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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

13 November 2010

चलो माँ बनकर जियें...एक अपील


आज बाल दिवस है यानि बच्चों को समर्पित एक दिन, इसीलिए आज के दिन बस एक अपील .......उन सब बहनों से जो माँ हैं या माँ बनने जा रहीं हैं कृपया ..... कुछ समय के लिए बस माँ बनिये सिर्फ माँ ! अपने बच्चों को पूरा समय दीजिये उनके साथ खेलिए............गाइये...... गुनगुनाइए...... बरसात कि बूंदों में भीगिए...... सुबह जब वो आँख खोले उसके सामने रहिये और रात को उसे अपने सीने में छुपाकर इस बात का अहसास करवाइए कि आप हमेशा उसके पास हैं.......उसके साथ हैं । कभी कभी उसे लेकर यूँ ही टहलने निकल जाइये वो जिधर इशारा करे चलते रहिये । कुछ समय के लिए समय की पाबन्दी को भूलकर बस ! माँ बन जाइये।

हाल ही में एक खबर सुनने में आई कि एक कामकाजी जोड़े की बच्ची ने आया की देखरेख में अपनी सुनने की ताकत हमेशा के लिए खो दी। कारण यह था कि परेशानी से बचने के लिए आया बच्ची को कमरे में बंद कर टीवी काफी तेज आवाज़ में चला देती थी।

हम आगे बढ रहे हैं , प्रगतिशील हो रहे हैं और ऐसी घटना इसी तरक्की की बानगी भर है। बच्चे को दुनिया में लाने से पहले ही आज के परेंट्स हर तरह की प्लानिंग कर लेते हैं पर उसे समय देने के मामले पर विचार कम ही होता है। पिछले कुछ सालों में वर्किंग मदर्स की संख्या में जितना इज़ाफा हुआ है मासूम बच्चों की मुश्किलें भी उतनी बढ़ी हैं। क्रेच और बेबी सीटर जैसे शब्द आम हो गए हैं। अगर संयुक्त परिवार है तो दादी-नानी बच्चों की माँ बन रही हैं (आजकल ऐसे परिवार बस गिनती के हैं ) नहीं तो इन नौनिहालों की परवरिश पूरी तरह नौकरों के भरोसे है।


बड़े शहरों में ज्यादातर कामकाजी जोड़ों के बच्चे पूरे दिन अकेले आया के साथ गुजार रहे हैं। सोचने की बात यह है की जो बच्चा आपकी गैर-मौजूदगी में उसके साथ होने वाले दुर्व्यवहार के बारे में बोलकर बताने के लायक भी नहीं है उसे यों अकेला छोड़ना कहाँ तक उचित है ? मेरे विचारों को जानकर कृपया यह न सोचें कि मैं कामकाजी महिलाओं को उलाहना दे रही हूँ या उनकी परिस्थिति नहीं समझती । मैं उनके जज़्बे को सलाम करती हूँ जिसके दम पर वे घर और दफ्तर की ज़िन्दगी में तालमेल बनाकर चलती हैं। पर मैं मानती हूँ की माँ होने की जिम्मेदारी से बढ़कर कोई काम नहीं हो सकता। माँ बनना और अपने बच्चे के विकास को हर लम्हा जीना एक विरल अनुभूति है। जिसे महसूस करना हर माँ का हक़ भी है और जिम्मेदारी भी।


कई अध्ययन यह साबित कर चुके हैं कि बच्चे का मनोविज्ञान जैसा उसकी माँ के साथ होता है किसी और के साथ नहीं होता.....दादी-नानी के साथ भी नहीं। ऐसे में एक अजनबी (आया) के साथ बचपन बीतना बच्चों के किये कितना तकलीफदेह हो सकता है यह समझना मुश्किल नहीं है। हम लाख दलीलें देकर भी इस बात को नहीं झुठला सकते कि माँ का विकल्प मनी या आया नहीं हो सकता, कभी भी नहीं। माँ बच्चे के जीवन की धुरी होती है । उसकी हर छोटी बड़ी समझाइश बच्चे के जीवन की दिशा बदल सकती है । लेकिन मौजूदा दौर में तो मांओं के पास वक़्त ही नहीं है तो फिर समझाइश कैसी ? ज़ाहिर सी बात है कि नौकरों के सहारे पलने वाले बच्चों की परवरिश में प्यार और संस्कार की कमी तो है ही मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना भी कुछ कम नहीं है। बचपन के इन हालातों का असर बच्चे की पूरी ज़िन्दगी पर पड़ता है और आगे चलकर हमारे इन्हीं बच्चों का व्यव्हार समाज की दिशा व दशा तय करता है।


