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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

04 August 2013

आश्रित नागरिक देश क्या गढ़ेंगें



लोक लुभावन बातें और बहुत कुछ मुफ़्त बाँटने का प्रयोजन |   हर बार यह होता है और चुनाव जीत भी लिए जाते हैं |  पर  इस खेल में  देश की जनता हार जाती है |  जनता जो हर बार पारजित हो, आश्रित और आश्रित बनती जाती है  | ऐसा होना स्वाभाविक भी है क्योंकि देश के आम आदमी  से उसका मत विकास के वादे के साथ नहीं बल्कि बहुत कुछ मुफ़्त दिए जाने के आधार  पर माँगा जाता है |  दुखद बात ये कि  यह युक्ति हर बार काम भी कर जाती है | 

किसी भी देश का नागरिक उसकी रीढ़ होता है |  ऐसे में राजनीति के नाम पर जब किसी  देश के नागरिकों  को  पुरुषार्थहीन बना जाये, उन्हें आत्मनिर्भरता का नहीं बल्कि आश्रित होने का  पाठ  पढ़ाया जाये |   तो वो कैसा देश गढ़ेंगें ? जो नागरिक रोजगार से लेकर अपने बच्चों के पालन पोषण तक के लिए बिना श्रम किये सरकार  पर निर्भर होंगें उनका बनाया समाज कैसा होगा ?  उनकी सोच किस दिशा में आगे बढ़ेगी ? यह  सोचने का विषय है   कभी लैपटॉप तो कभी मोबाईल फ़ोन |  कभी नगद पैसा तो कभी बिना श्रम के रोज़गार   |  इन मुफ्त के प्रावधानों ने चुनाव को आम जनता के लिए  भी उत्सव का अवसर बना दिया है |  सत्ता लोलुप सोच के चलते परिस्थितियां ही ऐसी बना दी जाती  हैं कि सोच समझ कर अपने मत का प्रयोग करने का चुनावी सुअवसर अक्सर लोभ लालच की भेंट चढ़ जाता है | 

आजीविका के साधने जुटाने से लेकर तकनीक गैजेट्स बांटने तक नागरिकों को आश्रित बनाने का खेल  समझा है कि | समाजहित और जनकल्याण के नाम पर आम आदमी को परजीवी बनाने की और अग्रसर है |  ऐसी योजनायें तो किसी का हित नहीं कर सकतीं जो देश की जनता से उसकी स्वतंत्र सोच ही छीन लें |  अनचाहे अनुदान बांटकर आमजन के साथ यही तो किया जा रहा है  |  यह एक तरह का दासत्व ही तो है जो जनता को विकास के नाम पर अनचाही सौगात के रूप में दिया जा रहा है |  विशेषकर ये चुनावी उपहार  |    यदि सही अर्थों में  देश के उत्थान में नागरिकों की सार्वजनिक भागीदारी ही बढानी है तो ऐसी विकास योजनायें भी  तो बनाई  जा सकती हैं जो जनमानस में सार्थक सोच और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दें | 

प्रश्न ये है कुछ मुफ़्त पा लेने से देश की जनता का प्रसन्न हो जाना क्या  विकास की गारंटी है ? उल्टा हालात तो ये हैं कि जो मुफ़्त दिया जा रहा है उसकी स्तरीयता ही पक्की नहीं  |  वैश्वीकरण के इस युग में जब अन्य  देश आर्थिक-सामाजिक विकास और अपने नागरिकों की भावी सुरक्षा को पर्याप्त महत्व दे रहे हैं, हमारा देश किस खेल में उलझा है ? न भविष्य की सोची जा रही और न ही वर्तमान में सुधार  के कोई प्रयास हो रहे हैं |  राज करने की खुली रणनीति और अपने स्वार्थों की पूर्ती का ध्येय,  आखिर कब तक |  इसके दूरगामी परिणाम कैसे  होंगें यह विचार भी भयभीत करने वाला है 

 जीवन में ऐसा कुछ नहीं होता जिसे श्रम किये बिना, अपना समय दिए बिना, पाया जा सके |  इस देश का आम नागरिक भी मुफ़्त में बंटने वाली इन सुविधाओं और वस्तुओं का मूल्य अपना स्वतंत्र अस्तित्व खोकर  चुका रहा है | दासत्व के जाल में फंसकर अपने आप के प्रति अपनी ही विश्वसनीयता गँवा रहा है |  

63 comments:

Harihar (विकेश कुमार बडोला) said...

इस देश का आम नागरिक भी मुफ्त में बंटनेवाली इन सुविधाओं और वस्‍तुओं का मूल्‍य अपना स्‍वतंत्र अस्तित्‍व खो कर चुका रहा है। दासत्‍व के जाल में फंस कर अपने आप के प्रति अपनी ही विश्‍वसनीयता गंवा रहा है......दुखद है यह सब।

जयकृष्ण राय तुषार said...

