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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

13 August 2011

अधिकार चाहिये तो कर्तव्य भी निभाइये...!


     
स्वतंत्र भारत के नागरिकों के मन में शायद ही इससे बङा कोई दुख हो कि उन्हें उनके  अधिकार नहीं मिलते। वे अधिकार जो संविधान में वर्णित हैं और भारत के नागरिक होने के नाते उन्हें मिलने चाहिए |  साथ ही वे अधिकार भी जो संविधान में तो नहीं है पर हमें तो चाहियें क्योंकि हम सिर्फ स्वतंत्र ही नहीं स्वछन्द होकर जीना चाहते हैं। तभी तो इस देश में सबको पता है कि अधिकार क्या है पर कर्तव्य के बारे में कोई नहीं सोचता।  एक आम नागरिक बिना किसी मजबूरी के भी नियम कायदों को तोड़कर एक अजीब सा सुकून महसूस करता है। 

चलिए बङे बङे कामों की बात नहीं करते हैं बस कुछ छोटी छोटी बातें .......

नेताओं से सबको शिकायत है पर वोट डालने का समय नहीं निकाल पाते हम । एक सार्वजनिक स्थान पर किसी निहत्थे व्यक्ति को कुछ लोग पत्थरों से कुचल देते हैं और भीड़ खड़े-खड़े तमाशा देखती है |  मैं भी मानती हूं कि इन बदमाशों को कोई एक आदमी आगे बढकर नहीं रोक सकता पर क्या पूरी भीङ एक हो जाये तो ऐसे आपराधिक तत्वों को सबक नहीं सिखाया जा सकता ...?
यह भी दुखद है कि हम आज भी अपने राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का मान करना नहीं सीख पाये हैं। हमारे परिवेश को स्वच्छ रखने के प्रति भी अपनी जिम्मेदारी हम कहां समझते हैं...? ज़रा सोचिये ....हमारा घर, आस-पड़ौस, फिर एक कॉलोनी, शहर और फिर देश हम सब चाहें तो क्या सुंदर और स्वच्छ नहीं रह सकते...?

अपनी सांस्कृतिक विरासत का मान करें। गर्व महसूस करें भारतीय होने का क्योंकि हमारा देश है तो हम हैं, हमारी पहचान है | जबकि हमें सबसे ज्यादा कमियां ही हमारी संस्कृति और परम्पराओं में नज़र आती हैं  | ऐसी अनगिनत बातों की सूची तैयार की जा सकती है जिन्हें भारत का एक आम नागरिक बिना किसी परेशानी के कर सकता है और करना भी चाहिए पर करता नहीं हैं। क्योंकि देश और समाज के प्रति कर्तव्य निभाने का पाठ तो हमारे  परिवारों में पढाया ही नहीं जाता। 
हम खुद सोच सकते हैं कि एक परिवार में जो व्यक्ति (महिला हो पुरूष) अगर अपने कर्तव्य नहीं निभा नहीं पाता तो अपने अधिकारों को भी खो देता । फिर यह तो पूरे देश की बात है । हमारे संविधान में हमारे कर्तव्य और अधिकार दोनों बताये गये है तो फिर हल्ला सिर्फ अधिकारों को लेकर ही क्यो....? अभी कुछ समय से विदेश में हूं तो यह देखा और जिया है कि यहां की  जिन बातों से हम भारतीय सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं उनको बनाये रखने में  सरकार से ज्यादा यहाँ की जनता की भूमिका है। फिर चाहे वो साफ-सफाई हो या यातायात के नियमों का पालन । यहां आम नागरिक अपनी जिम्मेदारी जानता, समझता और  निभाता है। 

हम सब भी अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्यों को निभाने की सोच लें क्या कुछ भी नहीं बदलेगा..? हमें यह तो याद रखना ही होगा कि अगर देश में शांति, सुरक्षा और सद्भाव ही नहीं रहेगा तो अधिकार लेकर भी कैसा जीवन जी पायेंगें हम......?

106 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

baat ye hai ki ham log swarthi hain aur naitik hone ka dambh karne wale ghor anaitik...

Shikha Kaushik said...

