My photo
पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

26 October 2010

परदेस में खिलती परंपरा......!

अपनी माटी से दूर जा बसे हिन्दुस्तानी अपनी संस्कृति और परम्पराओं के बहुत करीब हैं। यह देखकर बहुत सुखद अनुभूति होती है की जहाँ भी भारतवासी रह रहे हैं अपने देश के तीज-त्योंहार और परम्पराओं को पूरे मन और मान से निभा रहे हैं । त्योंहारों के अवसर पर तो अपनी धरती से दूर जा बसे हिन्दुस्तानियों का उत्साह देखते ही बनता है ।
करवाचौथ के मौके पर मुझे यह सुखद अहसास जीवंत देखने को मिला जब कैलगिरी (कनाडा)में महिलाओं को सुहाग के इस पर्व पर पूजा-अर्चना करते देखा। मेहंदी लगे हाथों में सुंदर सजी पूजा की थालियाँ.........पारंपरिक परिधान और व्रत की कथा-कहानी कहने सुनने का अंदाज़...... पल भर को लगा मानो अपने देश में ही हूँ..... आप भी देखिये दूर देश में अपने देश में की मनोहारी झलक........



शुभकामनायें समेटे पूजा की सुंदर थाली......!



थाली पर अटकी मेरी निगाहें..... कितनी सुंदर है ना...!


एक साथ बैठ कर सुनी गयी करवा चौथ की कथा ...



पूजा में थाली फेरने की रिवाज निभाती महिलाएं.....


पूरे उत्साह से किया करवा चौथ का पूजन....!


हर भाव में छलका हिन्दुस्तानी रंग......!



परम्पराओं की रोशनी का दीपक .....!

हमारे देश की परम्परा और संस्कृति की यह झलक मेरे तो मन में उतर गयी........जिस पर मुझे गर्व है........


51 comments:

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत अच्छा लगा पढ़ कर और जान कर कि दूर देश में भी यहाँ की परम्पराएं बनी हुईं हैं.

Shikha Kaushik said...

dunya me hum kahi bhi rahe par dil hai hundustaani...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत अच्छी पोस्ट ..भारतीय परम्पराएं खूबसूरत से सहेजी हैं इस पोस्ट में

Satish Saxena said...

अरे वाह !
बहुत सुंदर पोस्ट ! शुभकामनायें !

रंजना said...

वाह....मन हरिया गया...

सचमुच कितने सुन्दर ढंग से सजाई गयीं हैं थालियाँ...

वैसे मैंने यही अनुभव किया है कि विदेशों में रह रहे भारतीयों के मन में भाषा संस्कृति और पर्व त्योहारों के लिए जो लगाव और आस्था है,उतना यहाँ नहीं...

यहाँ बहुत बड़ी संख्या है,इस सबका उपहास उड़ाने वालों तथा तिरस्कार करने वालों की..

रंजू भाटिया said...

बहुत अच्छा लगा अपने देश का रंग वहां भी देख कर खूबसूरत

वीरेंद्र सिंह said...

ख़ूबसूरत चित्रों से सुसज्जित आपकी ये पोस्ट बेहद अच्छी लगी .
इसकी जितनी भी तारीफ़ की जाए उतनी ही कम है.
इस सुंदर और सार्थक पोस्ट के लिए आपका आभार.

abhi said...

अब तो मेरे कुछ अजीज दोस्त देश से बहार रह रहे हैं, उनसे और कुछ और लोगों से ये जानकारी मिलती रहती है की हमारे देश के बाहर रह रहे लोग अपनी परंपरा बचाए हुए हैं....अच्छा लगता है ये देख पढ़ सुन के...शायद कुछ मायनों में देश के बाहर रह रहे लोग अपनी संस्कृति से ज्यादा जुड़े रहते हैं...

करवाचौथ की ये तस्वीरें बहुत ज्यादा खूबसूरत हैं...बहुत अच्छा लगा पढ़ के...

चलते चलते युहीं एक बात कह दूँ..कैलगिरी का नाम मैंने सबसे पहले फिल्म "तुम बिन" में सुना था और तब से वहां जाने की बहुत इक्षा है :)
कभी आप कैलगिरी की तस्वीरें भी जरुर अपलोड करें :)

प्रवीण पाण्डेय said...

