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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

13 January 2011

साहस नहीं तो दुस्साहस सही.....


रूपम पाठक ने जो किया वो समाज के लिए एक नया अध्याय जरूर है पर इसकी विषयवस्तु नई नहीं है। राजनीतिक गलियारे हों या ग्लैमर की दुनिया , कॉरपोरेट वर्ल्ड की बात करे या खेलों की। हर कहीं महिलाओं का यौनशोषण आम बात है। पिछले कुछ सालों से महिला यौन उत्पीड़न से जुड़े  अपराधों का ग्राफ बढता ही जा रहा है।

सवाल यह है कि देश के नेता हों या स्कूल के अध्यापक, खेल के कोच हों या किसी दफ्तर के बॉस। हर कोई यह क्यों समझने लगा है कि महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करने से उन्हें कोई हानि नहीं हो सकती। ना कानून उनका कुछ बिगाड़ सकता है और न ही समाज उन्हें कोई सजा देने वाला है। सबसे ज्यादा अफसोस की बात तो यह है कि पुलिस या प्रशासन में बैठा कोई न कोई व्यक्ति ऐसे लोगों का बचाव करता पाया जाता है। ऐसे में कोई महिला कहाँ किसी न्याय की उम्मीद कर सकती है ? आज किसी भी परिवेश या क्षेत्र की बात करें, महिलाओं के यौनशोषण की खबरें सुर्खियां बन रहीं हैं। हम सबके लिए रूपम और मधुमिता के साथ हुईं घटनाएं विचारणीय हैं क्योंकि किसी न किसी क्षेत्र से किसी न किसी घर की बेटी या बहू को जुड़ना तो  है ही ।


सवाल यह भी है कि जब कानून और समाज यहां तक ऐसे मामलों में कई बार परिवार भी साथ नहीं देते तो किसी भी महिला का दुस्साहिक कदम उठाना हम सबको हैरान क्यों करता  है ? रूपम ने भी वैसा ही किया । हर जगह गुहार लगाई और फिर भी बात न बनी तो हथियार उठा लिया। सोच समझ कर एक ऐसे कृत्य को अंजाम दिया जो इस बात का प्रमाण है कि उसके लिए बर्दाश्त करना सच में मुश्किल हो गया था। हर शिक्षित और सभ्य इंसान रूपम की इस मनोवैज्ञानिक स्थिति को महसूस कर सकता है। ऐसी मानसिक स्थिति, जब घुटन होने लगती है अपने ही जीवन से और क्रोध चरम पर होता है। कहा जाता है कि क्रोध से जो आठ विकार मन में जन्म लेते हैं उनमें दुस्साहस भी एक है।

सोच समझ कर दुस्साहस भी वही कर सकता है जो निर्भय हो । मन में किसी भी बात का भय न रखता हो । यह निर्भयता तब दस्तक देती है जब बर्दाश्त करना मुश्किल हो जाता है और खुद की सत्यता का प्रमाण देने का कोई दूसरा रास्ता नहीं बचता। मन और मस्तिष्क की छटपटाहट की यह स्थिति किसी दूसरे विचार को आने ही नहीं देती और अंजाम वही होता है जो रूपम ने किया।

रूपम का कदम पूरे समाज के लिए वैचारिक मंथन और महिलाओं को दबी सहमी समझ कर प्रताड़ित करने वालों लिए डरने का विषय है। सब कुछ सहने की पराकाष्ठा किसी के भी मन में इस विचार को जन्म दे सकती है कि साहस नहीं तो दुस्साहस सही......!

56 comments:

Yashwant R. B. Mathur said...

बिलकुल! मगर मैं इसे सिर्फ सहस ही कहूँगा.एक ऐसा सहस जो हमारे देश की हर महिला अगर दिखाने लगे तो तस्वीर ही बदल जायेगी.और जुल्म करने वाले सौ बार सोचेंगे.

सादर

केवल राम said...

