत्वाकांक्षा की सोच |

 भंवरी देवी भी इसी अति महत्वाकांक्षा के जाल में जा फंसीं जो उन्होंने जाने अनजाने स्वयं ही बुना था | इस घटना का यह पक्ष मन में तब कौंधता है जब मस्तिष्क यह प्रश्न  उठाता है कि एक आम परिवार से जुड़ी साधारण सी नौकरी करने वाली महिला का किसी राज्य के मंत्री से इतना करीबी सम्बन्ध यूँ ही तो नहीं हो सकता .... ? न ही इस सम्बन्ध को किसी तरह से थोपा जा सकता है....... ? आखिर भंवरी देवी भी इतने वर्षों तक किसी न किसी तरह तो लाभान्वित हुईं ही होंगीं.....? 

 ऊँची साख बनाने और प्रसिद्धि कमाने की मानसिकता ने आज के दौर की महिलाओं के हौसले तो बुलंद किये हैं पर कुछ गलतियाँ करने की भी राहें सुझा दी है | भंवरी देवी की तरह किसी भी कीमत पर सब कुछ पाने की सोच रखने वाली महिलाओं का प्रतिशत बीते कुछ बरसों में हर क्षेत्र में चिंताजनक स्तर तक बढ़ा है |  स्वयं महिलाओं को भी प्रसिद्धि और पैसा कमाने के लिए यह मार्ग सुगम और सुखदायी लगता  है | जबकि सच्चाई तो यह है इन रास्तों पर चलकर अनगिनत महिलाएं ऐसे भंवर में फंस जाती हैं जिसका मूल्य कई बार तो उन्हें जान गंवाकर चुकाना पड़ता है | 

मधुमिता ,रूपम या भंवरी ऊंची पहुँच रखने और अपना दबदबा दिखाने के चलते इतनी आत्ममुग्ध हो जाती हैं कि ऐसे संबंधों की परिणति को लेकर शायद कोई विचार तक नहीं करतीं | जब इस भूल भुल्लैया का खेल समझ आता है तो मन में बस क्रोध रह जाता है | तब भंवरी की तरह कोई सीडी बनाती हैं तो कोई  रूपम की तरह जान से ही मार डालती है | इस हिमाकत का भी खामियाजा उन्हें ही भुगतान पड़ता है |  हमारे समाज में चाहे जितने बदलाव आ जाएँ महिलाओं को यह बात याद रखनी होगी हर बार भुगतना उन्हें पड़ता है | उन्मुक्त जीवन और स्वछंदता का मूल्य उन्हें ही चुकाना पड़ता है | आगे बढ़ने की यह  सोच उन्हें सशक्त नहीं करती बल्कि आगे चलकर मजबूरी और समझौतों के दलदल में धकेल देती है | जिसमें न रहते बनता है और न ही बाहर निकलने का रास्ता सूझता है | 

क्षमता और योग्यता से ऊंचे लक्ष्य अक्सर हमें उचित-अनुचित हर तरह के कार्यों में कर प्रवृत्त देते हैं | साथ ही अगर इन लक्ष्यों को पाने की जल्दबाजी हो और सही गलत का आत्मबोध भी न रहे, तो किसी कुचक्र में फंसना निश्चित है |  ऐसे में अपनी सीमाओं से परे कुछ अलग तरह के मापदंडों पर स्वयं को स्थापित और साबित करने की ललक एक गहरे गर्त में ले जाती है  और जब तक इसका आभास होता है अधिकतर मामलों में बहुत देर हो चुकी होती है | 

महिलाओं के मन में आगे बढ़ने की, सफल होने की आकांक्षा होना गलत नहीं है पर अति महत्वाकांक्षा की सोच कई बार जीवन की दिशा ही बदल देती है | इन परिस्थितियों में आभास तो बहुत कुछ पाने और बन जाने का होता है पर असल में इस खेल का हिस्सा बनकर महिलाएं अपना सब कुछ खोती ही हैं | वे बस ठगी जाती हैं | भंवरी के साथ हुई इस घटना के इस पक्ष पर विचार कर  देश की हर महिला को सबक लेना चाहिए |  | 

ऐसा भी नहीं है कि जो कुछ भंवरी के साथ हुआ वो सिर्फ सत्ता के गलियारों में ही होता है  | हर क्षेत्र में ऐसा देखने को मिल जायेगा जहाँ महिलाएं अति महत्वाकांक्षा की शिकार हो इस तरह ठगी जाती है | ज़रूरी  है कि महिलाएं स्वयं यह समझें की सशक्त होने का अर्थ सिर्फ धन कमाना या ऊंची पहुँच बनाना नहीं है | सशक्तीकरण के सही मायने हैं जागरूकता और आत्मनिर्भरता..... संवेदनशील सोच और सतर्कता...और सपने सामाजिक एवं  पारिवारिक मूल्यों का बोध ..... क्योंकि इस डोर को थामे रखा तो जीवन दिशाहीन हो ही नहीं सकता |

89 comments:

Gyan Darpan said...

