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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

14 August 2012

बच्चों को घर में राष्ट्रधर्म की सीख भी मिले


अपनी मातृभूमि, राष्ट्रीय प्रतीक, संस्कृति- सभ्यता और जीवन दर्शन का सम्मान किसी भी देश के नागरिकों का धर्म भी है और कर्तव्य भी। आज की पीढी में देखने में आ रहा है देश की गरिमा और स्वाभिमान का भाव मानो है ही नहीं। देश के कर्णधारों के ह्दय में अपनी जन्मभूमि के प्रति जो नैर्सगिक स्वाभिमान होना चाहिए उन संस्कारों की अनुपस्थिति विचारणीय भी है और चिंताजनक भी।


संस्कार यानि हमारी जड़ें, हमारी पहचान । ये संस्कार हमेशा एक पीढी से दूसरी पीढी में हस्तांतरित होते आए हैं । इसी के चलते आज भी जीवित हैं । तो फिर मातृभूमि के लिए सर्वस्व लुटाने वाले वीर देशभक्तों के इस देश में राष्ट्रधर्म के संस्कार से नई पीढी अनजान और विमुख क्यों है?आज समाज में,परिवार में व्यक्ति पहले देश बाद में की सोच को बढ़ावा मिल रहा है । इसीलिए बच्चे भी शुरू से ही ऐसी सोच को अपनाने लगे हैं ।


ऐसे में यह सोच का विषय है कि क्या किया जाए ? मुझे लगता है कि मातृभूमि के प्रति सम्मान और देश के लिए स्वाभिमान के राष्ट्रवादी विचारों की प्रेरणा बच्चों को घर-परिवार से मिलने वाले संस्कारों का हिस्सा बने। ऐसे संस्कारों से संपन्न जीवन ही हमारी भावी पीढ़ी को कर्तव्यपरायण सुनागरिक बना सकता है।

अक्सर हम देखते है कि कोई बच्चा चाहे किसी भी धर्म या संप्रदाय के परिवार में जन्मा हो छोटी उम्र से ही अपने धर्म के तौर तरीके सीख जाता है। इन बातों की पैठ उसके मन में इतनी गहरी हो जाती है कि जीवन भर वह उन्हें नहीं भूलता। इसका सबसे बड़ा कारण है परिवार के सदस्यों, बड़े-बुजुर्गों द्वारा बच्चे को यह सब सिखाया जाना। उसके अंर्तमन में अपने धर्म-दर्शन और पारिवारिक संस्कारों का जो अंकुर बचपन में घर परिवार के सदस्य रोपते हैं उसका प्रभाव इतना गहरा होता है कि वो सदैव के लिए उनके प्रति समर्पित हो जाता है।

जैसे कोई बच्चा छोटी उम्र में अपने घर के संस्कारों और रीति-रिवाज़ों से जुड़ जाता है वैसे ही पारिवारिक संस्कारों में अगर राष्ट्रधर्म की शिक्षा को भी जोड़  लिया तो बचपन से ही उनके मन में अपने देश के प्रति सम्मान का भाव जागेगा । कितना सुखद होगा अगर कुछ समय निकालकर घर के बड़े- बुजुर्ग और अभिभावक अपने बच्चों को कभी तिरंगे के मान या राष्ट्रगीत के सम्मान का भी पाठ पढायें।

हमारे परिवारों में देश के नाम पर सिर्फ शिकायतों और आलोचनाओं की बात न हो। कम से कम बच्चों से तो नहीं। सकारात्मक विचारों के साथ बच्चों को जिम्मेदार नागरिक बनने और अपने कर्तव्यों के प्रति प्रतिबद्धता की भी सीख घर से ही दी जाये। शहीदों और राष्ट्रीय चिन्हों के प्रति सम्मान से जुड़ा संवाद भी हमारी दिनचर्या में शामिल हो।

राष्ट्रहित की सोच के दिव्य बीज घर से ही बच्चों के मन मे बोयें जायें तो ये भाव उनके व्यक्तिव में पूरी तरह समाहित हो जायेंगें। इसके जरूरी है कि दादी-नानी बच्चों को कभी देश के लिए अपना जीवन न्यौछावर करने वाली महान विभूतियों की कहानियां सुनाएं। बच्चों के समक्ष मातृभूमि के मान का गौरव गान हो । रोजमर्रा के जीवन में शामिल यह छोटे छोटे बदलाव बच्चों की सोच की दिशा मोड़ने में काफी अहम साबित हो सकते हैं जो हमारे बच्चों में देशानुराग और आत्मबलिदान की चेतना को जन्म देंगें।

अपने परिवार की नई पीढी को राष्ट्रधर्म के मूल्यों का बोध कराना हर परिवार की जिम्मेदारी है क्योंकि यही जीवन मूल्य उनमें भारतीय होने के गौरव और स्वाभिमान के भाव पैदा करेंगें।

58 comments:

virendra sharma said...

