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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

17 January 2011

बनाने और ढहाने का खेल.....!

शहीदों के परिवारों के लिए खङी की गई आदर्श हाउसिंग सोसायटी को गिराने के आदेश को सुनकर मन को बहुत पीङा हुई । यकीनन मैं ही नहीं हर देशवासी के मन को इस समाचार ने पीङित किया है। बार बार बस एक ही सवाल मन मस्तिष्क में दस्तक दे रहा कि सही मायने में सजा देनी ही है तो उन आरापियों को दी जानी चाहिए जो इस घोटाले के लिए जिम्मेदार है । इस तरह इस इमारत को धराशायी करने के निर्णय का सकारात्मक पक्ष क्या हो सकता है.......?

बङे से बङे निर्माण कराने और फिर उन्हें गिरा देने का काम तो सरकार और सरकारी अफसरों के लिए एक खेल है। दो दिन पहले सङक बनना और फिर उसे खोद कर कभी पाइपलाइन डालना तो बिजली के तार..................! ओवरब्रिज आधा बन जाने के बाद अचानक यह याद आना कि उसे तो किसी और ही जगह ओर ही दिशा में बनाया जाना था ..............! अनगिनत उदाहरण मिल जायेंगें जो हमारे नेताओं और नीति निर्माताओं की सुंदर और दूरदर्शी योजनाओं की पोल खोलती हैं। आखिर निर्माण से पहले उससे जुङे सारे पहलुओं पर विचार क्यों नहीं किया जाता...........? क्यों नहीं सोचा जाता कि इन निर्माण कार्यो में जनता की गाढी कमाई का इस्तेमाल होता है और अनमोल श्रम शक्ति का अपव्यय............!

सरकार के ऐसे अफसोसजनक कदमों के चलते हर हाल में परेशानी जनता को ही उठानी पङती है। देश के किसी भी कोने में, किसी भी शहर में, जब निर्माण कार्य चल रहा होता है वहां के लोगों के जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता है। क्योंकि सरकारी निर्माण कार्य शुरू तो कर दिये जाते हैं पूरे कब तक होगें
इसकी कोई गारंटी नहीं होती।



सालों साल ऐसे निर्माण कार्यों के चलते ट्रेफिक जाम और प्रदूषण जैसी समस्याओं से वहां के लोगों को ही दो चार होना पङता है। इन निर्माण कार्यों के दौरान अनगिनत दुर्घटनायें घटित होती हैं। कई तरह के प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग होता है। पेङ पौधे काटे जाते हैं। क्या सिर्फ इसलिए कि बाद में उसे ध्वस्त किया जाना है............? सचमुच कितने अफसोस की बात है देश के नीति-निर्माताओं के द्वारा श्रम और धन का यों अपव्यय किया जाना ।

आदर्श हाउसिंग सोसायटी को ढहाने का आदेश हमारी सरकारों की पूरी कार्यप्रणाली पर ही प्रश्र चिन्ह है । देश के लिए जान न्योछावर करने वाले शहीदों के परविारों का हक छीनने वाले भ्रष्ट अफसरों और नेताओं को सजा देने के बजाय इस इमारत को गिराने का निर्णय बहुत व्यथित करने वाला है।

65 comments:

केवल राम said...

इसे हम अपने देश का दुर्भाग्य कहें या कुछ और .....जिस देश को विश्व गुरु होने का गौरव प्राप्त है ....वहां पर दूर दृष्टि का अभाव है ..या फिर सब अपना स्वार्थ सिद्ध करने में लगे हैं .....कौन इन प्रश्नों के हल खोजेगा ....अंतर्मन में बहुत पीड़ा होती है ......यह सब देख सुनकर .......???

Anonymous said...

मोनिका जी,

आपकी सोच बहुत अच्छी है.....अच्छी सोच एक बेहतर इंसान को बनाती है......मेरा सलाम है आपको......भारत में दूरदर्शिता व बुद्धिमता का आभाव नहीं है परन्तु स्वार्थ इन सब पर भारी पढ़ जाता है......ईमानदारी नाम की चीज़ इस देश से लुप्त होने के कगार पर है......यही हाल रहा तो जल्द ही हम भ्रष्टाचार में अव्वल हो जायेंगे|

Shekhar Suman said...