दिये के सुन्दर चित्र देखकर मन प्रसन्न हो गया।

केवल राम said...

मोनिका जी
भारतीय और भारतीयता हमें ही नहीं वल्कि पुरे विश्व के इंसानों को जीवन जीने का ढंग सिखाती है , करवा चौथ का जितना महत्व हमारे लिए है .......उस बात का एहसास मुझे आपकी पोस्ट पढ़कर हुआ कि भारतीय संस्कृति आज के दौर में भी अपनी महता बनाये हुए है , और भारतीयों ने उसे पूरी तरह से जीवित रखा है .....!
धन्यवाद

बाल भवन जबलपुर said...

संस्कृति वैभवशाली है अपनी
मिसफ़िट:सीधी बात

Coral said...

हमारे संस्कृति कि महक कि कुछ और है... बहुत सुन्दर

बीनाशर्मा said...

मोनिका जी आपकी कलम की प्रशंशक हूँ|पर कमेन्ट पहली बार ही कर रही हूँ| मै जिस संस्था मे कार्य करती हूँ^ वहा विदेशियों को हिन्दी सिखाई जाती है मैने देखा है जिस साडी परिधान और चूडियों को हम पुरातन पंथी मान कर छोड़कर देते है वही सादी विदेशियों की पहली पसंद होती है| बहुत अच्छा लगा जानकर कि हम भारतीय कम से कम बाहर जाकर अपनी परम पराओ को तो कायम रख पाते है|सुन्दर और आकर्षक पोस्ट | कभी प्रयास की वेव्सायत देखियेगा| एक छोटा सा प्रयास कर रही हूँ वंचितों^ को शिक्षा देने का

ASHOK BAJAJ said...

दिल को सुकून प्रदान करने वाला समाचार .खूबसूरत चित्र .बधाई

DR.ASHOK KUMAR said...

मोनिका जी नमस्कार! भारतीय सँस्कृति की जड़ेँ बहुत मजबूत हैँ। इसकी सत्यता आपकी बहतरीन पोस्ट ने सिद्व कर दी। बहुत ही लगन एवं खूबसूरती से आपने पोस्ट प्रस्तुत की हैँ। आपकी पोस्ट पढ़कर मन प्रफुल्लित हो गया। लाजबाव पोस्ट के लिए आभार।

Manoj K said...

करवा चौथ की चित्र कथा. हमरे परिवार में करवा चौथ की जगह तीज का ज़्यादा महत्व है. तीज के कार्यक्रम भी लगभग ऐसे ही होते हैं.

सुन्दर चित्र.

Dr Xitija Singh said...

बहुत अच्छा लगा ये देख कर मोनिका जी .... हमारी परम्पराओं की महक सारे संसार में फैली है ...

निर्मला कपिला said...

वाह वाह ये हुयी न बात। इतने उत्साह से तो शायद भारत मे भी न मनाई गयी हो ये रस्मे। बहुत सुन्दर तस्वीरें। हमारे त्यौहार इतने मस्त और रंगीले हैं लगता है धीरे धीरे विदेशी भी इस रंग मे रंग जायेंगे। बहुत बहुत बधाई।

vijai Rajbali Mathur said...

मोनिका जी ,
आप तो विदेश में हैं ,देश में भी दुसरे प्रान्तों में एक प्रान्त के लोगों में अत्यधिक आत्मीयता हो जाती है .इसीलिये वहां आपको अपनी परम्परा देख कर अछ्छा लगा जो स्वभाविक है .

Dorothy said...

सभी प्रवासियों के सांझे अनुभवों में अकेलापन और न समझे जाने की पीड़ा तो होती है पर अपनों का और अपने जैसे लोगों का साथ मिलने पर हुई हमारी द्विगुणित खुशियों का मेला उन दंश देते बातों के असर को कुछ धुंधला कर देता है. आशा करती हूं कि आप के जीवन का हर पल इसी तरह खुशियों से भरा रहे और आत्मीयों के रोशनी वृत सदैव अपने उजास से जीवन को आलोकित करता रहे. इतने दुलारे बेटे से परिचय कराने के लिए आभार. उसका जीवन यूं ही फलता फूलता रहे और एक फलदार एवं छायादार वृक्ष बने. मेरी तरफ़ से उसे ढेरों प्यार और आशीर्वाद दीजिए.
सादर
डोरोथी.

