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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

02 November 2011

बच्चों के साथ..............सीखने की नई शुरूआत....!




बच्चों के साथ हम बड़ों के लिए भी सीखने समझने की एक नई यात्रा आरंभ होती है। एक ऐसी यात्रा जो हमें फिर से बचपन में लौटा ले जाती है। ऐसा लगता है मानों जो कुछ आज तक सीखा है, जाना है वो सब भूलकर उन्हीं की तरह जीवन के हर रंग को मासूमयित से देखा, जाना  और जिया जाय | बच्चों का साथ हम बड़ों को हमारी सोच के पारंपरिक दायरे बाहर निकाल लाता है | नई उर्जा और सृजनात्मकता का प्रवाह हमें बच्चों से मिल सकता है | यूँ ही उनके साथ कभी उनके खिलौनों से खेलें.... कभी घूमने निकल जाएँ ....और देखें कि कितना कुछ  ऐसा है जो बच्चों से सीखा जा सकता है। 

मुझे आजकल लग रहा है कि मैनें कभी मौसम के रंगो इस तरह नहीं देखा और जिया जैसे मेरा बेटा चैतन्य करता है। कभी कभी एक फूल या घास को भी इतनी मासूमयित से अपना दोस्त बनाता है कि लगता है हम बड़ों ने जीवन जीना ही छोड़ दिया है | हमारे आसपास कितना कुछ बिखरा पड़ा है जो जीवन को एक अलग दृष्टि से देखना और जीना सीखता है। उसे चींटी काट ले तो गुस्सा नहीं आता, ना ही चींटी को तकलीफ देने की सोचता है...... उसे लगता है कि ममा को चींटी से बात करनी चाहिए और कहना चाहिए कि वो चैतन्य को बिना बात परेशान ना करे :) यानि संवाद पहले हो | 

बच्चों के मन में, जीवन में, भावनाओं में, जो उल्लास होता है वो संकट में भी मुस्कुराना सिखा देता है। कुछ पल में ही उनका बीति बातें भूल जाने वाला स्वभाव तो लगता आज के समय में हम सबका जीवन सरल कर सकता है। ये तो हम बड़े ही होते हैं मन को व्यथित करने वाली हर बात को सदा के लिए अपने साथ बांध लेते हैं। इस विषय में बच्चों का बड़प्पन देखकर लगता है मानो हम उम्र बढने के साथ-साथ मन से छोटे होते जाते हैं ।

कई बार महसूस किया है कि बच्चे व्यवहार में भी निपुण होते हैं। वे जो कहना चाहते हैं, करना चाहते हैं, कह भी जाते हैं और उसके साथ कोई लाग लपेट भी नहीं करते। देखा जाय तो व्यवहार की इस मासूम सोच में भी जीवन की उत्कृष्टता है और एक सुख भी । सुख मन पर कोई बोझ न लेकर  चलने का | बच्चों की ऐसी छोटी छोटी बातें हमें  सिखाती हैं कि जीवन सरल है और उसे सरलता से ही जिया जाये | जीवन की हर परिस्थिति में बच्चे खुश रह सकते हैं और मूलतः यही बचपन का आन्नदभाव है। 

पता नहीं बच्चों को हमेशा हम बडे. सिखाने तक ही क्यों उलझे रहते हैं.......? अल्हड़, आल्हादित बचपन जीते बच्चों से भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है।  हम सबके लिए सीखने की यह नई सोच बचपन को एक बार फिर जीने और अपने बच्चों को समझने जानने की शुरुआत भी हो सकती है |

75 comments:

जयकृष्ण राय तुषार said...

डॉ० मोनिका जी बहुत ही सुन्दर और शिक्षाप्रद पोस्ट |

जयकृष्ण राय तुषार said...

डॉ० मोनिका जी बहुत ही सुन्दर और शिक्षाप्रद पोस्ट |

विवेक रस्तोगी said...

जब बच्चे छोटे होते हैं, तो वे समुंदर के आकार का दिल रखते हैं और याददाश्त भी केवल अपने मतलब की :D, और खासकर अपने मतलब की चीजों के लिये जैसे कि पिज्जा बर्गर या चॉकलेट ।

केवल राम said...

