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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

23 July 2010

चलो..... कुछ समय बस माँ बनकर जीयें

माँ शब्द की गहराई को अल्फ़ाज़ों में बांधना किसी के लिए भी आसान नहीं है शायद यही वजह है कि मेरे पास भी माँ से जुड़ी कोई भावुक कविता नहीं है। बस एक अपील है उन सब बहनों के लिए जो माँ हैं या माँ बनने जा रहीं हैं प्लीज़..... कुछ समय के लिए बस माँ बनिये सिर्फ माँ ! अपने बच्चों को पूरा समय दीजिये उनके साथ खेलिए............गाइये...... गुनगुनाइए...... बरसात कि बूंदों में भीगिए...... सुबह जब वो आँख खोले उसके सामने रहिये और रात को उसे अपने सीने में छुपाकर इस बात का अहसास करवाइए कि आप हमेशा उसके पास हैं.......उसके साथ हैं । कभी कभी उसे लेकर यूँ ही टहलने निकल जाइये वो जिधर इशारा करे चलते रहिये । कुछ समय के लिए समय की पाबन्दी को भूलकर बस ! माँ बन जाइये।


हाल ही में एक खबर सुनने में आई कि एक कामकाजी जोड़े की बच्ची ने आया की देखरेख में अपनी सुनने की ताकत हमेशा के लिए खो दी। कारण यह था कि परेशानी से बचने के लिए आया बच्ची को कमरे में बंद कर टीवी काफी तेज आवाज़ में चला देती थी।

हम आगे बढ रहे हैं , प्रगतिशील हो रहे हैं और ऐसी घटना इसी तरक्की की बानगी भर है। बच्चे को दुनिया में लाने से पहले ही आज के परेंट्स हर तरह की प्लानिंग कर लेते हैं पर उसे समय देने के मामले पर विचार कम ही होता है। पिछले कुछ सालों में वर्किंग मदर्स की संख्या में जितना इज़ाफा हुआ है मासूम बच्चों की मुश्किलें भी उतनी बढ़ी हैं। क्रेच और बेबी सीटर जैसे शब्द आम हो गए हैं। अगर संयुक्त परिवार है तो दादी-नानी बच्चों की माँ बन रही हैं (आजकल ऐसे परिवार बस गिनती के हैं ) नहीं तो इन नौनिहालों की परवरिश पूरी तरह नौकरों के भरोसे है। बड़े शहरों में ज्यादातर कामकाजी जोड़ों के बच्चे पूरे दिन अकेले आया के साथ गुजार रहे हैं। सोचने की बात यह है की जो बच्चा आपकी गैर-मौजूदगी में उसके साथ होने वाले दुर्व्यवहार के बारे में बोलकर बताने के लायक भी नहीं है उसे यों अकेला छोड़ना कहाँ तक उचित है ? मेरे विचारों को जानकर कृपया यह न सोचें कि मैं कामकाजी महिलाओं को उलाहना दे रही हूँ या उनकी परिस्थिति नहीं समझती । मैं उनके जज़्बे को सलाम करती हूँ जिसके दम पर वे घर और दफ्तर की ज़िन्दगी में तालमेल बनाकर चलती हैं। पर मैं मानती हूँ की माँ होने की जिम्मेदारी से बढ़कर कोई काम नहीं हो सकता। माँ बनना और अपने बच्चे के विकास को हर लम्हा जीना एक विरल अनुभूति है। जिसे महसूस करना हर माँ का हक़ भी है और जिम्मेदारी भी। कई अध्ययन यह साबित कर चुके हैं कि बच्चे का मनोविज्ञान जैसा उसकी माँ के साथ होता है किसी और के साथ नहीं होता.....दादी-नानी के साथ भी नहीं। ऐसे में एक अजनबी (आया) के साथ बचपन बीतना बच्चों के किये कितना तकलीफदेह हो सकता है यह समझना मुश्किल नहीं है। हम लाख दलीलें देकर भी इस बात को नहीं झुठला सकते कि माँ का विकल्प मनी या आया नहीं हो सकता, कभी भी नहीं। माँ बच्चे के जीवन की धुरी होती है । उसकी हर छोटी बड़ी समझाइश बच्चे के जीवन की दिशा बदल सकती है । लेकिन मौजूदा दौर में तो मांओं के पास वक़्त ही नहीं है तो फिर समझाइश कैसी ? ज़ाहिर सी बात है कि नौकरों के सहारे पलने वाले बच्चों की परवरिश में प्यार और संस्कार की कमी तो है ही मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना भी कुछ कम नहीं है। बचपन के इन हालातों का असर बच्चे की पूरी ज़िन्दगी पर पड़ता है और आगे चलकर हमारे इन्हीं बच्चों का व्यव्हार समाज की दिशा व दशा तय करता है। आज हमारे समाज में औरतों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार और भेदभाव से तकरीबन हर महिला को शिकायत है। ऐसे में माँ होने के नाते आप एक जिम्मेदारी उठायें । अपने बच्चे की परवरिश की , वो बच्चा जो इस समाज का भावी नागरिक होगा शुरू से ही उसे सही सीख देकर एक सुनागरिक बनायें। बेटी को हौसले से जीने का पाठ पढ़ायें और बेटे को घर हो या बाहर औरतों की इज्ज़त करना सिखाएं। ज़ाहिर सी बात है की ऐसी परवरिश के लिए उनके साथ समय बिताना, उन्हें समझना और समझाना बहुत ज़रूरी है। तो फिर मातृत्व को जीने और बच्चों के पालन-पोषण को सही मायने देने के लिए चलो........कुछ समय के लिए बस माँ बनकर जीयें ।



