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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

25 December 2015

देहरी के अक्षांश पर - मेरी नज़र से- साधना वैद

सुधिनामा ब्लॉग की साधना वैद जी ने जब देहरी के अक्षांश पर को पढ़कर अपने विचार दिए तो बहुत ख़ुशी हुयी ।उनके ब्लॉग पर लम्बे समय से उनकी रचाएं पढ़ती आ रही हूँ । मर्म छूने वाली उनकी काव्यात्मक अभिव्यक्ति तो कमाल है ही कई  सम -सामयिक विषयों पर उनके विचार भी पढ़ने-गुनने योग्य होते हैं । आभार साधना जी, इस हौसला देने वाली विस्तृत टिप्पणी के लिए । 


डॉ. मोनिका शर्मा के काव्य संकलन ‘देहरी के अक्षांश पर’ को पढ़ कर एक अनिर्वचनीय विस्मय के अनुभव से गुज़र रही हूँ ! हैरान हूँ कि इस पुस्तक की रचनाओं में व्यक्त नारी की हर वेदना सम्वेदना, हर व्यथा कथा, हर पीड़ा कैसे विश्व के किसी भी भूभाग में, किसी भी देश में, किसी भी शहर में, किसी भी मकान में अपनी मशीनी दिनचर्या में जुटी किसी भी उदास अनमनी  गृहिणी  के मनोभावों की हमशक्ल हो जाती है और किसी भी कविता को पढ़ कर उसके मुख से यही उद्गार प्रस्फुटित होते हैं कि ‘ अरे ! यह तो मेरे ही मन की बात है’ या ‘ऐसा ही तो मेरे साथ भी हुआ है’ ! 

पुस्तक के हर पेज की दीवार पर विभिन्न आकार प्रकार के अनेकों दर्पण टंगे हुए हैं जिनके सामने से निकलने वाली हर नारी को अपना चेहरा उसमें दिखाई दे सकता है ! लेकिन यह भ्रम मन में मत पाल लीजियेगा कि यह केवल नारी प्रधान काव्य संग्रह है ! यह नारी मन की बात अवश्य कहता है लेकिन इसका संवाद उन सभी श्रोताओं के साथ भी है जिन्हें अपने घर में, अपने समाज में और अपने जीवन में नारी के अस्तित्व को लेकर अनेकों भ्रांतियां हैं और जिनमें परिमार्जन और परिष्कार की अपार संभावनाएं हैं !

मोनिका जी की रचनाएं अत्यंत संयत शब्दों में नारी मन की वेदना को अभिव्यक्ति देती हैं ! ये कवितायें मुखर स्वरों में विद्रोह का शंखनाद नहीं करतीं लेकिन धीमी धीमी उष्मा देकर सोये हुओं को जगाती हैं, दर्पण में उनका यथार्थ उन्हें दिखाती हैं तथा क्या है, क्या हो सकता था और क्या होना चाहिये का संकेत देकर अपना अभीष्ट पूरा कर लेती हैं ! इन्हें पढ़ने के बाद मन मस्तिष्क को वैचारिक मंथन के लिये यथेष्ट पाथेय मिल जाता है !

‘अनमोल उपलब्धियां, ‘कुछ आता भी है तुम्हें’, ‘अनुबंधित परिचारिका सी’ ‘फिरकनी,’ ‘सिंदूरी क्षितिज’, रसोईघर’, ‘देहरी के अक्षांश पर’ जैसी रचनाएं जहाँ एक आम  गृहिणी  की गृहस्थी के मोर्चे पर कभी शेष ना होने वाली भूमिका की ओर संकेत करती हैं तो वहीं ‘अभी बहुत काम पड़े हैं’, ‘यथार्थ की माँग’, ‘देह के घाव’, ‘रिपोर्ट कार्ड’ ‘संकल्प और विकल्प’, ‘घर’, ‘स्त्रियों का संसार’ आदि अनेक रचनाएं हैं जो नारी की चेतना को धीमे से सुलगा कर जागृत करती हैं और उसके अंदर छिपी अनंत शक्तियों से उसका परिचय कराती हैं ! 

कई रचनाएं ऐसी भी हैं जिनमें कवियित्री स्वयं से रू ब रू होती है और अपने इस रूप पर स्वयं गर्वित और विमुग्ध भी होती है क्योंकि अपने इस रूप में उसे अपनी माँ की छवि दिखाई देती है ! सामाज में व्याप्त अनाचार ने भी कवियित्री को झकझोरा है ! ‘मानुषिक प्रश्न’, ‘बंदूकों के साये’, ‘आखिर क्यों जन्में बेटियाँ’ और ‘आखिर क्यूँ हुए विक्षिप्त हम’ ऐसी ही रचनाएं हैं जिनमें कवियित्री के संवेदनशील हृदय की पीड़ा मुखरित हुई है !  

इतने सुन्दर काव्य संकलन को अपने निजी पुस्कालय में संग्रहित करके अत्यंत हर्षित हूँ ! मोनिका जी की कलम को मेरी अनंत अशेष शुभकामनायें ! वे इसी तरह लिखती रहें और अपनी लेखनी के माध्यम से जन जागरण के लक्ष्य संधान में निरत रहें यही कामना है ! उनका सशक्त लेखन निश्चित रूप से पाठक को आंदोलित करता है और समाज में विस्तीर्ण अप्रिय व अवांछनीय को बदल डालने की अपार क्षमता व संभावनाएं भी रखता है इसमें कोई संदेह नहीं है ! शुभकामनायें मोनिका जी !

                                                                                                                     -साधना वैद  

10 comments:

महेन्‍द्र वर्मा said...

आपकी कृति पर साधना जी की प्रभावी और सुंदर समीक्षा, संकलित कविताओं का पूर्वाभास कराती हुई । ।

गिरधारी खंकरियाल said...

पुस्तक तो पढ़ नही पाये किन्तु यह निश्चित है कि लेखन उत्कृष्ट है तभी तो समीक्षा सुवाच्य हो रही है।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

जी, हार्दिक आभार

डॉ. मोनिका शर्मा said...

जी, हार्दिक आभार

Sadhana Vaid said...

अपना लिखा हुआ आज आपके ब्लॉग पर पढ़ कर बहुत हर्ष हुआ मोनिका जी ! मेरे शब्दों को आपने इतना मान दिया, आभारी हूँ आपकी !

डॉ. मोनिका शर्मा said...

आभार आपका

Unknown said...

समीक्षा पढ़कर काव्यसंग्रह की ऊंचाई अनुभव हुई ,संग्रह पढना चाहूंगा

दिगम्बर नासवा said...

प्रभावी सुन्दर और लाजवाब समीक्षा ....

Amrita Tanmay said...

बधाइयाँ.....

Asha Joglekar said...

मोनिका जी को हार्दिक बधाई। उनके ब्लॉग पर अक्सर जाती हूँ और उनकी सामयिक समस्या चर्चा से प्रभावित हूँ। साधना जी की समीक्षा प्रभावशाली है।

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