बुरे कर्मों का नतीजा बुरा ही होता है|

भंवरी ने भी अपने कर्मों का फल भुगता और अब वे मंत्री व नेता भी अपने कर्मों का फल भुगत रहे है जो भंवरी के भंवर में फंसे या जिन्होंने ये भंवर बुना|

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

केवल महिलाएं ही नहीं पुरूष भी पीछे नहीं हैं अति-महत्वाकांक्षी होने में. समाज में दिखावा करते या अपने आप को बड़ा व्यक्ति सिद्ध करने में ये कोई क़सर नहीं उठा रखते...

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@काजल कुमार

सहमत हूँ .... पर मुझे लगता है कि महिलाओं को निश्चित रूप से अधिक सजग और सतर्क रहने की आवश्यकता है .....क्योंकि वे ऐसे मामलों में पुरुषों से ज्यादा ही ठगी जाती हैं.......

पुरुषोत्तम पाण्डेय said...

समसामयिकी विषय पर आपने महत्वपूर्ण लेख लिखा है. भारतीय परिवेश में महिलाओं के लिए बहुत छूट का प्रावधान नहीं रहा है.छूती सी गलती का भी परिणाम भयानक हो सकता है.इस प्रकरण से सीख मिलनी चाहिए.

Sunil Kumar said...

चाहें आदमी हो या ओरत सोंच समझ कर कदम रखना चाहिए अति हर एक चीज की बुरी होती हैं | अच्छा आलेख आभार

पुरुषोत्तम पाण्डेय said...

समसामयिकी विषय पर आपने महत्वपूर्ण लेख लिखा है. भारतीय परिवेश में महिलाओं के लिए बहुत छूट का प्रावधान नहीं रहा है.छोटी सी गलती का भी परिणाम भयानक हो सकता है.इस प्रकरण से सीख मिलनी चाहिए.

जयकृष्ण राय तुषार said...

बहुत ही उम्दा और विश्लेष्णात्मक पोस्ट

Udan Tashtari said...

पूर्णतः सहमत!!!

Dr.NISHA MAHARANA said...

जब इस भूल भुल्लैया का खेल समझ आता है तो मन में बस क्रोध रह जाता है | तब भंवरी की तरह कोई सीडी बनाती हैं तो कोई रूपम की तरह जान से ही मार डालती है | आपकी बात से पुरी तरह सहमत हूँ,मोनिका जी आगे पीछे सोचे बिना इस तरह की औरतै अपना तो
नुकसान करवाती हीं है कई बार दुसरी औरतों पर भी प्रश्नचिन्ह लगवा देती है।बहुत अच्छी एवं प्रासंगिक रचना।
धन्यवाद।

वाणी गीत said...

अगर इन लक्ष्यों को पाने की जल्दबाजी हो और सही गलत का आत्मबोध भी न रहे, तो किसी कुचक्र में फंसना निश्चित है ...

ऐसी महत्वाकांक्षाएं गलत सही के भेद को मिटा देती हैं !
दुखद प्रकरण !

आपका अख्तर खान अकेला said...

bhtrin or kdvi baat.akhtar khan akela kota rajsthan

दिनेशराय द्विवेदी said...

अति महत्वाकांक्षी व्यक्ति का ठगा जाना संभव है व महिला हो या पुरुष।

Saru Singhal said...

Things have changed over the years and females have driven more by proving themselves. It's sad thing that we first need a peaceful and meaningful life than money and fame. I guess some females take achievement way beyond than it's required. Well same is true for males as well. But as we are more of someone who set example for family, we need to be more careful of choices we make.

Thought provoking post and last paragraph is very nicely worded.

रचना said...