गोरे अंग्रेजों से भी अधिक ख़तरनाक है काली काया वाले अंग्रेज हैं |

संजय @ मो सम कौन... said...

जनता का मुँह बंद करने की तकनीक है ये। यह सब खुद करोड़ों अरबों डकारने के लिये कुछ टुकड़े जनता के सामने फ़ेंकने जैसा है और जनता इस सबमें मस्त है।

ARUNIMA said...

बिल्कुल सहमत, बढिया लेख

Ramakant Singh said...

यही लेनदेन ही आज की प्रगति का आधार बन गया है चाहे कोई भी पार्टी हो और कितना भी आदर्शवादी व्यक्ति उसे राजनीति में यही करना पड़ता है रही बात चुनाव की तो हम अपना मन साफ़ करें या कहु आप भी अपना फंडा साफ़ करें वो चुनाव लड़ते हैं और आप हम पैसे या लोक लुभावन सपने लेकर अपना प्रतिनिधि चुनते हैं चलिए सही प्रतिनिधि चुनें तो क्या वह भी चुने जाने के बाद सही करता है आज तक का कोई भी एक उदहारण नहीं मिलेगा क्योकि वहां भी बहुमत का राज है अफसोस

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

चीनी कहावत है - किसी को मछली खिलाने की बजाए उसे मछली मारना सिखा दो अर्थात उसे दास बनाने की बजे स्वालंबी बनाओ, जिससे वह अपना जीवन यापन स्वयं कर सके.

ताऊ रामपुरिया said...

असली धन भ्रष्टाचार से नेता और अफ़सर बटोर रहे हैं, गरीबों को देश के पैसे से ही कुछ टुकडे इसलिये डाले जाते है ताकि गरीबों की हमदर्दी हासिल कर वोट कबाडे जा सकें.

आज भी बहुसंख्य मतदाता ना समझ है जो इस खैरात का का मतलब नही समझता और इन ताऊओं के झांसे मे आकर अपनी किस्मत इन्हें सौंप देता है, कभी नागनाथ को तो कभी सांपनाथ को.

रामराम.

शिवनाथ कुमार said...

अब यह राजनीति लोगों को बस मानसिक रूप से अपंग बनाकर
अपना उल्लू सीधा करने में लगी है
राष्ट्र हित में कोई नहीं सोच रहा

संध्या शर्मा said...

मुफ्त खोरी, झूठा प्रलोभन सबसे बड़ी कमजोरी रही है हमारे देश की जनता की. आत्मनिर्भर जनता और रोजगारोन्मुख शिक्षा ही विकास में सहयोगी हो सकती है , लेकिन ऐसा होता कहाँ है…

ashish said...

आपके तर्क से सहमत हूँ , सटीक आलेख .

Dr. Shorya said...

बहुत सुंदर ,हर और लूट मची है,

Dr. sandhya tiwari said...

aawaj uthane vaale ko bhi daba diya jata hai aise me sudhar ki gunjais bhi nahi hai ..............

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

यह एक अंघी खाई है

Ranjana verma said...

सही बात लोभ लुभावन बातें और बहुत कुछ मुक्त बाँटने का प्रयोजन तो गुलाम बना के रखने
और वोट बैंक का खेल है... अच्छी आलेख...

विभा रानी श्रीवास्तव said...

सार्थक लेखन
सामयिक पोस्ट
लेकिन गूंगी बहरी जनता का न कोई इलाज़
समझते बुझते कटोरा लिए खड़ी भी तो रहती है

विभूति" said...

behtreen lekh....

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

एक समसामयिक आलेख ! ये इस देश विरोधी तत्व (नेतागण ) तो यही चाहते है कि ज्यादातर देशवासी भिखमंगे ही बने रहे ताकि इनका धंधा फलता फूलता रहे, लेकिन इन भिखमंगों को कौन जगायेगा , वही सबसे बड़ा सवाल है ! अब यूपी ही देख लो जिस सरकार के जिम्मेदारी होती है अनाधिकृत निर्माण को रोकना, वही चाँद वोटो के लिए जाकर सरकारी जमीन पर अनधिकृत निर्माण करवा रही है, और भिखमंगे खुश !

anshumala said...

जहा एक मात्र उद्देश्य चुनाव जितना हो वहा आगे के हालातो के या किसी और चीज के बारे में नहीं सोचा जाता है , अब देखिये जैसे ही अखिलेश सरकार की मीडिया ने खिचाई की तुरंत ही टीवी चैनलो से लेकर अखबारों पर यु पी सरकार के बड़े बड़े विज्ञापन आने लगे , देश में हर चीज बिकाऊ हो या न हो खरीदने का प्रयास जरुर होता है |

Maheshwari kaneri said...

