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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

13 February 2017

बन रहा है बीमार मन का समाज

हाल ही में मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से सामने आये  सनसनीखेज और खौफ़नाक मामले में एक युवक ने लिव -इन -रिलेशन में साथ रह रही अपनी 28 वर्षीय प्रेमिका की कथित तौर पर गला घोंटकर हत्या करने और घर के चबूतरे में उसकी लाश को दफन कर दिया ।  लिव इन पार्टनर लड़की  सोशल मीडिया के जरिए  इस युवक की दोस्त बनी थी  | जाँच में यह भी सामने आया है कि  छह साल पहले उसने अपने मां-बाप की हत्या कर उन्हें भी यूँ ही  दफना दिया था । उसके कुत्सित कारनामों से लगता है कि यह  32 वर्षीय युवक सीरियल किलर भी हो सकता है । गौरतलब यह भी है यह युवक अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखता है।  शिक्षित और पूरे विश्वास के साथ झूठ बोलने में भी माहिर है। आरोपी का दिमाग बहुत तेज है और उसकी तर्कशक्ति भी काफी प्रबल है।   इतना ही नहीं  इसका  रहन-सहन भी काफी विलासिता पूर्ण था । यानी यह किसी  गरीब और आपराधिक पृष्ठभूमि से भी नहीं आता । इस मामले ने यह बड़ा सवाल उठाया है कि  समाज में कैसी बीमार मानसिकता के लोग मौजूद हैं ?   जिनकी सोच में  बर्बरता है और उनके  कारनामे भी बर्बरता से भरपूर हैं।   यही वजह है कि  ऐसे  मामले आपराधिक होते हैं लकिन उन्हें मनोवैज्ञानिक  आधार पर भी समझे जाने की दरकार भी होती है । समाज और परिवेश में आ रहे बदलाव को समझकर विश्लेषित किये जाने भी जरूरत होती है | क्योंकि पुलिस  और न्यायालयों की रिपोर्ट बताती है कि संसार भर में बर्बरता और हिंसा  की आग तेजी से भड़क रही है  ।  व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन में हिंसा का भरपूर प्रयोग किया जा रहा है। बीमार मानसिकता अब सोच से उतर कर व्यवहार में जगह बना रही है ।

