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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

14 February 2011

संकल्पों और विकल्पों का द्वंद्व.....!


जीवन में संकल्पों का बहुत महत्व है। हमारे द्धारा लिए गये संकल्प हमारी इच्छाशक्ति और जीवन सिद्धांतों के प्रति दृढता को प्रतिबिंबित करते हैं। संकल्प हमारे मन को बांधने का कार्य करते हैं। उसे दिशाहीनता से बचाते हैं। मन में आए दिन अनगिनत इच्छाएं पैदा होती हैं। अक्सर हर तरह विचार बिना दस्तक दिए ही भीतर चले आते हैं । ऐसे में ज्ञान और नियमों के सहारे सही मार्ग को चुनने की आवश्यकता होती है जो बिना संकल्प लिए नहीं किया जा सकता।

संकल्प कुछ भी हो सकता है । कैसा भी हो सकता है। मौन रहने का संकल्प....... सुबह जल्दी उठ जाने का संकल्प....... किसी बुरी आदत या लत से मुक्ति पाने का संकल्प........ स्वस्थ जीवन शैली अपनाने का संकल्प........ या फिर अपनी दिनचर्या व्यवस्थित रखने का संकल्प..........!

संकल्प कोई भी हो उसे निभाने के लिए एक संघर्ष करना पङता है । खुद से लङना पङता है। मुझे तो कभी कभी यह भी महसूस होता है कि अपने आप से लङना सबसे मुश्किल है। शायद यही कारण है कि खुद से द्वंद्व करते समय हमारा मन किसी संकल्प के टूट जाने की स्थिति में कई सारे विकल्प हमारे सामने ले आता है। विशेष बात यह भी है कि इन परिस्थितियों में हमारा अंर्तमन हमें उलाहना भी नहीं देता।


आज हमारा जीवन कुछ ऐसा बन गया है कि ही जैसे ही संकल्प लेने की सोचते हैं उससे जुङे विकल्पों तक मन-मस्तिष्क पहले पहुंच जाता है।


कोई नहीं....... आज नहीं हुआ कोई बात नहीं, कल से फलां फलां काम कर लेंगें। अगर कल भी नहीं हुआ तो फिर अगला आने वाला कल तो है ही ..............!

ऐसे कई विचार मन में मंडराने लगते हैं और संकल्प छूटते रहते हैं। एक ओर विकल्पों के फेर में पङकर मनोबल कमजोर होता जाता है तो दूसरी ओर हम यह सोचकर आत्मसंतुष्ट रहते हैं कि ऐसा न हो पाया तो वैसा तो कर ही लेंगें।

आज इस विषय में बात इसलिए हो रही है कि हमारी कई सामाजिक , व्यक्तिगत , राजनीतिक यहां तक की व्यावाहारिक समस्याओं की जङ भी हमारी संकल्पहीनता ही है। हम विकल्पों के आदी होते जा रहे हैं। यह नहीं तो वो सही।


आज जीवन में स्थायित्व की कमी है। दृढ संकल्प की कमी जीवन में कई तरह के पश्चाताप को जन्म देती है और दिशाहीनता लाती है। पर इतना तो तय है कि संकल्पों को पूरा करने इन्हें विकल्पों से इतर देखना और समझना जरूरी है। क्योंकि संकल्प तो सदा विकल्पों के साथ ही रहते हैं।

85 comments:

Shikha Kaushik said...

sahi kaha monika ji sankalp hamesha vikalpon ke sath rahte hain.

Satish Saxena said...


शायद जीते रहने के लिए संकल्पों की कम, विकल्पों की अधिक आवश्यकता होती है , और जीना आवश्यक है, उन अपनों के लिए जिनको आपकी जरूरत होती है !
शुभकामनायें आपको !

Yashwant R. B. Mathur said...

संकल्प करना जितना आसान है उस पर अमल करना बहुत ही मुश्किल भी है;लेकिन जो अपने लिए गए संकल्पों पर अमल कर पाते हैं उनके सफल होने की भी संभावना भी उतनी ही अधिक होती है.