Arvind Mishra said...

नयनाभिराम झलकियाँ !

विनोद कुमार पांडेय said...

बहुत बढ़िया पोस्ट...भारतीय संस्कृति और सभ्यता की झलक़ विदेशों में भी फैली हुई है...सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई

palash said...

widesh mai bhi desh kee paramparao , reeti rewajo ka jeewit hota , achchha ahsaas dilaa gaya
bahut bahut dhanyawaad

ZEAL said...

.


Monika ji,

bahut sundar prastuti . man khush ho gaya.

aabhar.

.

सुधीर राघव said...

मोनिका जी, बहुत सुंदर प्रस्तुति। भारतीय संस्कृति अक्षुण है।
कुछ राज है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-जहां हमारा।।

सुधीर राघव said...

मोनिका जी, बहुत सुंदर प्रस्तुति। भारतीय संस्कृति अक्षुण है।
कुछ राज है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-जहां हमारा।।

बाल भवन जबलपुर said...

आभारी हूं
ब्लाग4वार्ता

Anonymous said...

महाभारत धर्म युद्ध के बाद राजसूर्य यज्ञ सम्पन्न करके पांचों पांडव भाई महानिर्वाण प्राप्त करने को अपनी जीवन यात्रा पूरी करते हुए मोक्ष के लिये हरिद्वार तीर्थ आये। गंगा जी के तट पर ‘हर की पैड़ी‘ के ब्रह्राकुण्ड मे स्नान के पश्चात् वे पर्वतराज हिमालय की सुरम्य कन्दराओं में चढ़ गये ताकि मानव जीवन की एकमात्र चिरप्रतीक्षित अभिलाषा पूरी हो और उन्हे किसी प्रकार मोक्ष मिल जाये।
हरिद्वार तीर्थ के ब्रह्राकुण्ड पर मोक्ष-प्राप्ती का स्नान वीर पांडवों का अनन्त जीवन के कैवल्य मार्ग तक पहुंचा पाया अथवा नहीं इसके भेद तो परमेश्वर ही जानता है-तो भी श्रीमद् भागवत का यह कथन चेतावनी सहित कितना सत्य कहता है; ‘‘मानुषं लोकं मुक्तीद्वारम्‘‘ अर्थात यही मनुष्य योनी हमारे मोक्ष का द्वार है।
मोक्षः कितना आवष्यक, कैसा दुर्लभ !
मोक्ष की वास्तविक प्राप्ती, मानव जीवन की सबसे बड़ी समस्या तथा एकमात्र आवश्यकता है। विवके चूड़ामणि में इस विषय पर प्रकाष डालते हुए कहा गया है कि,‘‘सर्वजीवों में मानव जन्म दुर्लभ है, उस पर भी पुरुष का जन्म। ब्राम्हाण योनी का जन्म तो दुश्प्राय है तथा इसमें दुर्लभ उसका जो वैदिक धर्म में संलग्न हो। इन सबसे भी दुर्लभ वह जन्म है जिसको ब्रम्हा परमंेश्वर तथा पाप तथा तमोगुण के भेद पहिचान कर मोक्ष-प्राप्ती का मार्ग मिल गया हो।’’ मोक्ष-प्राप्ती की दुर्लभता के विषय मे एक बड़ी रोचक कथा है। कोई एक जन मुक्ती का सहज मार्ग खोजते हुए आदि शंकराचार्य के पास गया। गुरु ने कहा ‘‘जिसे मोक्ष के लिये परमेश्वर मे एकत्व प्राप्त करना है; वह निश्चय ही एक ऐसे मनुष्य के समान धीरजवन्त हो जो महासमुद्र तट पर बैठकर भूमी में एक गड्ढ़ा खोदे। फिर कुशा के एक तिनके द्वारा समुद्र के जल की बंूदों को उठा कर अपने खोदे हुए गड्ढे मे टपकाता रहे। शनैः शनैः जब वह मनुष्य सागर की सम्पूर्ण जलराषी इस भांति उस गड्ढे में भर लेगा, तभी उसे मोक्ष मिल जायेगा।’’
