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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

30 January 2016

छद्म आधुनिकता




स्त्री हूँ मैं
सशक्तीकरण के नाम पर
परम्पराओं को खारिज  करने की दरकार
नहीं है मुझे,
हाँ, ज्ञात है अंतर साहस और दुस्साहस का
रीत-रिवाज के नाम पर होते शोषण के विरुद्द
मेरे भीतर बसती स्त्रीत्व की चेतना
परम्पराओं से  जद्दोज़हद
करने के खेल में
छद्म आधुनिकता के जाल से बचने का
विवेक रखती है ।

24 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (01-02-2016) को "छद्म आधुनिकता" (चर्चा अंक-2239) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

डॉ. मोनिका शर्मा said...

आभार आपका

Dr ajay yadav said...

छद्म आधुनिकता के जाल से बचना ही चाहियें,आधुनिकता वही जो हमारे उत्कर्ष में सहायक हों |

ब्लॉग बुलेटिन said...

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " प्रेम से बचा ना कोई " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Harihar (विकेश कुमार बडोला) said...

बहुत उम्‍दा बात कही है आपने। देह केन्द्रित सशक्तिकरण का समर्थन करनेवालों पर तमाचा हैं ये पंक्तियां।

संध्या शर्मा said...

बेहतरीन सोच ... शुभकामनाएं

गिरधारी खंकरियाल said...

बढ़ते रहो।

Wasu said...

bahot badhiya................!!!!

दिगम्बर नासवा said...

स्पष्ट और सटीक कहा है ... आज की आधुनिकता अपने रीति और रिवाज़ को जबरन ख़त्म करना चाहती है ... अच्छी बातों को भी इसलिए नहीं मानते की ये ये पुराने समय से जो चली आ रही है ... इसको तोडना ही आधुनिक होना है ...

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत गहरी और विचारणीय तथ्य। नीर क्षीर विवेक हो।

Rahul... said...

bahut gahri baat kahi hai aapne..

Amrita Tanmay said...

यही विवेक बचाए रखता है हमारी गरिमा को .

Jyoti khare said...

स्त्री की यही सोच समाज के, घर परिवार के जीवन मूल्यों को बचाकर जिन्दा रखे है
गहरी अभिव्यक्ति
सादर

kuldeep thakur said...

आपने लिखा...
कुछ लोगों ने ही पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 12/02/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
अंक 210 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।

Unknown said...

लड़कियों की आँखों में आंसू अच्छे नहीं लगते
ये जब रोती हैं तो हमारे घर, घर नहीं लगते |
Hindi Shayari

saahitya dharm said...

achhi rachana hai

Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर और सारगर्भित प्रस्तुति।

Himkar Shyam said...

सुंदर और सार्थक

महेन्‍द्र वर्मा said...

छद्म आधुनिकता हेय है, सभी के लिए ।
स्पष्टोक्ति के लिए बधाई ।

Suman said...

सत्य वचन, विवेक हमारी आत्मरक्षा के लिए जरुरी है !
सार्थक रचना !

प्रभात said...

सत्य और सोंचने को मजबूर करती चन्द ही लाईनों में बहुत सारे सवाल और जवाब छिपे हुए है...

Anonymous said...

आत्मविश्वास परिपूर्ण सन्देश देती रचना ....सुन्दर प्रस्तुति ..:)

संतोष पाण्डेय said...

सारगर्भित रचना. सशक्तिकरण के नाम पर हो रही नारेबाजी से सावधान रहने की जरूरत है.

Madhulika Patel said...

सत्य और सार्थक प्रस्तुति । बहुत सुंदर ।

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