सादर

Suman said...

maff kijiye galtise tippni dusari post par chhap gai hai.

सदा said...

बहुत ही सच बात कही है आपने इस आलेख में ...बेहतरीन ।

Anonymous said...

मोनिका जी,

अच्छी पोस्ट है आपकी......पर इस बार फिर मैं आपसे सहमत नहीं हूँ......मन को बाँधा नहीं जा सकता.......बांधने से ही तो सारी अड़चन शुरू हो जाती है ....वासना चाहे वो पद की हो धन की या काम की ये तीन मुख्य वासनाएं हैं....मन को बाँधने या दबाने से ये अन्दर ही अन्दर बढती हैं और समय देखकर विस्फोट की तरह फटती हैं......

महात्मा बुद्ध के शब्दों में......मन को जीतना ही सब कुछ जीतना है यहाँ बाँधने और जीतने में ज़मीन और आसमान का फर्क है......चीजों को वैसे देखो जैसी वो हैं.....धारणाएं बीच में मत लाओ......आपने पहले भी मेरी टिप्पणी का जो जवाब दिया था उसमे भी कही धारणा छुपी थी मैंने इसलिए कोई जवाब नहीं दिया था क्योंकि मुझे लगा शायद इससे आपकी आस्था या धारणा को ठेस लगेगी......

आपको क्या लगता है जो ये भगोड़े कथित सन्यासी संसार से भाग खड़े होते हैं....स्वयं को सता कर मन को बाँध लेते है......नहीं ये असम्भव है.....बात तो तब है जब तुम इसी संसार में रहते हुए भी नग्न और निर्बाध ऊपर उठ जाओ......जैसे तुम हो वैसे ही.......चीजों को पास से देखो महसूस करो....चिंतन करो....... उस आग से निकलो उसकी तपिश को महसूस करो.....तभी तुम उससे पार जा सकते हो......मैं फिर एक बार कहता हूँ मन को जीता जा सकता है पर बाँधा नहीं.......

मैंने काफी कुछ लिख दिया है......आपसे हाथ जोड़ कर निवेदन है की कुछ गलत लगे तो मुझे माफ़ कीजियेगा और कृपया मेरी किसी भी बात को अन्यथा न लीजियेगा.......

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

पर इतना तो तय है कि संकल्पों को पूरा करने इन्हें विकल्पों से इतर देखना और समझना जरूरी है। क्योंकि संकल्प तो सदा विकल्पों के साथ ही रहते हैं।


सटीक बात ... जब तक दृढ़ता से संकल्प का पालन न हो तो संकल्प लेने का कोई औचित्य नहीं ...मनन करने योग्य पोस्ट

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

जीवन के सार को आपने बहुत खूबसूरती से बयां कर दिया है। बधाई।

---------
अंतरिक्ष में वैलेंटाइन डे।
अंधविश्‍वास:महिलाएं बदनाम क्‍यों हैं?

रजनीश तिवारी said...

संकल्प लेने का अर्थ यह है की हम किसी प्रश्न पर सजग या सचेत हैं । इतना ही काफी है क्योंकि इससे एक रास्ते की तरफ नज़र तो रहती ही है फिर जो हम कर सकें वो क्षमता, परिस्थिति इत्यादि पर निर्भर करता है। बारंबार प्रयास करते रहना ही लक्ष्य होना चाहिए, क्यूंकि हर संकल्प पूर्ण हो ये शायद संभव नहीं !आत्मविश्वास होने से संकल्प पूरे होने की संभावना बढ़ जाती है । एक अच्छी पोस्ट के लिए धन्यवाद एवं शुभकामनाएँ !

कुश said...

ठीक कहा आपने.. दरअसल जीवन छोटे छोटे संकल्पों को पूरा करने में ही बीतता है..

संजय भास्‍कर said...