सच में बहुत ही दुःख की बात है...
लेकिन उस ईमारत का गिराया जाना ज़रूरी है, क्यूंकि सुरक्षा की दृष्टि से वो ईमारत गलत जगह पर है...वहां से अक्सर नौसेना के विमान उड़ान भरते हैं..कभी भी कोई दुखद हादसा हो सकता है....
६ मंजिला ईमारत की जगह ३१ मंजिला ईमारत बनायीं गयी है......
खैर दोषियों को सजा मिलेगी या नहीं, इसपर मुझे शक ही है क्यूंकि अगर भारतीय न्याय व्यवस्था का इतिहास खंगालें तो ऐसे उदाहरण मुश्किल से ही मिलें जहाँ इन नेताओं या नौकरशाहों को सजा मिली हो.....

सहज साहित्य said...

निर्माण -कार्य होते समय सरकार सोई रहती है , उसका दण्ड आम आदमी भुगतत्ता है । पूरी सोसायटी तहस-नहस करने पर कितने करोड़ का नुकसान होगा ? यह तो बयानबाज़ी करने वाले सोचते ही नहीं । सरकार उसकी भरपाई करे । ये निद्राजीवी लोग देश के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गए है । मोनिका जी आपने इस ज्वलन्त मुद्दे पर जो लिखा , वह सराहनीय है ।

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

आद.मोनिका जी,
आदर्श सोसाइटी को गिराने के बजाय इसे खाली कराकर कारगिल में शहीद हुए सैनिकों के आश्रितों को दे देना चाहिए !
उन शहीदों के प्रति इससे सार्थक श्रधांजलि और क्या हो सकती है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

डॉ. मोनिका शर्मा said...
This comment has been removed by the author.
डॉ. मोनिका शर्मा said...

@ शेखर सुमन
भ्रष्टाचार और मिलीभगत की यही तो अति है की ईमारत की इतनी गैरकानूनी मंजिले बन जाने के बाद सरकार चेती है...... अगर यह मामला सामने ना आया होता तो ना कोई बवाल होता और ना ही सुरक्षा का सवाल उठाया जाता ...... सबसे बड़ा अफ़सोस यही है इसमें लिप्त नेता और अफसर तो अभी भी मजे में हैं......

अन्तर सोहिल said...

लेकिन क्या दोषियों को सजा मिलेगी?

प्रणाम

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर लेखन ...यह एक‍ विचारणीय प्रश्‍न है ..यह सब जानकर अफसोस कर पाने के अतिरिक्‍त और कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं हम ..।

मनोज कुमार said...

आपसे सहमत। ये कुछ ऐसा नहीं लग रहा कि ग़रीबी हटाओ की जगर ग़रीब हटाओ का निर्णय ले लिया गया हो?

anshumala said...

कई बार कुछ विध्वंसक काम ऐसे भी करने पड़ते है ताकि भविष्य के लिए सभी को सबक मिल जाये | पूरे देश में कितने ऐसे मकान मोहल्ला और कालोनिया बन चुकि है जो पूरी तरह से अवैध थी और है पर सरकार इसी तरह से मानवीय आधार पर उन्हें वैध बना देती है इससे होता ये है की फिर नई अवैध कालोनिय बनने लगती है | सरकार क्या करे उसे तो सरकारी कर्मचारियों पर निर्भर रहना होता है जो घुस लेकर ये करते है और सामने वाले को अस्वाशन दे देते है की एक बार बन जाने दो फिर तो सरकार कुछ नहीं कर पायेगी | इसलिए जरुरी है की जब भी मामला सामने आया तभी उससे कड़ाई से निपटा जाये ताकि भविष्य में कोई भी ये सोचने की गलती ना करे की सरकार फिर मानवीय आधार पर इसे वैध कर देगी फिर लोग डरेंगे की कल को कभी भी इन चीजो के अवैध होने की बात सामने आई तो इसे गिराया जा सकता है तो इसमे पैसा मत लगाओ | पर निश्चिन्त रहिये वो गिरने वाला नहीं है और आप को बता दू की उसमे कारगिल से जुड़े केवल तीन लोगों को ही फ़्लैट मिले है बाकि सब के सब अवैध मालिक ही है जिनमे उनका थोडा बहुत ही सही पैसा लगा है एक तरह से ये उनके लिए भी सजा ही है |

