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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

24 March 2011

बच्चों को घर से मिलें राष्ट्रधर्म के संस्कार........ !




अपनी मातृभूमि......... राष्ट्रीय प्रतीक..... संस्कृति...... सभ्यता और जीवन दर्शन का सम्मान किसी भी देश के नागरिकों का धर्म भी है और कर्तव्य भी। आज की पीढी में देखने में आ रहा है देश की गरिमा और स्वाभिमान का भाव मानो है ही नहीं। देश के कर्णधारों के ह्दय में अपनी जन्मभूमि के प्रति जो नैर्सगिक स्वाभिमान होना चाहिए उन संस्कारों की अनुपस्थिति विचारणीय भी है और चिंताजनक भी।

संस्कार यानि हमारी जङें ...... हमारी पहचान........ ये संस्कार हमेशा एक पीढी से दूसरी पीढी में हस्तांतरित होते आए हैं और आज भी जीवित हैं । तो फिर मातृभूमि के लिए सर्वस्व लुटाने वाले वीर देशभक्तों के इस देश में राष्ट्रधर्म के संस्कार से नई पीढी अनजान और विमुख क्यों है......... ?


ऐसे में यह सोच का विषय है कि क्या किया जाए..... ? मुझे लगता है कि मातृभूमि के प्रति सम्मान और देश के लिए स्वाभिमान के राष्ट्रवादी विचारों की प्रेरणा उन्हें घर-परिवार से मिलने वाले संस्कारों का हिस्सा बने। ऐसे संस्कारों से संपन्न जीवन ही हमारी भावी पीढ़ी को कर्तव्यपरायण सुनागरिक बना सकता है।

अक्सर हम देखते है कि कोई बच्चा चाहे किसी भी धर्म या संप्रदाय के परिवार में जन्मा हो छोटी उम्र से ही अपने धर्म के तौर तरीके सीख जाता है। इन बातों की पैठ उसके मन में इतनी गहरी हो जाती है कि जीवन भर वह उन्हें नहीं भूलता। इसका सबसे बङा कारण है परिवार के सदस्यों, बङे-बुजुर्गों द्वारा बच्चे को यह सब सिखाया जाना। उसके अंर्तमन में अपने धर्म-दर्शन और पारिवारिक संस्कारों का जो अंकुर बचपन में घर परिवार के सदस्य रोपते हैं उसका प्रभाव इतना गहरा होता है कि वो सदैव के लिए उनके प्रति समर्पित हो जाता है।


जैसे कोई बच्चा छोटी उम्र में अपने घर के संस्कारों और रीति-रिवाज़ों से जुङ जाता है वैसे ही पारिवारिक संस्कारों में अगर राष्ट्रधर्म की शिक्षा को भी जोङ लिया तो बचपन से ही उनके मन में राष्ट्रधर्म की सोच को प्ररेणा मिलेगी। कितना सुखद होगा अगर कुछ समय निकालकर घर के बङे बुजुर्ग और अभिभावक अपने बच्चों को कभी तिरंगे के मान या राष्ट्रगीत के सम्मान का भी पाठ पढायें।

देश के नाम पर सिर्फ शिकायतों और आलोचनाओं की बात न हो। कम से कम बच्चों से तो नहीं। सकारात्मक विचारों के साथ बच्चों को जिम्मेदार नागरिक बनने और अपने कर्तव्यों के प्रति प्रतिबद्धता की भी सीख घर से ही दी जाये। शहीदों और राष्ट्रीय चिन्हों के प्रति सम्मान से जुङा संवाद भी हमारी दिनचर्या में शामिल हो।

राष्ट्रहित की सोच के दिव्य बीज घर से ही बच्चों के मन मे बोयें जायें तो ये भाव उनके व्यक्तिव में पूरी तरह समाहित हो जायेंगें। इसके जरूरी है कि दादी नानी बच्चों को देश के लिए अपना जीवन न्यौछावर करने वाली महान विभूतियों की कहानियां सुनाएं। बच्चों के समक्ष मातृभूमि के मान का गौरव गान हो । रोजमर्रा के जीवन में शामिल यह छोटे छोटे बदलाव बच्चों की सोच की दिशा मोङने में काफी अहम साबित हो सकते हैं। जो हमारे बच्चों में देशानुराग और आत्मबलिदान की चेतना को जन्म देंगें।

अपने परिवार की नई पीढी को राष्ट्रीय धर्म के मूल्यों का बोध कराना हर परिवार की जिम्मेदारी है क्योंकि यही जीवन मूल्य उनमें भारतीय होने के गौरव और स्वाभिमान के भाव पैदा करेंगें।

89 comments:

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

सही कहा आपने,सहमत हूँ।

Anonymous said...