महिला का शारीरिक शोषण सदियों से होता आया हैं . सदियों से वो दोयम दर्जे पर रही हैं .
यौन शोषण महिला की ही इसकी वजह हैं . एक बार यौन शोषण होने के बाद कुछ महिला अपने शरीर को जरिया बना लेती हैं
बात केवल महत्व कांक्षा की ही नहीं हैं बात हैं की उनको इस रास्ते पर लाया कौन हैं
मधुमिता , रूपं या भावरी सबका पहले शोषण हुआ , फिर उनको " अपनाने " का भ्रम दिया गया और उस भ्रम के चलते उनको ताकत दी गयी . अपनायी तो वो गयी नहीं हाँ ताकत का इस्तमाल अवश्य सीख गयी

पहले यौन शोषण हटाए , पहले समानता लाये फिर महत्व कांक्षा की बात हो . क्युकी महत्व कांक्षा स्त्री पुरुष दोनों में बराबर होती हैं
हाँ समाज स्त्री की महत्व कांक्षा को ही गलत मानता हैं .
पोस्ट का मजुमन सही हैं पर ध्वनि सही नहीं हैं क्युकी पढ़ कर लगता हैं महत्व कांक्षा स्त्री को नहीं रखनी चाहिये या संभल कर रखनी चाहिये क्युकी वो स्त्री हैं . यही भावना स्त्री को दोयम का दर्जा दिलवा रही हैं सदियों से .
सुरक्षित नहीं हैं स्त्री आप के समाज में ये कह रही हैं आप की ये पोस्ट
मोनिका फिर से सोचिये जरुर

रचना said...

महिला का शारीरिक शोषण सदियों से होता आया हैं . सदियों से वो दोयम दर्जे पर रही हैं .
यौन शोषण महिला की ही इसकी वजह हैं . एक बार यौन शोषण होने के बाद कुछ महिला अपने शरीर को जरिया बना लेती हैं
बात केवल महत्व कांक्षा की ही नहीं हैं बात हैं की उनको इस रास्ते पर लाया कौन हैं
मधुमिता , रूपं या भावरी सबका पहले शोषण हुआ , फिर उनको " अपनाने " का भ्रम दिया गया और उस भ्रम के चलते उनको ताकत दी गयी . अपनायी तो वो गयी नहीं हाँ ताकत का इस्तमाल अवश्य सीख गयी

पहले यौन शोषण हटाए , पहले समानता लाये फिर महत्व कांक्षा की बात हो . क्युकी महत्व कांक्षा स्त्री पुरुष दोनों में बराबर होती हैं
हाँ समाज स्त्री की महत्व कांक्षा को ही गलत मानता हैं .
पोस्ट का मजुमन सही हैं पर ध्वनि सही नहीं हैं क्युकी पढ़ कर लगता हैं महत्व कांक्षा स्त्री को नहीं रखनी चाहिये या संभल कर रखनी चाहिये क्युकी वो स्त्री हैं . यही भावना स्त्री को दोयम का दर्जा दिलवा रही हैं सदियों से .
सुरक्षित नहीं हैं स्त्री आप के समाज में ये कह रही हैं आप की ये पोस्ट
मोनिका फिर से सोचिये जरुर

डॉ. मोनिका शर्मा said...

जी हाँ रचना यही कह रही है मेरी पोस्ट कि स्त्री सुरक्षित नहीं है हमारे समाज में ....... क्योंकि उन्हें हर तरह से शोषित किये जाने के बाद अपनाया नहीं रास्ते से हटाया जाता है ...... इसलिए पोस्ट में यह बात ज़रूर कही गयी है महिलाएं सजग रहें सतर्क रहें ...ऐसे कुचक्रों से बचें ....
-------
महिलाओं के मन में आगे बढ़ने की, सफल होने की आकांक्षा होना गलत नहीं है पर अति महत्वाकांक्षा की सोच कई बार जीवन की दिशा ही बदल देती है | इन परिस्थितियों में आभास तो बहुत कुछ पाने और बन जाने का होता है पर असल में इस खेल का हिस्सा बनकर महिलाएं अपना सब कुछ खोती ही हैं | वे बस ठगी जाती हैं |

--------
हाँ मैं भी महिलाओं कि महत्वाकांक्षाओं के खिलाफ नहीं हूँ यहाँ बात अति महत्वाकांक्षी होने कि है और वो भी बिना क्षमता और योग्यता के ....ऐसे में किसी महिला के शोषित होने के ज्यादा चांस होते हैं.......

रश्मि प्रभा... said...

सफल होने की आकांक्षा होना गलत नहीं है पर अति महत्वाकांक्षा की सोच कई बार जीवन की दिशा ही बदल देती है |

कुमार राधारमण said...

पुरूषों के प्रति महिला ब्लॉगरों की भड़ास निन्दनीय स्तर तक पहुंच चुकी है। अच्छी बात यह है कि एक महिला होकर भी आपने इस मुद्दे पर इस एंगल से विचार किया है।

समयचक्र said...