आदरणीय मोनिका जी
नमस्कार
बहुत दिनों बाद आपकी पोस्ट पढने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ....आज की पोस्ट बहुत संवेदनशील मुद्दे को लेकर लिखी गयी है ..जहाँ तक यौन शोषण का प्रश्न है ..यह लोगों की गलत मानसिकता की परिचायक है ...चरित्रहीनता का प्रमाण है ...और जो लोग इसमें संलिप्त हैं ..उनके बारे में सोचा जा सकता है ...समाज को ऐसे लोगों को सबक सीखना चाहिए ..चाहे उसके लिए कोई भी मार्ग क्योँ न अपनाना पड़े ..और इसमें महिलाओं की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रहेगी ..शुक्रिया

vijai Rajbali Mathur said...

रानी सारंधा और महारानी लक्ष्मीबाई के देश में उस शिक्षिका द्वारा उठाया गया कदम सराहनीय एवं अनुकरणीय है.जब तक कानूनों में सुधार करके उन्हें वास्तविक न्याय दिलाने वाला नहीं बनाया जाता ऐसे कदम उठाया जाना वांछनीय हैं

रश्मि प्रभा... said...

aagaaz sahi hai

प्रवीण पाण्डेय said...

लोकतन्त्र के दुर्भाग्य की कड़ी इस घटना में दिखायी पड़ती है।

अनामिका की सदायें ...... said...

sabhi lekin is soch tak kahan pahunch paate hain. sach pahchaana aapne is nari ki peeda ko.prabhaavshali prastuti.

संजय भास्‍कर said...

आदरणीय मोनिका जी
नमस्कार
बहुत दिनों बाद आपकी पोस्ट पढने का सौभाग्य प्राप्त हुआ
एक बेहतरीन अश`आर के साथ पुन: आगमन पर आपका हार्दिक स्वागत है.

संजय भास्‍कर said...

ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
आपको और आपके परिवार को मकर संक्रांति के पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ !"

deepti sharma said...

sahi kaha apne
sach mai aaj desh ki har mahila jab jagruk ho jayegi or galat ke khilaf aawaz uthayegi to
koi kabhi galat karne se pahle sochega.

aabhar

anshumala said...

मोनिका जी

मुझे लगता है की मधुमिता या रूपम पाठक की कहानी कुछ दूसरी है उसे इस श्रेणी में नहीं रख सकते है किन्तु आप की बात सच है की महिलाओ का शारीरिक शोषण बढ़ा है पर ये किसी खास क्षेत्रो तक सिमित नहीं है बल्कि हर उस क्षेत्र में है जहा महिलाए काम कर रही है सेना और शिक्षा के क्षेत्र तक से ऐसी खबरे आ चुकि है कारण हमारे समाज की मानसिकता एक तो ये मानसिकता की हर कमजोर का शोषण करो दूसरी ये की महिलाए सिर्फ भोग के लिए है और समाज के डर से वो इस शोषण को सामने नहीं लायेंगी | इस सोच के कारण वो आसान शिकार बन जाती है |

Satish Saxena said...

इस घटना से उन हरामजादों को सबक अवश्य मिलेगा जो लड़कियों को कमज़ोर समझ उनका फायदा उठाने में लगे रहते हैं ! शुभकामनायें आपको !

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

अन्याय के विरुद्ध किसी को तो खड़ा ही होना पड़ेगा..

राज भाटिय़ा said...

महिलाओं का यौनशोषण हो या आम आदमी का शोषण यह हमेशा बुरा ही होता हे जब कानून कुछ ना कर सके, ओर रक्षक ही भक्षक बन जाये तो यही होता हे जो इस बहादुर नारी ने किया, मै रूपम पाठक को दोषी नही मानता, धन्यवाद इस लेख के लिये

Rajesh Kumar 'Nachiketa' said...