मोक्ष की खोज यात्रा और प्राप्ती
आर्य ऋषियों-सन्तों-तपस्वियों की सारी पीढ़ियां मोक्ष की खोजी बनी रहीं। वेदों से आरम्भ करके वे उपनिषदों तथा अरण्यकों से होते हुऐ पुराणों और सगुण-निर्गुण भक्ती-मार्ग तक मोक्ष-प्राप्ती की निश्चल और सच्ची आत्मिक प्यास को लिये बढ़ते रहे। क्या कहीं वास्तविक मोक्ष की सुलभता दृष्टिगोचर होती है ? पाप-बन्ध मे जकड़ी मानवता से सनातन परमेश्वर का साक्षात्कार जैसे आंख-मिचौली कर रहा है;
खोजयात्रा निरन्तर चल रही। लेकिन कब तक ? कब तक ?......... ?
ऐसी तिमिरग्रस्त स्थिति में भी युगान्तर पूर्व विस्तीर्ण आकाष के पूर्वीय क्षितिज पर एक रजत रेखा का दर्शन होता है। जिसकी प्रतीक्षा प्रकृति एंव प्राणीमात्र को थी। वैदिक ग्रन्थों का उपास्य ‘वाग् वै ब्रम्हा’ अर्थात् वचन ही परमेश्वर है (बृहदोरण्यक उपनिषद् 1ः3,29, 4ः1,2 ), ‘शब्दाक्षरं परमब्रम्हा’ अर्थात् शब्द ही अविनाशी परमब्रम्हा है (ब्रम्हाबिन्दु उपनिषद 16), समस्त ब्रम्हांड की रचना करने तथा संचालित करने वाला परमप्रधान नायक (ऋगवेद 10ः125)पापग्रस्त मानव मात्र को त्राण देने निष्पाप देह मे धरा पर आ गया।प्रमुख हिन्दू पुराणों में से एक संस्कृत-लिखित भविष्यपुराण (सम्भावित रचनाकाल 7वीं शाताब्दी ईस्वी)के प्रतिसर्ग पर्व, भरत खंड में इस निश्कलंक देहधारी का स्पष्ट दर्शन वर्णित है, ईशमूर्तिह्न ‘दि प्राप्ता नित्यषुद्धा शिवकारी।31 पद
अर्थात ‘जिस परमेश्वर का दर्शन सनातन,पवित्र, कल्याणकारी एवं मोक्षदायी है, जो ह्रदय मे निवास करता है,
पुराण ने इस उद्धारकर्ता पूर्णावतार का वर्णन करते हुए उसे ‘पुरुश शुभम्’ (निश्पाप एवं परम पवित्र पुरुष )बलवान राजा गौरांग श्वेतवस्त्रम’(प्रभुता से युक्त राजा, निर्मल देहवाला, श्वेत परिधान धारण किये हुए )
ईश पुत्र (परमेश्वर का पुत्र ), ‘कुमारी गर्भ सम्भवम्’ (कुमारी के गर्भ से जन्मा )और ‘सत्यव्रत परायणम्’ (सत्य-मार्ग का प्रतिपालक ) बताया है।
स्नातन शब्द-ब्रम्हा तथा सृष्टीकर्ता, सर्वज्ञ, निष्पापदेही, सच्चिदानन्द , महान कर्मयोगी, सिद्ध ब्रम्हचारी, अलौकिक सन्यासी, जगत का पाप वाही, यज्ञ पुरुष, अद्वैत तथा अनुपम प्रीति करने वाला।
अश्रद्धा परम पापं श्रद्धा पापमोचिनी महाभारत शांतिपर्व 264ः15-19 अर्थात ‘अविश्वासी होना महापाप है, लेकिन विश्वास पापों को मिटा देता है।’
पंडित धर्म प्रकाश शर्मा
गनाहेड़ा रोड, पो. पुष्कर तीर्थ
राजस्थान-305 022

Anonymous said...

