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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

07 April 2011

महिलाओं की सेहत ही ना रहे........तो सशक्तीकरण कैसा ...?



विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार स्वास्थ्य का अर्थ मात्र रोगों का अभाव नहीं बल्कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की स्वस्थता की सकारात्मक अवस्था है। यदि इस परिभाषा को आधार बनाया जाए तो हमारे समाज में महिलाओं के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के हालात काफी चिंताजनक है। समाज की इस आधी आबादी को शारीरिक बीमारियां तो हैं ही महिलाओं में मानसिक व्याधियों वाले मरीजों के आंकङे भी चौंकानें वाले हैं। घर और बाहर दोनों की जिम्मेदारी उठा रहीं महिलाएं भावनात्मक और मानसिक स्तर पर भी कमजोर होती जा रहीं हैं।


घर-परिवार के हर सदस्य की सेहत का ख्याल रखने वाली महिलाएं खुद अपने स्वास्थ्य को हमेशा नजरअंदाज कर देती हैं , स्वास्थ्य की संभाल की फेहरिस्त में खुद को हमेशा दोयम दर्जे पर ही रखती हैं। हैरानी की बात तो यह है कि घर के बाकी सदस्य भी महिलाओं की सेहत को खास तवज्जोह नहीं देते। जी हाँ यह सच है की जिस तरह एक महिला चाहे माँ हो या पत्नी घर के अन्य सदस्यों की सेहत का खानपान से लाकर दवा और देखभाल तक ख्याल करती है उसी तरह घर के सदस्य महिलाओं की तकलीफों के प्रति इतने जागरूक नहीं होते । महिलाओं को समाज में हमेशा से दोयम दर्जे पर ही रखा गया है। यही सोच उनकी सेहत पर भी लागू होती नजर आती है।


हमारे घरों में हालात कुछ ऐसे हैं की उनसे कोई पूछता नहीं और वे किसी को बताती नहीं। महिलाएं अपनी शारीरिक और मानसिक तकलीफों के बारे में खुलकर बात नहीं कर पाती। नतीजतन उन्हें न तो सही समय पर इलाज मिल पाता है और न ही सलाह। देश के ग्रामीण इलाकों में तो स्थितियां और भी बदतर हैं । वहां तो जागरुकता की आज भी इतनी कमी है कि महिलाएं कई बार शारीरिक और मानसिक विकारों के इलाज के लिए नीम हकीमों में उलझ जाती है।


चाहे गांव हो या शहर ऐसे कई किस्से आपको सुनने, जानने को मिल जायेंगें कि जब तक महिलाएं डॉक्टर पास इलाज के लिए आती हैं तब तक ज्यादातर मामलों में बीमारी काफी बढ चुकी होती है। जिसकी सबसे बड़ी वजह जानकारी की कमी और पारिवारिक सहयोग का अभाव है। आज भी अनगिनत औरतों के साथ उनके पति हिंसात्मक व्यवहार करते हैं । यहां इस विषय में बात इसलिए कर रही हूं क्योंकि घरेलू हिंसा महिला स्वास्थ्य से एक जुड़ा अंतरंग पहलू है। चारदीवारी के भीतर महिलाओं के साथ होने वाला यह बर्ताव उन्हें सामाजिक, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर सशक्त बनाने की सारी कवायदों को तो बेमानी साबित करता ही है उन्हें कई तरह की मनोवैज्ञानिक बीमारियों की ओर भी धकेलता है।


हमारे परिवारों में महिलाएं अपने अंदरूनी शारीरिक बदलावों और समस्याओं से भीतर ही भीतर जूझती रहती है। इस तरह मन ही मन जूझना और शारीरिक तकलीफ होने पर भी चुप रहना उनकी आदत बन सी जाती है। जिसके चलते शारीरिक व्याधियों तो पहले से होती ही हैं महिलाओं का मानसिक स्वास्थ्य भी बिगडऩे लगता है। यों भी पुरूषों की अपेक्षा महिलाएं मानसिक बीमारी की ज्यादा शिकार होती है। यदि मानसिक बीमारी में महिला एवं पुरूषों का अनुपात देखा जाए तो पुरूषों की अपेक्षा दोगुनी संख्या में महिला मरीज पाई जाती हैं।