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@अन्शुमालाजी
हम सभी को इस बात की जानकारी है की कारगिल शहीदों के लिए बनी इस ईमारत के कई फ्लेट्स के अवैध मालिक ही हैं...... मुझे बस इस बात को लेकर दुःख होता है इस ईमारत के टूट जाने से सिर्फ धन और श्रम के अपव्यय के आलावा और कुछ हासिल नहीं होगा...... और अवैध रूप से मालिक बने लोगों को शायद इसके टूट जाने कुछ फर्क भी नहीं पड़ेगा...... बस जिन लोगों का इन पर वाजिब हक़ है उन्हें कुछ नहीं मिल पायेगा....... इसमें लिप्त लोगों के खिलाफ कोई कार्यवाही हो तो ज़रूर आगे के लिए लोगों को सबक मिलेगा........

Yashwant R. B. Mathur said...

इस बिल्डिंग को ढहाने के निर्णय के पीछे एक मात्र कारण घोटालेबाजों को बचाना है.नीयत यही है कि अगर फ़्लैट इन सफेदपोशों को नहीं मिलेंगे तो ज़रुरतमंदों को भी नहीं देंगे.इसलिए इसे गिरा दो.

सादर

Sushil Bakliwal said...

करे कौन और भरे कौन. यही तो खेल चलता है यहाँ.

vandana gupta said...

अब सरकार सोचती कहाँ है ? उसके पास इन सबका वक्त ही कहाँ है ?ये तो आप और हम जैसे चंद लोग सोचते हैं अपनी दिल की कह देते हैं और फिर चुपचाप सरकार का तमाशा देखने को मजबूर हो जाते हैं……………मेरे ख्याल से तो जब तक जनता खुद जागृत नही होगी जनता के पैसे का यूँ ही अपव्यय होता रहेगा।

Rajkumar said...

अभी तत्काल तो यह ढांचा नहीं गिरेगा क्योंकि इसमें कई कानूनी फंदे फंसाए जायेंगे जिनकी तैयारी शुरू भी हो चुकी है. फिर भी जयराम जी का आदेश ठीक लगता है.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

नेता इस खेल में माहिर हैं ....पीड़ा जिसको होती है उसस इनको फर्क नहीं पड़ता ...हर हाल मन आम जनता ही पिसती है

संजय भास्‍कर said...

आदरणीय मोनिका जी
नमस्कार !
बहुत ही दुःख की बात है
यह सब जानकर अफसोस कर पाने के अतिरिक्‍त और कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं...क्या दोषियों को सजा मिलेगी

उपेन्द्र नाथ said...

भ्रष्टाचार इस देश में जब तक फलता फूलता रहेगा तब समस्याओं का निदान संभव नहीं.अगर समस्याओं का वास्तव में हल चाहिए तो भ्रष्टाचार को पहले मारना पड़ेगा... इस निर्णय से रसुकधारियों को क्या फर्क पड़ता है उहोंने अपनी मेहनत के पैसे तो लगाये नहीं होंगे ( मेहनत से इतना थोड़े ही कोई कमा सकता है ) , उनका कुछ बिगड़े , गिरे तो बात बने. बेचारे फौजी (अब तो बेचारा ही बोलना पड़ेगा ) जान कुर्बान भी की तो किनके लिये...एक ज्वलंत मुद्दे को उठाया है , आप का यह सार्थक लेखन प्रशंसनीय है।

G.N.SHAW said...

monikaji.aap ka sansay bilkul thik aur satik hai.kintu jab-tak thekedari do aur kamisan paao rahega.tab-tak yah chalata hi rahega.girane ke samay bhi kamisan milega.

Ankur Jain said...

sundar....

दिगम्बर नासवा said...

YE SABHI NETA JANTA KE BAARE MEIN NAHI APNE APNE BAARE MEIN SOCHTE HAIN ... INKO IS BAAT KI KYA PARWAAH KISI KO PARESHAANI HAI ...

Arvind Jangid said...

बड़े ही खेद का विषय है....अब क्या कह सकते हैं...हमें अपने व्यक्तिगत स्तर को विस्तारित करने की आवश्यकता है..तभी कुछ हो पायेगा....साधुवाद.

vijai Rajbali Mathur said...