एक अजीब सी बात है कि मैं उसी town का हूँ जहां के विधायक की ह्त्या हुई है. रूपम पाठक का कदम जो भी था उन्होंने अपने शोषण के खिलाफ था. सही या गलत मैं नहीं कह सकता. जो उनको ठीक लगा उन्होंने किया जो कि कोई भी करता अगर हर तरफ से उन्हें निराशा ही हाथ लगी.
उसी जगह से होने के नाते मैं आपको बता दूं की वो नेता भी काफी लोकप्रिय नेता थे. काफे सुलभ नेता जो लोगों की चिंताओं को समझता था. ये इस बात से भी सोची जा सकती है कि उससे मिलना इतना सुलभ था कि वो जनता दरबार में मारा गया जहां कोई रोक टोक नहीं थी किसी के आने-जाने पे. ये भी जरूर रहा होगा कि परेशान किया होगा पाठक जी को. लेकिन अगर यौन शोषण अपराध था तो ह्त्या भी अपराध है ही.
मैं नेता जी कि तरफदारी नहीं कर रहा.
मैं मानता हूँ कि रूपम जी के साथ अन्याय हुआ होगा. लेकिन बस नेता हो जाने से कोई बुरा हो जता है ऐसा नहीं है. दूध का धुला ना सही एक अच्छा नेता जरूर थे केशरी.
एक बात और बता दूं मेरा उसने कोई सम्बन्ध नहीं है.
एक निष्पक्ष टिप्पणी भर है.
मेरी संवेदना रूपम पाठक जी के साथ है. भगवान् करे कि उनके साथ और अन्याय ना हो.
एक जन-समुदाय को अच्छा नेता मिलना काफी मुश्किल होता है ये बात भी सब समझते हैं.
मैं जानता हूँ इसलिए इतना लिख पाया. नहीं तो बस वही कहता जो अक्सर मीडिया कहती है

is tippanee ko anyathaa naa liyaa jaaye.

Shabad shabad said...

कलम का कमाल !
कलम भी बन सकती है
तलवार !
आवाज़ तो उठानी ही होगी !!

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@ Rajesh Kumar 'Nachiketa'


टिप्पणी को अन्यथा लिए जाने का प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि किसी भी विषय पर पाठकों की अपनी अपनी राय होती है... और उसे खुलकर रखना चाहिए ऐसा मेरा मानना है । निष्पक्ष और सटीक टिप्पणी के लिए आभार

मेरा भी यह मानना नहीं है की नेता होने से ही किसी को गलत मान लिया जाय। पर अफ़सोस है की नेता बनते ही कानून इन्हें हाथ की कटपुतली लगने लगता है...... केसरी ही नहीं दर्जनों नेताओं के खिलाफ यौन शोषण के केस है। समस्या यह भी है की रूपम पाठक ही नहीं ज़्यादातर मामलों में जनता तक पहुँच ही नहीं पाती .......

जयकृष्ण राय तुषार said...

nice post dr.monikaji namaskar

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

सही कहा मोनिका जी... जब न्याय नहीं मिलता तो इंसान दुस्साहस कर बैठता है.. इस लिए सावधान होना चाहिए समाज में ऐसे लोग जो महिला को यूज एंड थ्रो समझते है .. उन को दंड मिलना ही चाहिए ..
आपका लेख सार्थक है.. .. आज चर्चामंच पर आपकी पोस्ट है...आपका धन्यवाद ...मकर संक्रांति पर हार्दिक बधाई

http://charchamanch.uchcharan.com/2011/01/blog-post_14.html

Anonymous said...

मोनिका जी,

काफी दिनों बाद आपकी पोस्ट पढ़ी......ये एक ज्वलंत विषय है ....जिस पर आपने बेबाकी से लिखा है.......मुझे लगता है इसका एक ही कारन अहि हमारे देश में और वो है कानून का सख्त न होना......ये तो वो सिर्फ वो मामले हैं जो मीडिया में आ गए हैं.....कुछ पिछड़े इलाकों में ये घटनाएँ आम हैं.....जहाँ तक मीडिया भी नहीं पहुँच पाता है.....शिक्षा के साथ ही महिलाओं की स्थिति में सुधार हो सकता है.........

आपको और आपके परिवार को मेरी और से नववर्ष की शुभकामनायें|
(देर आयद दुरुस्त आयद)

Kunwar Kusumesh said...

बहुत सुन्दर. लोहड़ी और मकर संक्रांति की शुभकामनायें

ashish said...