मैं मानती हूं कि अच्छी सेहत के बिना महिलाओं के सशक्तीकरण की सोच को सार्थक नहीं किया जा सकता। महिलाओं के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में आ रही गिरावट की वजह चाहे जो भी हो, आज के हालात भविष्य में हमारे पूरे सामाजिक और पारिवारिक ढांचे के चरामरा जाने के खतरे की ओर भी संकेत करते नजर आ रहे हैं। महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने के लिए हर स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि सेहत की संभाल में पिछङती महिलाएं अन्य क्षेत्रों में कितना आगे बढ पायेंगीं......? अगर उनका स्वास्थ्य ही ना रहे तो सशक्तीकरण कैसे संभव है......?

104 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

माँ स्वस्थ रहे तो परिवार भी स्वस्थ रहे, वही सही सशक्तीकरण है समाज का।

सुज्ञ said...

सही कहा, स्वस्थ नारी पर ही नारी सशक्तिकरण का स्वास्थ्य निर्भर है। और उसी से स्वस्थ समाज का निर्माण सम्भव है।

Minoo Bhagia said...

sach hai monika

Satish Saxena said...

वीण भाई से सहमत हूँ अगर माँ ही स्वस्थ नहीं तो हम कहाँ ...???

Arvind Mishra said...

बात तो बड़ी माकूल है !

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@ Sateeshji
सतीश जी कि टिप्पणी में प्रवीण पाण्डेय जी की टिप्पणी का सन्दर्भ है।

रश्मि प्रभा... said...

bilkul sahi ...

Anonymous said...

bahut hi achhi baat kahi hai aapne.aaj b mahilaayo ko unke pariwaar me utni care nahi mil paati jitna vo apne pariwaar k liye karti hai. kaamkaaji mahilaao k sath ek or badi dikkat ye hai k aaj kaafi sankhya me kaamkaaji mahilaaye apne pati se ya fir apne sasuraal se dur hoti dikhaayi de rahi hai. ek single divorcee working women is becoming very common now a days.

आकाश सिंह said...

मुझे तो लगता है मोनिका दीदी पुरे देश में महिला सशक्तिकरण से पहले, महिला स्वास्थ्यिकरण का अभियान चलाया जाना चाहिए |
स्वास्थ्य है तभी सबकुछ है | अच्छी पोस्ट है |
www.akashsingh307.blogspot.com

Suman said...

sahi kaha rahi hai....

शिक्षामित्र said...

इस समस्या की जड़ भी आर्थिक स्थिति है।

वाणी गीत said...

एक स्वस्थ मन स्वस्थ शरीर में ही निवास करता है , मगर यह सच है की हम महिलाएं अपने स्वास्थ्य पर इतना ध्यान नहीं देती ...
मानसिक बीमारियों की शिकार महिलाएं ही ज्यादा होती है , ये सच है ...क्योंकि पारिवारिक और सामाजिक दबाव के कारण वे खुद को अभिव्यक्त करने से कतराती है ...और यह घुटन मानसिक बीमारियों के रूप में नजर आती है !

रचना said...

अगर उनका स्वास्थ्य ही ना रहे तो सशक्तिकरण कैसे संभव है.

monica
the woman are conditioned to think that their life has meaning only till the time their father , brother , husband and son are "fit and healthy" so the woman never thinks about herself .
still in 90 % indian homes
a mother gives more care to son then daughter

we need to educate woman we need to empower them then all such problems will be solved

first education
then financial independence
will give woman the power to think as of now she is not able to think let alone decide

Yashwant R. B. Mathur said...

आपका लेख बहुत विचारणीय है.

सादर

कुमार राधारमण said...

महिलाएं हमारी आधी आबादी हैं। उनका स्वास्थ्य सीधे-सीधे हमारे देश के विकास से जुड़ा मसला है।

अन्तर सोहिल said...

