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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

25 March 2012

गणगौर .....लोकजीवन में बसा नारीत्व का उत्सव

राजस्थान के बारे कहा जाता है यहाँ इतने तीज-त्योंहार  होते हैं कि यहाँ की महिलाओं के हाथों की मेहंदी का रंग कभी फीका नहीं पड़ता । इनमें तीज और गणगौर तो दो ऐसे विशेष पर्व हैं जो महिलाएं ही मनाती हैं ।  गणगौर का त्योंहार होली के दूसरे दिन से प्रारंभ होकर पूरे सलाह दिन तक चलता है ।

शिव गौरी के दाम्पत्य की पूजा का पर्व गणगौर मानो प्रकृति का उत्सव है । माटी की गणगौर बनती हैं और खेतों से दूब और  जल  भरे  कलश  लाकर  उनकी पूजा की जाती है । मुझे यह एक अकेला ऐसा त्यौहार लगता है जब सब सखिया रळ-मिल हर्षित उल्लासित हो माँ गौरी से सुखी और समृद्ध जीवन के लिए प्रार्थना की जाती हैं । 

आज भले ही समय बहुत बदल गया है पर मैंने स्वयं इस त्योंहार  को अपने गाँव में कुछ इस तरह मनाया है कि बहू -बेटियां पूरे हक़ से चाहे जिस खेत में जाकर दूब ला सकतीं थीं । कोई रोक-टोक नहीं होती थी । गीत गातीं , नाचती और देर रात तक बिना किसी भय के गाँव भर में घूमती थीं ।

पीहर से मिली मेरी चुनरी ...जहाँ भी रहूँ साथ रहती है 
गणगौर पूजा के लिए नवविवाहित युवतियां पीहर आती हैं । शायद इसीलिए गणगौर के गीतों में पीहर का प्रेम, माता -पिता के आँगन में बेटी का आल्हादित होना और अपने ससुराल एवं जीवन साथी की प्रीत से जुड़े सारे रंग भरे  हैं । गणगौर पूजा में तो ये लोकगीत ही  मन्त्रों की तरह गाये जाते हैं । पूजा के हर समय और हर परम्परा के लिए गीत बने हुए हैं, भावों की मिठास और मनुहार लिए ।

महिलाएं सज-संवर कर सुहाग चिन्हों को धारण किये हंसी ठिठोली करती हुईं  पूजा के लिए एकत्रित होती हैं । पूजा के समय स्त्रियाँ एक खास तरह की चुनरी भी पहनती है ।

सोलह दिन तक उल्लास और उमंग के साथ चलने वाला यह पारंपरिक पर्व सही मायने में स्त्रीत्व  का उत्सव लगता है मुझे तो । एक महिला के ह्रदय के हर भाव को खुलकर कहने, खुलकर जीने का उत्सव । विवाह  के बाद पहली गणगौर मनाने के लिए  ब्याही बेटियों का पीहर आना और सब कुछ भूलकर फिर से अपनी सखियों संग उल्लास में खो जाना रिश्तों को नया जीवन दे जाता है ।

55 comments:

Smart Indian said...

सुन्दर जानकारी, आभार!

दिनेशराय द्विवेदी said...

बहुत प्यारा त्यौहार है गणगौर, बेटी दो दिन के लिए आई हुई थी। उस ने बड़े शौक से परसों मेहंदी लगवाई और कल दोनों माँ बैटी गणगौर पूजने गईं। कल सुबह सूर्योदय से लेकर देर रात तक नगर में सब तरफ महिलाओं के चहकने की आवाजें सुनने को मिलीं।
हम तो बस इस मौके पर बनने वाले गुणों को खाने के शौकीन हैं। सो कल पूजा के बाद से उपलब्ध हो गए हैं। उन के स्वाद के सामने कोटा की कचौड़ियाँ और सब भांति का नमकीन फीका पड़ गया।

Deepak Shukla said...

Monica ji...

Etni sundar jaankari ke liye abhaar...kabhi Rajasthan gaya nahi par ab mera sthantaran shayad Rajasthan hi hone wala hai...wahan ke rang agar Eshwar chahega to jald hi hum bhi dekhenge...

