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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

01 February 2011

मनुष्यता का सम्मान ...!



हमारे समाज में सम्मान  बड़ा भारी भरकम शब्द है। इसके वज़न का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है की हर साल अपने मान सम्मान के लिए न जाने कितने परिवार अपने ही बच्चों की जीवन लीला तक समाप्त कर देते हैं। दिलोदिमाग पर गहरी पैठ रखता है यह सम्मान शब्द। हमारे यहाँ सब तरह के वर्गों की अपनी अपनी इज्ज़त है । और इस सम्मान के लिए जान लेना या खून खराबा करना कोई नयी बात नहीं । परिवार का सम्मान , किसी एक खास समाज का सम्मान , जाति विशेष का सम्मान, यहां तक की एक खास पद का भी मान-सम्मान । अगर किसी तरह के सम्मान की अनुपस्थिति है तो वो है मनुष्यता का सम्मान।

विडंबना यह भी है हमारे यहां कोई सम्मान या इज्जत इसलिए नहीं पाता कि वो उस सम्मान के लायक है। बल्कि पद, पढाई, पैसा और पावर कुछ ऐसे शब्द हैं जिन्होंनें ऐसी परिपाटी बना दी है कि अमुक परिवार या व्यक्ति को मान-सम्मान दिया जाना चाहिए या यूं कहें कि देना ही  पड़ेगा  । फिर चाहे वे इस मान के योग्य हों या न हों । परिपाटियों का बिना सोचे समझे निर्वहन करने में तो हमारा समाज हमेशा से ही अव्वल रहा है। ऐसे में इज्जत पाकर फूले न समाने वाले समाज के इन तथाकथित जीवों को भी इस सम्मान की लत सी लग जाती है। अगर कोई इनकी शान में जरा भी गुस्ताखी करे तो इन्हें बहुत दुख होता है और गुस्ताखी करने वाले को भी कोई न कोई खमियाजा भुगतना ही पङता है। ऐसा हो भी क्यों नहीं...? पद, पैसा और पावर कुछ न कुछ समाज के इन माननीय जीवों के हाथ में होता ही है ।

कुछ लोग ऐसे भी मिल जायेंगें जिनका अपने घर में कोई मान नहीं होता पर समाज में उन्हें खूब वाहवाही मिलती है। यकीन मानिए वे इससे बहुत खुश भी रहते हैं क्योंकि मान सम्मान पाने के लिए मंच पर बोले गये शब्दों और आपके सामाजिक और पारिवारिक व्यहार में समानता होना कहां जरूरी है ? विशेषकर भारत देश में :( यहां कोई अपनी धौंस से सम्मान ले रहा है तो किसी को धनी होने के चलते अपने आप ही लोग सम्मान दे रहे हैं। इतिहास साक्षी है कि धन और बल दोनों ही ऐसी चीजें है जो जिस गति से आती हैं उसी गति से इंसान के जीवन से मनुष्यता को विदा कर देती हैं।


कभी कभी लगता है एक मनुष्य किसी दूसरे मनुष्य का मान करे उसके कर्म का सम्मान करे, सृष्टि के इस साधारण से नियम को भी हमने कितना जटिल बना लिया है। सम्मान तो सम्मान है। हर मनुष्य चाहे वो धनवान हो या निर्धन , पढा लिखा हो या अनपढ, बच्चा हो या बङा सम्मान पाने का अधिकारी होता है। ठीक इसी तरह हर मनुष्य का कर्तव्य भी बनता है कि वो बिना किसी भेदभाव के सबको सम्मान दे। समाज में हर भेद को भुला कर मनुष्यता का सम्मान हो....!

72 comments:

मनोज कुमार said...

समय के बदलते इस दौर में आज एक अलग तरह की भूख पैदा हो गई है। एन केन प्रकारेण लोग सम्मान प्राप्त कर अपनी क्षुधा तृप्त करते हैं।

Arvind Mishra said...

पहले तो फिर आपके लेखन की पठनीय सहजता के सहज गुण के लिए साधुवाद! सामाजिक और साझे मुद्दों पर आपकी लेखनी जीवंत है ---अपरंच ,सही कहा आपने ,भारतीय समाज गलत परिपाटियों ,कथनी करनी के अंतर और मूल्यों के अनेक विरोधाभासों ,विडम्बनाओं से संतप्त और त्रस्त हो रहा है -ऐसे में विचारकों ,मार्गनिर्देशकों को हाशिये पर पड़ा देखना भी एक बहुत ही पीडादायक अनुभूति है -मूल्यों के गिरावट के इस दौर में ऐसे लेख आश्वस्त तो करते हैं .....