मानसिक और शारीरिक तौर पर स्वस्थ नारी से ही स्वस्थ समाज बन सकता है।

प्रणाम

Dr (Miss) Sharad Singh said...

आपने बहुत बुनियादी मुद्दा उठाया है...यह यथार्थ है कि महिलाएं खुद अपने स्वास्थ्य को हमेशा नजरअंदाज कर देती हैं...

अत्यंत तथ्यपरक एवं सारगर्भित लेख के लिये बहुत-बहुत आभार !

रूप said...

बहुत सही . महिलाओं की सेहत पर ही तो पूरा परिवार/संसार टिका है . पर ५०% महिलाएं अपनी सेहत की फिक्र बिलकुल नही करतीं. स्वास्थ्य दिवस पर सामयिक पोस्ट. बधाई !

सदा said...

बिल्‍कुल सही कहा है आपने ...बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

ashish said...

स्त्री सशक्तिकरण समाज के हित में है और आधी दुनिया का उत्तम स्वास्थ्य हम सबके हित में है .

आनंद said...

कितना सटीक मुद्दा उठाया है आपने मोनिका जी ....सेहत सशक्तीकरण से पहले ! साधुवाद आपको....पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ.....सोंच रहा हूँ देर कर दिया ..अब से सिलसिला बना रहेगा धन्यवाद !

Anonymous said...

मोनिका जी,

एक और सार्थक मुद्दे पर आपकी पहल का धन्यवाद.....बहुत सही बातें उठाई हैं आपने........मुझे तो ये लगता है की इसके लिए महिलाओं को खुद ही जाग्रत होना होगा......उन्हें अपना ध्यान रखने की ओर भी सोचना होगा.......आपकी इस बात से मैं सहमत हूँ की मानसिक रोगियों में महिलाएं ज्यादा होती हैं.....पर शायद डिप्रेशन का शिकार आज के माहौल में स्त्री और पुरुष दोनों ही हैं.....इसकी वजह भौतिकता का बढ़ना भी है......आज लोग अपने को असुरक्षित महसूस करते हैं........घरेलू हिंसा की जो बात आपने कही वो शत-प्रतिशत सही है......मैं इसके सख्त खिलाफ हूँ मुझे ऐसे लोगों से सख्त नफरत है जो औरत को बेबस और लाचार समझते हैं और उसके साथ हिंसात्मक व्यवहार करते हैं..........बहुत ही सटीक और सार्थक लेखा है आपका........मेरा सलाम है आपको |

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सटीक और सार्थक लेख ...महिलाएं सच ही पूरे परिवार का ख़याल रखती हैं लेकिन खुद के स्वास्थ्य से लापरवाही करती हैं ...घर में सबका सामंजस्य बनाये रखने के लिए मानसिक कष्ट के दौर से भी गुज़रती हैं ...

जागरूक करने वाली पोस्ट

आशुतोष की कलम said...

स्वस्थ रहने का प्रयास भी तो महिला को करना होगा..
इसके लिए जागरूकता जरुरी है महिलाओं में ..
जागरूकता का प्रयास करना जरुरी है..स्वास्थ्य खुद ही ठीक हो जाएगा

shikha varshney said...

हैल्थ इज वेल्थ ...बहुत सही बात कही आपने.एक स्वस्थ माँ पर ही पूरे समाज का स्वस्थ निर्माण टिका होता है.

Sanwariya said...

bahut badhiya

http://sanwariyaa.blogspot.com/2011/02/blog-post_6845.html

मदन शर्मा said...

सच कहा है स्वस्थ नारी पर ही नारी सशक्तिकरण का स्वास्थ्य निर्भर है। और उसी से स्वस्थ समाज का निर्माण सम्भव है।
बेहतरीन आलेख।

मदन शर्मा said...

सच कहा है स्वस्थ नारी पर ही नारी सशक्तिकरण का स्वास्थ्य निर्भर है। और उसी से स्वस्थ समाज का निर्माण सम्भव है।
बेहतरीन आलेख।

Er. सत्यम शिवम said...

आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (09.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

Rajesh Kumari said...

sahi kaha hai aapne naari hi ghar ka mukhya stambh hoti hai.yadi vo hi swasth nahi hogi to hum kaise achche parivaar,achche samaj ki rachna ker sakengi.apni health ke prati to hume hi sachet hona chahiye.

rashmi ravija said...

बहुत ही सार्थक आलेख...
महिलाओं की सोच ही यही है...कि उनका जीवन सिर्फ दूसरों के लिए है...हर पीड़ा वे चुपचाप सह जाती हैं...और अपने स्वास्थ्य का तो बिलकुल ही ख्याल नहीं रखती...
और ये मानसिकता पीढ़ी दर पीढ़ी चली आती है....इसमें अब बदलाव आने चाहियें

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ ! बिना स्वस्थ नारी के नारी सशक्तिकरण की बात बेमानी है !
आभार !

naresh singh said...

स्वस्थ नारी उज्जवल भारत

गौरव शर्मा "भारतीय" said...

वाकई नारी शक्ति से ही समाज और परिवार का अस्तित्व है अगर वही स्वस्थ न रहे तो हम स्वस्थ समाज और परिवार की कल्पना नहीं कर सकते...आपकी बातों से शत प्रतिशत सहमत !!

BrijmohanShrivastava said...

डाक्टर साहब आपका कहना बिल्कुल सत्य है कि परिवार के सदस्य इनके प्रति जागरुक नहीं रहते । मानसिक विकार में तो नीम हकीम ही नहीं देवी देवताओं ,आदि के चक्कर में फंस जाते है। थोडा घर से बाहर निकलें किसी से दो बातें करे मानसिक रुप से कुछ आराम मिले मगर नहीं चौबीस ही घन्टे चारदीवारी में बन्द। आपका कहना सत्य है ज्यादातर पुरुष की तुलना मे इन्हे ज्यादा बीमारी घेरती है। सही है जब स्वास्थ्य ही नहीं तो सशक्तिकरण कैसा ।

Vishu Singh Disodia said...

बिलकुल सही मोनिका जी मैं आपकी बात से बहूत सहमत हु ......................

धन्यवाद

हरकीरत ' हीर' said...

हमारे समाज में महिलाओं के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के हालात काफी चिंताजनक है।

अशोक जी की बात से सहमत हूँ ....महिला सशक्तिकरण से पहले, महिला स्वास्थ्यिकरण का अभियान चलाया जाना चाहिए |

अनामिका की सदायें ...... said...

sach kaha aapne istriya khud ko swasthye ke bare me doyam darze par rakhti hain...picchhde ilake ya anpadh istriyon ki to baat hi kya aaj ki padhi-likhi naukri-pesha istri jagruk hote hue bhi khud ke ilaz ke liye kotahi baratati hai. aur sach hai ki sehat ke bina sashaktikaran kaisa? hame apne liye khud hi jagruk hona padega aur apni behno ko bhi samjhana hoga.

sarthak post.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

उनके बिना भी कुछ हो सकता है क्या...उन्हें तो स्वस्थ और सबल होना ही चाहिये..

प्रतुल वशिष्ठ said...

सही शब्द सशक्तीकरण है.
क्योंकि यह शब्द 'शक्ति' से नहीं बना
बना है 'सशक्त' से.

Rakesh Kumar said...

'पहला सुख निरोगी काया" यह तो सभी को और विशेषरूप से महिलाओं को ही समझना पड़ेगा.शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों की ओर ही ध्यान देना होगा.
महिला जागृति को समर्पित इस पोस्ट के लिये बहुत बहुत बधाई.

जयकृष्ण राय तुषार said...

आदरणीया डॉ० मोनिका जी स्त्री स्वास्थ्य के बारे में आपकी जानकारी बहुत उपयोगी है |बधाई और शुभकामनाएं |

जयकृष्ण राय तुषार said...

आदरणीया डॉ० मोनिका जी स्त्री स्वास्थ्य के बारे में आपकी जानकारी बहुत उपयोगी है |बधाई और शुभकामनाएं |

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@ Pratulji
Abhar jankari ke liye....

kshama said...