<
<
ईसा के द्वारा दी हुई शिक्षा जिसे ईसाई मानते और करते है। नीचे लिंक देखें।
जरुर देंखें हकीकत
http://www.youtube.com/results?search_query=benny+hinn+fire&aq=9sx

http://www.youtube.com/results?search_query=tb+joshua+miracles&aq=1sx


>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>><<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<

>> <<

हजरत मुहम्मद की दी हुई शिक्षा जिसे मुसलमान लोग मानते और उसे अन्जाम देते है। नीचे लिंक देखें। हकीकत
www.truthtube.tv/play.php?vid=2008
?????????????????????????????????
दुनिया 21 वीं सदी में प्रवेश कर चुकी है।
ये कथा कहानियों का दौर नही है।
ये प्रमाण है।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

ये परम्‍पराऍं ही तो लोगों को विदेश में भी अपने देश की माटी से जोडे रखती हैं।

---------
सुनामी: प्रलय का दूसरा नाम।
चमत्‍कार दिखाऍं, एक लाख का इनाम पाऍं।

चन्दन कुमार said...

aapka profile mujhe bahut pasand aayaa...aap full time maa hain aur baki kam part time vakayee aapkee soch doosaron se alag hai...aur han..foto dekhkar dil khush ho gaya..bhartiye sanskriti aur riti rivaj isi men basti hai hamari zan aur pahchan.

चन्दन कुमार said...

aapka profile mujhe bahut pasand aayaa...aap full time maa hain aur baki kam part time vakayee aapkee soch doosaron se alag hai...aur han..foto dekhkar dil khush ho gaya..bhartiye sanskriti aur riti rivaj isi men basti hai hamari zan aur pahchan.

दिगम्बर नासवा said...

बहुत ही सुन्दर फोटो लिए हैं आपने ... हमारे दुबई में भी ऐसे ही होता है .... तमाम लोग इकठ्ठा हो कर एक साथ मनाते हैं सरे पर्व ....

उपेन्द्र नाथ said...

मोनिका जी , बहुत ही अच्छा लग रहा ये सब जानकर. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति भारतीय सभ्यता को गौरवान्वित करती हुई. पहले चित्र मे दिखाए गए मिटटी के बर्तन भी क्या वहा बनते है या यहाँ से गए है .

VIJAY KUMAR VERMA said...

monika gee
padhkar bahut hee achchha laga ki bharat se itnee door bhee bharat kee sanskriti itnee jiwant hai...tasveere to kamal ki hai...badhayi

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

baHUT SUNDAR post... photo bhi bahut kamaal...badhai ho itne sundar dhang se karva chauth videsh me bhi manayi aapne..

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

namaste monika ji,
aaj ashish bhai ke blog se aapke yahaan aana hua, ek baat kahunga, aapka blog dekh kar shrimaan Roop Chandra Shastri ji ki yaad aa gayi, wo bhi aise hee khoobsurat chitran ke saath vyakt karte hain!
khoobsoorat hai aapki rachnaayein bhi!

cheers!
Surender.

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

मोनिका जी नमस्ते!
तस्वीरें निस्संदेह सुन्दर हैं!
पर मैं तो चिढ़ गया.....
हा हा हा हा!
आशीष
----
पहला ख़ुमार और फिर उतरा बुखार!!!

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@ यशवंत
@शिखा
@ सतीशजी
@ संगीताजी
आप सबका आभार इस पोस्ट को सराहने के लिए....सच में हमारी परम्पराएँ
दुनिया के हर कोने में जीवित हैं।

@ रंजना जी
बिल्कुल सही कहा आपने..... विदेशों में बसे लोगों में अपनी संस्कृति के प्रति ज्यादा लगाव
देखने को मिलता है।

@रंजना भाटिया जी '
@ वीरेन्द्र सिंह
मुझे भी बहुत ख़ुशी होती है अपने देश की संस्कृति के रंगों की छटा यहाँ देखकर...