Saadar...

Deepak Shukla...

Madhuresh said...

लोक-पारंपरिक तीज-त्योहारों की बातें पढ़कर मन थोड़ा थोड़ा nostalgic हो गया.. अच्छा लगा पढ़ना :)

प्रवीण पाण्डेय said...

लोकजीवन में बसा त्योहारों का रंग।

सुज्ञ said...

गणगौर एक ऐसा विशिष्ट त्योहार जिसमें नारी शक्ति को समाज से भरपूर आदर सम्मान व स्नेह प्राप्त होता है। जैसे गौरी के रूप में समस्त पृथ्वी पर नारीशक्ति के महात्मय को स्थापित किया जा रहा है।

गणगौर पर बेहद सुन्दर जानकारी!!

पी.एस .भाकुनी said...

आज भले ही समय बहुत बदल गया है पर मैंने स्वयं इस त्योंहार को अपने गाँव में कुछ इस तरह मनाया है कि बहू -बेटियां पूरे हक़ से चाहे जिस खेत में जाकर दूब ला सकतीं थीं । कोई रोक-टोक नहीं होती थी । गीत गातीं , नाचती और देर रात तक बिना किसी भय के गाँव भर में घूमती थीं ।.............गणगौर मेले की जानकारी साझा करने हेतु आभार........

Dinesh pareek said...

बहुत बढ़िया,बेहतरीन करारी अच्छी प्रस्तुति,..
नवरात्र के ४दिन की आपको बहुत बहुत सुभकामनाये माँ आपके सपनो को साकार करे
आप ने अपना कीमती वकत निकल के मेरे ब्लॉग पे आये इस के लिए तहे दिल से मैं आपका शुकर गुजर हु आपका बहुत बहुत धन्यवाद्
मेरी एक नई मेरा बचपन
कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: मेरा बचपन:
http://vangaydinesh.blogspot.in/2012/03/blog-post_23.html
दिनेश पारीक

Ayodhya Prasad said...

अच्छा लगा पढकर !

मेरा नया पोस्ट
 प्रेम और भक्ति में हिसाब !

दीपिका रानी said...

अच्छी जानकारी दी आपने..शुक्रिया

सदा said...

बहुत ही विस्‍तृत रूप से आपने इस उत्‍सव की जानकारी दी है ...आभार ।

संध्या शर्मा said...

गणगौर पर बेहद सुन्दर जानकारी और आपकी सुन्दर चुनरी बहुत अच्छी लगी... thanx :)

Shekhar Suman said...

:)

Shikha Kaushik said...

DIL SE LIKHA HAI ...BAHUT PYARI YADON KO SAJHA KIYA HAI .....BAHUT SARTHAK POST HAI JO YE BATATI HAI KI HAMARI SANSKRITI ME STRI-PRADHAN UTSAVON KI BHARMAR HAI .GANGAUR KI HARDIK SHUBHKAMNAYEN .
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Anupama Tripathi said...

मोनिका जी त्यौहार हमें खुशियाँ देते हैं और हमारे जीवन को एक दिशा भी .....!!

बहुत सुंदर और सार्थक आलेख ...!!

गणगौर की बधाई ...!!

अशोक सलूजा said...

गणगौर के त्यौहार पर बधाई स्वीकारें !
इस त्यौहार के बारे में जानकारी अच्छी लगी !
आभार!

Bhawna Kukreti said...

"यहाँ इतने तीज-त्योंहार होते हैं कि यहाँ की महिलाओं के हाथों की मेहंदी का रंग कभी फीका नहीं पड़ता । "

सुन्दर!!!

ANULATA RAJ NAIR said...

हमारी एक सखी की बेटी की पहली गणगौर थी....
रौनक देखने लायक थी...

प्यारी पोस्ट..
शुभकामनाएँ.

Suresh kumar said...

आपने गणगौर पर बेहद सुन्दर जानकारी दी है |वैसे मुझे इस त्योहार के बारे में नहीं पता था |जानकारी के लिए धन्यवाद् |

Pallavi saxena said...