बहुत ही सटीक अभिव्यक्ति... अतिमहत्वाकांक्षा विनाश का कारण भी बन जाता है ... भंवरीदेवी प्रकरण में शायद मुझे एसा ही लगता है ...आभार

गिरधारी खंकरियाल said...

यह भी अत्यधिक शाश्क्तिकरण का नतीजा है .

रविकर said...

बहुत सुन्दर ||

दो सप्ताह के प्रवास के बाद
संयत हो पाया हूँ ||

बधाई ||

G.N.SHAW said...

मोनिकाजी - आप ने बिलकुलसही दिशा को इंगित किया है ! अब देखिये न हेरोईन विद्या बालन को --कितना आगे निकालने की होड़ में सामिल है ! इससे भी बदतर समय आ रहा है ! ! इस लेख के लिए - बहुत - बहुत धन्यवाद !

दर्शन कौर धनोय said...

सच्चाई किसी की मोहताज नहीं होती ?यही बात आपने कहीं हैं --औरत का अति महत्वाकांक्षी होना उसके लिए ही दुःखदायी हैं --औरत आज भी आजाद नहीं ....

सदा said...

आपकी बात से अक्षरश: सहमत हूं ..अति किसी भी चीज की हो सदैव दुखदाई होती है ..।

नीरज गोस्वामी said...

आगे बढ़ने की यह सोच उन्हें सशक्त नहीं करती बल्कि आगे चलकर मजबूरी और समझौतों के दलदल में धकेल देती है | जिसमें न रहते बनता है और न ही बाहर निकलने का रास्ता सूझता है

बिलकुल सच कहा आपने. प्रेरक लेख.

नीरज

Yashwant R. B. Mathur said...

"सशक्तीकरण के सही मायने हैं जागरूकता और आत्मनिर्भरता..... संवेदनशील सोच और सतर्कता...और सपने सामाजिक एवं पारिवारिक मूल्यों का बोध ..... क्योंकि इस डोर को थामे रखा तो जीवन दिशाहीन हो ही नहीं सकता. "

काश कि इस बात को सभी समझें।
एक सही विमर्श उपस्थित करता आलेख।

सादर

अनुपमा पाठक said...

अति सदैव बुरा होता है...

जीवन और जगत said...

वास्‍तव में बढ़ता भौतिकवाद और अति महत्‍वाकांक्षा ही इसका कारण है। हम बार बार पुरुष प्रधान समाज को लांछन लगाते हैं महिलाओं की ऐसी स्थिति के लिए। लेकिन मैं दो बातें कहना चाहता हूँ, पहली यह कि यदि समाज पुरुष प्रधान है तो महिलाएं अधिक सतर्क होकर क्‍यों नहीं रहतीं। दूसरी यह कि पुरुष प्रधा में महिलाएं एकजुट होकर क्‍यों नहीं चलतीं, वे एक दूसरे की दुश्‍मन क्‍यों बनी रहती हैं।

Human said...

बहुत अच्छे विषय पर लिखा है आपने,मैं पूर्णतया आपसे सहमत हूँ |
चाहे पुरुष हो या महिला अतिमहत्वाकांक्षा ग़लत परिणाम लाती है |
इसके पीछे अपरिपक्वता व अदूरदर्शिता भी प्रमुख वजहों में से हैं |
शोर्ट कट से कामयाबी कभी नहीं मिलती |
व्यक्ति अपनी सोच,मेहनत,ईमानदारी से ही आगे बढ़ता है और ऐसी सफलता ही सच्ची सफलता होती है |

Anonymous said...

बहुत बेहतरीन सोचा......तस्वीर के दोनों रुखों को दिखाया है आपने और उचित भी यही......बिलकुल सहमत हूँ आपके तर्क से......अक्सर जाल बनता नहीं बनाया जाता है | इस अनुच्छेद में तो ऐसा लगा जैसे प्रेमचंद जी की किसी कृति की झलक दिख रही है | सलाम है आपको और आपकी इस सकरात्मक सोच को |

"क्षमता और योग्यता से ऊंचे लक्ष्य अक्सर हमें उचित-अनुचित हर तरह के कार्यों में कर प्रवृत्त देते हैं | साथ ही अगर इन लक्ष्यों को पाने की जल्दबाजी हो और सही गलत का आत्मबोध भी न रहे, तो किसी कुचक्र में फंसना निश्चित है | ऐसे में अपनी सीमाओं से परे कुछ अलग तरह के मापदंडों पर स्वयं को स्थापित और साबित करने की ललक एक गहरे गर्त में ले जाती है और जब तक इसका आभास होता है अधिकतर मामलों में बहुत देर हो चुकी होती है | "

Unknown said...