बच्चों के मन में, जीवन में, भावनाओं में, जो उल्लास होता है वो संकट में भी मुस्कुराना सिखा देता है।
जिन परिस्थितियों में खुद को समझदार और बड़े कहने वाले व्यक्ति डगमगा जाते हैं उन परिस्थितियों मने बच्चे मुस्कुराते रहते हैं .....और जीवन की यह निर्लेपता हम में सारी उम्र बनी रहे तो बेहतर है .....विचारणीय पोस्ट ...!

प्रवीण पाण्डेय said...

बच्चों की तरह दुनिया देखने का आनन्द निराला है।

Arvind Mishra said...

बच्चों से वही जुड़ सकता है जिसमें वैसी ही कुछ मासूमियत और सहजता बची खुची हो ....जीवन का आनंद तो सचमुच बच्चा बने रहने में ही है !

Smart Indian said...

@पता नहीं बच्चों को हमेशा हम बड़े सिखाने तक ही क्यों उलझे रहते हैं?
जी, एकदम सही सवाल किया।

वाणी गीत said...

बच्चों से भी हम बहुत कुछ सीखते हैं और सबसे अधिक तो वे अपनी शैतानियों से हमारी सहनशक्ति को बढ़ाते हैं !

रूप said...

sach hai , bachche hamse zyada jante hain !

गिरधारी खंकरियाल said...

बच्चे ही तो हमारे प्रेरणा स्रोत होते हैं

Anupama Tripathi said...

मोनिका जी आपने बहुत सही बात लिखी है ....सकारात्मक सोच से भरी है आपकी पोस्ट ... जीवन का सरल आनंद तो बच्चों के साथ ही आता है ...!!
बधाई एवं शुभकामनायें.

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत सही बात कही आपने।
----
कल 04/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

vijai Rajbali Mathur said...

निश्चय ही बच्चे निष्कपट और सरल होते हैं,उनमे भेद-भाव-ऊंच-नीच-गरीब-अमीर का फर्क भी नहीं होता है। बच्चों से सीखने की बहौत गुंजाईश है ,लेकिन बड़े ही तो बच्चों को गुमराह करने की बातें और आयोजन करते रहते हैं।

Atul Shrivastava said...

सुंदर और प्रेरक पोस्‍ट।
बच्‍चे कभी कभी काफी कुछ सिखा जाते हैं।
आभार।

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर और संदेशपरक पोस्ट्।

सदा said...

वाह ...बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

आशा बिष्ट said...

aapne sahi likha hai..bachchon ka beeti baaten bhool jane ka swbhav ....jeewan saral kar deta hai...sach me bhool jana bhi apne aap me ek gun hai..
behtareen aankalan...

Shikha Kaushik said...

sach me bahut masoom prashn uthhaya hai aapne .ham bade hote hote jeene ka vastvik aanand hi kho baithhte hain .sarthak post hetu hardik shubhkamnayen .

अशोक सलूजा said...

बिल्कुल सच: बच्चों से ही बहुत -कुछ सीखा जा सकता है ...आज के बारे में ..
शुभकामनाये!

रंजू भाटिया said...

सुन्दर पोस्ट बच्चे मन के सच्चे सही है यह बात ..

amrendra "amar" said...

Dr. Monika ji sunder prastuti ke liye badhai

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आज 03 - 11 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....


...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
_____________________________

G.N.SHAW said...

हमें अपने बचपन की बातें याद नहीं आती है , वैसे में अपने बच्चो की हरकते देख - कुछ उत्सुक होना वाजिब ही है ! कभी - कभी बच्चे ऐसी बातें या हरकत कर जाते है , जिन्हें हम बड़े भी सोंच नहीं सकते ! सार्थक लेख ! बधाई

Anonymous said...

सही कहा आपने.....बच्चे अपने आस-पास और अभी जीते हैं पर हम बड़े ऐसा नहीं कर पाते हैं|

SAJAN.AAWARA said...

bachche man ke sachche, sabke man ko bhate bachche.....
jai hind jai bharat

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

कई बार महसूस किया है कि बच्चे व्यवहार में भी निपुण होते हैं। वे जो कहना चाहते हैं, करना चाहते हैं, कह भी जाते हैं और उसके साथ कोई लाग लपेट भी नहीं करते। देखा जाय तो व्यवहार की इस मासूम सोच में भी जीवन की उत्कृष्टता है और एक सुख भी ।

सही अवलोकन किया है ..बच्चों से सच ही बड़े बहुत कुछ सीख सकते हैं .. पर होता यह है कि बड़े लोग बच्चों को दुनियादारी सिखाने के चक्कर में उनकी मासूमियत खत्म कर देते हैं

संध्या शर्मा said...