ये घटना हमारे समाज में बहुत सारे रूपम को पैदा करेगी जो पुर्णतः सही तो है लेकिन नारी का शारीरिक शोषण और न्याय का ना मिलना दोनों ही इस घटना के लिए जिम्मेदार है .

G.N.SHAW said...

monikaji, kal hi aap ko yad kiya tha kyoki n kayi dino se , kahi comment dekha n hi aap ke koi post.shayad lagata hai kahi gayi huyi thi, waise bharatiy nari ,aaj-kal har kshetr me aage nikal rahi hai,waise me rupam pathak ka byawahar bhi koi nayi baat nahi hai.waise jyada nahi kah sakata kyo ki kanooni prakriya jari hai.

सदा said...

आपकी पोस्‍ट की कई दिनों से प्रतीक्षा थी ...सुन्‍दर लेखन के साथ यही कहूंगी यह एक विचारणीय प्रस्‍तुति दी है आपने ...।

राज भाटिय़ा said...

लोहड़ी, मकर संक्रान्ति पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई

उपेन्द्र नाथ said...

Monika ji, Rupam ji ke liye kanoon chahe jo saja de magar apne dil ne " Shabas" ki saja sunayee hai. h\Ho sakta hai agr Rupam ne jara bhi der ki hoti to unka bhi hasra shayad madhumita shukla jaisa hua hota..........

Kailash Sharma said...

बहुत संवेदनशील पोस्ट..वास्तव में आज दुस्साहस की ही आवश्यकता है, वर्ना यह बीमारी बढती रहेगी..

सुज्ञ said...

जुल्म जब हदें पार कर जाता है तो एक सटीक संदेश की तरह साहस से दुस्साहस ही अभिव्यक्ति बन जाता है।

लोहड़ी,पोंगल और मकर सक्रांति : उत्तरायण की ढेर सारी शुभकामनाएँ।

वीरेंद्र सिंह said...

विचारोत्तेजक लेख. आपकी बात से सहमत हूँ. इसीलिए रुपम पाठक के साथ मेरी भी सहानुभूति है. उन्होंने हत्या करने जैसा क़दम उठाया. ज़रूर उनके साथ घोर नाइंसाफी हुई होगी.
मेरा ये भी मानना है कि कई लोग अपनी अच्छी इमेज के चलते दूसरों के साथ बहुत ही ग़लत व्यवहार करते हैं. इस केस में भी
कुछ ऐसा ही लगता है. नेता जी को अपनी ताक़त के साथ ही अपनी अच्छी छवि का भी अहसास था इसीलिए उन्होंने अपने
ज़ुल्मों के ख़िलाफ़ रुपम पाठक के दिल में धधक रही बदले की आग की भी कोई चिंता नहीं की थी. परिणामस्वरूप जान गवाँनी पड़ी.

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

मोनिका जी,

आपने सही लिखा है ! ऐसा कदम उठाने के पहले वह किस मनः स्थिति से गुज़री होगी इसका सहज ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है !
जब न्याय के सारे दरवाज़े बंद हो जाते हैं तो ऐसा ही होता है !
रूपम पाठक के इस क़दम से क्या पता कुछ भेड़ियों की आँखें खुल जाय !

संक्रांति,पोंगल,लोहड़ी की हार्दिक शुभकामनाएं !