यही तो है अपनी भारतीय संस्कृति की पहचान जहां लगभग हर रोज़ किसी न किसी प्रांत मे कोई न कोई त्यौहार मनाया जाता है। लाख गम और परेशानियों का सामना करने के बावजूद भी त्यौहारों में कोई कमी नज़र नहीं आती.... त्योहार का रंग लिए खूबसूरत एवं जानकारी पूर्ण आलेख आभार...

G.N.SHAW said...

मोनिका जी - राजस्थान वास्तव में अनेक रूपों का संगम और यहाँ की संस्कृति अनमोल है , जो विश्व के किसी क्षोर पर नहीं मिलती ! गडगौर के बारे में जानकारी मिली ! बहुत सुन्दर !

गिरधारी खंकरियाल said...

यही तो हमारे भारतवर्ष की अमूल्य धरोहरें हैं

shikha varshney said...

अच्छी जानकारी .

राजन said...

इसीलिए तो राजस्थान को रगीला राजस्थान कहा जाता हैं.गणगौर पर पुरूषों को करने के लिए कुछ नहीं होता और पहले सोचता भी था कि महिलाएँ इस त्योहार को लेकर इतनी उत्साहित क्यों रहती हैं लेकिन आपकी पोस्ट पढकर पता चला कि क्यों ये त्योहार महिलाओं के लिए इतना खास हैं.बढिया जानकारी.

virendra sharma said...

के लिए एकत्रित होती हैं । पूजा के समय स्त्रियाँ एक खास तरह की चुनरी भी पहनती है ।

सोलह दिन तक उल्लास और उमंग के साथ चलने वाला यह पारंपरिक पर्व सही मायने में स्त्रीत्व का उत्सव लगता है मुझे तो । एक महिला के ह्रदय के हर भाव को खुलकर कहने, खुलकर जीने का उत्सव । विवाह के बाद पहली गणगौर मनाने के लिए ब्याही बेटियों का पीहर आना और सब कुछ भूलकर फिर से अपनी सखियों संग उल्लास में खो जाना रिश्तों को नया जीवन दे जाता है ।
सही कहा आपने .अतीत की सरसता वर्तमान का श्रृंगार करती है .

Kailash Sharma said...

ये त्यौहार लोक जीवन में स्फूर्ती भार देते हैं..बहुत सुंदर प्रस्तुति...

http://aadhyatmikyatra.blogspot.in/

वाणी गीत said...

गणगौर की छटा ही निराली है राजस्थान में ...
पूर्णतः महिलाओं का ही यह त्यौहार उनके लिए अनमोल है ...

Ramakant Singh said...

बहुत ही सुन्दर जानकारी सहित गणगौर का आनंदमय लेख .
धन्यवाद् . बस ऐसे ही भारत की विविधता है .
छत्तीसगढ़ भी अपने लोक संस्कृति भाषा बोली त्यौहार तीज पहनावा मिठास मेला मड़ाई नदी मंदिर के लिए प्रसिद्द है और समृद्ध .
आपका स्वागत हमारी धरती पर .............
लेखों की जानकारी अकलतरा.ब्लॉग स्पोट.कॉम पर

Maheshwari kaneri said...

लोकजीवन में रचा बसा है त्योहारों का रंग ..सुन्दर जानकारी के लिए आभार...

Dr Xitija Singh said...

हालाँकि मैं जोधपुर रही हूँ ढाई साल ... मगर इस त्यौहार के बारे मैं जानकारी नहीं है ... आपसे जानकार अच्छा लगा ... धन्यवाद ... !!

रश्मि प्रभा... said...

बहुत अच्छी जानकारी ...

संतोष त्रिवेदी said...

जब तक गाँव में रहे,इस त्यौहार को सुनते और देखते रहे.अब तो आपने याद दिलाया !

Dr. sandhya tiwari said...

बहुत ही अच्छी जानकारी मिली --------धन्यवाद

Shalini kaushik said...

bahut achchhi jankari aabhar. .हे!माँ मेरे जिले के नेता को सी .एम् .बना दो. aur padhen.498-a I.P.C

Arvind Mishra said...