आज हमारे समाज में औरतों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार और भेदभाव से तकरीबन हर महिला को शिकायत है। ऐसे में माँ होने के नाते आप एक जिम्मेदारी उठायें । अपने बच्चे की परवरिश की , वो बच्चा जो इस समाज का भावी नागरिक होगा शुरू से ही उसे सही सीख देकर एक सुनागरिक बनायें। बेटी को हौसले से जीने का पाठ पढ़ायें और बेटे को घर हो या बाहर औरतों की इज्ज़त करना सिखाएं। ज़ाहिर सी बात है की ऐसी परवरिश के लिए उनके साथ समय बिताना, उन्हें समझना और समझाना बहुत ज़रूरी है। तो फिर मातृत्व को जीने और बच्चों के पालन-पोषण को सही मायने देने के लिए चलो........कुछ समय के लिए बस माँ बनकर जीयें



(यह पोस्ट मैंने काफी समय पहले लिखी थी...... शायद उस समय ज्यादा लोगों ने पढ़ा भी नहीं था ...... आज बाल दिवस के मौके पर बच्चो के लिए कुछ लिखने का सोचा तो लगा माओं से जुड़ी पोस्ट ज्यादा ज़रूरी है।)

बाल दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.....




73 comments:

संजय भास्‍कर said...

Adarniya monika ji
namaskar
.....apke is lekh se ..un maao ko bhi essaas hoga to kamkaji hai.
kam kaj me itni busy ho jati hai ki apne bacho ko bilkul bhi waqt nahi de pati
meri bhi yahi apeel hai sabhi maao se ki jitna ho sake jayada se jyaad samay apne bacho ko de......

dhanyawaad

संजय भास्‍कर said...

बाल दिवस की हार्दिक शुभकामनायें !

उपेन्द्र नाथ said...

monika ji,
bahoot achchi seekh aur sandesh

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सही और सार्थक सीख देती बात कही है ...जो बच्चे आयाओं के भरोसे जीते हैं उनमें उद्दंडता अधिक परिलक्षित होती है

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@ संजय भास्कर
वक़्त दिए बिना ना तो बच्चे माता-पिता को समझ पाते हैं और ना ही माता पिता बच्चे को......
यही हो रहा है।

@उपेन्द्र जी
बहुत बहुत धन्यवाद ...... यह बस एक अपील है।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@ संगीताजी
आपने बिल्कुल ठीक कहा जिन बच्चो को माँ -पिता का साथ नहीं मिलता उनमे उदंडता आ ही जाती है..... इतना ही नहीं कई तरह की मनोवैज्ञानिक और शारीरिक समस्याएं भी उनके स्वाभाव का हिस्सा बन जाती हैं।

पूनम श्रीवास्तव said...

monika ji ,
bahut hi sundar aur prashashniy vichar hain aapke .bahut hi sarthak lekh likha hai aapne .sach jitna jyada ek maa apne bachcho se judi hoti hai utna aur koi nahi .isi liye to kaha jata hai ki maa ka sthan koi bhi nahi le skta hai.
itni sundar prastuti ke liye hardik badhai----
poonam

महेन्‍द्र वर्मा said...

प्रत्येक बच्चे को माता-पिता का भरपूर साहचर्य आवश्यक है। इसके अभाव में उनका पर्याप्त भावनात्मक और सामाजिक विकास नहीं हो पाता।...बाल दिवस पर सार्थक आलेख।...शुभकामनाएं।

Yashwant R. B. Mathur said...