Adhiktar depression kee shikar mahilayen to ilaaj karwa bhee nahee sakteen!!

Amrita Tanmay said...

Jab mahilayen swayn ko prathmikta dene lagengi , apna mahtva sajhengi aur apni jarurton ko khul kar kahengi tab sahi mayne me ve sashakt hongi.maine dekha hai ki mahilayen khud ke hi sabse jyada laparvah hoti hain. hamen jagruk hona hoga.sarthak post

G.N.SHAW said...

बहुत ही सठिक पोस्ट ....स्वस्थ नारी ही एक स्वस्थ परिवार को निर्माण करती है ! इस योगदान में सरकार भी पीछे है , जागरूकता और ईमानदारी का अभाव है

ज्योति सिंह said...

घर-परिवार के हर सदस्य की सेहत का ख्याल रखने वाली महिलाएं खुद अपने स्वास्थ्य को हमेशा नजरअंदाज कर देती हैं , स्वास्थ्य की संभाल की फेहरिस्त में खुद को हमेशा दोयम दर्जे पर ही रखती हैं। हैरानी की बात तो यह है कि घर के बाकी सदस्य भी महिलाओं की सेहत को खास तवज्जोह नहीं देते। जी हाँ यह सच है की जिस तरह एक महिला चाहे माँ हो या पत्नी घर के अन्य सदस्यों की सेहत का खानपान से लाकर दवा और देखभाल तक ख्याल करती है उसी तरह घर के सदस्य महिलाओं की तकलीफों के प्रति इतने जागरूक नहीं होते । महिलाओं को समाज में हमेशा से दोयम दर्जे पर ही रखा गया है। यही सोच उनकी सेहत पर भी लागू होती नजर आती है।
bilkul sahi kaha ,ye aadate aam ho gayi aur ise badalna bhi jaroori hai swathya samaj ke liye .sundar lekhan .

Anupama Tripathi said...

A very good post.An eye opener for women.But I only hope they realise it......!!
Congratulations for such a good effort.

सुधीर राघव said...

बहुत बुनियादी मुद्दा उठाया

Kailash Sharma said...

बहुत सार्थक और विचारणीय पोस्ट...

Rajesh Sharma said...

मुझे तो कामकाजी महिलाओ को देखकर बड़ा आश्चर्य होता हैं / गोद में एक साल की बच्ची , सुबह नाश्ता लंच तैयार करना सबके लिए / क्रेश में सुबह बच्ची को छोड़ना, ९.०० बजे ऑफिस पहुचना / शाम ६ बजे क्रेश से उसे वापस लाना , मेट्रो में बाराखम्बा से साकेत तक का सफ़र / बेबी को फीड करना / थक कर बिना कुछ खाए या थोडा बहुत खाकर सो जाना / कैसे बनेगी सेहत / मोनिका जी ये सच्ची कहानी हैं किसी की / अच्छा लिखती हैं आप /

Dr Varsha Singh said...

बहुत अच्छा मुद्दा उठाया आपने .
एक अच्छे और गंभीर विषय पर ध्यान आकर्षित करने और मनन करने का अवसर देने के लिए आपका आभार।

Arun sathi said...

मोनिका जी सबसे बड़ी बात यही है कि महिलाऐं खुद अपने सेहत का ख्याल नहीं रखती। पुरानपंथी परंपराओं मंे उसे इस तरह जकर दिया गया है कि आज तक उसे तोड़ने की हिम्मत महिलाओं को नहीं हो सका है।

बचपन से ही मां के साथ झकगरता रहा हूं और आज मां और बीबी दोनों से झगरता हूं। कारण है एक दो बजे खाना खाना, एक बजे के बाद ही ब्रश करती हैं। पता नहीं गांव में ऐसी परंपरा किसने बना दी। जरूर यह पुरूषवादी परंपरा का ही दोष है जिसमें पुरूषों के खाने के बाद ही खाना खाने की परंपरा है।

मैं तो कभी कभी काफी दुखी हो जाता हूं जब बिमार होने पर भी बिना कहे दवा नहीं खाना, फल इत्यादि बच्चों को दे देना होताा है।

महेन्‍द्र वर्मा said...