संकल्प करना जितना आसान है उस पर अमल करना बहुत ही मुश्किल भी है

संजय भास्‍कर said...

वैलेंटाईन डे की हार्दिक शुभकामनायें !
कई दिनों से बाहर होने की वजह से ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

Arvind Jangid said...

आपने सही लिखा की व्यक्ति की ज्यादातर समस्यायों की जड़ उसमें संकल्प शक्ति की कमी का होना है. एक समस्या और है की हम संकल्प पर टिके इसलिए नहीं रह पाते हैं क्यों की हम अपने स्वार्थों को बलि चढना नहीं देखना चाहते. बात जब अपने स्वार्थों पर आती हैं तो संकल्प भूल जाते हैं. भ्रष्टाचार को विरोध हम तभी तक कर पाते हैं जब तक इस विरोध से हमारा कोई व्यक्तिगत नुकसान नहीं हो, ये ही समस्या है. साफ़ साफ़ होना चाहिए क्या सही है क्या गलत, बिना किसी लाग लपट के.

जैसे जैसे व्यक्ति अपने स्वार्थों की बलि चढाना शुरू कर देगा, संकल्प बढ़ता ही जायेगा, यकीन मानिये, आजमाई हुई बात है!

प्रेरणादाई आलेख हेतु आपका साधुवाद.

पी.एस .भाकुनी said...

shabdon ki sunder udaan,
sunder post,

केवल राम said...

संकल्प के महत्व को उजागर करती पोस्ट ...आपने बहुत स्पष्टता से संकल्प के बारे में विचार किया है ...जहाँ संकल्प होता है वहां विकल्प नहीं, और जहाँ विकल्प होता है वहां संकल्प नहीं ...

Kailash Sharma said...

बहुत सटीक बात कही...अगर हम अपने संकल्पों पर अमल कर पायें तो कितनी समस्याओं से बच सकते हैं..सार्थक आलेख..

amrendra "amar" said...

behtreen prastuti k liye badhai

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

विकल्पों की उपेक्षा करके ही संकल्पों पर अमल किया जा सकता है |
बहुत ही जीवनोपयोगी लेख के लिए आभार !

अजित गुप्ता का कोना said...

मोनिका जी, मैं तो संकल्‍प ले रही हूँ कि यथासम्‍भव आपकी पोस्‍ट अवश्‍य पढूंगी।

Sushil Bakliwal said...

सही कहा आपने, विकल्प आसान हैं और संकल्प कठिन.

Shalini kaushik said...

sankalpon ko lekar aapki post hamesha sare vikalp khatm kar deti hai aur jab taq poori tarah se n padhen ye lekhni kam karna band kar deti hai..bahut achchhe vichar..

Creative Manch said...

हम मन ही मन संकल्प तो कई बातों की लेते हैं लेकिन उन पर कायम नहीं रह पाते
सुन्दर पोस्ट
बधाई
आभार


''मिलिए रेखाओं के अप्रतिम जादूगर से.....'

naresh singh said...

द्वन्द का बढ़िया चित्रण किया है |

amit kumar srivastava said...

पूर्णतया सहमत । संकल्प करने से विश्वास और उसे पूरा कर लेने से आत्म विश्वास बढ़ता है ।

amit kumar srivastava said...

पूर्णतया सहमत । संकल्प करने से विश्वास और उसे पूरा कर लेने से आत्म विश्वास बढ़ता है ।

जयकृष्ण राय तुषार said...

सुंदर विचारपरक आलेख आपको बहुत बहुत बधाई |

वीरेंद्र सिंह said...

मुझे ये लेख बेहद पसंद आया.....क्योंकि इसमें सच लिखा गया है। सामान्यत: आपके चुने गए विषय सार्थक और समसामायिक ही होते है। ये तो बहुत ही बढ़िया है। इस सार्थक लेख के लिए आपका आभाऱ।

Roshi said...

sankalp aur vikalp hum isi mein uljhe reh jate hai

Roshi said...

hamara jeevan sankalp aur vikalp mein hi uljha reh jata hai

OM KASHYAP said...

sanklap badal de jeewan ki kayakalp
sunder

प्रवीण पाण्डेय said...