शुभ विचार..
वेद में कहा गया--
मातृमान पितृवान आचार्यवान ब्रूयात ..

पी.एस .भाकुनी said...

देश के नाम पर सिर्फ शिकायतों और आलोचनाओं की बात न हो। कम से कम बच्चों से तो नहीं। .....vicharniy post .
abhaar

प्रवीण पाण्डेय said...

बचपन में दिये गये संस्कार और मूल्य आने वाले घनघोर झंझावातों में भी सुस्थिर रहने की प्रेरणा देते हैं।

केवल राम said...

राष्ट्रहित की सोच के दिव्य बीज घर से ही बच्चों के मन मे बोयें जायें तो ये भाव उनके व्यक्तिव में पूरी तरह समाहित हो जायेंगें।
बस इसी सोच को अपनाने की तो जरुरत है ...बच्चों को सम्पति से जयादा संस्कारों का हस्तांतरण करना चाहिए . आपने बहुत सुंदर विचार को अपनाने की और ध्यान दिलाया है

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

इतिहास की पुस्तकों में ही सही ज्ञान देने की जगह भ्रामक जानकारियां हों, नैतिकता का घोर पतन हो चुका हो सत्य की जगह असत्य ने ले ली हो तो यही तो होगा. कहां से आयेंगे संस्कार...

सुज्ञ said...

अतिआवश्यक तथ्य है।

Anonymous said...

मोनिका जी,

बिलकुल सही कहा आपने.......मैं सहमत हूँ आपसे.....आपसे वादा करता हूँ जब मैं अभिभावक बन जाऊंगा तो ऐसा ज़रूर करूँगा :-)

एक बात - 'अगर तुम चाहते हो दुनिया बदल जाये तो अपने से शुरू कर दो'

इस को ध्यान में रखकर ही शयद हम (भारतीय) बदल (सुधर) सकते हैं ......क्यों है न ?

vijai Rajbali Mathur said...

सही दृष्टिकोण दिया है -इसका अनुसरण अवश्य ही किया जाना चाहिए.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@इमरान अंसारी
जी हाँ ... आपसे पूरी सहमति रखती हूँ.......

G.N.SHAW said...

सदियों से संस्कार जीवीत थे ...पर आने वाले कल में विलुप्त हो ते जा रहे है !आज - कल के बहुत से माता - पिता भी संस्कार भूलते जा रहे है...सो आने वाला कल बहुत ही बिकृत होगा ! इस चिंता से नहीं बचा जा सकता ! जड़ को मजबूत बनाना जरुरी है , चाहे राष्ट्र धर्म हो या समाज धर्म ! बहुत ही सुन्दर लेख !

sonal said...

मेरी प्रारंभिक शिक्षा एक ऐसे स्कूल में हुई जहाँ जन गण मन और बंदेमातरम नियम के साथ गाये जाते थे ..छोटे छोटे बच्चों को भी राष्ट्र ध्वज को फहराने के नियम दिल से याद थे ..आज मिस करती हूँ

Suman said...

मोनिका जी,
सही कहती है आप सहमत हूँ

दर्शन कौर धनोय said...

सही कहा आपने मोनिका जी हम खुद बच्चो को यह संस्कार देगे तभी तो आगे चल कर वो अपने बच्चो में यह संस्कार ड़ाल पाएगे --एक अच्छे नागरिक की नीव घर में ही रखी जाती है-- परिवार उसकी पहली पाठशाला होती है !

vandana gupta said...

सही बात सौ प्रतिशत सहमत्।

Yashwant R. B. Mathur said...

आपके विचारों से सहमत हूँ.

सादर

सदा said...

बहुत सही कहा है आपने ...बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

रश्मि प्रभा... said...

जैसे कोई बच्चा छोटी उम्र में अपने घर के संस्कारों और रीति-रिवाज़ों से जुङ जाता है वैसे ही पारिवारिक संस्कारों में अगर राष्ट्रधर्म की शिक्षा को भी जोङ लिया तो बचपन से ही उनके मन में राष्ट्रधर्म की सोच को प्ररेणा मिलेगी। कितना सुखद होगा अगर कुछ समय निकालकर घर के बङे बुजुर्ग और अभिभावक अपने बच्चों को कभी तिरंगे के मान या राष्ट्रगीत के सम्मान का भी पाठ पढायें।
pahle yahi to parampra thi

anshumala said...

जब बड़ी को ही अपने नागरिक कर्तव्यों का ज्ञान नहीं है वो उसे नहीं निभाते तो वो बच्चो को क्या सिखायेंगे | सिखाना तो परिवार को ही चाहिए क्योकि परिवार ही किसी बच्चे की प्रथम पाठशाला होती है |

शिवा said...