यही तो हमारे देश की कमजोरी है..आज हर कोई अपना स्वार्थ साधने में लगे है..किस्सा कुर्सी का..

दिगम्बर नासवा said...

पंगु बना रहे हैं ये नेता देश को ... गुलाम हो रही है जनता ... स्वाभिमान खो रही है जो आज तक नहीं हुआ कभी ... कभी कभी लगता है इतनी छोटी सी बात क्यों नहीं समझ आती जनता को ...

इमरान अंसारी said...

आम नागरिक को भी ये भेद समझने होंगे …बहुत सुन्दर और सार्थक लेख |

G.N.SHAW said...

हमारे मानसिक सोंच जब तक नहीं बदलेंगे , शीर्ष नहीं बदलेगा | हमें बदलना है |

वाणी गीत said...

पक्षियों को दाने डालने से सारे पाप धुल जाते हैं , इन्हें याद है मगर हमेशा सहारा लेकर चलने वाले अपाहिज हो जाते हैं , जनता को याद नहीं !

गिरधारी खंकरियाल said...

कुत्तों के आगे रोटी के टुकड़े डाल दो तो वे अपना मुंह बन्द कर देते हैं। यही जनता के साथ होता है।

Pallavi saxena said...

यही तो विडम्बना है हमारे देश की कि यहाँ न केवल सरकार एवं प्रशासन बल्कि आम जनता तक केवल अपने बारे में सोचने लगी है। देश हित के बारे में कोई सोचना ही नहीं चाहता। विचारणीय प्रस्तुति

अशोक सलूजा said...

आइना दिखाता लेख ...काश! कोई अपने को देख कर पहचान ले अब भी ,,,
सहमत आप से !

प्रवीण पाण्डेय said...

यह नाटक देख दुख होता है, न कोई समझना चाहता है, न कोई समझाना।

प्रतिभा सक्सेना said...

राष्ट्र की रीढ़ होती है सचेत जनता -हमारे यहां जनतंत्र का आधार बनने में समर्थ कितने प्रतिशत नागरिक मिलेंगे !

Suman said...

सार्थक आलेख है
जनता दासत्व में रहे यही तो उनकी निति है
और वे कामयाब भी हो रहे है लेकिन जनता कब समझेगी इस बात को !

Madan Mohan Saxena said...

सुन्दर ,सटीक और प्रभाबशाली रचना।

mark rai said...

very frustrated situation .....samaaj ko dishaa deti rachna...

virendra sharma said...

ये भ्रष्टाचारी दाता भाव बनाए रहने की लालसा पाले रहते हैं। कल्याण कारी राज्य दाता माई बाप होने के एहम से ग्रस्त है। भ्रष्ट पैसे से भ्रष्ट ही पैदा और पल्लवित होंगें और वह भी तो इनके ही आढ़तिये खा जाते हैं मंदिर के नारियलों की तरह जो सर्कुलेट होते रहते हैं। ॐ शान्ति।

Satish Saxena said...

हमारे देश की बदकिस्मती कि कर्णधारों की यह समझ है ..

Dr ajay yadav said...

आदरणीया ,
सादर प्रणाम |
वोट बैंक के लिए नेता किसी भी हद तक जा सकते हैं |
मुर्ख हर बार जनता ही बनती हैं |
उत्तम पोषण कैसे दे? ब्रेन कों !पढ़िए नया लेख-
“Mind की पावर Boost करने के लिए Diet "

Dr ajay yadav said...

आदरणीया ,
सादर प्रणाम |
वोट बैंक के लिए नेता किसी भी हद तक जा सकते हैं |
मुर्ख हर बार जनता ही बनती हैं |
उत्तम पोषण कैसे दे? ब्रेन कों !पढ़िए नया लेख-
“Mind की पावर Boost करने के लिए Diet "

Anju (Anu) Chaudhary said...

सही कहा आपने मोनिका ....अपने देश की जनता को भ्रष्ट नेताओं पर आश्रित होने की बीमारी लग गई है

Asha Joglekar said...

जब बिना ज़्यादा लागत के वोट मिल जायें और कुर्सी बच जाये तो क्यूँ मेहनत । बस यही घटिया सोच डुबा रही है हमें ।

amit kumar srivastava said...

सामयिक और वास्तविक तथ्य ।

Rajput said...

ये समझ नहीं आता की नेता लोगों को जनता की याद आखिरी वक़्त मे ही क्यों आती है , 10 साल गुजरने के बाद अब लगा की
नैया डगमगाने लगी तो चारा फेंकने लगे .
बहुत खूबसूरत लिखा है आपने , शानदार अभिवयक्ति

समयचक्र said...

सहमत हूँ कि वगैर श्रम के कुछ भी अर्जित नहीं किया जा सकता है . तर्कसंगत आलेख प्रस्तुति …

रचना दीक्षित said...