अति मह्त्वाकान्छा और फटाफट स्म्रधि पाने के लिए मूल्य चूका रहे है हम और महिलायें तोकुछ अधिक ही चुकाती है जान देकर भी . सटीक और सोचने को मजबूर करता लेख .

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

जहां तक सावधान रहने की बात है, तो इसमें पुरुष और स्त्री में भेद करना ठीक नहीं है। दोनों को सावधान रहना चाहिए।
रही बात भंवरी देवी की, तो सभी को पता था कि उसका बडे बडे लोगों में उठना बैठना है।



समय मिले तो मेरे एक नए ब्लाग "रोजनामचा" को देखें। कोशिश है कि रोज की एक बड़ी खबर जो कहीं अछूती रह जाती है, उससे आपको अवगत कराया जा सके।

http://dailyreportsonline.blogspot.com

rashmi ravija said...

महत्वाकांक्षी होना अच्छी बात है....पर उसके लिए शॉर्ट-कट अपनाने पर यही हश्र होता है...

अपनी काबिलियत और मेहनत के बल पर कुछ हासिल करने की आकांक्षा रखनी चाहिए.

Pallavi saxena said...

बहुत ही बढ़िया पोस्ट... जहां आज कल हर कोई नारी वादी होने का झण्डा लिए घूमता है और केवल नारी को ही हमेशा केंद्र बनाकर सभी पहलू लिखे जाते हैं। वहाँ आपने इस लेख के माध्यम से ऐसे लोगों को नई सोच दी है।.... शुभकामनायें

vijai Rajbali Mathur said...

अंतिम अनुच्छेद मे दी गई सीख अनुकरणीय एवं प्रेरक है।

डॉ टी एस दराल said...

महिलाएं कभी कभी अपनी सुन्दरता का इस्तेमाल आधिकारिक पुरुषों को रिझाने के लिए करने लग जाती हैं . भंवरी देवी को देखकर भी यही लगता है उनमे आकर्षण था . ऐसे में दोष किसे दिया जाये?
अक्सर पुरुष भी इस आकर्षण और आमंत्रण के शिकार हो जाते हैं , हालाँकि सभी नहीं .
ज़ाहिर है , ताली एक हाथ से नहीं बजती .

Shikha Kaushik said...

AGREE !

Shikha Kaushik said...

MONIKA JI -I HAVE SENT YOU ''BHARTIY NARI ''BLOG'S LINK .PLEASE CHECK YOUR E.MAIL .PLEASE ACCEPT IT AND SHARE YOUR WOMEN RELATED POSTS WITH US ON THIS BLOG .HAVE A NICE DAY .

रेखा said...

आपके विचारों से पूर्णतः सहमत हूँ ..
अति सर्वत्र वर्जयते

संध्या शर्मा said...

सफल होने के लिए महत्वाकांक्षा का होना अत्यंत आवश्यक है लेकिन अति तो किसी भी बात की अच्छी नहीं होती और हुई तो सभी को अपनी करनी का फल भुगतना ही होता है...

varsha said...

aap mahatvakankshaon ko kounse taraju mein toulti hain ...yadi koi taraju hai to fir do ke liye alag alag kyon hai..aur yadi alag-alag hai to donon ke liye sajaen alag kyon hain??

अजित गुप्ता का कोना said...

भंवरी देवी के केस में एक कटु सत्‍य यह भी है कि वह जाति से "नट" है। राजस्‍थान में यह जाति उन्‍मुक्‍त सम्‍बंधों के लिए जानी जाती है। कई परिवारों में इसे धंधे के रूप में ही लिया जाता है। इसलिए व्‍यापार करते करते ब्‍लेकमेल तक स्थिति जा पहुंची।

Rakesh Kumar said...

bahut achchha aur saarthak lekh hai aapka.sochne ko majboor karta hai.

Unknown said...

dr.monika ji badi baareeki se chitaran kiya hai jo sahaj roop m huya hai sadhuwad uttam lekh ke liye

Unknown said...

dr.monoka ji badi bariki se chitaran kya hai.sadhuwad.11/11/11/ ko mera uniq b"day raha .

Tv100 said...

Your post is an eye opener!

आपने बहुत अच्छा लिखा है! बधाई! आपको शुभकामनाएं !
आपका हमारे ब्लॉग http://tv100news4u.blogspot.com/ पर आने के लिए आभार!