सहमत हूँ आपसे .हम अधिकार तो चाहते हैं पर कर्तव्य पालन में पीछे हट जाते हैं .गरीब जनता फिर भी आगे बढ़ कर कुछ अच्छा कर लेती है पर धनाढ्य वर्ग केवल अधिकार प्राप्ति हेतु सचेष्ट रहता है .सार्थक आलेख .आभार

आपका अख्तर खान अकेला said...

सही कहा अधिकार के लियें कर्तव्य का पाठ जरूरी है लेकिन यह तो मेरा भारत महान है ..अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

केवल राम said...

सही कहा है आपने ....अधिकारों के साथ साथ कर्तव्य निभाने बहुत जरुरी हैं ....लेकिन वास्तविकता में हम ऐसा नहीं कर पाए हैं ...अधिकारों की अपेक्षा हमें कर्तव्यों के प्रति ज्यादा सजग रहने की आवश्यकता है ..ताकि एक बेहतर समाज का निर्माण किया जा सके ..!

S.N SHUKLA said...

,बहुत खूबसूरत पोस्ट आभार
भारतीय स्वाधीनता दिवस पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं .

SANDEEP PANWAR said...

बात तो ठीक है,
लेकिन जनता के बीच ऐसे-ऐसे बीज बो दिये गये है कि वो कभी एक हो ही नहीं सकती है।
एक दूसरों के सहारे रहने की आदत बदलनी मुश्किल है।

Arvind Mishra said...

सच है आपका आह्वान -हम इतने आत्मोंमुखी हो चले हैं कि नागरिक बोध की भावना खत्म हो गयी सी लगती है -बस आत्मकेंद्रित जिन्दगी अपने बाल बच्चे अपना परिवार -बाकी देश भाड़ में जाय !

Satish Saxena said...

कर्तव्यों की बात न करें हमें तो अधिकार दिलवाइये जो ( कर्तव्य ) काम के होंगे वे तो पूरे किये ही जायेंगे ! गली सामने वाले को दी जाती है ... :-))
यही है हमारी मानसिकता !
शुभकामनायें आपको !

Smart Indian said...

सहमत हूँ। एक महान देश के नागरिकों में अपनी ज़िम्मेदारी की भावना और निर्भयता यह दोनों ही भावनायें आवश्यक हैं। ज़िम्मेदारी की समुचित शिक्षा तो ज़रूरी है ही, निर्भयता का वातावरण भी चाहिये। मुझे लगता है कि इन दोनों ही मुद्दों पर जनता से अधिक प्रशासन की विफलता झलकती है।

प्रवीण पाण्डेय said...

कर्तव्य तो निभाने ही होंगे।

अजित गुप्ता का कोना said...

जब जनता को अराजकता फैलाने में ही आनन्‍द आता हो तो इस मानसिकता का क्‍या करें?

डॉ. मनोज मिश्र said...

बिलकुल सही कह रही हैं आप,समय पर हम कभी जागरूक नहीं रहते.
सार्थक पोस्ट,आभार.

Dr Varsha Singh said...

विचारोत्तेजक आलेख....
रक्षाबंधन एवं स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

kshama said...

Bina kartavy ke adhikar kaise?
Swatantrata Diwas kee anek shubh kamnayen!

Shalini kaushik said...

सही कह रही हैं मोनिका जी आप .आज हम अपने कर्तव्यों के प्रति बिलकुल भी सजग नहीं हैं बस अधिकार चाहियें और कुछ न करना न पड़े हमें.इन्द्री गाँधी जी ने भी कहा था की ''कर्तव्यों के संसार में ही अधिकारों की महत्ता है''
हम अपने कर्तव्यों को सरकार पर छोड़कर उनकी इतिश्री कर देते हैं .सार्थक आलेख

अजय कुमार said...

सही बात है ,सहमत ।कर्तव्य पालन में कमजोरी है।

रचना दीक्षित said...

स्वतंत्रता दिवस के पावन पर्व पर अधिकार और कर्त्तव्य के निर्बहन के प्रति जागरूक करती तथ्यपरक.

रक्षाबंधन और स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें.

अरुण चन्द्र रॉय said...