बच्चों की ऐसी छोटी छोटी बातें हमें सिखाती हैं कि जीवन सरल है और उसे सरलता से ही जिया जाये | जीवन की हर परिस्थिति में बच्चे खुश रह सकते हैं और मूलतः यही बचपन का आन्नदभाव है।

मोनिका जी बिलकुल सही कहा है आपने बच्चों के साथ बचपन की मासूम सी दुनिया में लौटा जा सकता है.... सुन्दर लेख

Pallavi saxena said...

सौलाह आने सच्ची बात कही है आपने मैं आपकी हर एक बात से सहमत हूँ क्यूंकि मेरा भी एक बेटा है 7 वर्ष का और उसकी बातें सुनकर मुझे भी ऐसा ही कुछ अनुभव होता है जैसा आपने लिखा है वाकई बहुत कुछ सीखा जा सकता है इन नन्हें सुमन से बस सीखने की मंशा होनी चाहिए बहुत बढ़िया प्रस्तुति जो मुझे अपने से बहुत करीब लगी.... आभार

Human said...

आपकी पोस्ट्स हमेशा ही सकारात्मकता से जुडी होती हैं व सकारात्मक सन्देश लिए हुई होती हैं इस बार भी मेरे विचार से आपने अपनी पोस्ट द्वारा येही बताने का प्रयास किया की बड़ों को भी बच्चों से बहुत कुछ सीखना चाहिए!

shikha varshney said...

सुन्दर शिक्षाप्रद पोस्ट.

दिगम्बर नासवा said...

आपका कहना सच है ... प्राकृति जो सिखाना चाहती है भोले पण से ही सिखलाती है और बच्चे भी तो भोले प्राकृति के रूप हैं ... जरूरत है हमें खुले मन रखने की ...

Arvind kumar said...

khoobsurat post....seekha to kisi se bhi jaa sakta hai....

***Punam*** said...

"पता नहीं बच्चों को हमेशा हम बडे. सिखाने तक ही क्यों उलझे रहते हैं.......? अल्हड़, आल्हादित बचपन जीते बच्चों से भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है। हम सबके लिए सीखने की यह नई सोच बचपन को एक बार फिर जीने और अपने बच्चों को समझने जानने की शुरुआत भी हो सकती है |"

बस इतना ही तो करना है....!!
खूबसूरत !!

Vaanbhatt said...

काश कि बच्चों से हम कुछ सीख पाते...कोरी चादर की तरह रह पाना नामुमकिन लगता है...

संगीता पुरी said...

बहुत सटीक बातें कही आपने !!

Unknown said...

बहुत हे भाव पूर्ण रचना...बच्चे आत्मा के नैसर्गिक अबोधपन को दर्शाते हैं.....शुभ कामनायें डा० मोनिका जी !!!!

Rajesh Kumari said...

बहुत ही अच्छी शिक्षा देती हुई पोस्ट बहुत बढ़िया लगी

डॉ. मनोज मिश्र said...

सुन्दर पोस्ट.

***Punam*** said...

thanx for instant comment....!
bas....abhi abhi to post kiya tha !
thanx again !!

अनामिका की सदायें ...... said...

sach kaha aapne jingi ko masoom bachho ki tarah jeena seekh le to kitni aasan ho jaye kuchh mushkile.

Manoj Kumar said...

बहुत ही सुंदर......!
हर बच्चे के साथ ढेर सारे नये,मौलिक और दिल्चस्प अनुभव प्राप्त होते हैं.

Suman said...

इतना सुंदर सरल बचपन पता नहीं
बड़ा होते होते न जाने कहाँ खो जाता है !
बहुत सुंदर प्यारा सा लेख !

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति...
सादर...

Satish Saxena said...

इनसे अच्छा कोई नहीं ....
काश हम इनसे कुछ सीख पाते !
शुभकामनायें आपको !

Kunwar Kusumesh said...

Man is always a learner.

तरुण भारतीय said...

इसलिय कहा मुझे मेरा बचपन लोटा तो दो ....मुझे भी बचपन कि कई यादे याद आ गई ..बहुत सार्थक पोस्ट

मेरा मन पंछी सा said...