बहुत सुन्दर लेख !

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

बहुत ही सुन्दर विचारों से भरा लेख! आज इसी बात की तो आवश्यकता है ! अगर हमारी आने वाली पीढ़ी देश के प्रति अपने दायित्व को समझती है तो बहुत सारी समस्याएँ अपने आप सुलझ जायेंगी !
आभार मोनिका जी!

Kunwar Kusumesh said...

बहुत अच्छा आलेख. काश लोग समझ जायें.

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

शत प्रतिशत सच्ची बात लिखी है आपने....

जीवनोपयोगी एवं प्रेरक लेख .....प्रशंसनीय |

Kailash Sharma said...

बहुत सार्थक सलाह..अगर बचपन से ही देशभक्ति की भावना बच्चों के मन में स्थापित हो जाये तो आगे आने वाली पीढ़ी समाज की बहुत सी बुराइयों से अपने आप लडने को सक्षम हो जायेगी.

संध्या शर्मा said...

अपने परिवार की नई पीढी को राष्ट्रीय धर्म के मूल्यों का बोध कराना हर परिवार की जिम्मेदारी है क्योंकि यही जीवन मूल्य उनमें भारतीय होने के गौरव और स्वाभिमान के भाव पैदा करेंगें।

बिलकुल ठीक कहा है, आपने हमारे सारे दायित्वों में हमें इसे शामिल करना ही चाहिए वैसे भी बच्चे होते हैं कच्ची कोमल सी मिटटी की तरह जैसा आकर दोगे ढल जायेंगे उसमे..
बहुत अच्छी सोच...

​अवनीश सिंह चौहान / Abnish Singh Chauhan said...

अपने परिवार की नई पीढी को राष्ट्रीय धर्म के मूल्यों का बोध कराना हर परिवार की जिम्मेदारी है क्योंकि यही जीवन मूल्य उनमें भारतीय होने के गौरव और स्वाभिमान के भाव पैदा करेंगें। -आपकी ये पंक्तियाँ बहुत मायने रखती है . मेरी बधाई स्वीकारें

Hemant Kumar Dubey said...

मोनिका जी, आपने तो हमारे मन की बात कह दी |

जब मैं छोटा था तब हमारे घरों में दीवालों पर देश भक्त शहीदों व अन्य वीरों की तसवीरें होती थीं | दादा जी रात को भगत सिंह , चन्द्र शेखर आज़ाद , शिवाजी , वल्लभ भाई पटेल, महात्मा गाँधी आदि देश भक्तों के बारे में कहानियां सुनाते थे | १५ अगस्त और २६ जनवरी के दिन झंडा ले कर हम गाँव गाँव गली गली घूमते थे और "विजयी विश्व तिरंगा प्यारा , झंडा ऊँचा रहे हमारा ...." | अब तो जब राष्ट्र-गान बजता है टी . वी . पर तो लोग खड़े होने में भी आलस महसूस करते हैं | अब हमारे घर आधुनिक चित्रकला से शोभित होते हैं और बच्चों को हैरी पोट्टर , अलिस इन वंडर लैंड , पिनोचियो आदि की कहानियां सुनाई जाती हैं | बच्चों को कार्टून देखने दिया जाता है | देश और देश प्रेम के बारे में न तो अभिभावक आपस में बात करतें हैं न ही बच्चों से |जो नस्ल तैयार हो रही है उसके अन्दर भावुकता , प्रेम , आदर्श और नीति जैसी भावनाएं ही नहीं हैं |

आज जरूरत है कि हम बच्चों को संस्कारी बनायें नहीं तो हमें ही आगे चल कर परेशानी झेलनी पड़ेगी |

धन्यवाद ,

हेमंत कुमार दुबे

shikha varshney said...

बिलकुल सच कहा आपने .संस्कार घर से ही मिलते हैं.पर आजकल तो आलोचना करते देखते हैं बच्चे अपने माता पिता को देश की ..सम्मान कहाँ से सीखेंगे.

मदन शर्मा said...

आपने बहुत सुंदर विचार को अपनाने की और ध्यान दिलाया है
आपकी शानदार निर्मल प्रस्तुति के लिए शत शत नमन
रंगपंचमी की आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ..

Amit K Sagar said...

अपने परिवार की नई पीढी को राष्ट्रीय धर्म के मूल्यों का बोध कराना हर परिवार की जिम्मेदारी है क्योंकि यही जीवन मूल्य उनमें भारतीय होने के गौरव और स्वाभिमान के भाव पैदा करेंगें।
>>> इनका हर परिवार को अनुसरण करना चाहिए <<< लेख का शब्द-शब्द, विचार-विचार बहुत सुन्दर. साधुवाद. ऐसे लेखन की आज जरूरत भी लगती है जब हम अपने मूल से इतर और गिरेवां से विषयांतर होते जा रहे हैं.
---
आपके लिए एक जरूरी आमंत्रण @ उल्टा तीर

ashish said...