आज समाज में,परिवार में ,"मैं" या व्यक्ति पहले, "देश बाद में "की सोच को बढ़ावा मिल रहा है । इसीलिए बच्चे भी शुरू से ही ऐसी सोच को अपनाने लगे हैं ।
इसके ''लिए " जरूरी है कि दादी-नानी बच्चों को कभी देश के लिए अपना जीवन न्यौछावर करने वाली महान विभूतियों की कहानियां सुनाएं। बच्चों के समक्ष मातृभूमि के मान का गौरव गान हो । रोजमर्रा के जीवन में शामिल यह छोटे छोटे बदलाव बच्चों की सोच की दिशा मोड़ने में काफी अहम साबित हो सकते हैं जो हमारे बच्चों में देशानुराग और आत्मबलिदान की चेतना को जन्म देंगें।
यौमे आज़ादी के मौके पर एक महत्व पूर्ण पोस्ट .१९४७ के बाद पैदा हुई पीढ़ी आज़ादी के परवानों के बारे में विशेष कुछ नहीं जानती .देश की मूल्य विहीना राजनीति से बच्चों को देश से भी विमुख कर दिया है .प्रशन बड़ा मौजू है "क्यों नहीं है आम भारतीय में राष्ट्र प्रेम की भावना ?"
आज कैंटन सम्मिट में थे शाम को मौक़ा था एलासन एमी के स्वागत सत्कार का जो कल ही लन्दन ओलंपिक से चार स्वर्ण पदक जीत कर कैंटन (मिशिगन )अमरीका लौटीं हैं . उनसे सेवन चैनल ने पूछा आप जब लन्दन जा रही थीं क्या बात थी सबसे ऊपर आपके दिमाग में "अमरीका ,अमरीका ,अमरीका "-ज़वाब मिला और पूरा सम्मिट करतल ध्वनी /हर्ष ध्वनी से गूँज उठा .ये ज़ज्बा ही एक देश को एक देश के रूप में ज़िंदा रखता है वहां एमी के कक्षा सात के शिक्षक भी थे .उसने कहा मैंने सबसे सीखा अभी मैं तैराकी की छात्रा ही हूँ .
कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
बुधवार, 15 अगस्त 2012
TMJ Syndrome
TMJ Syndrome
http://veerubhai1947.blogspot.com/

जयकृष्ण राय तुषार said...

अपनी मातृभूमि, राष्ट्रीय प्रतीक, संस्कृति- सभ्यता और जीवन दर्शन का सम्मान किसी भी देश के नागरिकों का धर्म भी है और कर्तव्य भी। आज की पीढी में देखने में आ रहा है देश की गरिमा और स्वाभिमान का भाव मानो है ही नहीं। देश के कर्णधारों के ह्दय में अपनी जन्मभूमि के प्रति जो नैर्सगिक स्वाभिमान होना चाहिए उन संस्कारों की अनुपस्थिति विचारणीय भी है और चिंताजनक भी।
अद्भुत शिक्षाप्रद आलेख है |बधाई

vijai Rajbali Mathur said...

स्वाधीनता दिवस की आपको सपरिवार हार्दिक मंगलकामनाएं।
वस्तुतः 'धर्म' का तो कहीं भी पालन हो ही नहीं रहा है। जिसे लोग धर्म के नाम पर परोस रहे हैं वह सांप्रदायिकता है- नफरत फैलाने वाली। उस सूरत मे कोई देश-भक्ति या राष्ट्र धर्म की बात कैसे करे?अब तो सबको फिक्र ज़्यादा से ज़्यादा पैसा बतिरने की है।
काश लोग आपकी सदिच्छा का पालन कर सकें।

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत ही बढ़िया आलेख
स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएँ!


सादर

संतोष त्रिवेदी said...

राष्ट्र धर्म और नैतिक शिक्षा की ज़रूरत है आज !

कुमार राधारमण said...

स्वयं माता-पिता के आचरण से भी वह सब झलकना चाहिए ताकि दी जा रही सीख बच्चों के लिए क़िताबी बनकर न रह जाए।

रश्मि प्रभा... said...