सुज्ञ said...

सही कहा आपने,मानवीयता से विवेक जब रुखसत होता है तभी योग्यता पर भारी पडता है पद-पैसा-पावर।
जिस तरह धन और बल स्थाई नहीं रहते,इस तरह पाया सम्मान भी स्थाई नहीं रहता।

Smart Indian said...

मनुष्यता का, जीवन का, सद्गुणों का सम्मान तो होना ही चाहिये।

Shikha Kaushik said...

bilkul sahi kaha hai aapne ''mnushyta ka samman sabse pahle jaroori hai '. dhan-bal ke aadhar par aaj keval mafiya hi samman ke adhikari hoge ,jo shayad samman ka vastvik arth bhi nahi jante .

अजित गुप्ता का कोना said...

सम्‍मान और प्रेम का तो हर जीव भूखा होता है, इसे केवल भारत तक मत सीमित करो। जबरन सम्‍मान सारी दुनिया में प्रचलित है, केवल भारत में ही हो ऐसा नहीं है।

Anonymous said...

मोनिका जी,

मैं कई बार कह चुकने के बावजूद फिर कहता हूँ आप एक बहुत अच्छी इंसान हैं......आपकी सोच बहुत अच्छी है........क्योंकि मेरी नज़र में किसी की सोच ही उसे एक अच्छा इंसान बनाती है......और कम से कम मैं तो किसी की सोच के हिसाब से ही उसे सम्मान देता हूँ......और संसार तो सिर्फ भीड़ है .....और भीड़ के फैसले हमेशा सही नहीं हुआ करते.......बहुत ही सुन्दर पोस्ट आपकी......मैं आपसे पूर्णतया सहमत हूँ |

पी.एस .भाकुनी said...

सम्मान एक ऐसी चीज है जो मांगी नहीं जाती है लेकिन आज देखा जाय तो धन बल से या बाहुबल से जबरन सम्मान हासिल किया जा रहा है , वास्तव में इसे सम्मान नहीं बल्कि व्यक्ति की धौंश का प्रतिफल ही कहा जायेगा ,बहुत ही अच्छे विचारों को पिरोया है अपने उपरोक्त पोस्ट में , धन्यवाद .

रश्मि प्रभा... said...

samman paise se , ohde se jud gaya hai

Shalini kaushik said...

aaj samman ka vastav me dekha jaye to dhan daulat se seedha sarokar ho gaya hai jo paise vala hai vahi aaj sammanit ki kshreni pa raha hai.

केवल राम said...

सम्मान सिर्फ सम्मान है उसे किस तरह परिभाषित करें ...लेकिन आज जो झूठे सम्मान के हथकंडे हैं उनसे किनारा करें तो बेहतर होगा ....

उपेन्द्र नाथ said...

मोनिका जी, बहुत ही विचारणीय लेख। मनुष्यता का सम्मान तो पहले होना चाहिये।

Yashwant R. B. Mathur said...

"वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे."

आपका आलेख पढ़कर यही पंक्तियाँ मन में आयीं लेकिन आज हो इसके ठीक उलट रहा है.

जैसा कि आपने कहा है कि आज सम्मान वास्तविक योग्यता का नहीं होता जो व्यवहार से प्राप्त होती है बिलकुल सही है.

वैचारिक और गंभीर चिंतन का आह्वान करते इस लेख के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.

सादर

Rajesh Kumar 'Nachiketa' said...

मेरे ख्याल सम्मान मिले या न मिले....अपना आप में ईमानदारी होनी चाहिए....वो जरूरी है....
कबीर ने कहा है....
प्रेम ना बाड़ी ऊपजे, प्रेम ना हात बिकाय
राजा प्रजा जेहि रुचे, नवां शीश ले जाय.

विनम्रता एकमात्र जरिया है सम्मान पाने का....

anshumala said...

हम सभी सम्मान लेने और देने में समाज की बनाई इसी परिपाटी का अनुसरण करते है | जो हम मनुष्यता का सम्मान करने लगे तो दुनिया स्वर्ग सी ना हो जाये |

निर्मला कपिला said...

विचारनीय पोस्ट हर आदमी का सम्मान होना ही चाहिये। लेकिन आज कल जिस सम्मान की भूख है वो चिन्तनीय है। आभार।

मुकेश कुमार सिन्हा said...

bahut pahle padha tha..."akbhar me naam" aapko bhi yaad hoga..:)
har koi kaise bhi naam kamana chahta hai....