मुझे तो लगता है की धर्म से गुरुतर होता है राष्ट्र धर्म कर्तव्य का निर्वहन . देश के भविष्य के कर्णधारो को इस कर्तव्य का भान तो बचपन से ही हो जाना चाहिए . सुगढ़ और सार्थक आलेख .

राज भाटिय़ा said...

मोनिका जी....संस्कार... तो एक बीती बात हो गई हे, आज के मां बाप के पास समय ही नही, जो बच्चो को अच्छॆ संस्कार दे सके, फ़िर देश प्रेम के संस्कार कैसे दे... आप से सहमत हे जी, लेकिन जिस देश मे हिन्दी बोलने पर स्कूलो मे जुर्माना लगता हो वहां यह सब सोचना....एक सिर्फ़ हमारा ही देश हे जहां ऎसी वेबकुफ़िया होती हे.

Dr (Miss) Sharad Singh said...

राष्ट्रीय धर्म के मूल्यों का बोध सभी के लिए जरूरी है...
लेख बहुत ही प्रेरणा दायक है...बधाई.

rajesh sharma said...

बिलकुल सही कहा आपने/ राष्ट्र धर्म सबसे अहम् हैं / सबसे पहले राष्ट्र होना चाहिए उसके बाद परिवार धर्म समाज/
समस्या ये हैं की लोग लिखते और बोलते वक़्त कुछ और होते हैं पर जब अपने ऊपर आती हैं तब कुछ और/
इंडिया और पाकिस्तान के बीच होनेवाले वर्ल्ड कप के सेमिफिनाल के दिन जाने कितने ही तथाकथित भारतीय मुसलमान
पाकिस्तान की जीत की कामना करेगे/ अंसारी जी आप भी अपने समाज को समझाए /

rajesh sharma said...

बिलकुल सही कहा आपने/ राष्ट्र धर्म सबसे अहम् हैं / सबसे पहले राष्ट्र होना चाहिए उसके बाद परिवार धर्म समाज/
समस्या ये हैं की लोग लिखते और बोलते वक़्त कुछ और होते हैं पर जब अपने ऊपर आती हैं तब कुछ और/
इंडिया और पाकिस्तान के बीच होनेवाले वर्ल्ड कप के सेमिफिनाल के दिन जाने कितने ही तथाकथित भारतीय मुसलमान
पाकिस्तान की जीत की कामना करेगे/ अंसारी जी आप भी अपने समाज को समझाए /

Dr Varsha Singh said...

बहुत सही कहा है आपने ...
बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

Roshi said...

bilkul sahi kaha aapne hamare rastra ke prati bhi kuch kartavya hai

Rakesh Kumar said...

आपने सही कहा है कि
" परिवार के सदस्यों, बङे-बुजुर्गों द्वारा बच्चे को यह सब सिखाया जाना। उसके अंर्तमन में अपने धर्म-दर्शन और पारिवारिक संस्कारों का जो अंकुर बचपन में घर परिवार के सदस्य रोपते हैं उसका प्रभाव इतना गहरा होता है कि वो सदैव के लिए उनके प्रति समर्पित हो जाता है।"
सुन्दर, सार्थक और विचारपूर्ण लेख.

डॉ० डंडा लखनवी said...

प्रशंसनीय.........लेखन के लिए बधाई।
========================
प्रवाहित रहे यह सतत भाव-धारा।
जिसे आपने इंटरनेट पर उतारा॥
========================
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

Shikha Kaushik said...

अपने परिवार की नई पीढी को राष्ट्रीय धर्म के मूल्यों का बोध कराना हर परिवार की जिम्मेदारी है क्योंकि यही जीवन मूल्य उनमें भारतीय होने के गौरव और स्वाभिमान के भाव पैदा करेंगें। -bilkul sahi bat kahi hai aapne .puri tarah sahmat hun .sarthak aalekh hetu aabhar .

डा. मनोज रस्तोगी , मुरादाबाद said...

मोनिका जी, आप से मैं पूरी तरह सहमत हूँ । आज बच्चे शीला की जवानी और मुन्नी बदनाम हुई जैसे गाने जब तुतलाते हुए गाते हैँ तो हम ही बहुत खुश होकर उसे गोदी में उठा कर चूम लेते हैँ । जब तक टीवी का वायरस घरों में रहेगा तब तक कुछ नहीँ हो सकता ।
rastogi.jagranjunction.com

हरीश सिंह said...

आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा , आप हमारे ब्लॉग पर भी आयें. यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो "फालोवर" बनकर हमारा उत्साहवर्धन अवश्य करें. साथ ही अपने अमूल्य सुझावों से हमें अवगत भी कराएँ, ताकि इस मंच को हम नयी दिशा दे सकें. धन्यवाद . हम आपकी प्रतीक्षा करेंगे ....
भारतीय ब्लॉग लेखक मंच
डंके की चोट पर

Smart Indian said...

यह ज़िम्मेदारी तो हमें लेनी ही पडेगी। बच्चे बडों को देखकर भी बहुत कुछ सीखते हैं। इसलिये हमारा आचार, व्यवहार भी देश, समाज के लिये यथासम्भव हितकर होना चाहिये।

जयकृष्ण राय तुषार said...

बहुत सुंदर विचारों से लैस पोस्ट बहुत बहुत बधाई डॉ० मोनिका जी |

Sunil Kumar said...

सत्य कहा आपने लेकिन जब वन्देमातरम पर राजनीती होंने लगे तो हम क्या करे अनुसरण करने योग्य पोस्ट , आभार

shyam gupta said...

--अति-सुन्दर आलेख...ये संस्कार ही जेनेटिक-कोड में स्थापित होकर पूरा जीवन संचालित करते हैं व आगे की पीढियों को भी....
--आपने बिल्कुल सही कहा, पर क्या हम ये सोचेंगे कि इस सब के लिये हम/हमारी पीढी ही जिम्मेदार है जो स्वय्ं अपनी संस्क्रिति को नष्ट करने पर तुली हुई है, विदेशी भाव अपनाकर ....

Arshad Ali said...

मोनिका दीदी,
आप फुल टाइम माँ है...मुझे ये लाइन ज्यादा प्रभावित कर गयी.

बच्चों के अन्दर संस्कार डालने की ज़िम्मेदारी घर की होती है और ये मनुष्य का धर्म भी है...बड़ों का आदर सम्मान ..से बात की शुरुवात करते हुए हमें राष्टधर्म का भी इल्म देना होगा और यही आगे हमारे बच्चों को अपने आगे आने वाली पीढ़ी को मजबूत बनाने में मदद कर पायेगा ...

आपका आलेख बर्तमान से लेकर भविष्य तक के लिए एक सच्चाई है और हमें इस बात को याद रख कर आगे की पीढ़ी को बतलाना होगा.

वीरेंद्र सिंह said...

पूरी तरह सहमत हूँ. सार्थक लेखन व उम्दा सोच के लिए आपको बधाई.

शोभना चौरे said...

मोनिकाजी
आज सुबह ही मै मंदिर गई थी वैसे मै नियमित नहीं जाती आज शीतला सप्तमी है तो पूजा करने घर (बेंगलोर )के पास ही छोटा सा किन्तु उर्जा से परिपूर्ण मंदिर है ,वहा पर देखा करीब ७-८ साल के बच्चे स्कूल जाने के पहले दर्शन करने आये थे |तब मेरे मन में भी यही विचार आये थे की संस्कारो की नीव का कैसे डाली जाती है ?उन बच्चो को देखकर लगा मेरा मंदिर जाना सार्थक हो गया और फिर आपकी इस पोस्ट ने बहुत कुछ करने को दे दिया \
अभी मेरा पोता डेढ़ साल का है मुझे ही तो उसमे देश प्रेम की भावना की नीव भरनी होगी |
इतनी बढिया पोस्ट के लिए धन्यवाद |

Rajendra Rathore said...

आपके विचार बहुत अच्छे हैं।

naresh singh said...

विचारणीय मुद्दा है | बच्चों को बच्चे ही बने रहने दीजिए उन्हें जमाने की हव मत लगाइए | उनके लिए देशप्रेम ही सब कुछ होना चाहिए भले ही देश के हालात कुछ भी हो तभी आगे चल कर देश में बदलाव आएगा अन्यथा तो देश गर्त में ही चला जाएगा |

Pooja Anil said...

बहुत नेक विचार हैं आपके मोनिका जी. जीवन में इन्हें अपनाना और बच्चों को सौपना अति आवश्यक है.
बहुत शुभकामनाएं.

मदन शर्मा said...

मोनिका जी नमस्कार! आपने तो हमारे मन की बात कह दी. आप से पूरी तरह सहमत.
आज की इस स्थिति के लिए हमारी शिक्षा व्यवस्था तथा हम भी काफी हद तक जिम्मेद्वार है. आज की शिक्षा हमें एक नौकर शाह ही बनाती है अच्छा नागरिक नहीं! आज जरुरत है बच्चों को अच्छी शिक्षा के साथ अच्छे संस्कार देने की!