मेरी दृष्टि में आपका हर एक आलेख कुछ न कुछ सोचने को मजबूर करता है.
आज जो लोग अपने बच्चों को अकेला या आया/नौकरों के भरोसे छोड़ रहे हैं उन्हें आगे के जीवन में क्या कठिनाइयां आने वाली हैं इसका उन्हें अंदाजा भी नहीं है

बालदिवस पर की गयी आपकी ये अपील ज़रूर रंग लाये यही कामना करता हूँ.

आप को भी बाल दिवस की शुभ कामनाएं!

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@ पूनम जी
सच में माँ का स्थान कोई नहीं ले सकता...... धन्यवाद

@ महेंद्र वर्माजी
बहुत बहुत धन्यवाद
आपके विचारो से सहमत.... इस सोच में पूर्ण विश्वास रखती हूँ......

कुमार राधारमण said...

बच्चे क्या चीज़ हैं,जो निस्संतान हैं,कोई उनसे पूछे। मां ही क्यों,मैं तो कहता हूं कि बच्चे का सान्निध्य हर किसी का स्वर्णकाल है।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@ यशवंत
परिवार , समाज या देश.... बच्चे ही तो भविष्य हैं.... इस बात को जानना और मानना सबके लिए ज़रूरी है.....

@ कुमार राधा रमण
बहुत सुंदर बात कही आपने.... की बच्चो के साथ बिताया समय सभी के लिए स्वर्णकाल होता है।

रानीविशाल said...

बहुत अच्छी पोस्ट है आपकी आज के दिन ....एक एक शब्द खरे सोने की तरह है
बाल दिवस की शुभकामनाएँ

Dr (Miss) Sharad Singh said...

बाल दिवस की हार्दिक शुभकामनायें, अच्छी रचनाओं के लिए बधाई !

दिगम्बर नासवा said...

आपके लेख में छिपी भावना बहुत पावन है .... सच में माँ होना आसान नहीं है और माँ का फ़र्ज़ निभाना तो और भी मुश्किल ..... अची लगी आपकी पोस्ट ..

कविता रावत said...

Baal diwas ke awasar par ek saarthak sandesh deti post ke liye bahut bahut aabhar.
Baal diwas kee bahut bahut haardik shubhkamnayen

ज़मीर said...

अच्छी बात कही है आपने.
शुभकामनाएं

समयचक्र said...

विचारणीय आलेख ...बाल दिवस की हार्दिक शुभकामनायें

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

बहुत ही सुन्दर, जानकारीपरक, और विचारोत्तेजक लेख ...

बाल दिवस की शुभकामनायें !

ABHISHEK MISHRA said...

very nice post
इसी लिए हम अपने देश को भूमि का टुकड़ा न मान कर माँ मानते hai .
अच्छी पोस्ट के लिए आप को धन्यवाद

प्रवीण पाण्डेय said...

सार्थक पोस्ट व बाल दिवस की शुभकामनायें।

amar jeet said...

मोनिका जी आपने बहुत सही बातो का उल्लेख किया है रूपये कमाने की होड़ में आज माता पिता बच्चो को पर्याप्त समय नहीं देते!कही न कही हमारी शिक्षा प्रणाली ने भी बच्चो का बचपन छीन लिया है भारी भारी बस्ते और स्कूल के बाद टयूसन हाबी क्लासेस बच्चो के पास खेलने के लिए समय भी नहीं बचता ऐसे में हमें इस और भी ध्यान देना चाहिए !
हमारे रायपुर शहर में तीन दिवसीय बाल मेले का आयोजन इस अवसर पर किया गया है मै बाल कल्याण परिषद् का सदस्य भी हूँ !आज ब्लाइंड स्कूल के बच्चो ने बहुत बढ़िया कार्यक्रम प्रस्तुत किया !

Taarkeshwar Giri said...

Monika ji namashkar,

Aaj ki jarurat hai ki Log apne bachho ki parvarish thek se karen

vijai Rajbali Mathur said...