वस्तुतः जनांदोलन के ज़रिये दबाव दाल कर इमारत को ढहने से बचा कर कारगिल के सच्चे शहीदों को दिलाया जा सकता है.

नीरज गोस्वामी said...

बिल्डिंग गिराने का निर्णय विस्मयकारी है...जो दोषी हैं उन्हें निकाल बाहर करें और निर्दोषों को फ़्लैट दें होना तो ये ही चाहिए..लेकिन इस देश में जो हो जाए कम है...
नीरज

girish pankaj said...

desh ka durbhagya hi hoga jo aadarsh society ko gira jayehaa. vaise bhi yah daur aadarshon ko girane hi hai. monika, achchha vishleshan badhai....

mark rai said...

haan aapne bilkul sahi kaha ki aaj us building ko giraane ki baat chal rahi hai jo kargil saheedon ke pariwaaron ke liye banaya gaya tha....yah baat bilkul sahi hai ki aakhir un aaropiyon ko saza diya jana chahiye jo isko giraane ke liye jimmedaar hai...

रश्मि प्रभा... said...

durbhagya ki prabalta aur khamosh ho jane ki durbalta hai ye

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

जिन्होंने गुनाह किया उन्हें सजा मिले.. बिल्डिंग के फ्लैट नीलाम किये जायें और पैसा कारगिल शहीदों को बांट दिया जाये...

राज भाटिय़ा said...

जब जनता चुपचाप सहती हो तो ?तो यही होता हे, यही जनता तख्त पलट सकती हे, लेकिन जनता मे निजी स्वार्थ हो तो ? नेता, गुंडे भी तभी तक लूट मचा सकते हे, जब तक जनता मूक रहेगी, अगर जनता आवाज उठाये तो यह सब बेठ जायेगे, कसूर जनता का हे, गुंडा तो गुंडा गर्दी करेगा ही जब तक उसे कोई रोकेगा नही, नेता भी लूटेगा जब तक उस के नकेल नही डल जाती, जब सरकार को जबाब देना पडे जनता को तो देखे केसे तोडती हे जनता की सम्पति...लेकिन जनता सवाल तो करे, सब मिल कर आवाज तो ऊठाये,इन नेताओ को आंके तो दिखाये.... कब तक सहती रहेगी....

Anonymous said...

"जो दोषी हैं उन्हें निकाल बाहर करें और निर्दोषों को फ़्लैट दें होना तो ये ही चाहिए"

नीरज गोस्वामी जी की बात सही है - आपके आलेख के सन्दर्भ में उचित मत यही होना चाहिए

ManPreet Kaur said...

bouth he aacha likhaa aapne .... keep posting

Music Bol
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Rajesh Kumar 'Nachiketa' said...

सावधान (मत रहना)!!!!! "सरकार" काम पर है.....
यकीन मानिए.....ढहाने में बनाने से ज्यादा खर्चा आनेवाला है.......
एक गलती ठीक करने के लिए दूसरी गलती करने वाली हैं अब.

palash said...

बहुत सही बात मही आपने ।
नेता अपने राजनीत्तिक हितो के लिये कुछ भी कर सकते है ,
आज हर तरफ बस यही देखने को मिल जाता है

amrendra "amar" said...

Nice thought

मेरे भाव said...

इस तरह के काम ही लोकतंत्र की जड़ों को खोखला कर रहे हैं. आज देशभक्ति से ज्यादा राजनितिक हितों को सुरक्षा दी जा रही है . आपकी पीड़ा हर ईमानदार भारतवासी की पीड़ा है शुभकामना .

Brijendra Singh said...

बड़े अफ़सोस की बात है की इतना बड़ा निर्माण कार्य होने और इसमें लगने वाले समय तक सरकार ने इसके विषय में कोई फैसला लेने की जहमत नहीं उठाई..परन्तु में पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश के आदर्श इमारत को ढहाने के फैसले को शत प्रतिशत उचित मानता हूँ. कम से कम इस फैसले में इन्सान की पर्यावरण के विपरीत की गयी कार्यवाही को सुधारने का प्रयास दिखायी देता है. माना कि इस इमारत को बनाने में काफी धन और समय कि बर्बादी हुई है लेकिन राष्ट्रीय और पर्यावरण की सुरक्षा की द्रष्टि से ये हानि बहुत ही कम है. यह स्थान भारतीय जलसेना और थल सेना के कुछ महत्त्वपूर्ण कार्यस्थलों के नज़दीक है और तटीय क्षेत्र के वातावरण के प्रतिकूल है. पहले इस इमारत को ख़त्म किया जाना चाहिए और फिर दोषियों को दूसरे दंड के आलावा भरी अर्थदंड भी दिया जाना चाहिए.