मदन शर्मा said...

मोनिका जी नमस्कार! आपने तो हमारे मन की बात कह दी. आप से पूरी तरह सहमत.
आज की इस स्थिति के लिए हमारी शिक्षा व्यवस्था तथा हम भी काफी हद तक जिम्मेद्वार है. आज की शिक्षा हमें एक नौकर शाह ही बनाती है अच्छा नागरिक नहीं! आज जरुरत है बच्चों को अच्छी शिक्षा के साथ अच्छे संस्कार देने की!

Kajal Kumar said...

लोगों को अपने धर्म से फ़ुर्सत मिले तो राष्ट्रधर्म की बात करें न:-(

Amrita Tanmay said...

Monika jee, aapne bilkul sahi kaha hai.. main bachcho ko aloktantrik deson ki sthiti ka havala dekak aazadi ka arth samjhati hu. bachcho me rashtraprem jagane ki gimmevari hamari hi hai. taki ve aazadi ki kimat samjhe . sundar post.

Neha Mathews said...

मनोविज्ञान विषय में भी यही सिखाया गया है की घर ही बच्चे का पहला स्कूल होता है|आपने बहुत अच्छी बात कही है सकारात्मक विचारों के साथ बच्चों को जिम्मेदार नागरिक बनने और अपने कर्तव्यों के प्रति प्रतिबद्धता की भी सीख घर से ही दी जाये।

abhi said...

मैं तो अपने ब्लॉग पे काफी कुछ लिख चूका हूँ इस मामले में...और कितना गुस्सा आता है इन बातों से ये बता नहीं सकता...
दुःख होता है ये देख की आज की पीढ़ी देश की आलोचना में ज्यादा ध्यान देती है..
गुस्सा तो खैर आता ही है...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सार्थक लेखन है ...आज कल के माँ बाप को भी देश के गौरव की कोई कहानी याद होगी क्या ?

पहले बोध कथाओं के साथ साथ वीरों की कहानियाँ भी सुनाई देती थीं ...

पर सच ही इस ओर सार्थक प्रयास करने की आवश्यकता है ...अच्छे लेख के लिए बधाई

ज्योति सिंह said...

देश के नाम पर सिर्फ शिकायतों और आलोचनाओं की बात न हो। कम से कम बच्चों से तो नहीं। सकारात्मक विचारों के साथ बच्चों को जिम्मेदार नागरिक बनने और अपने कर्तव्यों के प्रति प्रतिबद्धता की भी सीख घर से ही दी जाये। शहीदों और राष्ट्रीय चिन्हों के प्रति सम्मान से जुङा संवाद भी हमारी दिनचर्या में शामिल हो।
aapki baato se poori tarah sahmat hoon ,aesa ho jaaye to kya kahne magar kai baar bachche bahar nikalane par auro ki baaton me aa jaate hai .sundar likha hai .

Patali-The-Village said...

बहुत सही कहा है आपने|बच्चों को सम्पति से जयादा संस्कारों का हस्तांतरण करना चाहिए |

Bharat Bhushan said...

स्कूली शिक्षा में भी कुछ कमी है.

दूसरे टीवी, विज्ञापनों आदि के संस्कारों का तूफान बहुत ज़ोर पकड़ गया है.

राष्ट्रधर्म को ईशभक्ति से जोड़ा जाए तो लाभ हो सकता है.

लेकिन भ्रष्टाचारियों के लिए क्या करेंगे? उन्हें पहले देशधर्म सिखाया जाए या ईशभक्ति?

अजित गुप्ता का कोना said...

परिवार में केवल केरियर बनाने की बात ही शेष रह गयी है उन्‍ह‍ें अपने देश से प्रेम करना नहीं सिखाया जाता है अपितु अमेरिका और यूरोप में बसने के सपने देखे जाते हैं।

hamarivani said...

nice

Apanatva said...

poorn roop se sahmat hoo aapke vicharo se.

Rajesh Kumari said...

sahi kaha hai aapne.bachchon ka man kore kagaj ke saman hota hai jo sanskaar hum unme daalenge vo hi seekhenge.Monika ji main aapka blog follow kar rahi hoon.aap se bhi apeksha rakhti hoon ,ki aap bhi meri rachnaaon par najar daal sake.

amit kumar srivastava said...

सामयिक चिंतन....

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" said...

vichaarniye post.....

महेन्‍द्र वर्मा said...