शिव गौरी के दाम्पत्य की पूजा का पर्व गणगौर के बारे में आपने मेरी जानकारी में वृद्धि की -आभार!

मनोज कुमार said...

इस उत्सव के बारे में विस्तार से आज जानकारी मिली।

Satish Saxena said...

अनूठी जानकारी दी आपने ...
आभार आपका !

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

उत्तर भारत के ग्रामीण अंचलों में अभी भी मनाई जाती है, शहरों में इसका चलन खत्म सा हो रहा है.

Atul Shrivastava said...

आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्टस पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं....
आपकी एक टिप्‍पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......

Vandana Ramasingh said...

संस्कृति और त्यौहार यूँ ही दिलों में अपना स्थान बनाए रहें ....बढ़िया प्रस्तुतिकरण

Kunwar Kusumesh said...

गणगौर पर्व के बारे में मुझे पहले नहीं पता था.
आभार.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

उजियारा सुख शांति का, जगमग करे समीप।
भारत भूमि सदा रहे, त्यौहारों का द्वीप॥


बढ़िया जानकारी देती पोस्ट।
सादर।

Coral said...

त्यौहार हमें अपनी सस्कृति के साथ जोडकर रखते और खुशिया देते है ..बहुत सुन्दर जानकारी!

amit kumar srivastava said...

'नारी' और 'उत्सव' तो पर्यायवाची ही होते हैं ...

Anonymous said...

शुक्रिया मोनिका जी इस जानकारी को साझा करने का.....जयपुर गया था तब इस उत्सव के बारे में सुना था और संग्राहलय में पूरी पोशाक पहने एक गुडिया देखी थी ।

Dimple Maheshwari said...

mummyji ne btaya tha ke wo barmer me thi tb kis tarah se is tyohar ko mnaya karti thi...par aapko padh kr aur bhi achha lga monika ji..

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

मोनिका जी... बहुत ही सुन्दर पोस्ट ... अपने देश के ये त्यौहार हर किसी के अंदर जोश और उल्लास भरे रहते है ... सुन्दर त्यौहार

मेरा मन पंछी सा said...

बहुत ही अच्छी जानकारी दी है..
अच्छा लगा पढ़कर...
धन्यवाद :-)

मेरा मन पंछी सा said...

बहुत ही अच्छी जानकारी दी है..
अच्छा लगा पढ़कर...
धन्यवाद :-)

संतोष पाण्डेय said...

ढेर सारे राजस्थानी मित्रों की वजह से यह उत्सव मेरे लिए अनजाना नहीं. निश्चित ही यह स्त्रीत्व का उत्सव है.

ऋता शेखर 'मधु' said...

बहुत सजीव वर्णन...लगा जैसे आँखों से ही देख रहे हों...चुनरी और इस पर्व से जुड़ी यादें आपकी धरोहर हैं...साझा करने के लिए आभार!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

वाह !!!!! बहुत सुंदर आलेख ,अच्छा लगा

MY RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,

कुमार राधारमण said...

समाचारों में बहुत छोटी सी खबर छपती है यहां। पहली बार इतने विस्तार से जाना।

RADHIKA said...

हमारे देश में सारे त्यौहार बहुत ही सुंदर तरीके से मनाये जाते हैं ...सह कहूँ तो मुझे लगता हैं यह त्यौहार ही हैं जो आज भी हमारे जीवन में कुछ नए रंग नया उत्साह भर देते हैं ..अच्छी लगी आपकी पोस्ट ..गनगौर हम मराठी लोगो के यहाँ भी बिठाई जाती हैं ..लगभग महीने भर उसकी पूजा और हल्दी कुमकुम होता हैं

आत्ममुग्धा said...

सुखद लेख, आपकी चुनरी (ओढ़ना पीला )देखकर अपनी परम्पराओं पे अभिमान हो आया ....रंग भरे है हमारी संस्कृति में ....बहुत बहुत धन्यवाद

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