आपसे पूरी तरह सहमत..अपने कर्तव्यों के प्रति कहाँ जवाबदेह रहतेहैं हम... स्वतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामना

विभूति" said...

सही कहा आपने..कर्तव्य तो निभाने ही होंगे।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आज 14 - 08 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....


...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
____________________________________

vandana gupta said...

मैने भी इसी विषय पर एक आलेख लिखा था इस लिंक पर
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/zindagiekkhamoshsafar/entry/%E0%A4%85%E0%A4%A7-%E0%A4%95-%E0%A4%B0-%E0%A4%95-%E0%A4%B8-%E0%A4%A5-%E0%A4%95%E0%A4%B0-%E0%A4%A4%E0%A4%B5-%E0%A4%AF-%E0%A4%AD-%E0%A4%9C-%E0%A4%A8-%E0%A4%AF

आपका भी कहना सही है मगर हम लोग सिर्फ़ अधिकारो की ही बात करते है अपने कर्तव्यो को नही।

अनामिका की सदायें ...... said...

jagrit karti nayi soch ka ahwaan karti prabhashali post.

aise vishay uthane ki jarurat hai.

abhar.

Suresh kumar said...

बिलकुल सही बात

महेन्‍द्र वर्मा said...

हमें अपना कर्तव्य निभाना ही होगा।
प्रेरक आलेख।

Suresh kumar said...

सही कहा है आपने अधिकार के लियें कर्तव्य का
पाठ जरूरी है लेकिन यंहा कोई नहीं समझता ....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

जागरूक करने वाला लेख ..कर्तव्यों कि ओर कहाँ ध्यान जाता है ..लेने कि इच्छा ही प्रबल है देने कि नहीं ..

सार्थक लेख

Maheshwari kaneri said...

सही कहा है आपने ....अधिकारों के साथ साथ कर्तव्य निभाने बहुत जरुरी हैं ....बहुत खूबसूरत और सार्थक पोस्ट.. आभार ...रक्षाबंधन और स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें.

दिगम्बर नासवा said...

आपके विचारों से सहमत हूँ ... हमारे देश में सब देखा देखी गन्दी बातें सीखते हैं ... अच्छी बातों को सीखना नहीं चाहते ... दूसरों पर दोषारोपण कर के इतिश्री समझ लेते हैं ...

दिवस said...

सौ फीसदी सही बात....
मैं इससे सहमत हूँ| मांगने के समय आगे हैं किन्तु करने के समय पता नहीं कहाँ छिप जाते हैं?

virendra sharma said...

Sunday, August 14, 2011
चिट्ठी आई है ! अन्ना जी की PM के नाम !
सार्थक मुद्दे उठाए हैं डॉ .मोनिका जी आपने ,सिर्फ आज़ादी काफी नहीं है उसके लिए सुपात्र भी बनना पड़ता है .उसके लिए वांछित काबलियत भी चाहिए .विदेशों में डरना ,डरने ,की ट्रेनिंग बचपन से ही दी जाती है क़ानून और उसकी पालना के सन्दर्भ में यहाँ सन्दर्भ वही है उसके अर्थ विपरीत हैं ,क़ानून तोड़ना देखता हुआ ही हर बच्चा बड़ा होता है .यह अपने आप में एक स्वतंत्र अनुशासन होना चाहिए ,स्कूल ,कालिज ,विश्व -विद्यालय स्तर पर ताकि बच्चा एक कंट्रास्ट को बूझ सके ,परिवेश में सार्थक दखल कर सके घर बाहर . यौमे आज़ादी के मौके पर यह आवाहन ,उद्वेलन ,आवाहन और विविध भाव लिए ये पोस्ट है आपकी .आभार ..

HypnoBirthing: Relax while giving birth?
http://veerubhai1947.blogspot.com/
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
Sunday, August 14, 2011
चिट्ठी आई है ! अन्ना जी की PM के नाम !
व्हाई स्मोकिंग इज स्पेशियली बेड इफ यु हेव डायबिटीज़ ?

तरुण भारतीय said...

कहना आपका सही है ..कर्तव्यों के प्रति जनता जागरूक होती तो आज देश कि आधी से ज्यदा समस्याएं अपने आप हल हो जाती

Kailash Sharma said...