माता-पिता ही बच्चे के प्रथम गुरु होते हैं। वे जो कुछ भी अपने बच्चों को सिखाते हैं वही संस्कार बनकर जीवन को दिशा देते हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि बच्चों को बचपन से ही राष्ट्रधर्म की विशेषताओं से संस्कारित किया जाए।

सार्थक चिंतन, उपयोगी आलेख।

संतोष पाण्डेय said...

सही कहा आपने. राष्ट्रधर्म सिखाया भी जाता है. मैं जिस स्कूल में पढता था वहां क़ि प्राथना क़ि एक पंक्ति है, जिश देश राष्ट्र में जन्म लिया बलिदान उसी पर हो जाएँ. लेकिन बच्चे जब बड़े होकर राजाओ, कल्माडियो को देखते हैं तो ऐसा लगता है क़ि राष्ट्रीयता क़ि बात उन्हें बेवकूफ बनाने के लिए हैं. आखिर कितने नेता या उद्योगपति है जो अपने बच्चो को फौज में शामिल करना चाहेंगे. जिस देश का प्रधानमंत्री बार-बार कहे क़ि उसे पता नहीं था, या वह उतना दोषी नहीं जितना उसे बताया जाता है तो वहां क़ि जानता क्या राष्ट्रधर्म सीखेगी? आखिर किसे है राष्ट्र क़ि चिंता?

आकाश सिंह said...

ऐसा लगता है ये मेरे किये ही लिखा गया है. धन्यवाद |

यहाँ भी आयें|
आपकी टिपण्णी से मुझे साहश और उत्साह मिलता है|
कृपया अपनी टिपण्णी जरुर दें|
यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो फालोवर अवश्य बने .साथ ही अपने सुझावों से हमें अवगत भी कराएँ . हमारा पता है ... www.akashsingh307.blogspot.com

आकाश सिंह said...

बचपन जिंदगी का वो हसीन लमहा होता है जिसे बीत जाने के बाद हर लोग मिस करते हैं और साथ ही साथ ये भी सोचते हैं की काश मुझे बचपन में ये सिखाया गया होता, वो सिखया गया होता तरह तरह की अच्छी बातें दिमाग में आती है| अब जरुरत है उन्ही बातों को नई पीढ़ी में समाहित की जाये|
जैसा बिज बोयेंगे वैसा ही फल मिलेगा ये तो उनिवर्सल सत्य है|

चन्द्र प्रकाश दुबे said...

जहाँ किसी भी कीमत पर कक्षा में,खेल कूद में अव्वल आने की घुट्टी नियमित रूप से पिलाई जाती हो वहां राष्ट्र प्रेम, नैतिकता , आदि जैसे शब्द क्या मायने रखते है? ' success at any cost ' ( किसी भी कीमत पर सफलता ) वाले दौर में उपरोक्त नैतिक आदर्शो, जीवन मूल्यों की किसको जरूरत पड़ी है. ये सामान्य पर जरूरी बातें आज लोगों को उपदेश और बोझिल सी लगती हैं.
बहरहाल , इस मार्मिक मुद्दे पर लेखनी चलाने के लिए आपको साधुवाद..

Vijuy Ronjan said...

Adhikar ki baat sabhi karte hain par hamare desh mein kartvya ki bat birle log hi karte.Aapne hame sab ko ek Aaina dikhaya hai.
Aajkal ki peedhi shayad apne desh ke vishya mein aur iski saanskritik vuirasat ke vishay me kuchh bhi nahi jaanti.Main un logon se kshama yaachna karta hun jo jaagrook hain aur desh ke liye sochte hain nayi peedhi ke hote huye bhi.Main yah aakshep unpar nahi kar raha, par jo school aur college mein padh rahe we paschim ki oar jyada dekhte.
Samskar ka matlab unhe pata nahi...
"देश के नाम पर सिर्फ शिकायतों और आलोचनाओं की बात न हो। कम से कम बच्चों से तो नहीं। सकारात्मक विचारों के साथ बच्चों को जिम्मेदार नागरिक बनने और अपने कर्तव्यों के प्रति प्रतिबद्धता की भी सीख घर से ही दी जाये। शहीदों और राष्ट्रीय चिन्हों के प्रति सम्मान से जुङा संवाद भी हमारी दिनचर्या में शामिल हो।"
Hamare desh ki shiksha paddhti ki vidroopta hamein iase sanskar ur hamari sanskriti se duur le jati.Par Monika ji ye samjhega kaun.Jo niyamak hain hamare desh ke, wo in sabse shayad khud hi duur hain...

Par aapki baat se shat pratishat sahmat hoon aur aapki aawaz ki bulandi mein bhi apni aawaz mila sakta hun...prayas karna chahiye aur ham karenge yah pran bhi.
Bahut hi vicharotejjak rachna.,Badhayee.

Kavita Prasad said...