-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

ऐ औरत !!अब तुझे रूपम पाठक ही बनना होगा.....
ऐ औरत !!अब अगर तूझे सचमुच एक औरत ही होना है
तो अब तू किसी भी व्यभिचारी का साथ मत दे....
जैसा कि तेरी आदत है बरसों से
घर में या बाहर भी......
कि हर जगह तू सी लेती है अपना मुहं
घर में किसी अपने को बचाने के लिए.....
और बाहर अपनी अस्मत का खिलवाड़.....
इस सबको झेलने से बेहतर तू समझती है....
सबसे ज्यादा अच्छा अपना मुहं सी लेना....
और तेरे मुहं सी लेने की कीमत क्या है,तू जानती है...??
तेरी ही कोख से जने हुए ये बच्चे...बूढ़े...और जवान....
सब-के-सब तुझ पर चढ़ बैठना चाहते हैं....
ये उद्दंड तो इतने हो गए हैं तेरी चुप्पी से....
कि इन्हें कुछ नज़र ही नहीं तुझमें,तेरी कोख के सिवा
......तो अब तू सोच ना....कि तेरे पास अब चारा ही क्या है...
......आ मैं बताता हूँ तुझे....लेकिन मैं क्या बताऊँ
......अब तो सबको रूपम ने बता ही दिया है.......
.......उठा ले हाथों में कटार....या फिर कुछ और....
.......बेशक ये रास्ता मुश्किल से बहुत है भरा......
.......मगर कुछ ही दिन करना होगा यह तुझे...
.......उसके बाद देख लेना.............
......कि तेरी तरफ उठने वाला हर नापाक कदम
......तेरा क्रोध भरा चेहरा देखकर....
.......वापस लौट जाएगा....अगले ही दम....!!
......ऐ औरत तू ज़रा सी देर के लिए बना ले....
.....खुद को दुर्गा का कोई भी अवतार.....
.....जो आज बनी है रूपम सी कोई....
......अपने बच्चों को बता अपने रौद्र रूप के मायने
......और आदमी रुपी जानवर की वीभत्सता का क्रूर सच...
......तेरे भीतर की दुर्गा अगर तुझमें ज़रा सी भी अवतरित हो जाए...
......तो हर वहशी इंसान को अपनी औकात पता चल जाए...!!

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

ऐ औरत !!अब तुझे रूपम पाठक ही बनना होगा.....
ऐ औरत !!अब अगर तूझे सचमुच एक औरत ही होना है
तो अब तू किसी भी व्यभिचारी का साथ मत दे....
जैसा कि तेरी आदत है बरसों से
घर में या बाहर भी......
कि हर जगह तू सी लेती है अपना मुहं
घर में किसी अपने को बचाने के लिए.....
और बाहर अपनी अस्मत का खिलवाड़.....
इस सबको झेलने से बेहतर तू समझती है....
सबसे ज्यादा अच्छा अपना मुहं सी लेना....
और तेरे मुहं सी लेने की कीमत क्या है,तू जानती है...??
तेरी ही कोख से जने हुए ये बच्चे...बूढ़े...और जवान....
सब-के-सब तुझ पर चढ़ बैठना चाहते हैं....
ये उद्दंड तो इतने हो गए हैं तेरी चुप्पी से....
कि इन्हें कुछ नज़र ही नहीं तुझमें,तेरी कोख के सिवा
......तो अब तू सोच ना....कि तेरे पास अब चारा ही क्या है...
......आ मैं बताता हूँ तुझे....लेकिन मैं क्या बताऊँ
......अब तो सबको रूपम ने बता ही दिया है.......
.......उठा ले हाथों में कटार....या फिर कुछ और....
.......बेशक ये रास्ता मुश्किल से बहुत है भरा......
.......मगर कुछ ही दिन करना होगा यह तुझे...
.......उसके बाद देख लेना.............
......कि तेरी तरफ उठने वाला हर नापाक कदम
......तेरा क्रोध भरा चेहरा देखकर....
.......वापस लौट जाएगा....अगले ही दम....!!
......ऐ औरत तू ज़रा सी देर के लिए बना ले....
.....खुद को दुर्गा का कोई भी अवतार.....
.....जो आज बनी है रूपम सी कोई....
......अपने बच्चों को बता अपने रौद्र रूप के मायने
......और आदमी रुपी जानवर की वीभत्सता का क्रूर सच...
......तेरे भीतर की दुर्गा अगर तुझमें ज़रा सी भी अवतरित हो जाए...
......तो हर वहशी इंसान को अपनी औकात पता चल जाए...!!