Anupama Tripathi said...

आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है ...नयी-पुरानी हलचल पर कल शनिवार 19-11-11 को | कृपया पधारें और अपने अमूल्य विचार ज़रूर दें...

shikha varshney said...

अति तो हर चीज़ की ही बुरी होती है फिर वो महत्वाकांक्षा ही क्यों न हो.

Rajeev Panchhi said...

You're right. I agree with you!

Unknown said...

Your thoughts are reflection of mass people. We invite you to write on our National News Portal. email us
Email us : editor@spiritofjournalism.com,
Website : www.spiritofjournalism.com

Atul Shrivastava said...

प्रासंगिक पोस्‍ट।
अतिमहत्‍वाकांक्षा और बुरे कामों का नतीजा हमेशा गलत ही होता है।

virendra sharma said...

बेहतरीन प्रस्तुति .शोधपरक पोस्ट .महत्व कांशा की ध्वनी पोजिटिव होती है यह तो विचलन है .छोटा रास्ता है मनमानी का कथित तरक्की का .

डॉ. मोनिका शर्मा said...

वर्षा जी बात महत्वाकांक्षा की नहीं अति महत्वाकांक्षा की है .... वो भी क्षमता और योग्यता के बिना कुछ चाहने की....
और हाँ दोनों के लिए सजा तो एक ही है पर सिर्फ कानूनी सजा ....सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर महिलाएं अति महत्वाकांक्षा के चलते किसी कुचक्र में फंस जाएँ तो आज भी पुरुषों से कहीं ज्यादा ही झेलती हैं..... बस यह ज़रूर है भंवरी जैसे प्रकरणों से सीख ले थडी सजगता और जागरूकता आनी ही चाहए.....

Deepak Shukla said...

Hi..

Kai blogon par aapki tappaniyon ne aapke blog ki raah dikhai aur main yahan aakar tanik bhi nirash na hua..sahi arthon main naari shaktikaran ki tasveer dikhata ek sashakt lekh meri pratiksha kar raha tha.. Main aapki baat se aksharakshah sahmat hun..naari aatmnirbhar bane par apne samajik mulyon ko taj ke nahi, varan unko saheje hue..satta ki bhookh.aasan paise ki chah ki mrugtrushna se bach kar rahe..

Sashakt lekh..

Deepak Shukla..

Deepak Shukla said...

Aaj se main bhi aapke blog ka anisaran kar raha hun..

Amrita Tanmay said...

सही कहा भेड़ियों के बीच महत्वाकांक्षा का यही हाल होता है .

Arvind Mishra said...

बहुत सुन्दर विवेचन -एज युजुअल .....भवरी खुद अपने भवर में फंस गयीं -
जिन भी नामों को आपने लिया है वे ऐसी मानसिकता की नुमायन्दगी करती हैं और समाज के लिए एक चेतावनी भी देती हैं !

Arvind Mishra said...

और कुमार राधारमण की टिप्पणी से पूरी सहमति ...हम भी आपके ब्लॉग के नियमित पाठक इसलिए हैं कि आपके सभी विवेचन बुद्धिसम्मत और परिपक्व होते हैं .आपके आलेख इसलिए पढने में अच्छे लगते हैं !

शिक्षामित्र said...

महत्वाकांक्षा बहिर्मुखी होती है। सामाजिक एवं पारिवारिक मूल्यों के बोध के लिए व्यक्ति का एक हद तक अंतर्मुखी होना अनिवार्य होता है।

राजन said...

क्षमता और योग्यता से ऊंचे लक्ष्य अक्सर हमें उचित-अनुचित हर तरह के कार्यों में कर प्रवृत्तदेते हैं | साथ ही अगर इनलक्ष्यों को पाने की जल्दबाजी हो और सही गलत का आत्मबोध भी न रहे, तो किसी कुचक्र में फंसना निश्चित है |
बिल्कुल सहमत.

Aditya Tikku said...

Namskar,
hum ek hindi patrika publish kar rhe hai-8month se.Aap ke vicharo se mai kafi prbhavit hua hu, yadi aap ko apati na ho to hindi mai rajniti pe article likhiye.
Mag zine mumbai se publish ho rhi hai- gujrat aur bihar ke kuch hiso mai jati hai. www.surabhisaloni.com

Jai Hind
aDITYa
atikku@gmail.com / aditya@surabhisaloni.com

Nidhi said...

अति ...हरेक चीज़ की खराब है.

हरकीरत ' हीर' said...

भंवरी देवी आखिर खुद के बनाये भंवर में फंस ही गयी.....