25 comments:

Narendra Vyas said...

"सोचने की बात यह है की जो बच्चा आपकी गैर-मौजूदगी में उसके साथ होने वाले दुर्व्यवहार के बारे में बोलकर बताने के लायक भी नहीं है उसे यों अकेला छोड़ना कहाँ तक उचित है"
आदरणीया मोनिका जी आपने इस एक सवाल में वर्तमान समाज में आई बहुत चिंतनशील कमी को बड़ी सफलता से व्यक्त कर दिया..बहुत अच्छा और यथार्थ वर्णन किया है आपने.. ! इस भागामभागी में कही थोडा रुक कर सोचना जरूर चाहिए कि इन नौनिहालों के साथ ऐसा व्यव्हार उचित है? जिनके भविष्य के लिए हम भागमभाग कर रहे हैं, क्या उनके बड़े होने तक हम उनको किसी लायक बनापायेंगे?
बहुत अच्छा लगा आपका आलेख, प्रभावित किया...बधाई ! आभार !!

संजय भास्‍कर said...

बहुत अच्छा लगा आपका आलेख, प्रभावित किया...बधाई ! आभार !!

Coral said...

बहुत सुन्दर विचार है आपके ....
बच्चे गीले माटी का गोला होते है जैसा ढालो ....

सुन्दर पोस्ट के लिए बधाई !
___________
http://www.coralsapphire.blogspot.com/

DR. ANWER JAMAL said...

यूँ कहने को सारा जग अपना होता
पर वक्त पर कौन है जो साथ रोता
तेरे-मेरे के घेरे से कौन बाहर निकले
साथ जीने-मरने वाले होते हैं बिरले
जो सगा है वही कितना संग चलता
यूँ ही अचानक कहीं कुछ नहीं घटता

swami anant chaitanya said...

बहुत सुंदर , समाज की आँखे खोलने वाली प्रस्तुति . आज बहिने, बेटियाँ नौकरों के सहारे अपने जिगर के टुकड़े को छोड़ कर आफिस जाती है , ऐसा नहीं की उनमे ममत्व में कोई कमी है . आज के परिवेश में सयुक्त परिवार के वह दिन याद आते है जब बच्चा माता पिता के गोद में कम रहता था , चाची ताई बुआ के गोद में ज्यादा घूमा करता था .
समय में ताल मेल बिठा कर प्यार में कभी कमी न आने दे , यही अच्छा होगा .

संगीता पुरी said...

इस सुंदर से ब्‍लॉग के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

mastkalandr said...