संकल्प जोड़ता है, विकल्प तोड़ता है।

कुमार राधारमण said...

संकल्प अच्छे हैं किंतु चूंकि बहुत सारी चीजें केवल संकल्प से ही पूरी नहीं हो जातीं क्योंकि वे सापेक्ष होती हैं,इसलिए विकल्प रखना बुरा नहीं है। कई बार,संकल्प पूरा न हो पाने की स्थिति में व्यक्ति आत्महत्या तक कर लेता है अथवा मनोरोग की हद तक पहुंच जाता है। विकल्प इसलिए भी होना चाहिए कि जीवन लम्बा होता है और ज़रूरी नहीं कि आज जिसका संकल्प लिया जाए,वह पचास साल बाद भी संकल्प लेने योग्य रहे। संकल्प केवल नैतिक मूल्यों का लिया जाना चाहिए।

मनोज कुमार said...

यह सब दृढ इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है।

उपेन्द्र नाथ said...

monika ji bilkul sahi kaha aapne. bahut hi sunrder post. sch, sankalp ho to bahut kuchh paya ja sakta hai.....

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

हमने तो अब संकल्प न लेने का संकल्प ले लिया है..

राज भाटिय़ा said...

अगर हम दृढ़ता से संकल्प करे तो कोई ऎसा काम नही जो सफ़ल ना हो, लेकिन एक दृढ़ संकल्प की जरुरत हे ,बहुत सुंदर विषय चुना आप ने, धन्यवाद

संतोष पाण्डेय said...

मोनिका जी,संकल्प तो लेना ही चाहिए.संकल्पों से जीवन की दिशा बदल सकती है.अच्छे विचार.

Minoo Bhagia said...

iraade agar mazboot hon to sab kuch ho sakta hai , magar naseeb ka saath hona bhi zaruri hai

निर्मला कपिला said...

संकल्प भी तभी पूरे होते हैं अगर दृढ आत्मविश्वास और इच्छा शक्ति हो। बस अपनी इच्छा शक्ति को मजबूत रखें यही संकल्प है। शुभकामनायें।

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

aapka lekh bahut pasand aaya ..vicharottejak... shukrvaar ko charchamanch par aapka lekh hoga... dhanyvaad

Kunwar Kusumesh said...

विचारणीय पोस्ट है.
मेरे विचार से हर मामले में विकल्पों का त्याग बहुत उचित नहीं रहेगा.

दिगम्बर नासवा said...

सच कहा ... शब्द छोटा है पर बड़ा ही जोखिम है ... और आज की युवा पीड़ी में सबसे कम नज़र आता है ...

vijai Rajbali Mathur said...

संकल्पों के संधर्ब में ही व्रत की बात थी जिसे अब उपवास में परिवर्तित कर दिया गया हैं. आपका निष्कर्ष बिलकुल सही है की संकल्प के आभाव में न तर्रक्की हो सकती है न लक्ष्य हासिल किया जा सकता है.

G.N.SHAW said...

संकल्प कुछ भी हो सकता है । कैसा भी हो सकता है। मौन रहने का संकल्प....... सुबह जल्दी उठ जाने का संकल्प....... किसी बुरी आदत या लत से मुक्ति पाने का संकल्प........ स्वस्थ जीवन शैली अपनाने का संकल्प........ या फिर अपनी दिनचर्या व्यवस्थित रखने का संकल्प..........!
dridh aur sarthak sankalp always falibhut hote hai...sankalp har byakti ke ....raah se jude hai...bahut positive lekh.

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

बहुत ही प्रेरणादायक लेख !
आपके लेख हमेशा विचारणीय होते हैं !
जैसे जीवन की अँधेरी गुफा में किसी बारीक़ किरन की लकीर की तरह आशा और विश्वास की नई सुबह का अहसास दिलाते हुए !