महिला स्वस्थ होगी तो पूरा परिवार स्वस्थ होगा।
स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता आवश्यक है।

सामयिक और सार्थक आलेख।

Patali-The-Village said...

महिलाएं सच ही पूरे परिवार का ख़याल रखती हैं, लेकिन खुद के स्वास्थ्य से लापरवाही करती हैं|
सटीक और सार्थक लेख|

Kunwar Kusumesh said...

Heading is absolutely in consonance with the article.You have very rightly said.

Sunil Kumar said...

माँ स्वस्थ तो परिवार स्वस्थ , सारगर्भित लेख बहुत-बहुत आभार !

राजेश सिंह said...

गंभीर चिंतनपूर्ण पोस्‍ट.

तेजवानी गिरधर said...

u r right

तेजवानी गिरधर said...

aap sahi hai

amit kumar srivastava said...

only one solution......100% literacy.

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

mudde ki baaat.

-------------
क्या ब्लॉगिंग को अभी भी प्रोत्साहन की आवश्यकता है?

Coral said...

उम्दा ....... जब तक महिलाये अपने बारे में सोचेंगी नहीं ये सशक्तीकरण होना कठिन है.... बस थोड़ी सी सोच उनके साथ पुरे परिवार का स्वस्थ सुधर सकती है

Anonymous said...

नितांत आवश्यक और विचारणीय विषय - धाराप्रवाह लेखन आपकी विशेषता है आपके हर आलेख में पर्लाक्षित होती है

Anonymous said...

नितांत आवश्यक और विचारणीय विषय - धाराप्रवाह लेखन तो आपकी विशेषता है आपके हर आलेख में परिलक्षित होती है

वन्दना अवस्थी दुबे said...

बहुत सही बात. महिलाओं की एक आम खामी है ये कि वे अपना खयाल नहीं रखतीं. सच तो ये है, कि यदि वे अकेलीं हों, तो भूखी ही मर जायें. हमेशा कुछ भी खा लेंगे न, वाले मूड में रहती हैं.

Kunwar Kusumesh said...

रामनवमी की हार्दिक शुभकामनायें.

abhi said...

पोस्ट पढ़ने के बाद सबसे पहले प्रवीण जी के टिप्पणी पे नज़र गयी,वही बात मेरी भी
"माँ स्वस्थ रहे तो परिवार भी स्वस्थ रहे, वही सही सशक्तीकरण है समाज का।"

स्वस्थ होना तो आवश्यक है ही, हर क्षेत्र में..

Harshkant tripathi said...

सही कहा आपने. महिला सशक्तिकरण के नाम पे किया जा रहा ढोंग एक स्वस्थ समाज के निर्माण में सबसे बड़ी बाधा है.........

शोभना चौरे said...

मोनिकाजी
आपने बिलकुल सही लिखा है कितु कुछ हद तक महिलाये भी स्वयम जिम्मेवार है ऐसी परिस्थितियों के लिए |दिन में दस बार सबसे शिकायत करेंगी अपनी शारीरिक तकलीफ की पर डाक्टर को दिखने में कोताही बरतेंगी j|
कभी समय का बहाना , कभी कोई साथ ले जाय आदि आदि |और कभी तो ये पाया गया ही की बार बार अपनी तकलीफ बताकर सहानुभूति पाना चाहती है |

mark rai said...

haan monika ji bahut hi important issue ko uthaya hai ...agar mahilaaon ki sehat hi nahi rahega to fir impwerment ki baat kaise ho sakti hai ...isliye mahilaaon ke health par jyada dhyaan dene ki jarurat hai....

Aruna Kapoor said...

महिलाएं अपने स्वास्थ्य के प्रति तभी जागॄत हो सकती है, जब अपनी अहमियत समझें!...जीवन सिर्फ पति, बच्चे और अन्य परिवारजनों के लिए ही है...यह सोच महिलाओं को बदलनी होगी!...बहुत उपयुक्त आलेख, धन्यवाद!