Kunwar Kusumesh said...

मैंने देखा की बड़ी सटीक बात सही विषय पर आप कहती हैं , मोनिका जी.
सम्मान अब योग्य लोगों को नहीं, ताक़तवर लोगों को मिलता है,ताक़त चाहे धन की हो या पावर की. बस ताक़त होनी चाहिए.
कहते हैं न,MIGHT IS RIGHT.
monika ji,
You know what I like in your articles, It is always unbiased.
I always wait for your next post.

सदा said...

बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

naresh singh said...

ये भी देखना पडेगा कि सम्मान दिल से किया जा रहा है या दिखावा हो रहा है | बहुत बढ़िया बात बताई है आपने आभार |

deepti sharma said...

bahut sunder post
..
ye to sach hai ki aaj apne samman ke liye log kuch bhi kar sakte hain
..

रंजना said...

जानती हैं,मंच पर, समारोहों में, समूह विशेष के बीच कोई सम्मान पा भी ले, पर यह ऊपरी सम्मान कभी स्थायी नहीं होता...क्योंकि ह्रदय केवल गुण का ही सामान करना जानता है और यदि यह व्यक्ति विशेष में हो तभी यह चिरस्थायी रह पाता है.......

रही बात मनुष्यता की...तो मुझे लगता है ज्यों ज्यों समाज में यह तिरस्कृत होता जा रहा है,इसकी कीमत भी बढ़ती जा रही है....आज जिसमे यह है,वह सबसे अधिक सम्मानित होता है,भले उसके पास धन ,बल, सौन्दर्य या पद हो न हो...

इस सुन्दर आलेख /चिंतन के लिए साधुवाद...

G.N.SHAW said...

monika ji aap ne mere dil ki baat aaj post ki hai.waise is subject par mai ek byang post karane wala tha.wah baad me karunga kyoki maa ki yaad tarotaja ho gayi aur usase hat kar kuchh nahi post kar saka.bilkul jiti-jagati post.sadhubad aapko.

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

monika ji,
apka lekh bahut hi chintan parak hai.
aaj-kal samman ke mayne hi badal gaye hain.

सुधीर राघव said...

आपने सही लिखा।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

जिस समाज को हम लीड करते है उसे अभी शायद एक और सदी लगेगी इस छोटी सी बात को समझने में !

प्रवीण पाण्डेय said...

स्वयं को श्रेष्ठ बताने की चाह और पाशविक आचरण।

Arvind Jangid said...

मनुष्यता का "ही" सम्मान होना चाहिए. प्रेरणादाई आलेख ! साधुवाद.

Sushil Bakliwal said...

सम्मान वास्तव में तो उम्र व योग्यता के हिसाब से ही मिलना चाहिये किन्तु हो वही रहा है जो आपके लेख में भी देखा जा रहा है । पद, पावर, पैसा.

Roshi said...

samman to ajkal kharid liya jata hai '''''paise se ,balse '''''

राज भाटिय़ा said...

बिलकुल सही कहा आप ने मै तो उसी का सम्मान करत हुं जो मुझे इस काबिल लगे, अमीर या बडी पदवी वाले को क्यो सम्मान दे? आप से सहमत हे जी

अरुण चन्द्र रॉय said...

सम्मान सिर्फ सम्मान है उसे किस तरह परिभाषित करें ...लेकिन आज जो झूठे सम्मान के हथकंडे हैं उनसे किनारा करें तो बेहतर होगा ...बहुत ही सुन्दर पोस्ट आपकी.....

कुमार राधारमण said...

इस आलेख में क्रांति का वह बीज है जिसके पोषण से मानवता कल्पवृक्ष का रूप ले सकती है।

Babu said...

Samman Ke Naam Par Samaj Me Badhate Hui Sankiranaton Se Hum Sabko upar Uthana Hoga. Sundar Post ke Liye Dhanyawad or Subhakamanaye..

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

अब तो खरीदा जाता है...सम्मान और पुरुस्कार दोनों ही...

शिक्षामित्र said...

जीवन की आपाधापी में हमसे बहुत कुछ छूटा है। मनुष्यता भी।

संतोष पाण्डेय said...

sahmati. poori tarah. badhiyan likha hai.

वीना श्रीवास्तव said...