में कभी रब से रूबरू हुआ नहीं,
माँ सा कोई और रब देखा नहीं ..
Chalo Chalen Maa Sapanon Ke Gaaon Mein.. (Song with Lyrics)
Movie -Jagriti (1954)
Singer - Asha Bhosale
Lyricist - Kavi Pradeep
Music Director - Hemant Kumar
http://www.youtube.com/watch?v=ggRpInuAMmE
सुन्दर लेख,सुन्दर ब्लॉग के लिए शुभकामनाएं ...मक्
http://www.youtube.com/mastkalandr
http://www.youtube.com/9431885

वाणी गीत said...

सिर्फ कुछ समय के लिए नहीं ...
हर समय के लिए ...और सभी के लिए
माँ बनकर जीयें ...
सार्थक अपील ...स्वागत है ...!

Anonymous said...

सच्चा और अच्छा तथा प्रेरक आलेख

अजय कुमार said...

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

Anonymous said...

jai ho ! great man ! be great, man is always great

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

monika is aalekh ke vicharon se apan sau feesadi sahamat hain....

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

डॉ.मोनिका जी
नमस्कार !
परवाज़ पर आ'कर अच्छा लगा ।
प्रगति की दौड़ में वात्सल्य और ममत्व जैसे क्षरित न हो सकने वाले भावों का भी कैसे ह्रास होता जा रहा है , आपने अपने आलेख में स्पष्ट किया है ।
उद्देश्यपूर्ण लेखन के लिए बधाई और स्वागत !
शस्वरं पर भी आपका हार्दिक स्वागत है , समय मिले तो अवश्य आइएगा …
शुभकामनाओं सहित

- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं

E-Guru _Rajeev_Nandan_Dwivedi said...

आपका ब्लॉग बहुत सुन्दर है. विचार और आलेख तो और भी सुन्दर हैं. बस अनुच्छेद (पैराग्राफ) की कमी के कारण पढ़ना थोड़ा सा कष्टकारी हो गया.
पर बहुत ही अच्छा लिखा है आप ने.

KK Yadav said...

दिल के भावों को बड़ी खूबसूरती से लिखा...बधाई.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

आज पहली बार आना हुआ आपके ब्लॉग पर........... बहुत अच्छा लगा... आपके ब्लॉग को देख कर आपका साइकोलॉजिकल एनालिसिस बहुत अच्छा लगा...

Parul kanani said...

monika ji..bahut hi sahjta se ek prabhavi lekh diya hai aapne..jo pasand aaya!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मोनिका जी ,
आज आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ ....कई लेख पढ़े ...बहुत रोचक और महत्त्वपूर्ण बातें कहीं हैं आपने ....और यह लेख तो बहुत सार्थक है ....उनको दिशा दिखाता हुआ जो महिलाएं कामकाजी हैं और माँ बनने वाली हैं ...आभार

सुनील गज्जाणी said...

मोनिका जी ,
सादर प्रणाम !
आप के ब्लॉग पे पहली बार आने का सौभाग्य प्राप्त हुआ , अच्छा लगा ,
साधुवाद !


बहुत अच्छा लगा आपका आलेख, प्रभावित किया...बधाई ! आभार !!

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" said...

bahut badhiyaaa

Tilak Raj Relan said...

डॉ.मोनिका जी
नमस्कार !
प्रगति की दौड़ में वात्सल्य और ममत्व पर परवाज़ में अच्छा उद्देश्यपूर्ण तथा प्रेरक आलेख,लेखन के लिए बधाई।
इस सुंदर से ब्‍लॉग पर आ'कर अच्छा लगा तथा हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है।
ब्‍लॉग पर भी आपका हार्दिक स्वागत है,
शुभकामनाओं सहित.

Urmi said...

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स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ !

मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!

मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत बढ़िया और शानदार आलेख लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

डॉ. मोनिका शर्मा said...

आप सबका शुक्रिया जिन्होंने अपने
बेशकीमती विचारों की टिप्पणियां दी
और मेरा हौसला बढाया

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

bahut acchha likha hai aapne monika

संजय भास्‍कर said...

सुन्दर लेख,सुन्दर ब्लॉग के लिए शुभकामनाएं .

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