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

मोनिका जी ,
बहुत सार्थक लेख .....नारी सशक्तीकरण का पहला चरण ...........नारी स्वास्थ्य सुदृढ़ हो |

vijai Rajbali Mathur said...

आप को रामनवमी की बहुत बहुत शुभकामनाएं.

वीरेंद्र सिंह said...

महिलाएँ अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग हो जाएँ तथा घर के पुरुष सदस्य भी उनकी सेहत का ध्यान रखें तो देश का भविष्य और भी बेहतर होगा.

शिक्षा और जागरूकता के ज़रिए ऐसा हो सकता है. इस सार्थक लेख के आभार.

साथ ही आपको रामनवमी की भी कोटि कोटि शुभकामनाएँ.

blogtaknik said...

नारी तू नारायणी

virendra sharma said...

jab bhi hogi "ghar"se hi hogi mahilaa sashaktikaran kee shuruaat ,jantar mantar se nahin .
veerubhai .

Arvind Jangid said...

जननी यदि स्वस्थ है, तो समाज स्वस्थ है, जननी यदि संस्कारवान है तो उसकी संतान भी समाज का ऋण उतार कर ही जायेगी.

आभार

Pragya said...

bilkul sahi baat kahi aapne.. hamare samaj me mahilaaye sach me hi jaagruk nahi hoti apne prati, apne swasthya ke prati.. yeh jagrukata laana bahut avshyak hai..

Vijuy Ronjan said...

Naari tabhi sashakt rah sakti hi hai jab wah sharirik roop se swasth rahe...aap ki paricharcha ka vishay samyakool aur sahi.Swasth samaj ka sapna ham tabhi dekh sakte jab us samaj ki nirmatri swasth rahein.

निर्मला कपिला said...

आप से सहमत हूँ। अच्छा आलेख है। शुभकामनायें।

अवनीश सिंह said...

बहुत ही सार्थक मुद्दे पर बेहतरीन पोस्ट

वीना श्रीवास्तव said...

स्वस्थ नारी ही स्वस्थ परिवार का विकास कर सकती है....खुद पर भी ध्यान देने की जरूरत है...
अच्छी पोस्ट....आभार

Brijendra Singh said...

उम्दा लेख लिखा है आपने..लेकिन कुछ बातें तर्कसंगत नहीं लगती आज के समय में..जैसे की अत्याधुनिक विचारोंयुक्त युवा अपने साथी के स्वास्थ्य के लिए काफी सजग हैं (कोई दो राय नहीं कि उन्हें उनकी महत्ता का ज्ञान है..), वहीँ हमारे गाँव देहात में आज भी स्त्रियों के स्वास्थ्य के लिए जागरूकता नहीं है..बचा हुआ माध्यम वर्ग इस विषय में कह सकते हैं कि दिमाग़ी उलझन में है कि उनको किस तरफ रुझान रखना चाहिए, आधुनिकता या रुढिवादिता...चूँकि ऐसे लोगों कि संख्या ज्यादा है तो आपके द्वारा लिखे हुए विचार उभर कर सामने आते है...(यह मेरा एक observation मात्र है, हो सकता है गलत हो..कृपया मार्गदर्शन करें..).

Ashok Pandey said...

सही बात। कोई भी समुदाय तभी सशक्‍त बन सकता है जब उसकी सेहत अच्‍छी हो। स्‍वस्‍थ शरीर में ही स्‍वस्‍थ दिमाग रहता है। जब शरीर ही स्‍वस्‍थ नहीं रहेगा तो सशक्तिकरण की बात बेमानी है।

Apanatva said...

bahut sarthak lekhan.....
health is wealth.........
ghar ke sabhee sadasyo kaa dhyaan rakhane walee grahinee ko swayam kaa bhee dhyan rakhana chahiye .
ve swasth rahengee tabhee sabhee ka dhyan acche se rakh paengee .
jagrukta aavashyk hai...