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत ही अच्छी पोस्ट है ..........

रंजना said...

बहुत बहुत सही कहा आपने...और बहुत ही सुन्दर ढंग से कहा...



आपको एक बात बताऊँ...मेरे बेटे का नाम संकल्प है...

anshumala said...

कसम लेने के बाद ज्यादातर लोगो के मान में पहला ख्याल यही आता है की आज से नहीं सोमवार से या पहली तारीख से या फिर नए साल से सुरु करेंगे | यही से उसके पुरा ना होने की कहानी शुरू हो जाती है | सही कह की सामाजिक ओए देश की हालत का कारण यही है की हम में इच्छा शक्ति की कमी है |

ममता त्रिपाठी said...

संकल्प-विकल्प ही है
जिन्दगी के प्रकल्प
संकल्पों
का आराधन
विकल्पों का नमन
लक्ष्य का आगमन
उच्च सिंहासन
सब कुछ चाहता मानव मन
पर..........
कई बार थपेड़े
मार्ग के रोड़े
ढकेल देते
धूसरित करते
संकल्पों की रेखा
विकल्पों की परीक्षा।
अस्तित्व संघर्ष
और उसकी समीक्षा।


बहुत सुन्दर................अभिव्यक्ति

रश्मि प्रभा... said...

waakai sankalpon ka bahut mahatw hai aur saath hi dridhtaa bhi zaruri hai ...

Anonymous said...

very nice monika dhanywad aapke achhi post ke liye.

संजय कुमार चौरसिया said...

बहुत ही सच बात कही है

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) said...

मोनिका जी,...बेहतरीन आलेख।

विशाल said...

विचारणीय आलेख.
शुभ कामनाएं.

Udan Tashtari said...

संकल्प विकल्प हमजोली ही हैं...उम्दा व्चारणीय आलेख.

दिनेश शर्मा said...

सुन्दर अभिव्यक्ति। संकल्प के साथ संघर्ष अपेक्षित है।

Roshi said...

hum sankalp aur vikalp mein hi to sari jindgi uljhe rehte hai

Atul Shrivastava said...

संकल्‍प लिए गए और वह पूरे न हो तब। वैसे मैं यह समझता हूं कि यह सब इच्‍छाशक्ति पर निर्भर है। यदि अच्‍छाशक्ति गहरी हो तो हर संकल्‍प पूरे किए जा सकते हैं।
बहरहाल, अच्‍छी पोस्‍ट।

मुकेश कुमार सिन्हा said...

yashwant jee ne sahi kaha..sankalp karna aur uske apne andar lana...do alag baaten hain...ham har din sochte hain...aaj sirf kaam karenge...par fir bhi samay nikal kar blogs pe pahuch jate hain...kya karen...raha nahi jata..:)

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

आपने बहुत सही कहा है ... जीवन में संकल्पों का महत्व शायद हम भूलते जा रहे हैं ... हमेशा प्रवाह के साथ बह जाना अच्छा नहीं होता है ...

Rajeysha said...

जहां भी कोई संकल्‍प कि‍या जाता है, यह तय है कि‍ वहां द्वंद्व भी होगा, यह अंर्तद्वंद्व हमारी ऊर्जा का सत्‍यानाश करता है। संकल्‍प वि‍कल्‍प एक सि‍क्‍के के ही दो पहलू हैं। तो बजाये संकल्‍प करने की मूर्खता दि‍खाने के, हमें बात को समझना चाहि‍ये। घर में आग लगी हो तो आप तुरन्‍त पानी या जो भी मि‍ले..अन्‍य उपायों से बुझाने का प्रयास करते हैं... तब आपको संकल्‍प नहीं करने पड़ते। आग लगी देखकर भी यदि‍ हम संकल्‍पों वि‍कल्‍पों में फंसे हैं तो हमें अपनी बुद्धि‍ पर शक करना चाहि‍ये, नहीं ?? सड़क पर मलमूत्र पड़ा हो तो आपको उस पर पैर ना रखने का संकल्‍प नही लेना पड़ता आप नाक भौं सि‍कोड़ कर तुरन्‍त ही वर्जित स्‍थान से जगह बनाकर नि‍कल जाते हैं, ऐसी ही स्‍पष्‍टता जीवन के हर तथ्‍य के बारे में भी होनी चाहि‍ये।

एक बेहद साधारण पाठक said...