@मोनिका जी- इस विषय को ब्लॉग पे चर्चा देने के लिए धन्यवाद.

Brijendra Singh said...

बड़े अफ़सोस की बात है की इतना बड़ा निर्माण कार्य होने और इसमें लगने वाले समय तक सरकार ने इसके विषय में कोई फैसला लेने की जहमत नहीं उठाई..परन्तु में पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश के आदर्श इमारत को ढहाने के फैसले को शत प्रतिशत उचित मानता हूँ. कम से कम इस फैसले में इन्सान की पर्यावरण के विपरीत की गयी कार्यवाही को सुधारने का प्रयास दिखायी देता है. माना कि इस इमारत को बनाने में काफी धन और समय कि बर्बादी हुई है लेकिन राष्ट्रीय और पर्यावरण की सुरक्षा की द्रष्टि से ये हानि बहुत ही कम है. यह स्थान भारतीय जलसेना और थल सेना के कुछ महत्त्वपूर्ण कार्यस्थलों के नज़दीक है और तटीय क्षेत्र के वातावरण के प्रतिकूल है. पहले इस इमारत को ख़त्म किया जाना चाहिए और फिर दोषियों को दूसरे दंड के आलावा भरी अर्थदंड भी दिया जाना चाहिए.

@मोनिका जी- इस विषय को ब्लॉग पे चर्चा देने के लिए धन्यवाद.

रंजना said...

क्या कहा जाय...

न्याय तो तब होता जब किसी भी क्षति की भरपाई तंत्र के शीर्ष के नीचे के निति निर्धारकों से उनके पद के हिसाब से अधिक से कम के क्रम में लिया जाता..पर न्याय तो तब हो न जब न्याय करने वाला पाक साफ़ हो...

जिस बिल्डिंग को गिराया जायेगा,उसमे इन निति निर्धारकों के बाबूजी की नहीं बल्कि हम टैक्स पेयर का पैसा लगा है,सो गिराते क्यों दर्द होगा इन्हें ????

अब तो नेता नाम ध्यान में आते ही मुंह कड़वा हो जाता है,क्या कहें...

sm said...

sorry i do not agree
the symbol of corruption must be demolished.
In this scam no one will go to jail.
so its better demolish building.
i will tell you this corrupt people will go to HC and SC and they will get this buliding legalized.

No one fears law openly people say break the law and it will be legalized later.
who cares for law.

Unknown said...

बेहतरीन ....विमर्श .

समयचक्र said...

nishcya hi dukhad pahaloo hai ...abhaar

हरकीरत ' हीर' said...

सही कहा मोनिका जी ...हमारे यहाँ सड़क बनते वक्त हमने ये नजारे देखे हैं ...करीब छ: महीने हो गए आधा किलोमीटर सड़क बनते ....अभी भी अधूरी है ...नाले बनाते वक्त लोगों के घरों की बिजली की तारें ही बुलडोज़र से उड़ा दीं ...अब मामला अदालत में है ....

Kunwar Kusumesh said...

भ्रस्टाचार में लिप्त नेताओं की कोई नीति नहीं होती.इन्हें तो अपनी जेब भरने से मतलब.
मैं आपकी बात से सहमत हूँ.

प्रवीण पाण्डेय said...

सारे एलॉटमेन्ट निरस्त कर अन्य को दिये जायें यह फ्लैट। ऐसा मार्ग जानबूझकर अपनाया है कि जिसमें न्यायालय स्थगन दे सकता है, फिर लम्बा खिचेगा यह, कोई निष्कर्ष नहीं।

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

yahan koi upaay nahin hai monikaa... aur usasr bhi durbhaagy hai ki ham sab apne-aap men nirupaay hain....!!

deepti sharma said...

ye to durbhagye hai hamare desh ka
kuch nhi ho sakta
lekin dukh to hota hi hai
...