हर सिक्के के दो पहलू होते हैं तो इस आजादी के भी कुछ बुरे पक्ष दिखाई दे रहे है. यद्यपि इसमें भी आशा की किरण दिखाई दे ही जायेगी.

Arvind Mishra said...

सार्थक और सन्देश परक चिंतन -यह राजनीति लोगों को आलसी निकम्मा और कामचोर बना रही है -इसके विरोध में ऐसे ही पुरजोर स्वर उठाने चाहिए !

virendra sharma said...

ये सबके सब आढ़तिये खुद खैराती लाल हैं खैरात ही बांटेंगे ये राजनीति के धंधे बाज़ कैसा प्रजा तंत्र सिरों की गिनती प्रजा तंत्र नहीं होती है।

virendra sharma said...

ये सब के सब धर्म च्युत मौसेरे भाई हैं। गोली मारो इन्हें। वोट की गोली।

के. सी. मईड़ा said...

आजकल की राजनीति की लेनदेन और झुठे वादों पर कड़ा प्रहार करता हुआ लेख...

के. सी. मईड़ा said...

आजकल की राजनीति और राजनेताओं द्वारा किए गए लोक लुभावने झुठे वादों आदि पर कड़ा प्रहार...

Pratibha Verma said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।

Durga prasad mathur said...

अच्छा आलेख !

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

जीवन में ऐसा कुछ नहीं होता जिसे श्रम किये बिना, अपना समय दिए बिना, पाया जा सके | इस देश का आम नागरिक भी मुफ़्त में बंटने वाली इन सुविधाओं और वस्तुओं का मूल्य अपना स्वतंत्र अस्तित्व खोकर चुका रहा है | दासत्व के जाल में फंसकर अपने आप के प्रति अपनी ही विश्वसनीयता गँवा रहा है |
सार्थक और सन्देश परक ,,,उपयोगी लेख
भ्रमर ५

lori said...

swaarth!
ham desh ban kar nhi, insaan bankar bhi nahi saarth ka putala ban kar sochte hain.

lori said...

स्वार्थ !
हम देश बनकर नहीं, इंसान बन कर भी नहीं , स्वार्थ का पुतला बन कर सोंचते हैं

Anonymous said...

हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} के शुभारंभ पर आप को आमंत्रित किया जाता है। कृपया पधारें!!! आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आपके नकारत्मक व सकारत्मक विचारों का स्वागत किया जायेगा |

Ankur Jain said...

जीवन में ऐसा कुछ नहीं होता जिसे श्रम किये बिना, अपना समय दिए बिना, पाया जा सके...
बहूत खूब..विचारणीय पोस्ट।।।

Dr.NISHA MAHARANA said...

satik aalekh ...

VIJAY KUMAR VERMA said...

सार्थक और सन्देश परक

virendra sharma said...

संसद वारे कोब्रान ने कौन गिनेगा भैया

priyankaabhilaashi said...

सत्य कथन..सुन्दर प्रस्तुति..!!!

abhi said...

पूरी तरह सहमत हूँ मैं आपसे..

ये आलेख आपका पहले ही पढ़ा था, आज इधर आया सोचा था कुछ नया पढने को मिलेगा..खैर....:)!!

Monika Jain said...

विनाशकाले विपरीत बुद्धि ... सार्थक लेख.. काश! हर कोई समझ पाए

प्रेम सरोवर said...

एक अच्छी प्रस्तुति।

Jyoti Mishra said...

It's really sad to see all this. Who to blame or whom not..
thought provoking post !!

Asha Joglekar said...

जो मुफ़्त दिया जा रहा है उसकी स्तरीयता ही पक्की नहीं | वैश्वीकरण के इस युग में जब अन्य देश आर्थिक-सामाजिक विकास और अपने नागरिकों की भावी सुरक्षा को पर्याप्त महत्व दे रहे हैं, हमारा देश किस खेल में उलझा है ?
सही कहा। यही है हमारी हालत।

Vandana Ramasingh said...

सही चिंतन है ....मोबाइल आज बच्चा बच्चा लेकर घूम रहा है चाहे वह मजदूरी करता हो या पढ़ रहा हो फिर मुफ्त बांटकर सरकार क्या दिखाना चाहती है मुफ्त बांटी जाने वाली इन वस्तुओं की गुणवत्ता भी किसी से छुपी नहीं है अगर यही पैसा प्रशासन को दुरुस्त बनाने और रोज़गार के अवसर जुटाने में किया जाता तो ज्यादा अच्छा रहता आज विदेशों में चीन बाज़ार में छाया हुआ है क्या हमारे देश के नागरिक क्वालिटी प्रोडक्ट्स बना कर डॉलर नहीं कम सकते पर .....!!!

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