बात तो बिल्कुल रेखांकित करनेवाली है , पर जिनके हाथ छुरी कांटे में आधुनिकता मान रहे वे क्या सीख देंगे ! पहले बड़े होने पर अब तो बचपन में ही विदेश भेज देने की होड़ है .... उधर की नागरिकता मिल गई तब तो बल्ले बल्ले .

अज़ीज़ जौनपुरी said...


en vehtrin vicharo ke liye badhayee

Arvind Mishra said...

राष्ट्रीयता का जिस तरह लोप हो रहा है -हमारी पीढी निज देश और जाति के गौरव को भूल रही है -आसार ठीक नहीं लगते!

Shah Nawaz said...

सहमत हूँ आपसे... शुरुआत तो हमें अपने से और अपनों से ही करनी पड़ेगी...

स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!

जय हिंद!

Anonymous said...

bilkul sahi soch hain aapaki, agar aane vali pidhi ko hum shadhido ke bare mein nahi batayenge to unahe aazadi ki value nahi pata padegi...aur fir vo iska galat upyog karenge...

vandana gupta said...

बहुत खूबसूरत प्रस्तुति………………स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !

mark rai said...

ek dam sahi kaha aapne ...bachcho ko ghar me hi raashtradharm ki sikh deni hogi...

kavita verma said...

bilkul sahi kaha hai aapne mein aur mere ki soch se upar uth kar ham hamara samaj aur hamara desh ki soch viksit karna hogi.

Anand Rathore said...

sunder vichar...

गिरधारी खंकरियाल said...

ये सब ग्लोब्लैजेसन का प्रकोप है

संध्या शर्मा said...

"अपने परिवार की नई पीढी को राष्ट्रधर्म के मूल्यों का बोध कराना हर परिवार की जिम्मेदारी है क्योंकि यही जीवन मूल्य उनमें भारतीय होने के गौरव और स्वाभिमान के भाव पैदा करेंगें"
सहमत हूँ आपके विचारों से ... स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ...

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

सहमत हूं आपसे. संस्‍कार घर से ही मि‍लने चाहि‍ए.

Kunwar Kusumesh said...

agreed.
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.

Smart Indian said...

जानकारी मिलना चाहिये। स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!

Rajesh Kumari said...

बहुत सही बात कही है मोनिका जी बच्चों को यदि शुरू से ही देश भक्ति देश सेवा का पाठ पढाया जाएगा तो देश के प्रति उनकी सकारात्मक सोच बनेगी सुन्दर सटीक प्रस्तुति ,स्वतंत्रता दिवस की बधाई आपको

Vaanbhatt said...

अमिताभ जी की एक फिल्म 'अक्स' आई थी...उसमें कहीं इस आशय का डायलोग था...कि अपने बच्चों को संस्कार और ईमानदारी और देशभक्ति जैसे शब्द सिखा कर कहीं हम उन्हें कमज़ोर और डरपोक तो नहीं बना रहे है...जब की उन्हें जीना इस समाज में है...जहाँ इनका कोई मूल्य नहीं है...आदर्श सिर्फ किताबों और देशभक्ति के गीतों में दिखते हैं...वास्तविक ज़िन्दगी की सच्चियां अलग हैं...अभी भी ताकतवर लोग वीर भोग्या वसुंधरा के सिद्धांत पर चल रहे हैं...किसी में दम है तो जाये न्यायलय में...अपनी बाकी जिंदगी बर्बाद करने...वन्दे मातरम...

amit kumar srivastava said...

बिलकुल ठीक बात |

सुज्ञ said...

राष्ट्र के प्रति कर्तव्य भाव जगाना ही चाहिए क्योंकि इसी में हमारी प्रगति और विकास निहित है।

स्वतंत्रतता दिवस की बधाई!! जय भारत!!

rashmi ravija said...

बहुत सही बात कही...बच्चों को घर से ही अपने देश के प्रति प्रेम और कर्तव्य का पाठ पढ़ाया जाए तभी उनमे देशभक्ति की भावना जागृत होगी...वे देश के अच्छे नागरिक बनेंगे

ऋता शेखर 'मधु' said...

सार्थक पोस्ट...देशभक्ति के संस्कार घर से ही पड़ने चाहिए...वही असरकारी साबित होगा|

Anonymous said...
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Vinamra said...

घर की पाठशाला तो शैशव काल से ही प्रारंभ हो जाती है. इसलिए राष्ट्रधर्म भी उसी 'पॅकेज' का हिस्सा होना चाहिए.
Happy Independence Day!!

Vinamra said...