मोनिकाजी ,
बिलकुल सच्चाई का उल्लेख ईमानदारी से किया है आपने.वस्तुतः परिवार नागरिकता की प्रथम पाठशाला हैं और माँ शिक्क्षक.बच्चे पर माँ का जितना प्रभाव पड़ता है ,जैसा पड़ता है वह वैसा ही बन जाता है ;जैसाकि आदरणीय जीजाबाई की शिक्षा से शिवाजी .

अरुण चन्द्र रॉय said...

विचारनीय आलेख... प्रकृति का दूसरा नाम माँ है..

Smart Indian said...

बहुत उपयोगी और सामयिक पोस्ट है। धन्यवाद!

Dr Xitija Singh said...

मोनिका जी ... मैं आपसे बिलकुल सहमत हूँ और आपके साथ साथ मैं भी हर माँ से ये अपील करती हूँ की वो सिर्फ माँ बनी रहे ... कम से कम बच्चे के पांच साल के हो जाने तक ... मनोवाज्ञानिक तौर पर ये साल बच्चे की जिंदगी के बहुत महत्वपूर्ण साल होते है ... और ये साल उसके कैसे गुज़रते हैं उस पर उसकी सारी ज़िन्दगी का दारोमदार होता है ... इस दौरान महिलाएं घर में रह कर कुछ कर सकतीं हैं यदि बहुत ज़रूरी हो ...

bahut achhi post monika ji ... dhanyawaad

anshumala said...

मोनिका जी

एक लम्बी टिप्पणी देने जा रही हु अग्रिम माफ़ी माग लेती हु | मै भी उन लोगों में से हु जो अपने बच्चो के मामले में किसी पर भरोसा नहीं करते है और तीन साल से ऊपर हो गये बस एक माँ का जीवन जी रही हु जो चीजे आप ने ऊपर लिखी है वो मै रोज अपनी बेटी के साथ करती हु और ये सब मजबूरी में नहीं ख़ुशी में करती हु पर जानती हु की सभी का नजरिया ऐसा नहीं होता है दुनिया में लोग दूसरो पर भरोसा करने वाले भी होते है और उन्हें अपने बच्चे दूसरो के भरोसे छोड़ना गलत नहीं लगता है | माँ का काम करना आज के समय में जरुरी है खासकर महानगरो में क्योकि जो बच्चा आज माँ के ना होने से तकलीफ में है वही बच्चा अपनी जरूरते नहीं पूरी होने पर कल को अपमे माँ बाप को उलाहना देगा | समय काफी बदल गया है आज बच्चो की जरूरते और उनकी अच्छी परवरिश के खर्च काफी बढ़ गए है जो माँ बाप के काम किये बिना पूरा करना कई बार मुश्किल हो जाता है | रही बात संस्कारो की तो उसके लिए दोनों के बीच एक आधा घंटे का संवाद ही काफी है लेकिन मुश्किल ये है की बच्चो को औउपचरिक रूप से संस्कार देने का काम काफी पहले ही बंद हो गया है चाहे एकल परिवार हो या संयुक्त और चाहे माँ काम करे या नहीं |

deepti sharma said...

बाल दिवस की शुभकामनायें

वन्दना अवस्थी दुबे said...

बहुत बढिया पोस्ट है मोनिका जी. बहुत ज़रूरी है केवल मां बन के जीना.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@ रानी विशाल
@ डॉ शरद सिंह
बहुत बहुत धन्यवाद

@ दिगंबर नसावा
शायद यह दुनिया सबसे कठिन जॉब.... पर सबसे सुंदर जिम्मेदारी

@कविता रावत
@बूझो तो जाने
@महेंद्र मिश्र जी
हार्दिक आभार..... शुभकामनायें

@अभिषेक
@इन्द्रनील जी
@प्रवीणजी
बहुत बहुत शुक्रिया ......

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@ अमरजीत
आप एक अच्छे कार्य को अंजाम दे रहे हैं ...शुभकामनाये
जहाँ तक बात है बचपन की हर तरह से मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना ही झेल रहा है.... बाकी चीज़े हमारे हाथ नहीं पर बच्चे को प्यार और देखभाल का समय तो दिया जा सकता है.... इसी बात को संबोधित करने की कोशिश की है......