वीरेंद्र सिंह said...

आपकी बात ग़ौर करने लायक़ है। ग़र दोषियों को सज़ा हो तो कुछ बात भी बनें।

G.N.SHAW said...

क्या स्वप्न भी सच्चे होतें है ?...भाग-५.,यह महानायक अमिताभ बच्चन के जुबानी.

'साहिल' said...

बहुत ही सार्थक लेख लिखा है आपने.....बधाई!

कुमार राधारमण said...

ढहाना ठीक है। सरकार स्वयं बड़े-बड़े अपार्टमेंट बनाए,फिर उसे कोर्ट के आदेश से गिराया जाए और फिर उसे सरकार अपने खर्चे से बनाए। ऐसी घटनाएँ बार-बार हों,तो माफिया मंत्रियों-अधिकारियों से मुक्ति का रास्ता स्वयं मिल जाएगा।

शोभना चौरे said...

बिलकुल सही कह रही है सरकार को इनको गिराने की बजाय दोषियों को सजा देने और उन बिल्डिंग का उपयोग अन्य सामाजिक सामुदायिक कार्यो के लिए किया जाय जिससे धन और श्रम का अपव्यय न हो|

amit kumar srivastava said...

दूरदॄष्टि का अभाव और "कुछ भी कर लो कुछ नही होगा" का एटीट्यूड है इस सब के पीछे। बस इसे ही बदलना होगा और इसके लिये बिल्डिंग का गिराया जाना आवश्यक है जो अन्य लोगों के लिये उदाहरण होगा ।

Dr (Miss) Sharad Singh said...

आपने सच कहा। लेख बहुत अच्छा है। विचारणीय है।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

यही तो हमारे देश का रोना है मोनिका जी। पर अफसोस, कि हम सिर्फ अफसोस ही जता सकते हैं ऐसे प्रकरणों पर।

---------
ज्‍योतिष,अंकविद्या,हस्‍तरेखा,टोने-टोटके।
सांपों को दुध पिलाना पुण्‍य का काम है ?

alka mishra said...

व्यथा आपको भी
अच्छा लगा ये सोच कर कि आप भी इंसान हैं.

Archana writes said...

sarkaar sirf paise se apna pet bharne k liye bani hai....in sabki or sarkaar ka dyan kabhi nahi ja sakta...bt in sab k khilaaf aawaaz jarur uthai ja sakti hai....

Satish Chandra Satyarthi said...

ज्यादा क्या कहूँ..
जो आपने लिखा है वही मैं भी सोचता हूँ..
सार्थक और सामयिक लेख...

Arvind Mishra said...

देखिये कोर्ट क्या कहती है -हो सकता है आपकी बात रख ली जाय जो मेरी दृष्टि में भी सही लगती है !

विनोद कुमार पांडेय said...

मोनिका जी ..वाकई आपने एक सार्थक चर्चा की पर आम आदमी इस बारे में बस सोच रहा है..जब तक कोई कदम नही उठेगा कुछ परिवर्तन होने मुश्किल है..ऐसी स्थितियाँ कोई नई नही बहुत पहले से चल रही है...भारत में विकास तो हो रहा है पर हर जगह घोटाले और भ्रष्टाचार में भी.....जब तक पढ़े लिखे समझदार और युवा लोग का रुझान इस ओर नही होगा राजनीति सुधारने वाली नही...

सार्थक चर्चा के लिए आभार..

Swarajya karun said...

विचारणीय आलेख. आभार .

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

मोनिका जी, ये बार बार तोड़—फोड़ ग़लती से नहीं होती है बल्कि ये सोची—समझी नीति के तहत होती है... वर्ना काम ही नहीं रहा तो कमाई कहां से होगी...ये काम उगाने और उसकी फ़सल काटने का सिलसिला है

रचना दीक्षित said...

बेफिक्र रहिये कुछ नहीं गिरेगा. न बिल्डिंग न ही किसी पर गाज. उसमे कोई आम आदमी थोड़े ही है.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

आम जन जीवन और देश की कार्ययोजनाओं को लेकर आप सबके विचारणीय कमेंट्स के लिए आभार.....

रूप said...

विचारणीय. सुन्दर व सारगर्भित लेखन .....बधाई .

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