इन दिनों जिस चीज़ से सबसे ज्यादा कोफ़्त हुई, वो है हद से ज्यादा सूचनाएं और बेवजह के बेहूदा मजाक | ना विषय की गंभीरता को समझा जाता है और ना ही सूचनाओं का सच जानने की जरूरत समझी जाती है | बस, सनसनी बनाना है हर विषय को | चुटकुले बनाकर मायने ही ख़त्म कर देने हैं किसी भी मामले के | बेवजह के विचार और अर्थहीन बातें बो देनी हैं कि नई कोपलें कुछ अलग ही रंग में फूटें | पुरानी समस्या तो जड़ें जमाये रहे ही नई विप्पत्ति और खड़ी हो जाय | कमाल यह कि यह सब बिना रुके-बिना थके जारी है | ऐसे शोर की तरह जो गूँजता तो नहीं पर सोच और समझ गुम करने को काफी है |
अब हर मुसीबत एक मौका है ----अपना प्रोडक्ट बेचने का--अपना ज्ञान बघारने का--ख़ुद को ख़ास दिखाने का--हंसी-ठिठोली करने का | सजगता और सतर्कता को दिया जाने वाला समय ऐसे-ऐसे मोर्चों पर खर्च होता है कि आपदा के लड़ना और मुश्किल हो जाए | हर वो खुरापात की जाए जो ख़ौफ़ को और बढ़ा दे | दिल्ली के सफदरजंग हॉस्पिटल से इसी सनसनी की बदौलत एक दुखद खबर सामने आ गई है | कोरोना वायरस से संक्रमित एक मरीज ने आत्महत्या कर ली है | सातवीं मंजिल से कूदकर अपनी जान देने वाला यह व्यक्ति सिडनी से वापस अपने देश लौटा था | कोई हैरानी नहीं हमने इस वैश्विक विपदा को भी मजाक और सूचनाएं ठेलने का मौका बना लिया है | नतीजा, भरोसे से भरे परिवेश की जगह भय का माहौल बन रहा है |
संयम और ठहराव हमारी परवरिश का हिस्सा रहा है | हमारे यहाँ आज भी ज़िंदगी इतनी आसान नहीं कि बिना समझ और धैर्य के कट सके | लेकिन न्यूज चैनल्स हों या सोशल मीडिया - कहीं कोई ठहराव नहीं दिखता | आपदा से लड़ने का नहीं बल्कि कहीं दिखने और कहीं बिकने का भाव ज्यादा दिख रहा है | जीवन पर बन आये तब भी हम एक अलग ही उन्माद में डूबे रहते हैं | ख़ुशी का मौका हो या कोई आपदा | हम तो आदी हो गए हैं इसे सनसनी बनाने के | प्लीज़ इससे बचिए --- थोड़ा ठहरिये |
5 comments:
उपयोगी और सार्थक
हर आपदा और हर मुसीबत अब एक मौका है खुद को वायरल करने के लिए बस इस आपदा को अलग अलग ढंग से प्रस्तुत करने के तरीके आने चाहिए. ये सोच मानवता पर दाग है.
आपका लेख सार्थक संदेश दे रहा है.. अब हमे ठहर के देखना चाहिए क्या अच्छा है, क्या बुरा है.
नई रचना- सर्वोपरि?
सूचना और ज्ञान के नाम पर मीडिया, सोशल मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक समाचार चैनल व दूसरे मनोरंजन चैनल्स पर ऐसी ही विकृतियां पांव पसारे हुए हैं।
सूचना और ज्ञान के नाम पर मीडिया, सोशल मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक समाचार चैनल व दूसरे मनोरंजन चैनल्स पर ऐसी ही विकृतियां पांव पसारे हुए हैं।
सही है मोनिका दी। आजकल संदेशों की बाढ़ सी आ गई हैं।
Post a Comment