Apanatva said...

bahut sarthak lekhan.....
health is wealth.........
ghar ke sabhee sadasyo kaa dhyaan rakhane walee grahinee ko swayam kaa bhee dhyan rakhana chahiye .
ve swasth rahengee tabhee sabhee ka dhyan acche se rakh paengee .
jagrukta aavashyk hai...

Apanatva said...

bahut sarthak lekhan.....
health is wealth.........
ghar ke sabhee sadasyo kaa dhyaan rakhane walee grahinee ko swayam kaa bhee dhyan rakhana chahiye .
ve swasth rahengee tabhee sabhee ka dhyan acche se rakh paengee .
jagrukta aavashyk hai...

Vivek Jain said...

सच्ची बात!
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

hem pandey said...

लेख में व्यक्त विचारों को सौ फीसदी समर्थन देता हूँ |

Maheshwari Kaneri said...

मोनिका जी मैने आप के ब्लांग का भ्रमण किया बहुत अच्छा लगा। आप के बेटे का ब्लांग भी देखा _बहुत प्रेरित हुई ।मेरे ब्लांग मे भी आप का स्वागत है ।
धन्वाद..

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

बहुत सही मुद्दा उठाया है आपने, वो महिलाएं जो पूरे परिवार पूरे समाज की झुरी हैं, वहीं सबसे ज्यादा नेगलेक्ट की जाती हैं

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

वाकई सच है। लोग इसे पढकर भूल ना जाएं बल्कि जीवन में उतारने की कोशिश करें।

अभिन्न said...

If health is gone ..nothing is on.impowerment is just a daydream without facilitating them the basic health environment.
thanx for encourging.
.....wonderful blogging

Rajeev Panchhi said...

Agree. Very imp. post. Congrats.

पूनम श्रीवास्तव said...

monika ji
bahut hi sateek vyatharth parak prastuti.mahilayen hi parivaar ka stambh maani jaati hain .kyon ki ek mahila jis sahan-shilta v karmthta se pure parivaar ki dekh bhaal kar sakti utna mee hisaab se koi purushh chah kar bhi nahi kar paata .yadi purushh aswasth ho to mahila bakhubi saara ghar sambhaal leti hai .lekin yadi stri hi aswasth ho jaaye to pure ghar ke halat gadbadane lagte hain .fir bhi mahila pure ghar ki dekhbhaal karte samy apna hi dhyaan nahi rakh paati
iska jeeta -jagta udaharan main khud bhi hun yah sach kahne me mere man me koi hichak nahi hai .
main aapki ek-ek baat ko sach manti hun kyon ki pichle kai mahene se main khud ko hi jhel rahi hun .aaj bhi ungliya kaanp rahi hai kyon ki is samay thyoroid low himoglobin
v pet me sujan ki sthti bani hui hai ,par chah kar bhi nahi kha paa rahi hun.
isiliye vilamb se aapki post padha-kar tippni de rahi hun ,jiske liye dil se xhma chati hun.
aapki prastuti sabke liye ek behatreen marg ban sakti hai
bahut hi jaankaari avam prerana dayak prastuti ke liye bahut bahut badhai
poonam

दिगम्बर नासवा said...

सच कहा है .. महिलाओं को ऐसा माहॉल देना होगा की वो खुल कर अपने स्वस्थ और अपनी बीमारी ... आने वाले बदलाव को सहज ले सकें ... अच्छी पोस्ट है ...

रजनीश तिवारी said...

बहुत अच्छे विचार , बहुत सही मुद्दा उठाया आपने जिसे नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है । धन्यवाद एवं शुभकामनायें ।

Manoj Kumar said...

सही कहा आपने...

सुधाकल्प said...

समाज में जागरूकता लाने के नजरिये से यह लेख बहुत महत्वपूर्ण है । ्तभी लोगों की मानसिकता बदली जा सकती है ।
सुधा भार्गव

Minakshi Pant said...

सो फीसदी सही बात |

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) said...

sach hai monika ji

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

सहमत
यदि ज़मीन मजबूत होगी तभी तो गगनचुंबी इमारतें संभव होंगी|

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