बहुत सच कहा है. हम अधिकार चाहते हैं पर अपने कर्तव्य की और कभी नहीं देखते..बहुत सार्थक प्रस्तुति..

vijai Rajbali Mathur said...

बेहद महत्वपूर्ण मुद्दा आपने उठाया है और कर्तव्य-पालन करना जो हमारी संस्कृति का भाग था उसे पुनः अपनाने की महती जरूरत है।

Apanatva said...

bilkul sahee bate........

kamiya nikalna aadat ho gayee hai......
apane swayam ke ander khankne ka na samay hai na icchaa .

Anonymous said...

independence day ki hardik shubhkaamnaaye. bahut hi sahi teekhi tippani vyakt ki hai.bahut hi famous proverb hai if u want to change the world then start changes from yourself first :)

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 15-08-2011 को चर्चा मंच http://charchamanch.blogspot.com/ पर भी होगी। सूचनार्थ

निवेदिता श्रीवास्तव said...

सही कहा अधिकार के लियें कर्तव्य का पाठ जरूरी है .......... शुभकामनाएं !!!

सुज्ञ said...

आपने एक आम भारतीय की यथार्थ मनोवृति प्रकाशित की है।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

अब वोट डालने के काबिल नेता बी तो हों या फिर प्रावधान रहे की ‘इन में से कोई नहीं’।

Dr (Miss) Sharad Singh said...

सार्थक लेख.....

स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.

Vaanbhatt said...

हम जिन देशों से तुलना करते हैं...वहां बचपन से कर्त्तव्य और अधिकार सिखाये जाते हैं...वहां पापा बोलने से पहले थैंकयू कहना सिखाया जाता है... किसी हिंदी फिल्म में हीरो कहता है संस्कार सिखा के हम अपने बच्चों को डरपोक तो नहीं बना रहे हैं...जंगल में रहना है तो बिना लड़े कुछ नहीं मिलेगा...ये समझना होगा आपकी स्वतंत्रता वहीँ ख़त्म होती है जहाँ मेरी नाक शुरू होती है...

Asha Joglekar said...

आप की बात सौ फीसदी सही है । हम भी अपने बेटों के पास अक्सर विदेश आते हैं रहते हैं यहां के नागरिक में जो अपने देश के प्रति अभिमान है वह हमें अपने यहां कम ही दिखाई देता है । आपके द्वारा उठाये मुद्दों पर हम अमल करें तो हम भी अपने देश पर अभिमान कर सकेंगे । नागरिक जागरूक और कर्तव्य दक्ष हों तो सरकारी अधिकारी और मंत्री भी मनमानी न कर पायेंगे । सुंदर, सामयिक और सटीक ।

ashish said...

हम अपने कर्तव्य को लेकर संजीदा हो तो आधी समस्या तो ऐसे ही दूर हो जाती है देश की . विचारणीय आलेख .

Anonymous said...

happy Independence day
JAI HIND....

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत सही बात कही है आपने।
स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
HAPPY INDEPENDENCE DAY!

सादर

Kunwar Kusumesh said...

सुन्दर प्रस्तुति.
स्वतन्त्रता दिवस की शुभकामनाएँ.

Anonymous said...

कर्त्तव्य निभाने के बाद ही अधिकारों की मांग करना जायज है जो हम अधिकांशतः नहीं करते - सार्थक आलेख

vijai Rajbali Mathur said...

स्वाधीनता दिवस की हार्दिक मंगलकामनाएं।

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और ढेर सारी बधाईयां

हरकीरत ' हीर' said...

हम खुद सोच सकते हैं कि एक परिवार में जो व्यक्ति (महिला हो पुरूष) अगर अपने कर्तव्य नहीं निभा नहीं पाता तो अपने अधिकारों को भी खो देता । फिर यह तो पूरे देश की बात है ।

जय हिंद .....

Urmi said...

सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ सार्थक पोस्ट! शानदार प्रस्तुती!
आपको एवं आपके परिवार को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

कविता रावत said...

प्रेरक प्रस्तुति के लिए आभार!
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.

ज्योति सिंह said...

sach kaha desh ke prati apni jimmedari ko samjhna jaroori hai ,kyonki karne wale kam hai ,swatanrata divas ki badhai .

