पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य।
प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'
और ये उजास रहती है किसी ज्योति की तरह दिल में ... और सूरज की किरण हो न हो .... ये प्रकाश देती है जीवन भर ... माँ का तो एहसास ही काफी है रौशनी के लिए ...
14 comments:
सत्य एवं सुन्दर !
सत्य लिखा है. समय कोई भी हो, सानिध्य माँ का हो तो उजाला ही उजाला है मन में और बाहर में. सुन्दर रचना.
अत्यन्त सत्य।
सच है माँ का एहसास ही आलोकित कर देता है घर-आँगन को, माँ होती ही है ऐसी...सुंदर अभिव्यक्ति
और ये उजास रहती है किसी ज्योति की तरह दिल में ... और सूरज की किरण हो न हो .... ये प्रकाश देती है जीवन भर ...
माँ का तो एहसास ही काफी है रौशनी के लिए ...
सत्य।
सुन्दर अभिव्यक्ति !
आभार !
सुन्दर अभिव्यक्ति !
आभार !
सच है माँ का नाम ही पर्याप्त है माँ है तो उजाला ही होगा
आभार
मां का आंचल सूरज से कम नहीं।
ममता की नितांत नई व्याख्या।
ये प्रेम ही तो परमात्मा स्वरूप है माँ के आँचल सा।
आह...खूबसूरत !
बहुत सुन्दर क्षणिका !
सत्य लिखा है....बहुत सटीक
Post a Comment