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

ऐ औरत !!अब तुझे रूपम पाठक ही बनना होगा.....
ऐ औरत !!अब अगर तूझे सचमुच एक औरत ही होना है
तो अब तू किसी भी व्यभिचारी का साथ मत दे....
जैसा कि तेरी आदत है बरसों से
घर में या बाहर भी......
कि हर जगह तू सी लेती है अपना मुहं
घर में किसी अपने को बचाने के लिए.....
और बाहर अपनी अस्मत का खिलवाड़.....
इस सबको झेलने से बेहतर तू समझती है....
सबसे ज्यादा अच्छा अपना मुहं सी लेना....
और तेरे मुहं सी लेने की कीमत क्या है,तू जानती है...??
तेरी ही कोख से जने हुए ये बच्चे...बूढ़े...और जवान....
सब-के-सब तुझ पर चढ़ बैठना चाहते हैं....
ये उद्दंड तो इतने हो गए हैं तेरी चुप्पी से....
कि इन्हें कुछ नज़र ही नहीं तुझमें,तेरी कोख के सिवा
......तो अब तू सोच ना....कि तेरे पास अब चारा ही क्या है...
......आ मैं बताता हूँ तुझे....लेकिन मैं क्या बताऊँ
......अब तो सबको रूपम ने बता ही दिया है.......
.......उठा ले हाथों में कटार....या फिर कुछ और....
.......बेशक ये रास्ता मुश्किल से बहुत है भरा......
.......मगर कुछ ही दिन करना होगा यह तुझे...
.......उसके बाद देख लेना.............
......कि तेरी तरफ उठने वाला हर नापाक कदम
......तेरा क्रोध भरा चेहरा देखकर....
.......वापस लौट जाएगा....अगले ही दम....!!
......ऐ औरत तू ज़रा सी देर के लिए बना ले....
.....खुद को दुर्गा का कोई भी अवतार.....
.....जो आज बनी है रूपम सी कोई....
......अपने बच्चों को बता अपने रौद्र रूप के मायने
......और आदमी रुपी जानवर की वीभत्सता का क्रूर सच...
......तेरे भीतर की दुर्गा अगर तुझमें ज़रा सी भी अवतरित हो जाए...
......तो हर वहशी इंसान को अपनी औकात पता चल जाए...!!

महेन्‍द्र वर्मा said...

विचारोत्तेजक लेख लिखा है आपने।
आपके विचारों से सहमत हूं। पंगु हो चुकी न्याय व्यवस्था पर अब विश्वास कम होने लगा है। ऐसे में अत्याचार के खिलाफ कोई नारी इस तरह का कदम उठाती है तो उचित ही है। इससे सफेदपोश अपराधियों का हौसला कम होगा।

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

ऐ औरत !!अब तुझे रूपम पाठक ही बनना होगा.....
ऐ औरत !!अब अगर तूझे सचमुच एक औरत ही होना है
तो अब तू किसी भी व्यभिचारी का साथ मत दे....
जैसा कि तेरी आदत है बरसों से
घर में या बाहर भी......
कि हर जगह तू सी लेती है अपना मुहं
घर में किसी अपने को बचाने के लिए.....
और बाहर अपनी अस्मत का खिलवाड़.....
इस सबको झेलने से बेहतर तू समझती है....
सबसे ज्यादा अच्छा अपना मुहं सी लेना....
और तेरे मुहं सी लेने की कीमत क्या है,तू जानती है...??
तेरी ही कोख से जने हुए ये बच्चे...बूढ़े...और जवान....
सब-के-सब तुझ पर चढ़ बैठना चाहते हैं....
ये उद्दंड तो इतने हो गए हैं तेरी चुप्पी से....
कि इन्हें कुछ नज़र ही नहीं तुझमें,तेरी कोख के सिवा
......तो अब तू सोच ना....कि तेरे पास अब चारा ही क्या है...
......आ मैं बताता हूँ तुझे....लेकिन मैं क्या बताऊँ
......अब तो सबको रूपम ने बता ही दिया है.......
.......उठा ले हाथों में कटार....या फिर कुछ और....
.......बेशक ये रास्ता मुश्किल से बहुत है भरा......
.......मगर कुछ ही दिन करना होगा यह तुझे...
.......उसके बाद देख लेना.............
......कि तेरी तरफ उठने वाला हर नापाक कदम
......तेरा क्रोध भरा चेहरा देखकर....
.......वापस लौट जाएगा....अगले ही दम....!!
......ऐ औरत तू ज़रा सी देर के लिए बना ले....
.....खुद को दुर्गा का कोई भी अवतार.....
.....जो आज बनी है रूपम सी कोई....
......अपने बच्चों को बता अपने रौद्र रूप के मायने
......और आदमी रुपी जानवर की वीभत्सता का क्रूर सच...
......तेरे भीतर की दुर्गा अगर तुझमें ज़रा सी भी अवतरित हो जाए...
......तो हर वहशी इंसान को अपनी औकात पता चल जाए...!!