मदन शर्मा said...

बेहतरीन प्रस्तुति .शोधपरक पोस्ट

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

बहुत ही अच्छे विषय पर समसामयिक सार्थक चिंतन....
सादर बधाई...

varsha said...

मोनिकाजी,
आज भंवरी देवी गायब हैं.नहीं जानते हम कि वे जिंदा भी हैं या नहीं .....जब हम उन्हें महत्वकंशी बताते हैं तो जाने -अनजाने उनके साथ हुए अपराध को भी सही ठहरा देते हैं औए यही बात चाल पड़ती है कि वह तो ऐसी थी इसीलिए उसके साथ ऐसा हुआ. यह उनके साथ हुए अपराध को न्यायोचित ठहरा देने कि कोशिश है ...फिर क्या ज़रुरत है तफ्तीश कि क्यों ढूंढें जा रहे हैं अपराधी .यह वही मोरल पोलिसिंग है जो महिला के साथ अपराध करने पर मजबूर करती है ....honour killing भी जायज़ है फिर तो ...लड़का-लड़का अति-महत्वाकांक्षी थे बिरादरी को धता बता रहे थे ख़त्म कर दिए गए ...

दिवस said...

बिलकुल सहमती|
ये बात समझ आ जाए तो कोई शिकायत ही क्या? शिकायत तो यही है कि कोई इसे समझना ही नहीं चाहता|

शिवम् मिश्रा said...

आपकी पोस्ट की खबर हमने ली है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - रोज़ ना भी सही पर आप पढ़ते रहेंगे - ब्लॉग बुलेटिन

Mamta Bajpai said...

उन्मुक्त जीवन और स्वछंदता का मूल्य हमेशा महिलाओं को ही चुकाना पड़ता है ...बहुत ही सार्थक लेख ..बहुत बधाई

महेन्‍द्र वर्मा said...

अति महत्वाकांक्षा आदमी को कहां से कहां ले जाती है।
सचेत करती सार्थक प्रस्तुति।

अनामिका की सदायें ...... said...

han aaj ki nari apni ambitions me itni swarthi ho gayi hai ki kisi bhi had ko laangh jati hai aur jab laangh jati hai aur halaton par se apna niyantran kho baithti hai to ant me bechargi ki odhni odh kar aam janta se sahanubhuti ki ummeed rakhti hai.

aisi kuchh mahilaye, ek machhli sare taalaab ko ganda karti hain wali kahavat ko charitarth karti hain.

sunder, vicharneey lekh.

Arvind kumar said...

sach kaha hai apne...

shukriya

मेरा मन पंछी सा said...

kuch pane ki chahat to sabme hoti hai...par use mehnat or imandari se paya jaye to usaka safal parinam hota hai...
short cut hamesha galat hi hota hai....
apki yah post bahut hi sarthak hai...
is vishay par apka drustikon bahut hi sarthak hai...

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

सामयिक एवं गम्भीर विषय के सभी पहलुओं पर चिंतन कर लिखा गया विचारणीय व सराहनीय आलेख.

Rohit Singh said...

एक ही लेख में सब कुछ समेटना संभव नहीं हो पाता। आपकी बात इस लिहाज से एकदम दुरुस्त है कि महिला को ज्यादा भुगतना पड़ता है। पर वो इस मामले में नहीं कि वो ज्यादा ठगी जाती है..। बल्कि इस मामले में कि ठगे जाने के बाद उसका हश्र ज्यादातर इसी तरह से होता है। पुरुष तनावपूर्ण जिंदगी जीता है..अगर ज्यादा गुस्लैल हुआ तो जेल में पहुंच जाता है। समाज में बदलाव कि गति अपने समय के हिसाब से ही चलेगी....मगर आगे बढ़ने के लिए रास्ता गलत चुनना पुरुष-स्त्री के अपने हाथ में है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी पोस्ट पर आपके विचार और पाठकों कि टिप्पणियाँ भी पढ़ीं ...

महत्त्वाकांक्षी होने में बुराई नहीं है ... पर आगे बढने के लिए रास्ते सही होने चाहियें .. महिलाएं भावुक हो कर विश्वास कर लेती हैं और दलदल में फंस जाती हैं ..
ज़रूरी है कि महिलाएं स्वयं यह समझें की सशक्त होने का अर्थ सिर्फ धन कमाना या ऊंची पहुँच बनाना नहीं है .

सटीक लिखा है ..

Anju (Anu) Chaudhary said...