G.N.SHAW said...

बहुत ही गौरव पूर्ण बातें ! काश हम सभी इस पर खरे उतरते ! मोनिकाजी स्वतंत्रता दिवस पर बधाई ! आप अभी विदेश में है - चाहूँगा की भविष्य में आप उस बिदेश और भारत की तुलनात्मक लेख लिखे ! जो परिवर्तन में असर लायेगा ! !

virendra sharma said...

यौमे आज़ादी की सालगिरह मुबारक .

http://veerubhai1947.blogspot.com/
संविधान जिन्होनें पढ़ा है .....


http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
Sunday, August 14, 2011
चिट्ठी आई है ! अन्ना जी की PM के नाम !

Rahul Paliwal said...

मोनिका जी, आपने समय निकल कर मेरे ब्लॉग पर कई बार अपने विचार रखे, किन्तु अत्यधिक व्यवस्ता या यूँ कहू आलस्य के कारन समय नहीं निकल पाया की आपके बारे में जान पाऊ. किन्तु आज मुझे बहुत ख़ुशी हुई, आपके इस सुंदर से ब्लॉग को देखकर. Really Very Very impressive. . बहुत बधाई आपको इस प्रयास की लिए.
प्रयास जारी रखियेंगा.

राजन said...

बिल्कुल सही प्रश्न उठाया है आपने आज के दिन.देश की छवि उसके नागरिकों से ही बनती है.वो देश कभी तरक्की नहीं कर सकता जहाँ का नागरिक अपने कर्तव्यों को भूलकर केवल अधिकारों को याद रखता है और उनका भी उचित प्रयोग नहीं करता.

Dorothy said...

सार्थक और सशक्त प्रस्तुति. आभार. स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...
सादर,
डोरोथी.

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

डॉ मोनिका जी हार्दिक अभिवादन - विदेशों की जो आप ने बात की जब एक सिस्टम हमें पता चल जाता है उससे डर बना होता है तो नागरिक उसी ढर्रे पर चल पड़ते हैं उनको देख और सभी ...हमारे यहाँ सब उल्टा ही है ...वैसे सरकार वैसे ......
स्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक शुभ कामनाएं

भ्रमर ५
भ्रमर की माधुरी
रस-रंग भ्रमर का
यहां की जिन बातों से हम भारतीय सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं उनको बनाये रखने में सरकार से ज्यादा यहाँ की जनता की भूमिका है। फिर चाहे वो साफ-सफाई हो या यातायात के नियमों का पालन । यहां आम नागरिक अपनी जिम्मेदारी जानता, समझता और निभाता है।

तेजवानी गिरधर said...

आपने बिलकुल ठीक कहा है, कर्तव्यों को तो हमने ताक पर रख रखा है, हालत ये है कि जो नियम को तोडता है, वहीं अपने आपको बहादुर समझता है, जैसे पत्रकार बंधु हेलमेट नहीं लगाते, यदि मेरे जैसे पत्रकार लगा लेता है तो उस पर हंसते हैं, बस हमें तो अपने अधिकार चाहिए, यह मानसिकता ही हमारी सबसे बडी समस्या है

जयकृष्ण राय तुषार said...

स्वतंत्रता दिवस पर बहुत ही सुंदर पोस्ट बधाई और शुभकामनाएं |

जयकृष्ण राय तुषार said...

स्वतंत्रता दिवस पर बहुत ही सुंदर पोस्ट बधाई और शुभकामनाएं |

Saru Singhal said...

Rightly said, for every right we exercise there comes a responsibility. Great post and Happy Independence Day to you...

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

राष्ट्र पर्व की सादर शुभकामनाएं और ढेर सारी बधाईयां

Unknown said...

यथार्थ परक रचना ..बिलकुल सहमत ..
अधिकारों की भी रक्षा कर्तब्य से ही हो सकती है
....सादर अभिनन्दन !!!

Madhulika said...

wonderful post..!! I completely agree with you..
thanks for visiting my blog... It means a lot to me :)

virendra sharma said...