सही कहा है....हमारा समाज गलत धारणाओं और गलत परिपाटियों से भरा है....यहां क्या शायद हर जगह धन और बल का ही बोलबाला है....मनुष्यता को कौन देखता है....इंसिनियत कहीं नहीं रह गई और न उसका कोई मोल....
बहुत अच्छा लिखा है...बधाई....

mark rai said...

bilkul sahi ....insaan ka samman nahi karne wala insaan nahi ho sakta........

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

मोनिका जी... आपने बहुत सुन्दर टोपिक पर लेख लिखा... जाने क्या बात है.... आज कल मेरे मन में भी एक शब्द कौंधता है......इज्जत क्या है,.... कल ही मै इस विषय पर दिस्कासन कर रही थी सुबह .... और आज आपने कुछ वैसा ही लिख भेजा ....
हम किस चीज के पीछे भाग रहे है ... वो क्या चीज है जो बचाने और कमाने के लिए लोग अपनी बेटी/ बेटे को ही चुपचाप मार देते है .. ये इज्जत की डेफिनेसन क्या है... काफी कुछ हमने विचारा ... और आज आपका लेख पढ़ कर अच्छा लगा....

amrendra "amar" said...

utkrist lekh k liye badhai sweekar karen.....

vijai Rajbali Mathur said...

यथार्थ कह ही दियाहै आपने.'अहम् ब्रह्मास्मि -त्वं ब्रह्मास्मि' वाला आपका सुझाव पुरानी संस्कृति के अनुरूप है. इसे आधुनिक लोग मान लें तो सम्पूर्ण मानव-जाति का भला हो जाए.

ज्योति सिंह said...

ठीक इसी तरह हर मनुष्य का कर्तव्य भी बनता है कि वो बिना किसी भेदभाव के सबको सम्मान दे। समाज में हर भेद को भुला कर मनुष्यता का सम्मान हो...
bahut pate ki baate kahi aapne ,samman har koi chahta hai .sundar lekh .

Sawai Singh Rajpurohit said...

मोनिका जी, आपने एक दम सही लिखा।

Sawai Singh Rajpurohit said...

मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है

"गौ माता की करूँ पुकार सुनिए और कम से ....." देखियेगा और अपने अनुपम विचारों से

हमारा मार्गदर्शन करें.

आप भी सादर आमंत्रित हैं,
http://sawaisinghrajprohit.blogspot.com पर आकर हमारा हौसला बढाऐ और हमें भी धन्य करें...

आपका अपना सवाई

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

बहुत बढ़िया लिखा है आपने ... सम्मान की परिभाषा ही उलटी हो गई है हमारे समाज में ... अजीब बात है कि बेटी किसीसे प्यार करले तो वो असम्मान की बात हो जाती है पर उसी बेटी का हत्या करके जेल जाने में कोई बेईज्ज़ती नहीं है ..

डॉ. मनोज मिश्र said...

जीवंत लेख ,बधाई.

Kailash Sharma said...

बहुत सार्थक आलेख...आपने बहुत सही कहा कि अगर किसी तरह के सम्मान की अनुपस्थिति है तो वो है मनुष्यता का सम्मान। आज लोग मनुष्यता को भूल कर केवल धन और पद का ही सम्मान करते दिखाई देते हैं.

Anonymous said...

भारत संतों का देश है ! जहाँ सदाचार को सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है ! और यही सम्माननीय है ! सुंदर पोस्ट

अभिषेक मिश्र said...

विकसित भारत के दावों के बीच ऐसी आदिम मान्यताओं का बढ़ता प्रचलन चिंताजनक है.

जयकृष्ण राय तुषार said...

आदरणीया मोनिकाजी आपने बहुत ही ज्वलंत विषय पर अपना विचार रक्खा है |बहुत बहुत बधाई |

जयकृष्ण राय तुषार said...

आदरणीया मोनिकाजी आपने बहुत ही ज्वलंत विषय पर अपना विचार रक्खा है |बहुत बहुत बधाई |

amit kumar srivastava said...

this is the irony.....

संजय कुमार चौरसिया said...

विचारनीय पोस्ट हर आदमी का सम्मान होना ही चाहिये। लेकिन आज कल जिस सम्मान की भूख है वो चिन्तनीय है।

Anonymous said...

संवेदनशील विषयों को भी सहज और सरल बनाकर धाराप्रवाह लेखन आपकी विशेषता है जो आसानी से पाठकों के दिल में उतर जाती है - साधुवाद

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

बहुत बढ़िया आलेख !
जिस दिन हम मनुष्यता का सम्मान करना सीख जायेंगे उस दिन यह दुनियाँ स्वर्ग हो जायेगी !
डा. मोनिका जी,ज्वलंत विषय को संबोधित करने के लिए धन्यवाद !