कुमार राधारमण said...

कभी दहेज हत्या का मामला सुनते ही पुरुष के प्रति घृणा का भाव उपजता था मगर आज फर्जी मामलों के कारण संदेह ज्यादा पैदा होता है कि आरोप सही हैं या फंसाने के लिए लगाए गए हैं। रूपम ने जो किया उसे हम साहस-दुस्साहस की श्रेणी में रखने की बजाए केवल इतनी कामना करेंगे कि उनके आरोप सही साबित हों।

वन्दना अवस्थी दुबे said...

मोनिका जी, सबसे पहला इन्कार/असहयोग तो घर से ही मिलता है किसी भी महिला को. कुछ परिवारों को छोड़ दें, तो किसी भी महिला के साथ होने वाले दुर्व्यवहार के लिये घर वाले उसे ही दोषी करार देते हैं, कि ज़रूर तुम्हारी तरफ़ से कुछ रहा होगा.
एक संवेदन शील मुद्दे पर लिखी गई बाज़िव पोस्ट.

मनोज कुमार said...

जिस दिन इसके बारे में सुना, मेरे मन में उनके लिए इज़्ज़त और बढ गई। आपसे सहमत हूं। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
फ़ुरसत में … आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी के साथ (दूसरा भाग)

Minakshi Pant said...

आज आप मेरे ब्लॉग मै न आई होती तो मुझेआप तक पहुँचने का सोभाग्य न मिलता बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग मै आ कर बहुत अच्छा लिखती हैं आप और थोड़े से शब्दों मै बात को पूरा समझा देने कि कला है आपमें !
रूपम पाठक ने जो किया वो ठीक था या नहीं ? ये तो सब अपनी -अपनी सोच से उसे आंकेंगे पर इस तरह कि गन्दी परवर्ती के लोग ही रूपम जेसी स्त्री मै ये सब करने कि हिम्मत जगाते हैं और इन्सान का इन्सान के ऊपर से विश्वाश भी उठाते हैं ! क्युकी स्त्री मै हिम्मत नहीं एसा नहीं है पर जब लोग इसका गलत फायदा उठाते हैं तो उसको दुर्गा और काली रूप दिखाना ही पड़ता है !
सुन्दर लेख !

हरकीरत ' हीर' said...

यशवंत माथुर जी कि बात से सहमत हूँ ......
आपका लेखन हमेशा प्रशंसा के काबिल होता है .....

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

समाज के साथ-साथ सिस्टम का फ़ेलियर भी यह दुखद घटना.

विजय तिवारी " किसलय " said...

मोनिका जी
नारी समुदाय का प्रतिनिधित्व करती यह अभिव्यक्ति निःसंदेह आपके आक्रोश एवं उद्वेलित मानसिक परिस्थिति का प्रत्यक्ष प्रमाण है.
समाज में समानता की बातें और अधिकार इन्हीं कुत्सित कृत्यों के कारण कार्यरूप में परिणित नहीं हो पा रहे हैं.
अंकुश लगना चाहिए मगर क़ानून और सामाजिक स्वीकृति के साथ, तभी इसके सार्थक और दूरगामी परिणाम प्राप्त हो सकेंगे.
मैं आपकी अभिव्यक्ति से अधिकांशतः सहमत हूँ एवं आपकी निडरता का कायल हूँ.
- विजय तिवारी ' किसलय '

विनोद कुमार पांडेय said...