बीते कुछ सालों गांवों से महानगरों तक ऐसे खौफ़नाक मामले आये दिन सुर्खियाँ बन रहे हैं  जिनमें इंसानों ने हैवानियत से भरे काम किये हैं | कुछ साल पहले नॉएडा के निठारी काण्ड ने भी यूँ ही देश को दहला दिया था | जिसमें बच्चों से दुराचार एवं ह्त्या कर उन्हें  दफना दिया जाता था |  देश की राजधानी  में निर्भया के साथ हुई  हैवानियत लोग आज भी नहीं भूले हैं ।  हाल ही में  दिल्ली में ही स्कूली बच्चियों  को  दुष्कर्म का शिकार बनाने वाले  सीरियल रेपिस्ट ने अपना जुर्म कबूल करते हुए बताया कि पिछले 12 सालों के दौरान उसने 600 से ज्यादा बच्चियों को अपना शिकार बनाया।  वह इन  बच्चियों को यह कहकर फंसाता था कि उसे कुछ चीजें देने के लिए उनके माता.पिता द्वारा भेजा गया है। यह कुत्सित मानसिकता वाला व्यक्ति 38 साल है और 3 लड़कियों समेत 5 बच्चों का पिता है। कैसी मानसिकता होगी कि यह इंसान ऐसे कुकर्मों को अंजाम देने ही अपने शहर से दिल्ली आता था | कुछ समय पहले राजस्थान से सामने आये एक मामले में  गैंगरेप के बाद युवती की रीढ़ की हड्डी-पसलियां तोड़ी और उसकी आँख भी फोड़ दी  गई । हाल ही में बेंगलुरु से सामने  सीसीटीवी वीडियो  ने भी  समाज को शर्मसार किया ही था । जिसमें रात काे घर जा रही एक लड़की के साथ उसके घर से महज कुछ दूरी पर ही दो बाइक सवार लड़के  जबरदस्ती करने की कोशिश कर रहे थे । ऐसी कितनी ही घटनाएं सोचने को विवश करती हैं कि आखिर हम किस ओर जा रहे हैं ? अफसोसजनक ही  बीमार मन के इस समाज में ऐसी  घटनाएं अब आम हो चली हैं । कुछ समय पहले  हैदराबाद  में हुए एक वीभत्स मामले में पांच लड़कों ने अपने इंसान न होने का परिचय  दिया और कुत्ते के बच्चों को जिंदा आग के हवाले कर इन सिरफिरों ने इस पूरी घटना का वीडियो भी सोशल मीडिया पर शेयर किया ।  इनकी हैवानियत को जानने के बाद शायद इन्हें जानवर  भी नहीं  कहा  जा सकता ।  बीते साल ही पेरूंबवूर में रहने वाली एक  छात्रा के घर में घुस कर अपराधी ने बलात्कार और बेहद बर्बर तरीके से हत्या को अंजाम दिया, चाकू से उसकी आंतें बाहर निकाल दीं। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि अपराधी किस बर्बर प्रकृति का होगा ? ऐसी घटनाओं की लम्बी फ़ेहरिस्त तो है ही आये दिन इनका होना भी जारी  है | अफ़सोस  कि सामाजिक नियम व नैतिकता ही नहीं कानून का भय भी ऐसी वारदातों को होने से नहीं रोक  पा रहा है । इसका सीधा सा कारण यही है कि कुत्सित मानसिकता और विकृत सोच अब व्यवहार में परिलक्षित होने लगी है | नतीजतन  समाज का परिवेश ही नहीं रिश्ते-नाते भी बिखराव और हिंसात्मक सनक का शिकार बन रहे हैं | 

मन को उद्वेलित करने वाले ये मामले केवल शारीरिक-मानसिक शोषण या हत्या की घटनायें भर नहीं हैं । ये हमारे बीमार होते  समाज का आइना हैं । जिसमें मनुष्यता के मामने कुछ नहीं बचे हैं । यह एक कटु सच है कि समाज  में ऐसी हैवानियत भरी सोच वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है जो ना अपनों को बक्श रहे हैं और ना दूसरों को । दूषित हो चले इस समाजिक परिवेश में ना बच्चे सुरक्षित हैं और ना ही महिलायें । ना बुजुर्गों का मान बचा है और ना ही इंसानियत की सोच । इससे ज्यादा अफसोसजनक क्या हो सकता है जानवरों के  साथ भी इन्सान  बर्बरता  और  हैवानियत भरा व्यवहार कर रहा है | जाने  कैसी हिंसात्मक सनक है जो हर उम्र, हर वर्ग को अपनी चपेट में ले रही है | ऐसे में  घर से लेकर सड़क तक, दिनोंदिन बढती अराजकता अनगिनत सवाल खड़े कर आ रही है | बीते कुछ सालों में हमारे यहाँ शिक्षित लोगों के आंकड़े भी हैं और जागरूकता के साधन भी | अंतरजाल पर निर्बाध फैली अश्लीलता, शोषण के तरीके, आत्महत्या के तरीके, जैसी बातें लोगों को मनोदैहिक बीमारियों का शिकार बना रही हैं | गौरतलब है कि भोपाल में हुए इस मामले में भी आरोपी ने क्राइम सीरियल देखकर ही मां  और पिता की हत्या की भी योजना बनाई थी।  हाल ही में कर्नाटक में हुए एक सर्वेक्षण के मुताबिक पोर्न के ज़रिये हर साल लगभग 13,000 लोगों की मानसिकता इतनी दूषित हो रही है कि दुष्कर्म का विचार उनके मन- मस्तिष्क में जगह बना रहा है | इस सर्वेक्षण के नतीजे  इस ओर इशारा करते हैं कि  पोर्न देखने और दुष्कर्म  की मानसिकता को बढ़ावा मिलने में सीध सीधा सम्बन्ध है |   दुःखद ही है कि विकास और तकनीकी विस्तार की दौड़ में यह नकारात्मकता हमारे परिवेश का अनचाहा हिस्सा बन बैठी है ? विचारणीय तो यह भी है कि अगर बदलाव है भी तो इंसान की सुरक्षा और बेहतरी के लिए क्यों नहीं ? ऐसी घटनायें साफ़ तौर पर बताती  हैं कि  बढ़ती हुई हिंसक प्रवृत्ति धीरे-धीरे अधिकाधिक उग्र होती चली जा रही है  ।  तभी तो ऐसे मामले सभ्य समाज के साथ ही कानून व्यवस्था के लिए भी चुनौती  बन  रहे  हैं | 