शोभना चौरे said...

हम लोगो ने अपने आसपास एक खोखली दुनिया बसा ली है जिसमे हम सब सम्मान ?की आशा रखते है \सच्चे मनुष्य को कहा सम्मान की आवश्यकता होती है ?
सार्थक चिंतन अच्छी पोस्ट |

Amrita Tanmay said...

इसीलिए हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि ..आत्मसम्मान करो सम्मान अवश्य मिलेगा . सुन्दर पोस्ट

Arun sathi said...

पहला तो यह जिसे आप समाज मानते है मैं उसे नहीं मानता। यह जो समाज शब्द है वह शिर्फ पावर के साथ है और दोहरा मापदण्ड रखता है तब कैसा समाज और किसका समाज। इसलिए समाज किसे सम्मान देता है और किसे नहीं मायने नहीं रखता।

POOJA... said...

मैं आपकी बातों से सहमत हूँ...
बड़ा अजीब सा मंज़र बना रखा है,
सम्मान खोने-पाने, बेचने-खरीदने का जैसे बाज़ार लगा रखा है...

महेन्‍द्र वर्मा said...

सम्मान की भूख प्रत्येक मनुष्य में होती है। लेकिन धन और बल से प्राप्त सम्मान टिकता नहीं है।

प्रेरक आलेख।

वीरेंद्र सिंह said...

मोनिका जी..सहमत हूँ। वाकई आपने एक उम्दा विषय पर बेहतरीन लेख लिखा है। इसके लिए आपका आभार.........

Gopal Mishra said...

very good writeup indeed. In India we have cases of Honour Killings every now and then...na jaane kab samajh aayegi aise logon ko.

मदन शर्मा said...

सही कहा आपने ,भारतीय समाज गलत परिपाटियों ,कथनी करनी के अंतर और मूल्यों के अनेक विरोधाभासों ,विडम्बनाओं से संतप्त और त्रस्त हो रहा है -ऐसे में विचारकों ,मार्गनिर्देशकों को हाशिये पर पड़ा देखना भी एक बहुत ही पीडादायक अनुभूति
.मैं आपसे पूर्णतया सहमत हूँ |

Dorothy said...

मनुष्यता का सम्मान और गरिमा बची रहे हमारे जीवनो में....सुंदर और सार्थक आलेख के लिए धन्यवाद.
सादर,
डोरोथी.

पूनम श्रीवास्तव said...

monika ji
aapka lekh har bar ek nayi baat se avgat karata hai.kisi bhi vishhy -vastu par aapki lekhni puri daxta ke saath chalne me saxham hai.
sach kaha hai aapne , jis din dilon se bhed -bhav mit jayenge tabhi sahi mayane me manushhyata ki pahchan ho payagi.
bahut hi sateeek avam sarthak lekhan ke liye dil se badhai swikaren.
poonam

Dr (Miss) Sharad Singh said...

सच्चाई को वयां करता लेख .
आप की बातों से सहमत हूँ.

Anonymous said...

इतनी भारी बात....बेहतरीन लेखन

रचना दीक्षित said...

मैं आपसे पूर्णतया सहमत हूँ. आज समाज बचा ही कहाँ है जो मनुष्यता बचेगी. समाज को खाने वालों का उल्लेख तो किया ही आपने उसमें एक बात और जोड़ना चाहूंगी वो है टी. वी. इसका भी कोई कम योगदान नहीं है समाज और मनुष्यता को जड़ से उखाड़ने में

Aditya Tikku said...

utam ***

abhi said...

सही लिखा है आपने...सबने बहुत कुछ कहा भी टिप्पणी में...मैंने एक बार इस विषय में लिखा था...सीधा इस विषय में नहीं..लेकिन थोड़ा थोड़ा...
वैसे बहुत सी बातें जो आपने लिखी है, मैंने सोच रखा था लिखने को :)

S R Bharti said...

सम्मान तो सम्मान है। हर मनुष्य चाहे वो धनवान हो या निर्धन , पढा लिखा हो या अनपढ, बच्चा हो या बङा सम्मान पाने का अधिकारी होता है। ठीक इसी तरह हर मनुष्य का कर्तव्य भी बनता है कि वो बिना किसी भेदभाव के सबको सम्मान दे। समाज में हर भेद को भुला कर मनुष्यता का सम्मान हो....!
मैं आपसे पूर्णतया सहमत हूँ |

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