वाकई ऐसे प्रकरण बहुत शर्मनाक है...बड़े बड़े महान पुरुषों की धरती पर ऐसे लोग भी है सोचनीय प्रश्न है वैसे देर सवेर उन्हे उनके कर्मों की सज़ा मिलती ही है....सभी को मिलकर आगे आने की ज़रूरत है ताकि ऐसी धटना ना घटें...

रूप said...

Ek samvedanshil mudde par sahsik aur satik tippani. Par sach kya yahi hai...meri kawitaon par tippani ke liye dhanyawad. If u can,follow my blog...

शोभना चौरे said...

दुसाहस ही साहस की एक कड़ी है समय और परिस्थिति पर जो किया जाय |
शोषण के खिलाफ एक आगाज तो है |अच्छा विश्लेषण |

pallavi trivedi said...

लगातार होते अन्याय...मानसिक घुटन और जुल्म की पराकाष्ठा ही ऐसी स्थितियों को जन्म देता है...ऐसी घटनाओं से अंदाजा लगाया जा सकता है व्यक्ति की मानसिक अवस्था का!

k.joglekar said...

monikaji nmskar.
Rupam pathak ne himmat to dikhai. lekin tasveer ka doosra rukh ye hai ki kabhi kabhi mahilaye khuch fayade ke peeche andhi ho jati hai.unki aankhe jab khulati hai bahut der ho jati hai. Mahilaon ko samay rahate sachet hone ki jarurat hai.

अभिषेक मिश्र said...

कहते हैं लोहे को भी ज्यादा पीटो तो वो चाकू बन जाता है. कानून पर से भरोसा यूँ ही उठता रहा तो अराजकता फैलेगी ही.

Gopal Mishra said...

Hi Monika Ji , I am visiting your blog for the first time. It's nice.

Congrats for being full time MAA :)

रचना दीक्षित said...

ये तो एक न एक दिन होना ही था जब अन्याय हद से बढेगा न्याय नहीं मिलेगा तो कुछ तो करना ही पड़ेगा. ये शुरुवात है लोगों को होशियार हो जाना चाहिए.

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

जब कानून सो रहा हो तो आम जनता को कानून अपने हाथों में लेना ही पड़ेगा !

amrendra "amar" said...

hi Monika ji sarthak lekh k liye badhai

Niraj Kumar Jha said...

Genuine concern. Thanks for raising this issue.

Sushil Bakliwal said...

निःसंदेह इन स्थितियों में ऐसे ही कदम उठाए जाने की आवश्यकता है । यद्यपि यह कोई पसंदगी से लिया हुआ निर्णय नहीं रहा है किन्तु बात वही है कि न्याय की तलाश यदि कहीं भी पूरी नहीं हो पा रही है तो फिर स्वयं फैसला करने का ये दुस्साहस ही सही ।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

इस संवेदनशील विषय पर आप सभी की वैचारिक टिप्पणियों के हार्दिक आभार ......

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) said...

मोनिका जी काफी अच्छा लगा आपने इस विषय को रखा ......रूपम जी ने जो किया वो उसने अपनी जिस्म की आबरू लुट जाने के बाद .....मन की आबरू से उद्वेलित होकर किया क्योंकि नारी मन जितना कांच है उतना ही कठोर भी जब टूटता है तब चुभता ही है और जब जबरन तोडा जाये तो तोड़नेवाले को ही चुभना चाहिए तो उन्होंने जो किया सही किया ... ऐसे को ऐसी ही सजा मिलनी चाहिए नारी खिलौना तो नहीं मर्जी किया खेल लो फेंक दो तोड़ दो.. उसने अपने नारी होने का ही नहीं काली होने का भी प्रमाण दे दिया .....बस ऐसे ही नारी अपना काल रूप बना ले तो हर पापी का अंत हो जायेगा इस संसार से .......

अजय said...

bahut accha likha hai...Dr Monika aapne....kabhi fursat mile to mere blog par kuch meri rachnayein bhi padhkar mujhe abhibhut kariyega....
Thanks
Ajay Gautam

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