आप क़ानून की पालना की बात करतीं हैं भारत में यहाँ की सरकार सारे गैर -कानूनी काम कानूनी तौर पर किसी न किसी धारा के तेहत करती है .और सबसे ज्यादा ताज्जुब की बात पुलिस अन्नाजी की गिरिफ्तारी के साथ ही स्वायत्त शासी संस्था हो गई सारे फैसले दिल्ली के पुलिस कर रही है .सारे मूढ़मति मंत्री मय उस "काग भगोड़े "बिजूके ,क्रो -स्केयर बार दुर्मुख के हाथ पे हाथ धरे बैठें हैं .अन्ना की गिरिफ्तारी के साथ ही सारा देश "अन्ना मय "हो गया है .लोग अन्न भी मांगतें हैं तो सरकार को अन्ना सुनाई देता है .विदेश की बातें डॉ .शर्मा अलग हैं .
Tuesday, August 16, 2011
उठो नौजवानों सोने के दिन गए ......
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
सोमवार, १५ अगस्त २०११
संविधान जिन्होनें पढ़ लिया है (दूसरी किश्त ).
http://veerubhai1947.blogspot.com/

सदा said...

पूर्णत: सहमत आपकी बात से ...सटीक एवं सार्थक लेखन के लिये आभार ।

Jyoti Mishra said...

Absolutely.. this is what we always keep in mind before demanding or saying anything.
We all are very good at pointing fingers on others instead of introspecting ourselves.

Brilliant post !!

yogesh dhyani said...

bilkul sahi baat hai monika ji...

संजय भास्‍कर said...

सही कहा है आपने ....अधिकारों के साथ साथ कर्तव्य निभाने बहुत जरुरी हैं

virendra sharma said...

भावना से भी बड़ा होता है कर्तव्य .यही है भारतीय दृष्टि .
. August 16, 2011
उठो नौजवानों सोने के दिन गए ......http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
सोमवार, १५ अगस्त २०११
संविधान जिन्होनें पढ़ लिया है (दूसरी किश्त ).
http://veerubhai1947.blogspot.com/
मंगलवार, १६ अगस्त २०११
त्रि -मूर्ती से तीन सवाल

पी.एस .भाकुनी said...

sahmat hun aapse, vicharniy aalekh hetu abhaar.

Anonymous said...

बिलकुल सच पूरे २००% सहमत हूँ आपसे.........सरकार या तंत्र से शिकायत से पहले जनता को खुद को बदलना ज़रूरी है......भ्रष्टाचार के लिए जनता भी उतनी ही दोषी है जितनी की सरकार.......अगर छोटी छोटी बातों में हम अपना कर्त्तव्य निभाना शुरू कर दे तो विकास का सूरज बहुत जल्द उगेगा इस देश में........इस सुन्दर लेख के लिए आभार |

Arvind Jangid said...

पते की बात है..वोट के समय तो जाती सूझती है और बाद में टूटी हुई सड़क..क्यों भाई दोनों हाथों में लड्डू...ये सत्य है की यदि हम हमारी जिम्मेदारी निभाएं तो शायद ये नौबत ना आये. बस होना इतना ही चाहिए की

" आदमी है "

"अच्छा या बुरा" बस आधी से ज्यादा समस्याएं तो यहीं ही समाप्त हो जाएँगी.

आभार

जीवन और जगत said...

हमारे घर के सामने भी अगर कूडा पड़ा हो तो हम यही कहते हैं कि सरकार ने झाड़ू लगाने की व्‍यवस्‍था नहीं की। अपने घर-द्वार को संवारने में हमें स्‍वयं सजग होना चाहिए। अगर हर आदमी अपने अपने फर्ज को समझे तो काफी समस्‍याएं हल हो सकती हैं।

वन्दना अवस्थी दुबे said...

सही है. हम हमेशा अधिकारों की ही मांग करते हैं .कर्तव्यों को पता नहीं किसके लिये छोड़ देते हैं. बहुत सुन्दर पोस्ट.

Rachana said...