घर की पाठशाला तो शैशव काल से ही प्रारंभ हो जाती है. इसलिए राष्ट्रधर्म भी उसी 'पॅकेज' का हिस्सा होना चाहिए.
Happy Independence Day!!

अरुण चन्द्र रॉय said...

शिक्षाप्रद आलेख...... स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएँ!

Coral said...

बहुत सुन्दर आलेख! हर बात छोटीसी बात से ही सुरु होती है...जब घर घर राष्ट्र प्रेम के संस्कार का बिज बोया जायेगा तब बहुत ही जल्दी पेड छाया देने के लिए रहेगा !
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें !

मेरा मन पंछी सा said...

पूर्ण सहमत हूँ आपके विचारो से..
बहुत बढ़िया आलेख...
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाये..
:-)

रेखा श्रीवास्तव said...

जो आपने कहा वह अनमोल विचार है और उसको बच्चों में डालने वाले भी हम ही हें. लेकिन घरों में ही आजकल कहाँ संस्कारों की नींव अच्छी डाली जा रही है. एकल परिवारों और उनमें भी माता पिता दोनों का ही व्यस्त होना , बच्चों को क्या दे रहा है? अब न संयुक्त परिवार में कोई रहना चाहता है और फिर दादी नानी जैसे प्यारे शब्दों के लिए बच्चे तरसते हें. आज का युवा पीढ़ी खुद ही संस्कारों से रहित हो चुकी है. भटकते हुए मन वाले लोग बच्चों को को क्या दे पायेंगे? अगर अभी भी परिवार , रिश्तों और देश के प्रति कोई अपनी जिम्मेदारी हम समझते हें तो घर की दीवारों से निकल कर ये बात स्कूलों में भी प्राथमिक कक्षाओं से ही शुरू कर दी जानी चाहिए. आपसी प्रेम और सहयोग की भावना वहाँ बहुत अच्छी तरह से समझाई जा सकती है.
आपकी सोच और आलेख को एक सीख समझ कर अगर हम सभी खुद अपने जीवन में अपना लें तो फिर उसका कुछ तो असर दिखलाई ही देगा.

निवेदिता श्रीवास्तव said...

सहमत हूँ ... बचपन में मिले संस्कार ही अधिक प्रभावी होते हैं ........

Anonymous said...

बिलकुल सही कहा है आपने.....सहमत हूँ पूर्णतया ।

दिगम्बर नासवा said...

वो सब बातें जो भोगवाद संस्कृति के चलते हम भूलते जा रहे है उनको पुनः स्थापित करने का समय आज आ गया है ... यदि हम एक राष्ट्र रहना चाहते हैं तो सभी देश वासियों को ये संकल्प लेना होगा ...

Amrita Tanmay said...

सुंदर अभिव्यक्ति..

वीरेंद्र सिंह said...

बेदह सार्थक चिंतन है। अगर ऐसा हो तो मुंबई हिंसा जैसी घटनाएं शायद कभा ना हो। लेकिन चिंता किसे है यहां..... मैं सहमत हूं।
लेख के लिए आपको बधाई।

abhi said...

एज ओल्वैज बहुत ही अच्छी पोस्ट है!
और आपकी इस बात से तो पूरी तरह सहमत हूँ की बचपन से ही बच्चों को देश के बारे में साकारात्मक चीज़ें बतानी चाहिए!

mridula pradhan said...

behad achchi prastuti......

Rajput said...

बच्चे तो ठीक ही सोचते हैं मगर हालात तो बड़ों ने खराब कर रखे हैं । आज के बच्चे बड़ों का अनुसरण करते हैं ।
शिक्षाप्रद लेख है,

Kailash Sharma said...

बहुत विचारणीय सार्थक आलेख....

वाणी गीत said...

बच्चों को सकारत्मक सोच देने की कोशिश तो भरपूर की जानी चाहिए , मगर उन्हें अख़बारों और समाचार चैनल से दूर कैसे करें !!
सब तरफ आग लगी हो तो धुआं कब तक रोक पाएंगे !

bkaskar bhumi said...

sorry monika mem apka name misstake ho gya...मोनिका जी नमस्कार...
आपके ब्लॉग 'परवाज...शब्दों के पंख से' लेख भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 17 अगस्त को 'बच्चों को घर में राष्ट्रधर्म की सीख भी मिले' शीर्षक के लेख को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव

हरकीरत ' हीर' said...

विरुभाई के वक्तव्य से सहमत हूँ ....

Fani Raj Mani CHANDAN said...