इंसान के साथ एक समस्या होती है वो हमेशा आसान विकल्प चुनता है .. अक्सर ऐसे लोग कमजोर संकल्प शक्ति वाले माने जाते हैं ..क्योंकि उन्हें यकीन नहीं होता की वो कोई बड़ी चीज पा सकते हैं .... पर सही लोजिक कुछ अलग होता है... जिसकी संकल्प शक्ति अधिक होती है उसके पास विकल्प अधिक और बेहतर होते हैं जिसकी संकल्प शक्ति कम होती है उसके पास विकल्प बेहद काम चलाऊ टाइप के होते हैं .. दृढ संकल्प शक्ति के उदाहरण के तौर पर उदाहरण के लिए नेपोलियन बोनापार्ट , रणजीत सिंह, हेनरी केझर , वेलिंग्टन , कालिदास किसी के जीवन के प्रसंग पढ़े जा सकते हैं
और रमण महर्षि की ये सीख

“तुम जिस भी वस्तु की इच्छा करो, अपना पूरा ध्यान उसी पर लगाओ. कोई भी उस लक्ष्य को नहीं वेध सकता जो दिखाई ही न देता हो.”


http://hindizen.com/2010/05/02/will-power/

@मोनिका जी
आप की पोस्ट ऐसी होती है की उसे पढ़ कर मेरी भी एक पोस्ट बनाने की इच्छा हो जाती है..... :) बेहद विचारोत्तेजक लेख .. आभार

Sadhana Vaid said...

संकल्पों और विकल्पों के द्वन्द की बड़ी अच्छी व्याख्या की है मोनिका जी ! यह सच है कि ढेर सारे विकल्पों की मौजूदगी हमारी इच्छा शक्ति को कमज़ोर करती है और इसका यही निदान है कि हम विकल्पों को ना अपनाने का एक संकल्प और करें ! शायद तब बात बन जाये ! सुन्दर और सारगर्भित आलेख के लिये बधाई !

Arvind Mishra said...

rochak , मुझे तो koyee bhee sanklp n lene ka sanklp lena padta hai :)
(sorry transliteration is not working )

Ankur Jain said...

bahut achchi post monikaji...sach sankalp me bahut takat hai.........

Asha Joglekar said...

संकल्प उतने ही करें जिन्हें हम निभा पायें । जैसे मै हमेसा सच बोलूंगा/गी को निभाना मुश्किल है पर मैं आज सच बोलूंगा/गी निभाना थोडा आसान । तो रोज ही ये संकल्प लेकर हम हमेशा सच बोलने के पथ पर अग्रसर हो सकते हैं । आपका लेख पठनीय एवं मननीय है ।

धीरेन्द्र सिंह said...

संकल्प - विकल्प के द्वारा आपने मनोदशा की सुन्दर प्रस्तुति की है. पढाते समय मैं खुद के संकल्प-विकल्प की सोच कर मुस्कराता रहा. मनोभाव की सुन्दर अभिव्यक्ति.

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

जब तक जीवन है, ये द्वन्‍द्व भी रहेगा।

---------
ब्‍लॉगवाणी: ब्‍लॉग समीक्षा का एक विनम्र प्रयास।

36solutions said...

विचारणीय

Patali-The-Village said...

संकल्प करना जितना आसान है उस पर अमल करना बहुत ही मुश्किल भी है|

महेन्‍द्र वर्मा said...