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है ...

कुमार राधारमण said...

बच्चों को सिखाते-सिखाते बड़े जब स्वयं थक जाते हैं,तब स्वयं उनका व्यवहार ही शिशुवत् हो जाता है। मानो,जीवन फुल सर्किल को प्राप्त हो गया हो।

sourabh sharma said...

जब मैं छोटा था तो चीटियों के लिए बिल खोदता था, उन्हें शक्कर देता था मुझे दुख होता था कि वो मेरे बिल में आकर क्यों नहीं रहते, मुझे जिज्ञासा थी कि वो अपने बिलों में किस प्रकार रहती होंगी, अब सोफे पर या मिठाई में देखने पर गिनगिनकर इनका शिकार करता हूँ। सच जिन्हें हम सिखाना चाहते हैं उनसे सीखने की जरूरत तो हमें है।

virendra sharma said...

लिखने में कलम तोड़ दी आज तो आपने डॉ मोनिका जी .ऐसे ही नहीं कहा गया है :"child is the father of man ".बच्चों में ज्यादा रचनात्मकता होती है pretend play इस का प्रमाण है .

abhi said...

एकदम सही बात...मेरी छोटी छोटी बहनें हैं, कई बार उनसे कुछ कुछ बातें सीखने को मिल जाती हैं!!

Anupama Tripathi said...

•आपकी किसी पोस्ट की हलचल है ...कल शनिवार (५-११-११)को नयी-पुरानी हलचल पर ......कृपया पधारें और अपने अमूल्य विचार ज़रूर दें .....!!!धन्यवाद

अभिषेक मिश्र said...

बचपने में ही बहुत कुछ सीखा जाते हैं बच्चे.

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...







आदरणीया डॉ॰ मोनिका शर्मा जी
सस्नेहाभिवादन !

सच है -
बच्चों के मन में, जीवन में, भावनाओं में, जो उल्लास होता है वो संकट में भी मुस्कुराना सिखा देता है।
कुछ पल में ही बीती बातें भूल जाने वाला उनका स्वभाव तो आज के समय में हम सबका जीवन सरल कर सकता है।

सार्थक सुंदर प्रविष्टि के लिए आभार एवं साधुवाद !

बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार

ऋता शेखर 'मधु' said...

आज के बच्चे हमारे सोच की दिशा ही बदल देते हैं...बहुत सार्थक पोस्ट.

virendra sharma said...

अनुशिक्षक हैं बच्चे हमारे लेकिन हम अपने विचार उनपर थोपने में मुब्तिला रहतें हैं .उनकी सोच को रचनात्मकता ,को कुंद बनाने के सारे इंतजामात हम किये हैं .

Sonroopa Vishal said...

मोनिका जी आपके ब्लॉग का लुक बहुत ही सुंदर है,और पोस्ट तो है ही सुंदर बच्चों के जैसे !

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बहुत सुंदर,
सकारात्मक संदेश देता सार्थक लेख

Sadhana Vaid said...

बहुत ही शिक्षाप्रद एवं प्रेरक आलेख है आपका ! इसमें कोई संदेह नहीं बच्चों के साथ सहज रूप से जिया जाये और उन्हीं की आयु के साथ घुल मिल जाया जाये तो बहुत कुछ सीखने की संभावनाएं पैदा हो सकती हैं जो हमारे तनाव को कम कर सकती हैं ! लेकिन समस्या यही है कि बड़े जब भी बच्चों के साथ होते हैं उन्हें अनुशासन में रखने की कोशिश में ही सारा कीमती समय बर्बाद कर देते हैं ! बहुत ही बढ़िया आलेख ! बधाई स्वीकार करें !

मदन शर्मा said...

बहुत सुन्दर लिखा है आपने....
बहुत गहन .. सुन्दर अभिव्यक्ति
आपको मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं !!