Main aapse kuchh had tak sahmat hoon. In sabse kahi jyaada jaroori main unko ek manviya vyaktitva pradaan karne ko maantaa hoo. Doosre manushya ke liye sadbhawanaa kahi jyaada zaroori hai. Abhi ke paripekshya me main jab kuchhek aise tatvon ko dekhta hoon jo moral policing ko apnaa uddeshya maan baithte hai aur aise kadam uthaane se tanik bhi nahin hichkichaate jo manaviya molyoon ke khilaaf hai to mujhe kahi aisaa lagtaa hai ki shayad rashtra aur sanskriti ke prati prem jaagrit karne me bhool ho gayee ho aur is chakkar me ye log apni sanskriti ko samajhnaa hi bhool rahe hain.
Is vishay ko prastut karne ke liye dhanyavaad. Apne desh aur apni sanskritii ke liye sammaan utnaa hi zaroori hai jitna kisi doosre ki sabhyataa samskriti ko deni chahiye.

nayee dunia said...

आपका लेख पढ़ कर बहुत अच्छा लगा ,मुझे भी लगता है बच्चों को ना केवल घर में बल्कि स्कूलों में भी सिखाना चाहिए के हम से बड़ा हमारा देश है .

Rohit Singh said...

अक्सर हम किसी न किसी बहाने अपनी जिम्मेदारी या कर्तव्य से भागने का कोई न कोई बहाना बना ही लेते हैं। ये ठीक है कि समाज बदल रहा है....परिवार एकल हो रहे हैं...पर जीवन मूल्य तो वही हैं। माना कि आज की पीढ़ी को कुछ पता नहीं। पर ऐसा क्यों है। सवाल ये है कि आखिर हमारे से पहले वाली पीढ़ी ने हमें भ्रष्ट समाज दिया तो क्या हम आने वाली पीढ़ी को भी ऐसा ही समाज दें। आखिर देशभक्ति कि शिक्षा तो बचपन से ही दी जा सकती है न। बच्चों को आदर्श औऱ लोकव्यवहार कि शिक्षा देने का मतलब ये नहीं होता कि उसे कायर बना रहे हैं उन जीवन के सिद्धांतों को सिखा रहे हैं जिनका आज समाज में मोल नहीं है। ऐसा कहकर हम अपनी कमियों पर पर्दा डाल देते हैं।

Arshia Ali said...

सही कहा आपने। यह आजकी जरूरत है।

ईद की दिली मुबारकबाद।

............
हर अदा पर निसार हो जाएँ...

Pallavi saxena said...

राष्ट्रीय धर्म और नैतिकता कि जरूरत बच्चों को कल भी थी और आज भी है। ज़रूरत है घर के सभी सदस्यों को मिलकर बच्चों के अंदर राष्ट्रीय धर्म और नैतिकता के बीज बोने की उन्हें देश के प्रति अपने कर्त्वय और फर्ज़ बताने की उसका सम्मान कैसे और क्यूँ करना है यह सीखने की....

G.N.SHAW said...

राष्ट्रहित की सोच के दिव्य बीज घर से ही बच्चों के मन मे बोयें जायें तो ये भाव उनके व्यक्तिव में पूरी तरह समाहित हो जायेंगें।--बेहद जरूरी है

Subodh Bhartiya said...

सही कहा आपने। यह आज की जरूरत है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी लिखी रचना सोमवार 15 अगस्त 2022 को
पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

संगीता स्वरूप

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी लिखी रचना सोमवार 15 अगस्त 2022 को
पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

संगीता स्वरूप

मन की वीणा said...

विचारणीय लेख है आपने बहुत सही कहा है ।
पर आने वाले बच्चों के माता पिता में भी वो जज्बा नहीं देखने को मिलता जो चाहिए राष्ट्र प्रेम और राष्ट्र गौरव का, मतलब कि और एक दो पीढ़ी से ही ये संस्कार आगे प्रवाहित होने कम हो गए।
वैसे जागरूक होकर इस दिशा में सभी को प्रतिबद्धता से अपना सहयोग देना चाहिए।
वंदेमातरम्।

गिरिजा कुलश्रेष्ठ said...

बहुत सही कहा मोनिका जी . बचपन से ही राष्ट्रधर्म सिखाया जाय देश के भूगोल और इतिहास पढ़ाया जाय ।सच्चा राष्ट्रभक्त बेईमान और भ्रष्ट होने से बचता है

जिज्ञासा सिंह said...

संस्कारों पर सुंदर आलेख ।

जिज्ञासा सिंह said...

संस्कारों के ऊपर सार्थक आलेख ।

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