@ अभी
सच में ऐसा ही हो रहा है..... कैलगिरी के फोटोज ज़रूर अपलोड करूंगी .... सुंदर जगह है यह.....
@ प्रवीणजी
सच में हमारी परम्पराओं कइ रौशनी है ही ऐसी......
@ केवल राम
सच केवल भारतीयता जीने का ढंग सिखाती है.....
@ गिरीश बिल्लोरे
@कोरल
बहुत बहुत धन्यवाद

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@ बीना शर्मा
सच बीनाजी हम जिन चीज़ों को छोड़ रहे हैं वे लोग उन्हें अपना रहे हैं.....
ब्लॉग पर आने के लिए आभार....

@ अशोक बजाज
सच में...? आभार

@ डॉ अशोक
बहुत बहुत शुक्रिया.....

@मनोज
धन्यवाद मनोज तीज हो या करवा चौथ.... हमारे देश के तो हर त्योंहार का रंग सुंदर है......

@क्षितिजा
सच में क्षितिजा अच्छा भी लगता है और गर्व भी महसूस होता है हमारी संस्कृति पर......

@निर्मला जी
बहुत बहुत आभार आपका .... यूँ ही स्नेह बनाये रखें....

@विजय माथुर
बिल्कुल ठीक कहा आपने ....धन्यवाद

एक बेहद साधारण पाठक said...

@मोनिका जी

आनंद आ गया ये पोस्ट "देख कर" और "पढ़ कर"

मुझे भी गर्व है देश की परम्परा और संस्कृति पर

धन्यवाद इस पोस्ट के लिए

एक बेहद साधारण पाठक said...

@मोनिका जी

आनंद आ गया ये पोस्ट "देख कर" और "पढ़ कर"

मुझे भी गर्व है देश की परम्परा और संस्कृति पर

धन्यवाद इस पोस्ट के लिए

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@डोराथीजी
@अरविंद जी
बहुत बहुत आभार आपका..............

@विनोद पांड्ये जी
@पलाश
@Zeal
सचमुच बहुत खुशी होती है अपनी परंपराओं को दूर देश में जीवंत देखकर......

@सुधीरजी
@ज़ाकिर अली जी
धन्यवाद आपका...........

@चंदन
शुक्रिया आपका............
@उपेंद्रजी
उपेंद्रजी ऐसे कई सामान वहां अपने देश से ही मंगवाये जाते हैं........... कई स्टोर्स हैं जहां हर तरह के देसी सामान मिल जाते हैं।

@विजय कुमार जी
@डॉ नूतन नीति
@सुरेंद्र मुल्हिद
@आशीष
@गौरव
आप सबका बहुत बहुत आभार

संजय भास्‍कर said...

नमस्कार मोनिका जी ,
सुन्दर चित्र देखकर मन प्रसन्न हो गया।
..........सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई

Unknown said...

बहुत अच्छी पोस्ट ...संस्कृति का दीप सदा सदा प्रज्वलित रहे....स्नेह , प्रेम की शास्वत परंपरा अक्षुण..........................
बनी रहे...

ब्लॉग बुलेटिन said...

ब्लॉग बुलेटिन की पूरी टीम की ओर से आप सभी मित्रों को करवा चौथ की हार्दिक मंगलकामनाएँ !
इस मौके पर पेश है रश्मि प्रभा जी द्वारा तैयार किया हुआ ब्लॉग बुलेटिन का करवा चौथ विशेषांक |
ब्लॉग बुलेटिन के करवा चौथ विशेषांक पिया का घर-रानी मैं मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

कालीपद "प्रसाद" said...

बहुत बढ़िया पोस्ट
नई पोस्ट मैं

मुकेश कुमार सिन्हा said...

paramparayen achchhi lagi :)

विभा रानी श्रीवास्तव said...

करवा चौथ की हार्दिक मंगलकामनाएँ ....

निवेदिता श्रीवास्तव said...

सुंदर प्रस्तुति ...... शुभकामनाएं :)

Asha Joglekar said...

देश छोड कर देश की माटी से मोह बढ जाता है। सुंदर चित्रों के साथ सुंदर लेख।

Post a Comment