पारिवारिक बिखराव, अकेलेपन और स्वार्थ भरी सोच ने अब मानवीयता की सोच ही छीन  ली है | आंकड़े बताते हैं कि गांवों से लेकर शहरों तक. हमारे देश में  पारिवारिक हत्याओं के लिये ज़मीन जायदाद सबसे प्रमुख कारणों में से एक है । इसके अलावा अवैध सम्बन्ध और  ऑनर किलिंग जैसी वजहों के चलते भी कई भयावह मामले सामने आये हैं । महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यहार के मामले तो घर हो या बाहर वाकई बर्बर और चिंतनीय हैं । ऐसे में आँकड़ों में शिक्षित और सभ्य  होते समाज का यह असभ्य चेहरा वाकई डरावना है |  किसी भी सभ्य और संवेदनशील समाज के लिए ऐसे मामले सदमे से कम होने भी नहीं  चाहियें । क्योंकि इन्हें गंभीरता से ना लिया जाना जड़ें जमाती इस कुत्सित सोच और समाज के बीमार होते चेहरे को नज़रंदाज़ करना होगा | हमें यह स्वीकार करना होगा कि व्यक्तिगत,  सामाजिक और प्रशासनिक, हर स्तर पर हमारे सामाजिक संस्कार वाले देश में अब सामाजिक अहंकार फैल रहा है। मनुष्यता से परे एक सामन्ती सोच आम से लेकर ख़ास तक, सबके मन में जड़ें जमा रही है | नकारात्मक और हिंसक विचार और व्यवहार का यह विस्तार वाकई  चिंतनीय है | 

11 comments:

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन - भारत कोकिला से हिन्दी ब्लॉग कोकिला और विश्व रेडियो दिवस में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

कौशल लाल said...

विचारणीय ,भूत और वर्तमान के मूलो द्वन्द से ये विकृति पैदा हो रही है।।।।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

जी ...यही देखने में आ रहा

डॉ. मोनिका शर्मा said...

हार्दिक आभार आपका

संध्या शर्मा said...

सही कहा है आपने! शिक्षित समाज का घिनौना और बेहद डरावना चेहरा है उदयन, जो पूरे समाज के लिए अत्यंत हानिकारक है...

kewal tiwari केवल तिवारी said...

मोनिका जी मैं दैनिक ट्रिब्यून में कार्यरत हूं। हमारे यहां शनिवार को एक कॉलम आता है ब्लॉग चर्चा। इस बार हम आपके ब्लॉग से एक पीस ले रहे हैं। अापके और ब्लॉग के नाम के साथ। आप www.dainiktribuneonline.com पर भी इसे देख सकते हैं।
केवल तिवारी : kevaltiwari@gmail.com

डॉ. मोनिका शर्मा said...

हार्दिक आभार आपका

डॉ. मोनिका शर्मा said...

जी ... वाकई दुखद और हानिकारक

शारदा अरोरा said...

bahut sahi likha hai...chinta ka vishy hai...koi raah bhi nikalni chahiye...

Kailash Sharma said...

बहुत दुखद स्तिथि है...और इसके समाधान का भी कोई उपाय नहीं दिखाई दे रहा...

तरूण कुमार said...

पारिवारिक विखराव , संस्कारों का अभाव, जीवन में मिली हार मानव को अपराधी बना देती हैं।

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