संकल्प की महत्ता को प्रतिपादित करता अच्छा आलेख।

वर्तमान जीवन शैली की अनिश्च्तिता के कारण संकल्प का महत्व कम होता जा रहा है।
लेकिन इसी अनिश्चितता को सुधारने के लिए संकल्पों की महत्ता और बढ़ जाती है।

ashish said...

संकल्प हीनता मानव को अपने उत्कर्ष पर पहुचने से रोकती है नीचे खड़ा रहकर विभिन्न अवदानो प्रतिदानो और चढ़ने से रह गए सोपानो के बारे में सोचने को विवश करती है . सुन्दर चिंतन .

ज्योति सिंह said...

jeevan ke dono pahluo ko lekar sundar charcha ,sankalp se kai karya poorn ho jaate hai aur jeevan saarthak .har vishya par achchha likhti hai aap .

Arun sathi said...

जीवन की सार्थकता ईसी में है...प्रेरक...आभार

***Punam*** said...

"संकल्प"....

बहुत सुन्दर रचना...

जीवन में किसी न किसी प्रकार का

संकल्प हम सब लेते रहते है...

कुछ बड़े,कुछ छोटे....

एक बार लेने पर उन पर

टिके रहना जरूरी है...


बहुत खूब....

Dr (Miss) Sharad Singh said...

संकल्प तो सदा विकल्पों के साथ रहते हैं....

बहुत सही लिखा है आपने...
जीवन दर्शन से परिपूर्ण इस सुंदर लेख के लिए बधाई।

संतोष त्रिवेदी said...

संकल्प अच्छे हैं पर आज मुश्किल ये है कि सिवा संकल्प लेने के और कोई विकल्प नहीं बचा है.चाहे हम हों या सरकार हो ,हर किसी को संकल्प की दरकार तो है पर उसे अंजाम देना किसी-किसी के ही बूते की बात है !

Anonymous said...

"हमारी कई सामाजिक , व्यक्तिगत , राजनीतिक यहां तक की व्यावाहारिक समस्याओं की जङ भी हमारी संकल्पहीनता ही है।

...

आज जीवन में स्थायित्व की कमी है। दृढ संकल्प की कमी जीवन में कई तरह के पश्चाताप को जन्म देती है और दिशाहीनता लाती है"

जीवन से जुड़े पहलुओं को चित्रित करते आपके आलेखों को पढ़कर कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता - धन्यवाद्

vijay kumar sappatti said...

bahut hi sundar vichaar monika ji ... बधाई

-----------

मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .

आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.

"""" इस कविता का लिंक है ::::

http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html

विजय

Anuj Sharma said...

Sankalp lena hi kafi nhi hai... unhe pura kane ke liye pure man se pryash karna bhi jaruri hai..


Anuj Sharma



http://www.anujshrotriya.blogspot.com/

deepti sharma said...

bahut sahi kaha aapne
.
der se aane ko maafi chahti hu
.

Vijuy Ronjan said...

sankalp agar ham le len to saare vikalp khud ba khud khul jaate...raaste nikal hi aate hain...warna,ek shayar ke alfaaz mein...
"EK KADAM UTHA THA GALAT,RAAH E SHAUK MEIN.MANZIL TAMAM UMRA MUJHE DHOONDHTI RAHI."

Accha lekhan hai...khula unmukt.likhte rahiye.

Dr Varsha Singh said...

बहुत सही सन्देश दिया है इस पोस्ट में ....

मदन शर्मा said...

डॉ॰ मोनिका शर्मा जी को सर्वप्रथम धन्यवाद कि ऐसा जानकारी भरा पोस्ट सबके सामने रखा।
अच्छी पोस्ट है आपकी......
जब तक दृढ़ता से संकल्प का पालन न हो तो संकल्प लेने का कोई औचित्य नहीं
हार्दिक शुभकामनायें ...स्वीकार करें

डॉ. मोनिका शर्मा said...

आप सबकी वैचारिक टिप्पणियों के लिए ह्रदय से आभरी हूँ..... सबका धन्यवाद

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