पूनम श्रीवास्तव said...

monika ji
sarva -pratham to main aapse dil se xhama chahti hun.kafi dino baad aapkr blog par aana hua.
karan bahut se rhen hain par mukhy karan aswasthata hi hai.jo ab tak saath nibha rahi hai----;)
isi liye net par bhi jald aana nahi ho paata.aur comments dene mebhi bahut hi vilamb ho jaata hai.
aapki post vastav me bahut hi vishhleshhnatmak lagi.
sach! kabhi -kabhi ham apne pass rahne wali khushi ki taraf dhyaan hi nahi dete.aur dur ki hi sochte rah jaate hain.
kisi ne sach hi likha hai ki-- agar jivan jeena hai to bachche ban jao.
tabhi to ham bade bachchon ke saath apne bachpan ki yaad ko taza karte hain .unhe mahsus karte hain.
aapne bilkul sahi likha hai-bachche anjaane me hi hame bahut kuchh aisa sikha jaate haijinhe ham bade soch bhi nahi paate.
baut hi behtreenaur vivechan ki drishhti se bahut hi mahtv -purn prastuti
bahut bahut badhai
poonam

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

हम भी हमारे पोते-पोती से बहुत कुछ सीक रहे है। शायद समय की धूल जिन यादों पर पड गई, वह अब पुनः साफ़ हो रही है :)

हरकीरत ' हीर' said...

वैसे भी आजकल बच्चों को बड़ों से ज्यादा ज्ञान होता है .....:))

मुनीश ( munish ) said...

जी हाँ मैं भी आपसे इत्तेफ़ाक रखता हूँ ।

महेन्‍द्र वर्मा said...

बच्चों की सोच और समझ का अच्छा विश्लेषण।

बच्चों की बातेां में छल-प्रपंच नहीं होता। वे वैसा ही कहते हैं, जैसा अनुभव करते हैं, स्वाभाविक रूप से। इनसे बहुत कुछ सीखा जा सकता है।

amit kumar srivastava said...

it is innocence and nascence which makes a child so full of wisdom,as we grow we become biased in our thoughts which ultimately wastes our capability to learn more.

रजनीश तिवारी said...

बचपन का दिल साफ होता है उस पर वक्त की धूल नहीं होती और तथाकथित दुनियादारी धीरे-धीरे मुस्कान छीन लेती है और हम बड़े हो जाते हैं ...बहुत अच्छी पोस्ट ।

रचना दीक्षित said...

आज के बच्चे ज्ञान के भण्डार हैं. सच नयी तकनीक की ग्राहयता भी उनमे अनमोल है. बहुत सुंदर और शिक्षाप्रद आलेख.

निवेदिता श्रीवास्तव said...

मोनिका ,बहुत सच्चा लिखा है ..... दर असल बच्चों की दुनिया निष्पाप होती है इसीलिये हर बात में उनको सकारत्मक्ता मिल जाती है !

Rajnish said...

अनोखी प्रस्तुति...गंभीर और अच्छा विषय...बहुत खूब...

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

डॉ मोनिका जी अभिवादन बहुत सुन्दर ...सच में बच्चों से सीखने में बहुत ही आनंद और ऊर्जा ..उनकी भाग दौड़ एक एक पल व्यस्त रहना गजब का ...
भ्रमर 5
नई उर्जा और सृजनात्मकता का प्रवाह हमें बच्चों से मिल सकता है | यूँ ही उनके साथ कभी उनके खिलौनों से खेलें.... कभी घूमने निकल जाएँ ....और देखें कि कितना कुछ ऐसा है जो बच्चों से सीखा जा सकता है।

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह said...

kya baat hai,bahut mahattvapoorn charch ke liye aabhaar

Srikant Chitrao said...

बहोत ही अभ्यासपूर्ण ,रोचक लेख | यह लेख आपके संवेदनशील और ममता भरे मन को दर्शाता है |धन्यवाद |

राजन said...

बिल्कुल सही कहा आपने.बच्चे दिल के मामले में तो बड़ों से बड़े थे ही लेकिन आजकल के बच्चे तो दिमाग में भी बड़ों को मात देते है.

Dinesh said...

मुझे आजकल लग रहा है कि मैनें कभी मौसम के रंगो इस तरह नहीं देखा और जिया जैसे मेरा बेटा चैतन्य करता है। कभी कभी एक फूल या घास को भी इतनी मासूमयित से अपना दोस्त बनाता है कि लगता है हम बड़ों ने जीवन जीना ही छोड़ दिया है | हमारे आसपास कितना कुछ बिखरा पड़ा है जो जीवन को एक अलग दृष्टि से देखना और जीना सीखता है। उसे चींटी काट ले तो गुस्सा नहीं आता, ना ही चींटी को तकलीफ देने की सोचता है...... Bahut sundar Bhav....apki rachna dil ko chune wali hai... Sadhuwad...

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