@ Tarkeshwarji
धन्यवाद

@ विजय माथुर जी
आपने बहुत सुंदर उदहारण दिया ......
मैं भी मानती हूँ की माँ से बच्चा सबसे ज्यादा प्रभावित होता है..... परिवार तो प्रथम पाठशाला है ही....

डॉ. मोनिका शर्मा said...
This comment has been removed by the author.
ZEAL said...

.

बहुत ही सुन्दर लेख ! बाल दिवस की शुभकामनायें !

.

Laxmi said...

बहुत सही लिखा है आपने। भारतीय समाज के सामने अब वही समस्यायें आ रही हैं जो पश्चिम के समाज में बहुत दिनों से हैं।

Apanatva said...

bada accha lekhan ........
pyara sa sandesh sanjoye jagrut karega........
Aabhar .maa bante hee maine lecturership chod dee thee aaj meree betiya bhee nakshekadam par hai ......Full time maa hai..........jo sanskar mile voinhe diye badee baat hai ki inhone grahan bheee kiye...........
Aasheesh.
th to chokhee marwadee bol levo ho jee........:)

शिवम् मिश्रा said...


बेहतरीन पोस्ट लेखन के लिए बधाई !

आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

बाल दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !

आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें

Mohinder56 said...

कोमल मन को छुते हुये भावों से ओत प्रोत है यह लेख. शायद मां बनना एक नारी का सबसे बडा सौभाग्य भी है और सबसे बडी चुनौती भी.

राम त्यागी said...

बहुत अच्छा लगा ये ब्लॉग ! आपको बाल दिवस की शुभकामनायें

Anonymous said...

मोनिका जी,

वैसे तो आपने अपने लेख में ये लिखा है - "बस एक अपील .......उन सब बहनों से जो माँ हैं या माँ बनने जा रहीं हैं"

तो मैं इनमे से कोई भी नहीं हूँ .....पर फिर भी मैं आपकी बातों से सहमत हूँ|

rajesh singh kshatri said...

bahut sundar

Rajnish tripathi said...

मां का वात्सल्य प्रेम कोई और कभी नहीं दे सकता।मुझे एक शेर याद आ रहा है।

ज़रा-सी बात है लेकिन हवा को कौन समझाये, दिये से मेरी माँ मेरे लिए काजल बनाती है।

आप से गुज़ारिश है कि आप डॉ है और मै एक हेल्थ पत्रिका का संपादक हूं कृप्या करके आप हमारी पत्रिका से जुडे़ पत्रिका का नाम physician today है और कुछ लिखे तथा मेरे ब्लॉग का अनुसरणकर्ता बने।

वीरेंद्र सिंह said...

उम्दा और सार्थक लेख....
बधाई .

मेरे भाव said...

माँ होना और नौनिहालों की परवरिश निश्चित रूप से सुखदायक है लेकिन भविष्य को सहेजने की पारंपरिक जिम्मेदारी के साथ समाज और परिवार की अपेक्षाएं औरतों से इतनी बढ़ गई है कि उनकी स्वयं को नजाकत, नफासत और मासूम बचपन भी आहत हुआ है.

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

आपको भी बाल दिवस की हार्दिक शुभकामनाऍं।

---------
जानिए गायब होने का सूत्र।
….ये है तस्‍लीम की 100वीं पहेली।

रंजना said...

शब्दशः सहमत हूँ आपसे और आपके एक एक शब्द से मैं अपने शब्द मिलाती हूँ...

ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ कि यह भाव इस दुनिया के प्रत्येक माता के मन में उपजें और लोग इसके प्रति संवेदनशील हों...

रंजना said...

रोटी कपडा मकान से बहुत ही कीमती कमाई है अपने बच्चों में सुसंस्कारों की उपस्थिति,जो कि एक माँ ही अपने बच्चों में अपने परवरिश में डाल सकती है..

काश कि सब इसे समझते..

