पेशे से पत्रकार और संवेदनशील विचारों वाले अतुल श्रीवास्तव जी समाज में मौजूद विषमताओं को लेकर अपने लेखन में अक्सर सवाल उठाते रहते हैं सत्यमेव जयते ब्लॉग के अतुल जी ने देहरी के अक्षांश पर को पढ़ते हुए लिखा है.........
डॉ. मोनिका शर्मा की किताब मुझे लगता है, स्याही से नहीं, भावनाओं से लिखी गई है, इसे ज़रूर पढ़ना चाहिए........ क्या सरल शब्द, क्या भाव........पढ़ते हुए एक ही रिश्ता ध्यान में आया "माँ".....अपने विचार दते हुए उन्होंने मेरे संग्रह से यह कविता साझा की है ।
फिरकनी
दिन भर फिरकनी सी खटती वो
कितना कुछ थामे रहती है
आँगन की बुहारी
रस्में तीज त्यौहारी
बच्चों की पढ़ाई
बड़ो की दवाई
किसे देनी है कितनी सौगात
कहाँ कहनी है कोई बात
रिश्तेदारी के बुलावे
अपनों के छलावे
कभी बेवजह की रोकटोक
कभी आशाओं की छौंक
लौकिक व्यवहार
मसाले और आचार
दुनियावी बर्ताव
फल-सब्जियों के भाव
बड़ों के ताने
बच्चों के बहाने
कभी दाल भात
कभी संदेह के चक्रवात
जबरन हँसके बतियाने का खेल
तो कभी मन का मन से मेल
रिश्तों की बुनकर सी
वो साधे रहती है ताने बाने को
उलझने नहीं देती कोई डोर
भीतर अैर बाहर
हर ऊँच-नीच को समतल करने में
जुटी गृहिणी को
निरूत्तर कर जाता है
ये प्रश्न-
कि दिन भर घर में करती ही क्या हो? .......आपको शुभकामनाएं, बधाई डॉ. मोनिका शर्मा
दिन भर फिरकनी सी खटती वो
कितना कुछ थामे रहती है
आँगन की बुहारी
रस्में तीज त्यौहारी
बच्चों की पढ़ाई
बड़ो की दवाई
किसे देनी है कितनी सौगात
कहाँ कहनी है कोई बात
रिश्तेदारी के बुलावे
अपनों के छलावे
कभी बेवजह की रोकटोक
कभी आशाओं की छौंक
लौकिक व्यवहार
मसाले और आचार
दुनियावी बर्ताव
फल-सब्जियों के भाव
बड़ों के ताने
बच्चों के बहाने
कभी दाल भात
कभी संदेह के चक्रवात
जबरन हँसके बतियाने का खेल
तो कभी मन का मन से मेल
रिश्तों की बुनकर सी
वो साधे रहती है ताने बाने को
उलझने नहीं देती कोई डोर
भीतर अैर बाहर
हर ऊँच-नीच को समतल करने में
जुटी गृहिणी को
निरूत्तर कर जाता है
ये प्रश्न-
कि दिन भर घर में करती ही क्या हो? .......आपको शुभकामनाएं, बधाई डॉ. मोनिका शर्मा
आभार अतुल जी
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मेरे काव्य संग्रह देहरी के 'अक्षांश पर को लेकर 'को लेकर 'बस यूँ ही' ब्लॉग के अमित श्रीवास्तव जी के विचार सहज और सधी भाषा में कही गई एक सारगर्भित टिप्पणी समान हैं । स्त्रीमन को समझने वाले इन विचारों के लिए आपका आभार अमित जी ।
डॉ. मोनिका जी ने जैसे स्त्री के मन का मंथन कर डाला हो और उससे निकले अमृत रुपी भावों को अपनी कविता का रूप दे दिया है । सच ही है कि गृहिणी को कभी उतना महत्व , सम्मान और श्रेय नहीं मिलता जितने की वह हक़दार होती है । आर्थिक स्वतंत्रता का न होना या हर छोटी बड़ी जरूरतों पर पुरुष पर निर्भर होना एक बड़ा कारण होता है । आवश्यकता बस स्त्री के मन को छू कर उसे यह एहसास कराने की है कि परिवार और समाज का वजूद बस उसके वजूद से ही संभव हुआ है ।
स्त्री के जीवन का सार बस इन्ही दो कविताओं में है ,एक "संकल्प और विकल्प " और दूसरा " मौसम " ।
एक बेहतरीन संकलन कविताओं का , बहुत बहुत बधाई डॉ मोनिका जी को
मौसम |
7 comments:
मोनिका जी, "देहरी के अंक्षाश" के लिए बहुत- बहुत बधाई!
हार्दिक शुभकामनाये।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, सियाचिन के परमवीर - नायब सूबेदार बाना सिंह - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
सुन्दर व सार्थक रचना...
नववर्ष मंगलमय हो।
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
वाह!!
इस पोस्ट को देख ही नहीं पाया था। शुक्रिया ब्लॉग बुलेटिन...
आभार मोनिका जी...
देहरी के अक्षांश के प्रकाशन की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें ... सजीव रचनाओं का संकलन होने वाला है ये ... यहाँ प्रकाशित दोनों रचनाएं इस बात की ताकीद कर रही हैं ...
बस ....... बधाइयॉं और शुभकामनाएँ मोनिका जी ।
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