एक कामयाब और सकारात्मक लेख के लिए बधाई!!!

Vijuy Ronjan said...

Monika Ji,namaskar!
aapki baatein sau pratishat sachhi hain.Par ek yah bhi sach hai ki hamare desh mein rashtra dharm to jo rashtra ke sanchalak hain wo bhi nahi mante.
maine aapke lekh ka saar liya hai jo neeche hai...
"जैसे कोई बच्चा छोटी उम्र में अपने घर के संस्कारों और रीति-रिवाज़ों से जुङ जाता है वैसे ही पारिवारिक संस्कारों में अगर राष्ट्रधर्म की शिक्षा को भी जोङ लिया तो बचपन से ही उनके मन में राष्ट्रधर्म की सोच को प्ररेणा मिलेगी। कितना सुखद होगा अगर कुछ समय निकालकर घर के बङे बुजुर्ग और अभिभावक अपने बच्चों को कभी तिरंगे के मान या राष्ट्रगीत के सम्मान का भी पाठ पढायें।"

Main aapke vicharotejjak lekh se prtabhavit bhi hun aur sahmat bhi.

Sawai Singh Rajpurohit said...

मोनिका जी,
आपने बिलकुल सही लिखा और बहुत ही बढ़िया लेख बहुत ही अच्छा लगा पढ़ कर!

शिक्षामित्र said...

सही है। चैरिटी बिगीन्स एट होम।

कुमार राधारमण said...

माहौल इस संस्कार को प्रतिफल क्षीण करने का प्रयास करेगा। किंतु,नींव ठोस पड़ जाए,तो राष्ट्र सर्वोपरि हो सकता है!

तरुण भारतीय said...

आपकी पोस्ट की सभी बातो से मै सहमत हूँ ...
शुरुआत हम सभी को करनी होगी

पूनम श्रीवास्तव said...

monika ji
aapaka aalekh shat -pratishat sahi hai.
shayad isilye kaha jaata hai ki bachcho ki pahli pathshala ghar hi hoti hai jahan se vo apne logo se natikk samajik v- bouddhik sanskaron ko prapt karta hai.isi sanskaro me agar rashhtr 0dharm ko jod diya jaye to fir to sone pesuhaga wali baat charitarth ho jayegi
aapki prastuti bahut prabhavshali tathabahu-upyogi sandesh se paripurn hai .
bahut bahut badhai.
dhanyvaad
poonam

Anonymous said...

bahut khoob likha aapane
bahut hi accha blog hain

visit mine blog also and follow it if you like it
http://iamhereonlyforu.blogspot.com/

Anonymous said...

bahut hi sunadr lekh. to aap chaitanya ki mumma hai.likhte to bahut log hai par achhe vichaar or janhit me achhe sandesh failane waale log kam hi dekhne ko milte hai. u know u are so sweet as well as ur kid too. thank u so much for visiting my blog.

Asha Joglekar said...

बहुत ही सुंदर विषय चुना है आपने आलेख के लिये । देश प्रेम के बीज वे ही माता पिता बो सकते हैं जिनके मनमें स्वय्ं देश के लिये प्रेम और सम्मान हो । इसके लिये अच्छा साहित्य, वीरों की कहानियां, इतिहास पढना और रुचि जगाना जरूरी है ।

दिगम्बर नासवा said...

आपकी बात से सात प्रतिशत सहमत हूँ ... पर आज के दौर में अर्थ का महत्व इतना ज़्यादा हो गया है की सब बच्चों को भी यही सिखाने में लगे हैं .... अच्छा जागृति लाने वाला लिखा है ...

Unknown said...

you are absolutely right.. I am totally agree with you. and i will do the same with my next generation..

blogtaknik said...

सही कहा देश अभिमान और धर्म में श्रधा जरुर होनी चाहिए

Shambhu Nath said...

बहुत ही बढ़िया और प्रेरणादायक है आपकी ये पोस्ट....धन्यवाद

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

राष्ट्रहित की सोच के दिव्य बीज घर से ही बच्चों के मन मे बोयें जायें
डॉ मोनिका शर्मा जी बहुत सुन्दर लिखा ये लेख आप ने -बच्चों में बचपन से ही अच्छाईयाँ-राष्ट्र और अपनी संस्कृति भर देनी चाहिए जिससे ही उनका समग्र विकास आगे चल संभव हो पाता है ,वचपन में उनकी सीखने की शक्ति बहुत ही तीव्र होती है -जो छाप उस समय इस तरुवर में -इस पौधे में - पड़ गयी वह आजीवन अपनी मिसाल देती रहती है ,आइये अपना सुझाव व् समर्थन हमें भी दें
शुक्ल्भ्रमर 5

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