मेरी एक परिचिता हैं,जिन्होंने अपने एक महीने के बच्चे को अपनी सास के पास दूर शहर में भेज दिया क्योंकि वह एक अच्छी कम्पनी में अच्छे पद पर कार्यरत थी और वहां उन्हें वहां से तीन महीने की ही छुट्टी मिलती थी..जब बच्चा दो वर्ष का हो गया तो इन्होने महसूस किया कि उसका विकास सामान्य नहीं है..वर्ष भर देखने समझने में लग गया और जब उन्होंने गंभीरता से उसे डाक्टरों को दिखाना शुरू किया तो पता चला ,सचमुच ही बच्चा सामान्य नहीं है..आज वह बालक तेरह वर्ष का है शारीरिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ सुन्दर ,पर सोच समझ व्यवहार असामान्य..आज वह महिला सारा काम छोड़कर चौबीसों घंटे बच्चे के साथ ही रहती है,क्योंकि बच्चा खुद से अपना कुछ भी नहीं कर सकता...पर काश कि यह फैसला पहले ही ले लिया गया होता...

abhi said...

अच्छा किया इसे फिर से आपने पोस्ट किया..
बहुत सही बात आपने कही है इस पोस्ट के माध्यम से..
आयाओं के भरोसे बच्चों को छोड़ना तो बिलकुल भी नहीं चाहिए..अभी कुछ माह पहले ही एक मित्र से इस बात को लेकर बहस हो गयी थी..
बहुत सही मुद्दा उठाया है आपने.

G.N.SHAW said...

EXCELLENT AND REAL POST.EACH AND EVERY MOTHER SHOULD TAKE CARE AS A GOOD SAMARITAN, TO THEIR CHILDREN.LATE BUT GOOD POST.GOOD POST ALWAYS WELCOME .THANK MONIKA JI.

Kunwar Kusumesh said...

बाल दिवस पर सार्थक पोस्ट

हरकीरत ' हीर' said...

उन सब बहनों से जो माँ हैं या माँ बनने जा रहीं हैं कृपया ..... कुछ समय के लिए बस माँ बनिये सिर्फ माँ !

सच्च कहा आपने ...बाल दिवस पर बच्चों को इस से बड़ा उपहार और क्या हो सकता है भला ....?

निर्मला कपिला said...

सार्थक समसामयिक चिन्तन। उमदा पोस्ट। शुभकामनायें।

ashish said...

सचमुच, अच्छी माँ ही अच्छे नागरिक का निर्माण कर सकती है . बेहद प्रभावशाली पोस्ट . बाल दिवस की आपको शुभकामनाये .

Amit kr Gupta ,Hajipur,Vaishali,Bihar said...

नमस्कार मोनिका जी, आपने एक अतिसुन्दर विषय उठाया हैं. बाल श्रम हमारे समाज के मुह पर एक जोरदार तमाचा हैं.बाल श्रमिको के आंकड़ो में सरकारी और निजी दोनों में विरोधाभास हैं. आज के भौतिकवादी युग में माताओ के पास अपने बच्चो के लिए पर्याप्त समय नहीं हैं जिसके परिणामस्वरूप बच्चे भटक रहे हैं

देवेन्द्र पाण्डेय said...

अच्छी और सार्थक अपील की है आपने अपने इस पोस्ट के माध्यम से। सकारात्मक लेखन के लिए बधाई।

शोभना चौरे said...

बहुत सार्थक पोस्ट |
शुभकामना

Hindi Tech Guru said...

अच्छी बात कही है आपने.........

निठल्ला said...

बच्चों को समय देना बहुत जरूरी है, आजकल हर कोई अपने में इतना व्यस्त होता जा रहा है कि बच्चों के लिये उनके पास समय ही नही होता, एक अच्छी पोस्ट।

Satish Saxena said...

बहुत बढ़िया पोस्ट !
शुभकामनायें !

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

मोनिका जी ,
बाल दिवस पर माँ के लिए लिख कर आपने सही मायने में बच्चों की कोमल भावनाओं को संप्रेषित किया है !
आपकी लेखनी को नमन !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
www.marmagya.blogspot.com

Manoj K said...

आपने बिल्कुल ठीक बात की है.. आजकल हम भी अपने छोरे को लेकर निकल पड़ते हैं और ऐसा वैसा जैसा वह कहता है करते हैं.. फिर कभी खुद ही कहता है.. घर चलें पापा...