अभी कुछ समय से विदेश में हूं तो यह देखा और जिया है कि यहां की जिन बातों से हम भारतीय सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं उनको बनाये रखने में सरकार से ज्यादा यहाँ की जनता की भूमिका है। फिर चाहे वो साफ-सफाई हो या यातायात के नियमों का पालन । यहां आम नागरिक अपनी जिम्मेदारी जानता, समझता और निभाता है।
aapki ye baat humhamesha kahte hain jin baton ka yahan dhayan rakhte hain unhi ka apne desh me palan nahi karte hain
rachana

प्रेम सरोवर said...

अधिकार एवं कर्तव्य का समायोजन ही हमारा पुनीत कर्म होना चाहिए। धन्यवाद।

anita agarwal said...

sach kaha ki adhikaar chahiye to kartavya bhi nibhaiyae...
log vote dene nahi jate or phir ye shikayat ki neta burae hain. achhae log politics mei atae nahi or phir ye dosh ki neta burae hain.. arae bhai hum hi to wo hain jo in sab baton ko badhava dete hain. jab galat logo ko chana jayega to sahen to kerna hi hoga...

!!अक्षय-मन!! said...

aapna bahut sashakt kaha aadhikaar chahiye to kartavya bhi nibhana padega,...
ek jimmedari sacche man se uthani padegi/kartavyta ke sath niswarth man se,...
sundar bhav/umda soch/sarthak vichar

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

अधिकार लौह के अरे ! अधिकार काँच के.
सारगर्भित आलेख.

शोभना चौरे said...

कर्तव्य निभाने वाले कभी अधिकार की बात ही कहाँ क्र पाते है | नहीं ही उन्हें अधिकारों की जरूरत होती है ?कर्तव्य करने में जो सुख पाते है |
सार्थक आलेख |

Rohit Singh said...

बात बिल्कुल सही लिखी है आपने....मेरा मानना है कि इसके लिए समाज की सबसे छोटी ईकाई परिवार में इसकी शुरुआत होनी चाहिए....आखिर उस भ्रष्टाचारी के पैसे से उसके परिवार को कोई परेशानी भी नहीं होती...समस्या यहीं से शुरु होती है....अधिकार के साथ कर्तव्य की सीख भी यहीं से मिलेगी.....

​अवनीश सिंह चौहान / Abnish Singh Chauhan said...

'अधिकार चाहिए तो कर्तव्य भी निभाइए '
बहुत सही कहा है आपने. बधाई स्वीकारें

Neelkamal Vaishnaw said...

नमस्कार....
बहुत ही सुन्दर लेख है आपकी बधाई स्वीकार करें
मैं आपके ब्लाग का फालोवर हूँ क्या आपको नहीं लगता की आपको भी मेरे ब्लाग में आकर अपनी सदस्यता का समावेश करना चाहिए मुझे बहुत प्रसन्नता होगी जब आप मेरे ब्लाग पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएँगे तो आपकी आगमन की आशा में पलकें बिछाए........
आपका ब्लागर मित्र
नीलकमल वैष्णव "अनिश"

इस लिंक के द्वारा आप मेरे ब्लाग तक पहुँच सकते हैं धन्यवाद्

1- MITRA-MADHUR: ज्ञान की कुंजी ......

2- BINDAAS_BAATEN: रक्तदान ...... नीलकमल वैष्णव

3- http://neelkamal5545.blogspot.com

Suman said...

monika ji,
bahut badhiya lekh bilkul sahmat hun aapse ......bahut bahut shubkamanayen.....

virendra sharma said...

आपकी ब्लोगिया दस्तक के लिए आभार ,आप बहुत ही जन उपयोगी सार्थक काम कर रहीं हैं ,शुक्रिया .....http://veerubhai1947.blogspot.com/http://veerubhai1947.blogspot.com/
मंगलवार, १६ अगस्त २०११
पन्द्रह मिनिट कसरत करने से भी सेहत की बंद खिड़की खुल जाती है .
Thursday, August 18, 2011
Will you have a heart attack?
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/

virendra sharma said...