अति महत्वाकांक्षा की सोच ने भंवरी देवी की ये दशा की है .....और और कुछ पा लेने कि तमन्ना ...जो कभी पूरी नहीं होती ...उसी का नतीजा है ये सब

प्रेम सरोवर said...

अच्छी पोस्ट आभार ! मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद।

Urmi said...

मैं तो यही मानती हूँ की अगर सब खुश रहें जिसके पास जितना भी है भगवान के आशीर्वाद से और मेहनत से फिर तो बुरे कर्म करने की बात कभी कोई सोच भी नहीं सकता! पर जो इंसान बुरा कर्म करता है उसे उसका फल ज़रूर मिलता है! उम्दा आलेख!
मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com

सु-मन (Suman Kapoor) said...

सही लिखा है आपने ....बहुत अधिक महत्वकांक्षा गर्त की तरफ ले जाती है ..

Kailash Sharma said...

बहुत सटीक और सार्थक विश्लेषण..अपनी महत्वाकांछाओं और अपनी योग्यता में उचित संयोजन बहुत ज़रूरी है.

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

बढ़िया , विचारणीय लेख..
अति-महत्वाकांक्षा ले डूबती है ..

Jyoti Mishra said...

Desire of More n More leads to situation like this and u r right somewhere down bhanvri was equally responsible 4 wat happened.

Awesome post on a sensitive issue :)

Unknown said...

Nice view on these social issues..

Vaanbhatt said...

अति महत्वाकांक्षा भी ज़रूरी है...अगर सब कुछ एक ही जन्म में पाना हो...

गर जीत गये तो क्या कहना...
हारे भी तो बाज़ी मात नहीं...

इसी शोहरत को तो लोग बचैन हैं...

संतोष पाण्डेय said...

अति महत्वाकांक्षा के भंवर में महिलाओं के फंसने का सिलसिला पुराना है. शोषण के रास्ते कई आज राजनीति में उच्च पदों पर हैं.कई बार तो भंवर का निर्माण भी खुद करती हैं.हाँ, निश्चित ही, सजग रहने की जरूरत है. आपका यह कहना कि लक्ष्यों को पाने की जल्दबाजी हो और सही गलत का आत्मबोध भी न रहे, तो किसी कुचक्र में फंसना निश्चित है | ऐसे में अपनी सीमाओं से परे कुछ अलग तरह के मापदंडों पर स्वयं को स्थापित और साबित करने की ललक एक गहरे गर्त में ले जाती है और जब तक इसका आभास होता है अधिकतर मामलों में बहुत देर हो चुकी होती है, सही है.

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) said...

अतिमहत्वाकांक्षी होना किसी के लिए भी ठगने ka कारण बन सकता है ,चाहे वो महिला हो या पुरुष, पर रही बात खोने की या जान तक गवाने की तो भुगतान तो किसी ना किसी परिस्थिति में दोनों को करना पड़ा है कहीं महिला सबकुछ खोती (अस्मत,या जान ) है कहीं पुरुष (जान )खोता है , और किसी भी चीज़ की अति कभी भली नहीं हुई चाहे वो महत्वाकांक्षा ही क्यों ना हो, पर यहाँ बात सिर्फ महिला के लिए नहीं पुरुष पर भी लागु होता है .........मेरे विचार से शायद सहमत हों....

संतोष त्रिवेदी said...

इस तरह के प्रकरणों में सबसे ज़्यादा अखरने वाली बात यह होती है कि फंदे में फंसने वाला यह जनता है कि उसको कोई चीज़ किस कीमत पर हासिल होने वाली है.बस,अपनी सुविधानुसार 'टाइमिंग' का निर्धारण होता है !

काश,ऐसे लोग अपनी कुत्सित इच्छाओं का दमन करना भी सीख लेते !

सम्पजन्य said...

" शिकारी आएगा जाल बिछाएगा ... ऐ तोते फंस मत जाना ... सावधान रहना "... पर आखिर तोते फंस ही जाते हैं / हमारी सबकी हालत ऐसी ही हैं ... मन में लालच , घृणा , द्वेष , वासना इत्यादि के विकार जब तक हैं ... वे हमारे सर पर जब-तब सवार होते रहेंगे ... कितना ही हम रट ले .... मत फंस जाना ... मत फंसना ... फिर भी हम जाल में फंसते रहेंगे ... जरूरी हैं हम अपने मन के विकारों से मुक्ति के उपाय की खोज में लगें ... और मन पर नए विकार न चढ़ने दे ... नहीं को भंवरी देवी के समान भंवर में उलझना होता ही रहेगा /

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