बच्चों को समय देना बहुत ही ज़रूरी है ..

मनोज खत्री
---
यूनिवर्सिटी का टीचर'स हॉस्टल -३

mark rai said...

very meaningful post....

#vpsinghrajput said...

सुन्दर है जी.

केवल राम said...

मोनिका जी
एक अच्छी अपील की है आपने , बहुत सुंदर तरीके से अपने विचारों को अभिव्यक्त किया है ...सही कहा है ..हम अब कुछ भूल कर कुछ देर के लिए माँ बन जाएँ ...शुक्रिया

Sagar said...

बहुत ही अच्छी प्रस्तुति है॥ एक नजर इधर भी :- ए... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति है॥
एक नजर इधर भी :-
एक अनाथ बच्चे और उसे मिली एक नयी माँ की कहानी जो पूरी होने के लिए आपके कमेन्ट कि प्रतीक्षा में है कृपया पोस्ट पर आकर उस कहानी को पूरा करने में मदद करने हेतु सभी मम्मियो और पापाओ से विनती है ॥
http://svatantravichar.blogspot.com/2010/11/blog-post_18.html

ASHOK BAJAJ said...

बहुत मार्मिक अपील .आभार

विनोद कुमार पांडेय said...

संवेदना से परिपूर्ण एक बढ़िया पोस्ट...बधाई मोनिका जी

अनामिका की सदायें ...... said...

एक सामयिक लेख आपने प्रस्तुत किया...जिस से मैं अक्षर्शः सहमत भी हूँ.लेकिन पता है जब शादी से पहले रिश्ते की बात चलती है तो सबसे पहले यही सवाल उठता है..की लड़की घरेलु है या नौकरी वाली और घरेलु सुनते ही कुछ लोग रिश्ता नहीं करते हैं..ऐसी लोगो के घर कोई न कोई तो जॉब वाली आ ही जायेगी...और जब ऐसी डिमांड होगी तो बच्चा होने पर भी नौकरी नहीं छुद्वाते...ऐसे हालातों में आप क्या करेंगी...चाहते हुए भी अपने बच्चे को माँ वक्त नहीं दे सकती...महंगाई और भौतिक वाद की दौड में सहता कौन है ? शायद सबसे ज्यादा बच्चा ही...लेकिन ऐसी परिस्थितियों में हल क्या है ?

Rajesh Kumar 'Nachiketa' said...

"आ तोहे मैं गले से लगा लूं, लागे ना किसी कि नज़र तुझको छुपा लूं.
धुप जगत है रे ममता है छैयां,का करे यशोदा मैया..."
माँ से बेहतर बच्चे को सुरक्षा का भाव कोई नहीं दे सकता...
सार्थक लेख.
राजेश

अशोक कुमार मिश्र said...

बहुत सही और सार्थक सीख देती बात कही है ...जो बच्चे आयाओं के भरोसे जीते हैं उनमें उद्दंडता अधिक परिलक्षित होती है| आपके लेख में छिपी भावना बहुत पावन है .... सच में माँ होना आसान नहीं है और माँ का फ़र्ज़ निभाना तो और भी मुश्किल .....

धन्यवाद ....

Dorothy said...

आज के भागमभाग भरी जिंदगियों में बच्चे कब हमारे देखते देखते या अंजाने में हमारी व्यस्तता और उदासीनता का शिकार बन हमारी पहुंच और पहचान से भी परे निकल जाते हैं, इसे जानने समझने की मुहलत भी कई बार तब मिलती है जब बहुत देर हो चुकी होती है. ऐसे समय में इस यथार्थपरक सामयिक एवं सार्थक आलेख के लिए बहुत बहुत धन्यवाद. आभार.
सादर,
डोरोथी.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

आप सबकी वैचारिक टिप्पणियों के लिए बहुत बहुत आभार जो लिखने का प्रोत्साहन देती हैं..... सभी को हार्दिक धन्यवाद

Anil said...

Dr. Sharma............!
The title of your article ""चलो माँ बनकर जियें...एक अपील" is very-very nice..the fact is that you are great writer......

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