इस दौर में सात्विक सौन्दर्य भारतीय ऊर्जस्विता के प्रतीक बने हुएँ हैं अन्नाजी ..अन्ना देख रहे खिड़की से,
दुबक रहे राजा व कलमाड़ी,
धक्का मार रहे सब नेता,
कीचड़ में फंसी सत्ता की गाड़ी . अन्ना के हैं आदमी चार ,जिनसे डरती है सरकार ..
..http://veerubhai1947.blogspot.com/http://veerubhai1947.blogspot.com/
मंगलवार, १६ अगस्त २०११
पन्द्रह मिनिट कसरत करने से भी सेहत की बंद खिड़की खुल जाती है .
Thursday, August 18, 2011
Will you have a heart attack?
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/

Unknown said...

dr.monika ji sahi mayane m ,sahi raye dee aapane sach m aaj hum sab adhikaron ke liye hi ladaten hai .sadhuwad

Unknown said...

dr.monika ji sahi mayane m sahi baat,thanx

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

वोट डालने का समय तब निकालें जब सब नेताओं को नकारने का प्रावधान बैलट में हो॥

anshumala said...

@ मोनिका जी
जिस तरह सरकार कहा रही है की लोकपाल में से जजों को बाहर निकल दिया जाये और उनके लिए अलग से कानून बनाया जाये और संयुक्त सचिव से नीचे के अधिकारी इसमे शामिल ना किया जाये क्योकि इससे लोकपाल का काम बढ़ जायेगा | उसी तरह जन लोकपाल बनाने वालो का कहना है की जो चीजे सरकार से जुडी हुई सरकार के नियंत्रण में उसके ले एक कानून बनाया जाये और उसको एक ही समिति समूह के द्वारा नियंत्रित किया जाये और कार्पोरेट ,वकील ,एन जी ओ आदि सरकार से बाहर के लोगों में व्याप्त भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए एक अलग कानून बनाया जाये ताकि कानून में कोई घाल मेल ना हो और काम करने वालो को एक ही तरीके के लोगों की जाँच करने उससे जुड़े कानूनों को लागु करने में आसानी हो | एन जी ओ को भ्रष्टाचार करने की छुट नहीं दी जा रही है ये सारी बाते उन लोगों द्वरा फैलाई जा रही है जी इन सब के विरोधी है |

sunil patidar said...

wah kya chintan hai |

Vivek Jain said...

सही कहा है आपने ,

विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

Amrita Tanmay said...

कहा जाता है ..सबको बस चाहिए , वे देना नहीं चाहते.सहमत हूँ आपसे. बढ़िया पोस्ट.

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

मोनिका जी,
स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर आपने बहुत ही महत्व्पूर्ण तथ्य की ओर इशारा किया है ! अधिकार और कर्तव्य समानांतर पटरियां हैं जो एक दूसरे से न मिलते हुए भी देश और समाज की प्रगति के लिए आवश्यक हैं ! जिस दिन हम अपने कर्तव्य के प्रति जागरूक हो जांएगे उस दिन हमें अपने अधिकार के लिए किसी से गिडगिडाना नहीं पड़ेगा !
इतने सुन्दर लेख के लिए बधाई स्वीकार करें !

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

विचार योग्य पोस्ट। काश लोग इससे नसीहत भी लें।

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

विचार योग्य पोस्ट। काश लोग इससे नसीहत भी लें।

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

विचार योग्य पोस्ट। काश लोग इससे नसीहत भी लें।

कुमार राधारमण said...

इसीलिए कहा जा रहा है कि अगर सारे क़ानून सही तरीक़े से लागू हों,तो हम सब जेल में होगे!

P.N. Subramanian said...

ये सब तो मेरी दिल की बातें हैं. अच्छा लगा आपने ही लिख डाला.

Brijendra Singh said...

fundamental rights और fundamental duties के बारे में आपके विचारों से पूर्णतः सहमत हूँ..बेहद संज़ीदा लेख. धन्यवाद. :)

Monika Jain said...

सत्य को उजागर करता आपका लेख....अगर हर कोई अपने कर्तव्यों के प्रति सजग हो जाये तो ये देश कितना खुशहाल बन जाये.

bkaskar bhumi said...

मोनिका जी नमस्कार...
आपके ब्लॉग 'परवाज शब्दों के पंख' से लेख भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 24 अगस्त को 'अधिकार चाहिए तो कर्तव्य भी निभाइये !' शीर्षक के लेख को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव

अजय said...

आपका लेख वाकई सार्थक एवं सत्य है।

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